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सिविल कानून

धारा 53A लागू करने की शर्तें

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 24-Dec-2024

गिरियप्पा एवं अन्य बनाम कमलाम्मा एवं अन्य

TPA की धारा 53A मुख्यतः अनभिज्ञ अंतरिती की सुरक्षा के लिये है।”

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 की धारा 53A को लागू करने के लिये आवश्यक शर्तें निर्धारित कीं।

  • उच्चतम न्यायालय ने गिरियप्पा एवं अन्य बनाम कमलाम्मा एवं अन्य (2024) मामले में यह निर्णय दिया।

गिरियप्पा एवं अन्य बनाम कमलाम्मा एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • प्रतिवादियों ने स्वामित्व की घोषणा और वाद-सूचीबद्ध संपत्ति पर कब्ज़े की पुनः प्राप्ति हेतु वाद दायर किया।
  • ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादियों के पक्ष में निर्णय दिया।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने नियमित प्रथम अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया। फिर उन्होंने नियमित द्वितीय अपील दायर की, जिसे भी उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
  • उच्च न्यायालय ने एक महत्त्वपूर्ण कानूनी प्रश्न तैयार किया कि क्या प्रतिवादी अपंजीकृत विक्रय समझौते के आधार पर संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 53A के तहत संरक्षण का दावा कर सकते हैं।
  • उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणी की:
    • याचिकाकर्त्ता कथित विक्रय समझौते के अस्तित्व और निष्पादन को साबित करने में विफल रहे।
    • प्रश्नगत संपत्ति प्रतिवादियों के वैध कब्ज़े में दर्शाई गई थी।
    • अवर न्यायालयों के निष्कर्ष प्रस्तुत साक्ष्य के अनुरूप थे।
  • याचिकाकर्त्ताओं (मूल प्रतिवादियों) ने कर्नाटक उच्च न्यायालय द्वारा उनकी दूसरी अपील खारिज किये जाने को चुनौती देते हुए यह विशेष अनुमति याचिका (SLP) दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने सबसे पहले TPA की धारा 53A के तहत भागिक पालन के उपाय को लागू करने के लिये पूरी की जाने वाली शर्तों पर चर्चा की।
  • न्यायालय ने कहा कि धारा 53A को भावी अंतरिती के लिये एक ढाल के रूप में कार्य करने के लिये जोड़ा गया है, जो विक्रय संविदा के तहत संपत्ति पर कब्ज़ा रखता है।
  • यहाँ निर्धारित किया जाने वाला मुख्य प्रश्न यह था कि भागिक पालन का अनुतोष दिया जा सकता है या नहीं।
  • न्यायालय ने कहा कि वादी यह दिखाने में असफल रहा है कि प्रतिवादी ने उसके पक्ष में विक्रय समझौता निष्पादित किया है और इससे उसे संविदा के भागिक पालन का दावा करने का अधिकार नहीं मिलता।
  • इस प्रकार, इस मामले में याचिका खारिज कर दी गई।

TPA की धारा 53A क्या है?

  • TPA की धारा 53A संविदाओं के भागिक पालन का प्रावधान करती है।
  • TPA में धारा 53A को शामिल करने का उद्देश्य इस देश में विचारों के टकराव को भागिक रूप से ठीक करना है।
  • मुख्यतः इसे अनभिज्ञ अंतरिती की सुरक्षा के लिये शामिल किया गया था, जो ऐसे दस्तावेजों पर भरोसा करके सुधार पर कब्ज़ा कर लेते हैं या पैसा खर्च करते हैं जो अंतरण के रूप में अप्रभावी हैं या ऐसे संविदाओं पर जो पंजीकरण के अभाव में साबित नहीं किये जा सकते हैं।
  • इस धारा का प्रभाव संपत्ति अंतरण अधिनियम और पंजीकरण अधिनियम के सख्त प्रावधानों को अंतरिती के पक्ष में शिथिल करना है, ताकि भागिक पालन का बचाव स्थापित किया जा सके।
  • धारा 53A उन प्रावधानों का अपवाद है जिनके अनुसार संविदा का लिखित और पंजीकृत होना आवश्यक है तथा जो किसी अन्य साक्ष्य द्वारा ऐसे संविदा को प्रमाणित करने पर रोक लगाते हैं।
  • इसलिये इस अपवाद को सख्ती से समझा जाना चाहिये।

TPA की धारा 53A लागू करने के लिये आवश्यक शर्तें क्या हैं?

