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सिविल कानून
विधवा पुत्री को अनुकंपा नियुक्ति
« »26-Nov-2024
पुनीता भट्ट उर्फ पुनीता धवन बनाम बीएसएनएल, नई दिल्ली "विधवा पुत्री को भी 'पुत्री' की परिभाषा में शामिल किया जाएगा यदि वह अपने मृत पिता या माता पर आश्रित है।" न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला |
स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की पीठ ने कहा कि विधवा पुत्री अनुकंपा नियुक्ति की हकदार होगी।
- इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पुनीता भट्ट उर्फ पुनीता धवन बनाम बीएसएनएल, नई दिल्ली मामले में यह निर्णय दिया।
पुनीता भट्ट उर्फ पुनीता धवन बनाम बीएसएनएल, नई दिल्ली मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- याचिकाकर्त्ता एक विधवा पुत्री है और उसके पिता महाप्रबंधक (दूरसंचार) के कार्यालय में TOA (TL) के पद पर कार्यरत रहते हुए सेवाकाल के दौरान ही मर गए थे तथा उनके परिवार में पत्नी, याचिकाकर्त्ता सहित चार पुत्रियाँ और एक पुत्र थे।
- याचिकाकर्त्ता ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति की मांग करते हुए आवेदन दायर किया था।
- याचिकाकर्त्ता ने दलील दी कि उसके पति की मृत्यु हो चुकी है और पति की मृत्यु के बाद वह अपने अवयस्क बेटे के साथ अपने पिता के पास रह रही थी।
- इसके अलावा, उसने आग्रह किया कि यदि उसे नियुक्ति दी जाती है तो वह अपनी पूरी क्षमता से अपने दिवंगत पिता के उत्तराधिकारियों की देखभाल करेंगी।
- तथापि, सहायक महाप्रबंधक (दूरसंचार) ने उसे बताया कि चूँकि विधवा पुत्री प्रसारित दिशा-निर्देशों के पात्रता मानदंडों में सूचीबद्ध नहीं है, इसलिये अनुकंपा नियुक्ति के लिये उसके आवेदन पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती।
- मामले का सामना करने पर CAT ने यह निष्कर्ष दिया कि दिशानिर्देश के अनुसार विधवा पुत्री को पात्र व्यक्तियों की सूची में शामिल नहीं किया गया है, तथा अधिकरण दिशानिर्देश तैयार करने में कार्यपालिका के स्थान पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता है।
- अधिकरण ने आवेदन खारिज कर दिया।
- अंततः इस मामले पर उच्च न्यायालय में एक रिट याचिका दायर की गई।
- वर्तमान याचिका में न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाने वाला मुद्दा यह था कि “क्या किसी मृतक कर्मचारी की विधवा पुत्री ‘आश्रित पारिवारिक सदस्य’ है या नहीं, ताकि वह अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिये पात्र हो?”
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने कहा कि भारत सरकार, कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन मंत्रालय द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिये जारी दिशा-निर्देशों में कहा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति योजना ‘आश्रित पारिवारिक सदस्य’ पर लागू होती है।
- न्यायालय ने कई निर्णयों का विश्लेषण करते हुए कहा कि इन सभी निर्णयों में एक बात समान है कि 'परिवार के सदस्य' शब्द की उद्देश्यपूर्ण और व्यापक व्याख्या की गई है।
- उच्च न्यायालयों ने विवाहित पुत्रियों को भी आश्रित परिवार के अर्थ में शामिल किया है।
- न्यायालय ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में विवाहित और अविवाहित पुत्री के बीच कोई भी भेद विभेदकारी होगा और यह भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14 और 15 के विरुद्ध होगा।
- इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि यहाँ 'पुत्री' में अविवाहित पुत्रियाँ भी शामिल होंगी।
- न्यायालय ने आगे इस प्रश्न का उत्तर दिया कि क्या विधवा पुत्री भी पुत्री की परिभाषा के दायरे में आती है।
- यह देखा गया है कि विवाह के बाद तथा विधवा होने के बाद भी पुत्री की स्थिति उसके पिता की मृत्यु के बाद भी बनी रहती है।
- इसलिये, न्यायालय ने माना कि विधवा पुत्री भी पुत्री की परिभाषा में शामिल होगी।
- साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि कोई विधवा पुत्री अपने पिता पर आश्रित नहीं है, तो वह दिशानिर्देशों के तहत अनुकंपा नियुक्ति की हकदार नहीं होगी।
अनुकंपा नियुक्ति क्या है और इसे नियंत्रित करने वाले दिशानिर्देश क्या हैं?
