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आपराधिक कानून

अग्रिम जमा की शर्त

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 12-Nov-2024

आशा देवी बनाम नारायण कीर एवं अन्य

“राशि का 20% जमा करने के निर्देश से उसकी अपील खतरे में पड़ जाएगी।”

न्यायमूर्ति अरुण मोंगा

स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अरुण मोंगा की पीठ ने कहा कि परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 की धारा 148 के तहत अग्रिम जमा की शर्त अनिवार्य नहीं है।                 

  • राजस्थान उच्च न्यायालय ने आशा देवी बनाम नारायण कीर एवं अन्य मामले में यह निर्णय दिया।

आशा देवी बनाम नारायण कीर एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस मामले में याचिकाकर्त्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 389 के तहत सज़ा निलंबित करने के लिये आवेदन दायर किया है।
  • सत्र न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्त्ता को परक्राम्य लिखत अधिनियम, 1881 (NI अधिनियम) की धारा 148 के अनुसार जुर्माना/मुआवज़ा की राशि का 20% भुगतान करना होगा।
  • यदि याचिकाकर्त्ता सत्र न्यायालय के आदेश के अनुसार राशि का भुगतान करने में विफल रहता है तो उसे को ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सज़ा भुगतनी होगी।
  • सत्र न्यायालय का आदेश मुख्यतः इस आधार पर था कि NI अधिनियम की धारा 148 के अनुसार सज़ा को तभी निलंबित किया जा सकता है जब जुर्माने की राशि का न्यूनतम 20% परिवादी को भुगतान कर दिया जाए।
  • याचिकाकर्त्ता का कहना है कि वह एक गरीब महिला है जो दैनिक मज़दूरी पर काम करती है और इसलिये वह इतनी बड़ी राशि यानी चेक की राशि का 20% जमा करने की स्थिति में नहीं है।
  • इसलिये मामला उच्च न्यायालय के समक्ष था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि उपलब्ध तथ्यों के आधार पर याचिकाकर्त्ता की वित्तीय स्थिति को देखते हुए उसे 20% राशि जमा करने का निर्देश देना याचिकाकर्त्ता के बहुत महत्त्वपूर्ण अधिकार को खतरे में डालेगा।
  • चूँकि महिला आर्थिक संकट में है, इसलिये न्याय के व्यापक हित में उसे रियायत दी जानी चाहिये ताकि वह लंबित अपील में अपना बचाव कर सके।
  • इसलिये, न्यायालय ने अंतरिम मुआवज़े की 20% राशि अग्रिम जमा करने की शर्त को खारिज कर दिया।

NI अधिनियम की धारा 148 क्या है?

