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आपराधिक कानून

भा.ना.सु.सं. के अधीन परिहार की शर्तें

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 21-Feb-2025

जमानत के प्रति नीति के संबंध में 

“समय से पहले छोड़ देने की शक्ति का प्रयोग निष्पक्ष और युक्तियुक्त रीति से किया जाना चाहिये।” 

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जवल भुइयाँ की पीठ ने कहा कि दोषी को परिहार के लिये आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि कैदी को समय से पहले छोड़ देना सरकार का कर्त्तव्य है। 

  • उच्चतम न्यायालय ने  जमानत के प्रति नीति के संबंध में (2025) मामले में यह निर्णय दिया।  

जमानत मामलें के प्रति नीति के संबंध में पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस मामले में न्यायालय ने जो मुद्दे अवधारित किये वे हैं: 
  • क्या परिहार प्रदान करने की शक्ति का प्रयोग दोषी व्यक्ति या दोषी की ओर से किसी अन्य व्यक्ति द्वारा समुचित सरकार को परिहार प्रदान करने के लिये आवेदन किये बिना किया जा सकता है? 
  • परिहार प्रदान करते समय कौन सी शर्तें लगाई जा सकती हैं? 
  • क्या दोषी व्यक्ति को दिया गया परिहार स्वतः रद्द हो सकता है यदि वह उन नियमों और शर्तों का उल्लंघन करता है जिन पर परिहार दिया गया है? 
  • क्या स्थायी परिहार देने के लिये दोषियों के आवेदनों को अस्वीकार करते समय कारण अभिलिखित करने की आवश्यकता है? 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने माना कि परिहार की शर्तें अवधारित करते समय, आवश्यक विचारों में सम्मिलित हैं: 
    • आपराधिक प्रवृत्तियों को नियंत्रित करना चाहिये और पुनर्वास को बढ़ावा देना चाहिये। 
    • अत्यधिक दमनकारी नहीं होना चाहिये या लाभ को रोकना नहीं चाहिये। 
    • स्पष्ट और निष्पादन योग्य होना चाहिये, अस्पष्ट नहीं होना चाहिये। 
  • उचित सरकार माफ़भाई मोतीभाई सागर बनाम गुजरात राज्य (2024) मामले में प्रक्रियाओं का पालन करते हुए केवल शर्तों के उल्लंघन के लिये परिहार रद्द कर सकता है। 
    • न्यायालय ने माना कि समय से पहले छोड़ने का निर्णय अनुच्छेद 21 के अधीन स्वतंत्रता को प्रभावित करता हैं, इसके लिये निम्न की आवश्यकता होती है: 
    • सत्ता का निष्पक्ष और उचित प्रयोग 
    • विनिश्चय के लिये अभिलिखित कारण 
      • नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत 
      •  न्यायालय ने आगे कहा कि धारा 433-क, आजीवन दण्डादेश मिले दोषियों को कम से कम 14 वर्ष का वास्तविक कारावास काटने की आवश्यकता के कारण परिहार की शक्ति को सीमित करती है। 
    • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि धारा 433 द.प्र.सं./474 भा.ना.सु.सं. के अधीन दण्डादेश कम करने की सरकार की शक्ति परिहार की शक्ति से अलग है। 
    • न्यायालय ने विनिर्णय सुनाया कि पात्र कैदियों के लिये परिहार पर विचार करना सरकार का कर्त्तव्य है, न कि केवल एक विकल्प। 
    • राज्य को दोषियों से आवेदन मांगे बिना समय से पहले छोड़ने के पात्र कैदियों की सक्रिय रूप से पहचान करनी चाहिये और उन पर विचार करना चाहिये। 

परिहार से संबंधित प्रावधान क्या हैं? 

  • दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (द.प्र.सं.) में परीहा से संबंधित प्रावधान द.प्र.सं.की धारा 432, धारा 433 और धारा 433क हैं। 
  • यह भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (भा.ना.सु.सं.) की धारा 473, धारा 474 और धारा 475 में निहित है। 
  • भा.ना.सु.सं. की धारा 473 में निम्नलिखित मुख्य प्रावधान हैं: 
    • समुचित सरकार शर्तों के साथ या बिना शर्तों के दण्डादेश को निलंबित या परिहार कर सकती है। 
    • सरकार आवेदनों पर विचार करते समय विचारण न्यायाधीशों की राय मांग सकती है। 
    • यदि शर्तें पूरी नहीं होती हैं, तो सरकार परिहार/निलंबन रद्द कर सकती है और व्यक्ति को शेष दण्डादेश के लिये गिरफ्तार किया जा सकता है। 
    • शर्तें व्यक्ति के कार्यों पर निर्भर हो सकती हैं या उनकी इच्छा से स्वतंत्र हो सकती हैं। 
    • सरकार निलंबन और याचिका आवश्यकताओं के बारे में नियम जारी कर सकती है, जिसमें विशिष्ट प्रावधान हैं: 
    • 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये जुर्माने के अलावा अन्य दण्डादेश के लिये याचिकाएँ केवल तभी वैध होंगी जब व्यक्ति जेल में हो। 
    • याचिकाएँ जेल अधिकारियों के माध्यम से प्रस्तुत की जानी चाहिये या उसमें यह घोषणा होनी चाहिये कि व्यक्ति जेल में है। 
    • ये प्रावधान स्वतंत्रता को प्रतिबंधित करने या दायित्व लगाने वाले किसी भी न्यायालय के आदेश पर लागू होते हैं। 
    • "समुचित सरकार" का अर्थ है: 
    • संघ की विधि के विरुद्ध अपराधों के लिये केंद्र सरकार 
    • अन्य मामलों के लिये राज्य सरकार 
  • भा.ना.सु.सं. की धारा 474 में दण्डादेश लघुकरण की शक्ति प्रदान की गई है: 
    • समुचित सरकार, दण्डादेश प्राप्त व्यक्ति की सम्मति के बिना, निम्नांकित दण्डादेश का लघुकरण कर सकती है- 
    • मृत्यु दण्डादेश को आजीवन कारावास में; 
    • आजीवन कारावास के दण्डादेश को, सात वर्ष से अन्यून की अवधि के कारावास में; 
    • सात वर्ष या अधिक के लिये कारावास के दण्डादेश  को, कारावास की ऐसी अवधि के लिये, जो तीन वर्ष से कम न हो; 
    • सात वर्ष से कम के कारावास के दण्डादेश  के लिये जुर्माने का 
    • कठोर कारावास के दण्डादेश  को, किसी ऐसी अवधि के साधारण कारावास में, जिसके लिये वह व्यक्ति दंडादिष्ट किया जा सकता है। 
  • भा.ना.सु.सं. की धारा 475 कुछ मामलों में छूट या लघुकरण की शक्तियों पर निर्बंधन का प्रावधान करती है: 
    •  धारा 473 में अंतर्विष्ट किसी बात के होते हुए भी, जहाँ  किसी व्यक्ति को ऐसे अपराध के लिये, जिसके लिये मृत्युदंड विधि द्वारा उपबंधित दण्डों  में से एक है, आजीवन कारावास का दण्डादेश  दिया गया है या धारा 474 के अधीन किसी व्यक्ति को दिए गए मृत्यु दण्डादेश  का आजीवन कारावास के रूप में लघुकरण किया गया है, वहां ऐसा व्यक्ति कारावास से तब तक नहीं छोड़ा जाएगा, जब तक कि उसने चौदह वर्ष का कारावास पूरा न कर लिया हो। 

न्यायालय द्वारा परिहार के लिये जारी दिशा-निर्देश क्या हैं? 

  • न्यायालय द्वारा निकाले गए निष्कर्ष इस प्रकार हैं:  
    • समुचित सरकार को द.प्र.सं. की धारा 432 या भा.ना.सु.सं. की धारा 473 के अधीन  समय से पहले छोड़े जाने के पात्र दोषियों पर स्वतः विचार करना चाहिये, जब वे नीतिगत दिशा-निर्देशों को पूरा करते हैं - दोषी या नातेदारों से कोई विशिष्ट आवेदन की आवश्यकता नहीं है। यह बाध्यता तब लागू होती है जब जेल नियमावली या विभागीय निर्देशों में ऐसे नीतिगत दिशा-निर्देश होते हैं। 
    • हम उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निदेश देते हैं जिनके पास द.प्र.सं. की धारा 432 या भा.ना.सु.सं. की धारा 473 के अनुसार छूट देने से संबंधित कोई नीति नहीं है, कि वे आज से दो महीने के भीतर एक नीति तैयार करें। 
    • समुचित सरकार स्थायी परिहार देते समय शर्तें लगा सकती है, लेकिन ये शर्तें निम्नलिखित होनी चाहिये: 
    • अनुच्छेद 13 में उल्लिखित सुसंगत कारकों पर आधारित हो 
      • आपराधिक प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाने और पुनर्वास का समर्थन करने का लक्ष्य हो 
      • अत्यधिक दमनकारी या कठोर न हो जिससे दोषी को लाभ उठाने से रोका जा सके 
      • स्पष्ट और व्यावहारिक रूप से निष्पादन योग्य हो, अस्पष्ट न हो 
      • स्थायी परिहार देने या न देने वाले किसी भी आदेश में संक्षिप्त कारण शामिल होने चाहिये और उसे जेल अधिकारियों के माध्यम से दोषी को तुरंत सूचित किया जाना चाहिये। इसकी प्रतियां जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिवों को भेजी जानी चाहिये। जेल अधिकारियों को दोषियों को छूट अस्वीकृति आदेशों को चुनौती देने के उनके अधिकार के बारे में सूचित करना चाहिये। 
    • जैसा कि माफ़भाई मोतीभाई सागर बनाम गुजरात राज्य (2024) के मामले में कहा गया है, दोषी को सुनवाई का अवसर दिए बिना स्थायी परिहार देने वाले आदेश को वापस नहीं लिया जा सकता या रद्द नहीं किया जा सकता। स्थायी परिहार रद्द करने के आदेश में संक्षिप्त कारण होने चाहिये; 
    • जिला विधिक सेवा प्राधिकरण NALSA SOP को उसके वास्तविक अर्थ में लागू करने का प्रयास करेंगे। 
    • जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों को निष्कर्ष (क) के कार्यान्वयन की निगरानी करनी चाहिये, दोषियों की सुसंगत तिथियों का अभिलेख रखना चाहिये और जब दोषी समय से पहले छोड़ने के लिये विचार किए जाने योग्य हो जाएं तो आवश्यक कार्यवाही करनी चाहिये। राज्य विधिक सेवा प्राधिकरणों को इस जानकारी का मार्गन करने के लिये एक वास्तविक समय डेटा पोर्टल विकसित करना चाहिये।