  • TPA की धारा 53A को लागू करने के लिये अपेक्षित शर्तें इस प्रकार हैं:
    • किसी स्थावर संपत्ति के प्रतिफल के लिये अंतरण के लिये अंतरक द्वारा स्वयं या उसकी ओर से हस्ताक्षरित एक लिखित संविदा होती है, जिससे अंतरण को गठित करने के लिये आवश्यक शर्तों को उचित निश्चितता के साथ पता लगाया जा सकता है।
    • अंतरिती ने, संविदा के भागिक पालन में, सम्पत्ति या उसके किसी भाग का कब्ज़ा ले लिया है, अथवा अंतरिती, जो पहले से ही कब्ज़े में है, संविदा के भागिक पालन में कब्ज़े में बना रहता है।
    • अंतरिती ने संविदा को आगे बढ़ाने के लिये कुछ कार्य किया है और संविदा के अपने हिस्से का पालन कर दिया है या करने को तैयार है।
  • इस प्रकार, TPA की धारा 53A के तत्त्व:
    • समझौते का अस्तित्व:
      • संपत्ति के अंतरण के लिये पक्षों के बीच वैध समझौता होना चाहिये, भले ही वह लिखित या पंजीकृत न हो।
    • प्रतिफल का भुगतान:
      • अंतरिती को समझौते की शर्तों के अनुसार, पूर्णतः या भागिक रूप से प्रतिफल का भुगतान करना होगा या भुगतान करने के लिये सहमत होना होगा।
    • कब्ज़ा करना या सुधार करना:
      • अंतरिती ने समझौते के आधार पर संपत्ति पर कब्ज़ा ले लिया होगा या उसमें सुधार के लिये कोई महत्त्वपूर्ण कार्य किया होगा।

TPA की धारा 53A पर निर्णयज विधि क्या हैं?

  • प्रबोध कुमार दास बनाम दंत्रा टी कंपनी लिमिटेड एवं अन्य (1939):
    • इस मामले में प्रिवी काउंसिल ने यह कानून बनाया कि संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 53A, कब्ज़े वाले अंतरिती को कार्रवाई का कोई अधिकार नहीं देती है।
    • न्यायालय इस दृष्टिकोण से सहमत था कि धारा 53A द्वारा प्रदत्त अधिकार केवल प्रतिवादी को अपने कब्ज़े की रक्षा करने के लिये उपलब्ध अधिकार है।
    • यह अंतरिती को कोई सक्रिय अधिकार प्रदान नहीं करता है।
  • अरुण कुमार टंडन बनाम मेसर्स आकाश टेलीकॉम प्राइवेट लिमिटेड (2010):
    • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि TPA की धारा 53A का लाभ देने के लिये जिस दस्तावेज़ पर भरोसा किया गया है वह पंजीकृत दस्तावेज़ होना चाहिये।
    • रजिस्ट्रीकरण अधिनियम की धारा 49 के साथ पठित धारा 17 (1A) के मद्देनज़र किसी भी अपंजीकृत दस्तावेज़ पर भरोसा नहीं किया जा सकता है या उसे साक्ष्य के रूप में नहीं लिया जा सकता है।
    • इस प्रकार, TPA की धारा 53A का लाभ केवल तभी दिया जा सकता है जब कथित विक्रय समझौता पंजीकृत हो और यह रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1908 की धारा 17 (1A) की आवश्यकताओं को पूरा करता हो।
  • श्रीमंत शामराव सूर्यवंशी एवं अन्य बनाम एल.आर. एवं अन्य द्वारा प्रल्हाद भैरोबा सूर्यवंशी (d) (2002):
    • इस मामले में न्यायालय द्वारा निर्धारित किया जाने वाला मुद्दा यह था कि क्या वादी TPA की धारा 53A के तहत भागिक पालन के अनुसरण में अपने कब्ज़े की रक्षा करने का हकदार था, जब संविदा के विशिष्ट प्रदर्शन के लिये मुकदमा समय सीमा द्वारा वर्जित है।
    • यह कहा जा सकता है कि धारा 53A कहीं भी पक्षकार को बचाव की यह दलील देने से नहीं रोकती है।
    • धारा 53A की प्रयोज्यता के प्रयोजन के लिये आवश्यक शर्तें हैं:
      • किसी भी स्थावर संपत्ति को प्रतिफल के रूप में अंतरित करने के लिये संविदा होनी चाहिये।
      • संविदा अंतरक द्वारा हस्ताक्षरित लिखित रूप में होना चाहिये।
      • लिखित सामग्री ऐसे शब्दों में होनी चाहिये जिनसे अंतरण की व्याख्या करने के लिये आवश्यक शब्दों का पता लगाया जा सके।
      • अंतरिती को भागिक पालन के रूप में सम्पत्ति या उसके किसी भाग पर कब्ज़ा लेना होगा।
      • अंतरिती ने संविदा को आगे बढ़ाने के लिये कुछ कार्य अवश्य किया होगा।
      • अंतरिती को संविदा के अपने हिस्से का निष्पादन कर लेना चाहिये अथवा उसे निष्पादित करने के लिये तैयार होना चाहिये।
    • इसलिये न्यायालय ने माना कि यदि उपरोक्त शर्तें पूरी होती हैं तो सीमा कानून प्रतिवादी द्वारा TPA की धारा 53A के तहत दलील लेने के रास्ते में नहीं आता है।
    • इसके अलावा, न्यायालय ने माना कि जब तक कानून में कोई स्पष्ट प्रावधान न हो, बचाव में ली गई दलील पर सीमा का कानून लागू नहीं होता। सीमा का कानून मुकदमों और आवेदनों पर लागू होता है, और यह वाद में लिये गए बचाव पर लागू नहीं होता।