  • NI अधिनियम की धारा 148 में अपीलीय न्यायालय को दोषसिद्धि के विरुद्ध अपील लंबित रहने तक भुगतान का आदेश देने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • धारा 148(1): अपील पर अग्रिम जमा की शर्त।
    • सर्वोपरि खंड: यह उपधारा “CrPC में निहित किसी भी बात के बावजूद” शब्दों से शुरू होती है।
    • यह खंड तब लागू होता है जब NI अधिनियम की धारा 138 के तहत दोषसिद्धि के विरुद्ध लेखीवाल द्वारा अपील दायर की जाती है।
    • ऐसी स्थिति में अपीलीय न्यायालय अपीलकर्त्ता को ट्रायल कोर्ट द्वारा अधिरोपित जुर्माने या मुआवज़े की न्यूनतम 20% राशि जमा करने का आदेश दे सकता है।
    • प्रावधान: इसमें प्रावधान है कि इस धारा के अंतर्गत देय राशि NI अधिनियम की धारा 143A के अंतर्गत अपीलकर्त्ता द्वारा भुगतान किये गए किसी भी अंतरिम मुआवज़े के अतिरिक्त होगी।
  • धारा 148 (2): राशि जमा करने की समयसीमा।
    • उपधारा 1 के अंतर्गत राशि आदेश की तिथि से 60 दिनों के भीतर जमा की जाएगी।
    • इस अवधि को पर्याप्त कारण बताने पर, निर्देशानुसार 30 दिन से अधिक की अवधि के भीतर बढ़ाया जा सकता है।
  • धारा 148 (3): राशि जारी करने का निर्देश
    • अपील के लंबित रहने के दौरान, अपीलीय न्यायालय अपीलकर्त्ता द्वारा जमा की गई राशि को जारी करने का आदेश दे सकता है।
    • प्रावधान: इसमें यह प्रावधान है कि यदि अपीलकर्त्ता को दोषमुक्त कर दिया जाता है तो न्यायालय परिवादी को निर्देश देगा कि वह अपीलकर्त्ता को जारी की गई राशि, प्रासंगिक वित्तीय वर्ष के प्रारंभ में भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा प्रकाशित बैंक दर पर ब्याज सहित वापस करे।
      • उपरोक्त भुगतान की समयावधि: आदेश की तिथि से साठ दिनों के भीतर, या परिवादी द्वारा पर्याप्त कारण बताए जाने पर न्यायालय द्वारा निर्देशित तीस दिनों से अनधिक की अतिरिक्त अवधि के भीतर।

NI अधिनियम की धारा 148 पर ऐतिहासिक निर्णय क्या हैं?

  • जम्बू भंडारी बनाम MP राज्य औद्योगिक विकास निगम लिमिटेड एवं अन्य (2023):
    • न्यायालय ने कहा कि NI अधिनियम की धारा 148 की उद्देश्यपूर्ण व्याख्या की जानी चाहिये।
    • इसलिये, न्यायालय ने माना कि सामान्यतः अपीलीय न्यायालय द्वारा धारा 148 NI अधिनियम के तहत जमा राशि की शर्त लगाना न्यायोचित होगा।
    • तथापि, ऐसे मामलों में जहाँ 20% जमा करना अनुचित होगा या ऐसी शर्त लगाने से अपीलकर्त्ता को अपील के अधिकार से वंचित किया जाएगा, वहाँ लिखित रूप में कारण दर्ज करके अपवाद बनाया जा सकता है।
    • इस प्रकार,  न्यायालय ने यह स्पष्ट किया कि अपीलीय न्यायालय के लिए यह विचार करने की स्वतंत्रता हमेशा उपलब्ध है कि क्या यह एक असाधारण मामला है, जिसमें जुर्माना/मुआवज़ा राशि का 20% जमा करने की शर्त लगाए बिना सज़ा को निलंबित करने का प्रावधान है।
    • न्यायालय ने यह भी दोहराया कि जब अपीलीय न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि यह एक असाधारण मामला है तो ऐसे निष्कर्ष पर पहुँचने के कारणों को दर्ज किया जाना चाहिये।
  • सुरिंदर सिंह देसवाल बनाम वीरेंद्र गांधी (2019):
    • न्यायालय के समक्ष मुद्दा यह था कि क्या वर्ष 2018 के संशोधन अधिनियम द्वारा संशोधित NI अधिनियम की धारा 148 अनुप्रयोग में भूतलक्षी है या पूर्वेक्षित।
    • न्यायालय ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि अभियुक्त-अपीलकर्त्ता के अपील का कोई निहित अधिकार छीन लिया गया है और/या प्रभावित हुआ है।
    • इस प्रकार, अपील का कोई भी मूल अधिकार छीना नहीं गया है और/या प्रभावित नहीं हुआ है।
    • इस प्रकार न्यायालय ने माना कि धारा 148 NI अधिनियम में संशोधन के उद्देश्य और कारणों के कथन पर विचार करने तथा उसकी उद्देश्यपूर्ण व्याख्या करने पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि NI अधिनियम की धारा 148 में संशोधन प्रकृति में भूतलक्षी हैं।