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अनुकंपा नियुक्ति

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 15-Nov-2024

टिंकू बनाम हरियाणा राज्य

“अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।”

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।      

  • उच्चतम न्यायालय ने टिंकू बनाम हरियाणा राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

टिंकू बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह अपील हरियाणा पुलिस में एक मृतक कांस्टेबल के बेटे द्वारा दायर की गई थी, जिसमें अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग की गई थी, क्योंकि उसके पिता की ड्यूटी के दौरान मृत्यु हो गई थी।
  • उस समय (08.05.1995) लागू नीति में तृतीय एवं चतुर्थ श्रेणी के पदों तक ही अनुग्रहपूर्ण नियुक्तियों का प्रावधान था।
  • अपीलार्थी की माँ अशिक्षित होने के कारण नियुक्ति नहीं मांग सकती थी, इसलिये उसने अपने बेटे के लिये अनुकंपा नियुक्ति के लिये आवेदन किया।
  • हरियाणा के DGP द्वारा पुलिस अधीक्षक को एक पत्र जारी कर निर्देश दिया गया कि अपीलकर्त्ता (टिंकू) का नाम अवयस्कों के रजिस्टर में दर्ज किया जाए।
  • इससे यह संकेत मिलता है कि प्राधिकारियों का आशय अपीलकर्त्ता को मृतक की अवयस्क संतान होने के कारण बाद में रोज़गार देने का था।
  • हालाँकि, बाद में अपीलकर्त्ता के दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि दावा समय सीमा पार कर चुका था क्योंकि अपीलकर्त्ता के पिता की मृत्यु की तिथि से लेकर उसके वयस्क होने तक 11 वर्ष बीत चुके थे।
  • उपरोक्त प्रयोजन के लिये 22 मार्च, 1999 के सरकारी अनुदेशों पर भरोसा किया गया, जिसके अनुसार अवयस्क आश्रित को लाभ मिलता है, बशर्ते कि वह सरकारी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से 3 वर्ष की अवधि के भीतर वयस्क हो जाए।
  • इसके अतिरिक्त, “हरियाणा मृतक सरकारी कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा सहायता नियम, 2006” पर भी भरोसा किया गया, जिसमें अनुग्रह राशि योजना के तहत नौकरी प्रदान करने का प्रावधान नहीं था।
  • अपीलकर्त्ता ने वर्ष 2009 में उच्च न्यायालय के समक्ष एक रिट याचिका दायर की थी जिसे खारिज कर दिया गया था जिसके परिणामस्वरूप वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय के समक्ष यह तर्क दिया गया कि 22 मार्च, 1999 से पहले नियुक्ति का लाभ वयस्कता की आयु प्राप्त करने पर दिया जाता था, भले ही माता-पिता की मृत्यु की तिथि से कितना भी समय बीत गया हो, और इसलिये वर्तमान तथ्यों में ऐसा न करना भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होगा।
  • न्यायालय ने उपरोक्त बिंदुओं पर निम्नलिखित निर्णय दिया:
    • यह लाभ निर्देश लागू होने से पहले प्रदान किया गया था।
    • न्यायालय ने कहा कि यदि कोई गलत लाभ प्रदान किया गया है या योजना के विपरीत कोई लाभ प्रदान किया गया है तो इससे दूसरों को COI के अनुच्छेद 14 के संदर्भ में समानता के अधिकार के रूप में दावा करने का अधिकार नहीं मिलेगा।
  • न्यायालय ने अनुकंपा नियुक्ति के उद्देश्य का विश्लेषण करते हुए कहा कि इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है।
  • इस प्रकार, वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि किसी कर्मचारी की मृत्यु की तिथि से निर्धारित तीन वर्ष की अवधि अतार्किक या अनुचित नहीं है।
  • इसके अलावा, यह भी माना गया कि अनुकंपा नियुक्ति कोई निहित अधिकार नहीं होता है।
  • अंत में, वर्तमान तथ्यों के आधार पर न्यायालय ने माना कि यह उचित और तर्कसंगत होगा कि मृतक सरकारी कर्मचारी की विधवा और अपीलकर्त्ता की माँ को एकमुश्त अनुग्रहपूर्ण मुआवज़ा दिये जाने के लिये अपना विकल्प चुनने के लिये एक अवसर दिया जाए।

निहित अधिकार

  • मेरियम-वेबस्टर शब्दकोष में निहित अधिकार को एक ऐसे अधिकार के रूप में परिभाषित किया गया है जो किसी व्यक्ति का संपत्ति हित के रूप में पूर्णतः और बिना शर्त होता है, जिसे स्वामी की सहमति के बिना नष्ट नहीं किया जा सकता या छीना नहीं जा सकता (जैसा कि पूर्वव्यापी कानून के माध्यम से किया जाता है)।
  • भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड बनाम क्लासिक क्रेडिट लिमिटेड (2017) के मामले में, न्यायालय ने निहित अधिकार के बारे में बात करते हुए माना कि प्रत्येक वादी के पास मूल कानून में निहित अधिकार होता है, लेकिन प्रक्रियात्मक कानून में ऐसा कोई अधिकार मौजूद नहीं है।

अनुकंपा नियुक्ति क्या है?

परिचय:

  • इन नियुक्तियों का आधार और औचित्य संकटग्रस्त तथा अभावग्रस्त परिवारों को अनुतोष प्रदान करना होता है।
  • इसलिये इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना होता है।
  • यह ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसा अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जाँच या चयन प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिये।
  • इसलिये, अनुकंपा नियुक्ति, अत्यधिक वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे मृतक कर्मचारी के परिवार को अनुतोष देने के लिये प्रदान की जाती है, क्योंकि रोज़गार के बिना, परिवार संकट का सामना करने में सक्षम नहीं होगा।
  • यह किसी भी मामले में दावेदार द्वारा ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के लिये नीति, निर्देश या नियमों में निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन होगा।

ऐतिहासिक निर्णय:

  • श्रीमती विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2016):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सेवाकाल में मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली, 1974 के नियम 2(c)(iii) में 'अविवाहित' अर्हता प्राप्त 'पुत्री' शब्द को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन मानते हुए रद्द कर दिया।
  • उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य बनाम माधवी मिश्रा एवं अन्य (2021):
    • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि विवाहित पुत्री अधिकार के रूप में अनुकंपा नियुक्ति का दावा नहीं कर सकती।
  • कर्नाटक में कोषागार निदेशक एवं अन्य बनाम वी. सोम्याश्री (2021):
    • उच्चतम न्यायालय ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रदान करने के सिद्धांत को संक्षेप में इस प्रकार बताया है: -
    • अनुकंपा नियुक्ति सामान्य नियम का अपवाद है;
    • किसी भी अभ्यर्थी को अनुकंपा नियुक्ति का अधिकार नहीं होता है;
      • राज्य की सेवा में किसी भी सार्वजनिक पद पर नियुक्ति भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 और 16 के अनुसार सिद्धांत के आधार पर की जानी चाहिये;
      • अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति केवल राज्य की नीति द्वारा निर्धारित मानदंडों को पूरा करने और/या नीति के अनुसार पात्रता मानदंडों की संतुष्टि पर की जा सकती है;
      • आवेदन पर विचार की तिथि को प्रचलित मानदंड अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर विचार करने का आधार होना चाहिये।
  • महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य. बनाम सुश्री माधुरी मारुति विधाते (2022):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि, मृतक कर्मचारी की विवाहित पुत्री को उसकी मृतक माँ पर आश्रित नहीं माना जा सकता, विशेषकर तब जब कर्मचारी की मृत्यु को काफी समय बीत चुका हो।