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सिविल कानून

अनुच्छेद 226 के तहत CIRP

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 21-Oct-2024

KSK महानदी पावर कंपनी लिमिटेड के CoC बनाम उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य।

“उच्च न्यायालय के पास CIRP को स्थगित करने का निर्देश देकर अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं था”

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चत्तम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में KSK महानदी पावर कंपनी लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अन्य के CoC के मामले में उच्चत्तम न्यायालय ने माना है कि तेलंगाना उच्च न्यायालय ने दिवालियापन कानूनों में निर्धारित प्रक्रिया का उल्लंघन किया है और उच्चत्तम न्यायालय CIRP प्रक्रिया को स्थगित करने के उच्च न्यायालय के निर्णय को अस्वीकार करता है।

KSK महानदी पावर कंपनी लिमिटेड बनाम उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड एवं अन्य मामले की CoC की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में, KSK महानदी पावर कंपनी लिमिटेड (याचिकाकर्त्ता), जोकि विद्युत उत्पादन में लगी एक सार्वजनिक लिमिटेड कंपनी है, वर्तमान में कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिज़ाॅल्यूशन प्रक्रिया (CIRP) से गुज़र रही है।
  • उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन लिमिटेड (प्रतिवादी) ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत तेलंगाना उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
  • याचिका में याचिकाकर्त्ता कंपनी के CIRP को दो अन्य कंपनियों के साथ एकीकृत करने की मांग की गई थी।
  • तीनों कंपनियों के संबंधित समाधान पेशेवरों के माध्यम से राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष एकीकरण का अनुरोध किया गया था।
  • इससे पहले, एक वित्तीय ऋणदाता ने इन कॉर्पोरेट देनदारों के लिये CIRP के समान समेकन की मांग करते हुए NCLT के समक्ष एक आवेदन दायर किया था।
  • NCLT ने 12 फरवरी 2021 को इस आवेदन को खारिज कर दिया।
  • इसके बाद वित्तीय ऋणदाता ने NCLT की अस्वीकृति को चुनौती देते हुए राष्ट्रीय कंपनी कानून अपीलीय न्यायाधिकरण (NCLAT) में अपील दायर की।
  • इस अपील के लंबित रहने के दौरान, वित्तीय ऋणदाता ने NCLT में दो और आवेदन दायर किये।
  • NCLT ने समाधान प्रक्रिया को स्थगित कर दिया तथा CIRP कार्यवाही पर रोक लगा दी, जो NCLAT के समक्ष लंबित अपील के परिणाम के अधीन है।
  • तेलंगाना उच्च न्यायालय ने दोनों कंपनियों की CIRP को एकीकृत करने से इनकार कर दिया और दोनों कंपनियों की CIRP कार्यवाही स्थगित कर दी।
  • याचिकाकर्त्ता कंपनी की ऋणदाताओं की समिति (CoC) ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को चुनौती देते हुए उच्चत्तम न्यायालय में अपील की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चत्तम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • उच्च न्यायालय के पास CIRP को स्थगित करने का निर्देश देने का कोई औचित्य नहीं था।
    • यह निर्णय उच्च न्यायालय द्वारा संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए लिया गया था।
    • उच्च न्यायालय ने याचिका में मांगी गई मुख्य राहत देने से इनकार कर दिया था, जो तीन कॉर्पोरेट संस्थाओं के CIRP के एकीकरण से संबंधित थी। इसके बावजूद, उच्च न्यायालय ने CIRP को स्थगित करने का निर्देश दिया।
    • उच्चत्तम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत CIRP को स्थगित करने का उच्च न्यायालय का निर्देश दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता 2016 (IBC) में निर्धारित कानून के अनुशासन का उल्लंघन करता है।
    • उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश सीओसी या अन्य प्रतिवादियों को नोटिस जारी किये बिना था, जो प्रक्रियात्मक अनियमितता थी।
    • CIRP को स्थगित करने का निर्देश देकर उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र की सीमाओं का अतिक्रमण किया है।
    • एक बार जब उच्च न्यायालय ने समेकन की मुख्य राहत देने से इनकार कर दिया, तो CIRP को स्थगित करने के लिये अनुच्छेद 226 के तहत अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने का कोई कारण नहीं था।
  • उच्चत्तम न्यायालय के विश्लेषण से पता चलता है कि उच्च न्यायालय द्वारा इस तरह के हस्तक्षेप से IBC में निर्धारित संरचित प्रक्रिया बाधित हो सकती है।
  • उच्चत्तम न्यायालय ने पाया कि CIRP को स्थगित करने का उच्च न्यायालय का निर्णय अनुचित, प्रक्रियागत रूप से त्रुटिपूर्ण तथा दिवालियापन कानून ढाँचे के सिद्धांतों के साथ असंगत था।

वर्तमान मामले में उच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 226 को कैसे लागू किया?