- अनुकंपा नियुक्ति का आधार:
- इन नियुक्तियों का आधार और औचित्य संकटग्रस्त तथा अभावग्रस्त परिवारों को अनुतोष प्रदान करना है।
- इसलिये इन नीतियों का उद्देश्य परिवार को तत्काल सहायता प्रदान करना है।
- यह ध्यान देने योग्य बात है कि ऐसा अधिकार सेवा के दौरान मरने वाले कर्मचारी की सेवा की शर्त नहीं है, जिसे किसी भी प्रकार की जाँच या चयन प्रक्रिया के बिना आश्रित को दिया जाना चाहिये।
- इसलिये, अनुकंपा नियुक्ति, अत्यधिक वित्तीय कठिनाई का सामना कर रहे मृतक कर्मचारी के परिवार को अनुतोष देने के लिये प्रदान की जाती है, क्योंकि रोज़गार के बिना, परिवार संकट का सामना करने में सक्षम नहीं होगा।
- यह किसी भी मामले में दावेदार द्वारा ऐसी अनुकंपा नियुक्ति के लिये नीति, निर्देश या नियमों में निर्धारित आवश्यकताओं को पूरा करने के अधीन होगा।
- अनुकंपा नियुक्ति को नियंत्रित करने वाले दिशानिर्देश:
- भारत सरकार द्वारा अनुकंपा नियुक्ति के लिये दिशानिर्देश जारी किये गए हैं और इनमें कहा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति की योजना ‘आश्रित पारिवारिक सदस्य’ पर लागू होती है।
- इसमें प्रावधान है कि 'आश्रित पारिवारिक सदस्य' का अर्थ होगा:
- पति या पत्नी, या
- पुत्र (दत्तक पुत्र सहित)
- पुत्री (दत्तक पुत्री सहित)
- अविवाहित सरकारी कर्मचारी के मामले में भाई या बहन।
- नियुक्ति के लिये पूर्व शर्त यह है कि आवेदक मृतक कर्मचारी का पारिवारिक सदस्य हो तथा उस पर आश्रित हो।
- एक बार ये शर्तें पूरी हो जाने पर आश्रित सहित परिवार की आर्थिक या वित्तीय स्थिति का आकलन किया जाना आवश्यक है।
पुत्री की स्थिति को उजागर करने वाले मामले कौन-से हैं?
- सुनीता बनाम भारत संघ (1996):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने पुत्री की स्थिति का सारांश इस प्रकार दिया:
- ‘पुत्र तब तक पुत्र ही रहता है जब तक उसे पत्नी नहीं मिल जाती। पुत्री जीवन भर पुत्री ही रहती है।’
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने पुत्री की स्थिति का सारांश इस प्रकार दिया:
- श्रीमती विमला श्रीवास्तव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2015):
- इस मामले में न्यायालय के समक्ष "उत्तर प्रदेश सरकारी कर्मचारी (सेवा में मृत्यु) के आश्रितों की भर्ती नियमावली, 1974" के अंतर्गत अनुकंपा नियुक्ति के लिये "विवाहित पुत्री" की पात्रता का मुद्दा था।
- न्यायालय ने इस मामले में माना कि नियम 2 (c) में “परिवार” अभिव्यक्ति के दायरे से विवाहित पुत्री को बाहर रखना अवैध और असंवैधानिक है, जो संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है।
- उधम सिंह नगर ज़िला सहकारी बेंच लिमिटेड एवं अन्य बनाम अंजुला सिंह एवं अन्य (2019):
- उत्तराखंड उच्च न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष यह प्रश्न उठाया गया था कि क्या “विवाहित पुत्री” को “परिवार” की परिभाषा में शामिल न करना विभेदकारी है और भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है।
- न्यायालय ने माना कि विवाहित पुत्री को परिवार के दायरे में शामिल न करना विभेदकारी है तथा COI के अनुच्छेद 14, 15 और 16 का उल्लंघन है।