  • अनुच्छेद 226 के तहत अधिकारिता:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकारों को लागू करने या किसी अन्य उद्देश्य के लिये सरकार सहित किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण को रिट, निर्देश या आदेश जारी करने की शक्ति देता है।
  • प्रारंभिक याचिका:
    • प्रतिवादी कंपनी ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में अनुच्छेद 226 के तहत एक याचिका दायर की, जिसमें तीन कंपनियों के CIRP को एकीकृत करने की मांग की गई।
  • मुख्य राहत से इनकार:
    • उच्च न्यायालय ने याचिका में मांगी गई मुख्य राहत, जोकि CIRP का एकीकरण था, देने से इनकार कर दिया।
  • वैकल्पिक दिशा-निर्देश:
    • मुख्य राहत देने से इनकार करने के बावजूद, उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए निर्देश जारी किया, जिसका सीधे तौर पर अनुरोध नहीं किया गया था।
  • स्थगन आदेश:
    • उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया कि समाधान प्रक्रिया को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिये जब तक कि NCLT में नया आवेदन दायर न कर दिया जाए और उस पर निर्णय न हो जाए।
  • समय-सीमा लागू की गई:
    • उच्च न्यायालय ने NCLT को ऐसे किसी भी नए आवेदन की जाँच करने और दो सप्ताह के भीतर उचित आदेश पारित करने का भी निर्देश दिया।
  • अंतरिम उपाय:
    • यह स्थगन मूलतः एक अंतरिम उपाय था, जिसे उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 226 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग करते हुए लगाया था।
    • उच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 226 के तहत अपनी व्यापक शक्तियों का प्रयोग करते हुए दिशा-निर्देश जारी किया, जिससे चल रही CIRP प्रभावित हुई।

      CIRP क्या है?

      • परिचय:
        • भारत में IBC द्वारा शासित CIRP एक समयबद्ध प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य कॉर्पोरेट देनदार के वित्तीय संकट को हल करना है तथा उसकी परिसंपत्तियों के मूल्य को अधिकतम करना है।
        • इस प्रक्रिया का प्राथमिक उद्देश्य वित्तीय रूप से संकटग्रस्त कंपनी का पुनरुद्धार सुनिश्चित करना है।
        • और ऐसे मामलों में जहाँ कंपनी का पुनरुद्धार संभव नहीं है, यह संकटग्रस्त कंपनी की परिसंपत्तियों का व्यवस्थित परिसमापन सुनिश्चित करता है, जिसे कॉर्पोरेट देनदार घोषित किया गया है।
      • प्रक्रिया का प्रारंभ:
        • CIRP की शुरुआत राष्ट्रीय कंपनी कानून न्यायाधिकरण (NCLT) के समक्ष याचिका दायर करके की जाती है, जो इन मामलों में न्यायनिर्णयन प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है।
        • यह याचिका वित्तीय ऋणदाता, परिचालन ऋणदाता, कॉर्पोरेट देनदार या NCLT द्वारा स्वतः संज्ञान लेकर शुरू की जा सकती है।
        • हालाँकि IBC की धारा 7 के तहत कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया शुरू करने के लिये आवेदन केवल वित्तीय लेनदारों द्वारा ही दायर किया जा सकता है, जो बैंक या वित्तीय संस्थान हो सकते हैं।
      • समय-सीमा:
        • IBC की धारा 12 के तहत, CIRP को 180 दिनों के भीतर या 90 दिनों की विस्तारित अवधि के भीतर पूरा किया जाना चाहिये और NCLT द्वारा दिये गए किसी भी विस्तार सहित अनिवार्य रूप से 330 दिनों के भीतर पूरा किया जाना चाहिये।
      • स्थगन अवधि:
        • एक बार CIRP शुरू हो जाने पर, स्थगन अवधि प्रभावी हो जाती है।
          • स्थगन की अवधि, संकटग्रस्त देनदार कंपनी के ऋणदाताओं को उसके विरुद्ध कोई भी कानूनी कार्रवाई करने से रोकती है तथा कॉर्पोरेट देनदार का प्रबंधन अंतरिम समाधान पेशेवर (IRP) के नियंत्रण में रखा जाता है।