माफी में विलंब
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माफी में विलंब

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 05-Oct-2023

मल्लिका बनाम श्री मुथरम्मन मंदिर ट्रस्ट, नेदुमंगड

परिसीमा अवधि समाप्त होने के बाद कानूनी सलाह लेना अपील दायर करने की समय सीमा बढ़ाने का वैध कारण नहीं माना जा सकता है।

केरल उच्च न्यायालय

स्रोत: केरल उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

केरल उच्च न्यायालय (HC) ने किराया नियंत्रण पुनरीक्षण याचिका को खारिज करते हुए पुष्टि की कि परिसीमा अवधि की समाप्ति के बाद कानूनी सलाह लेने को मल्लिका बनाम श्री मुथरमन मंदिर ट्रस्ट, नेदुमंगड के मामले में अपील दायर करने की समय सीमा बढ़ाने को वैध कारण नहीं माना जा सकता है।

मल्लिका बनाम श्री मुथरम्मन मंदिर ट्रस्ट, नेदुमंगड मामले की पृष्ठभूमि

  • पहली किराया नियंत्रण याचिका में याचिकाकर्त्ता (मल्लिका) एक किरायेदार थी और उसने बेदखली याचिका में मकान मालिक के स्वामित्व को चुनौती दी थी।
    • सद्भावना के अभाव के कारण न्यायालय द्वारा याचिका का निपटारा कर दिया गया।
    • याचिकाकर्त्ता समय पर अपील दायर करने में विफल रहा, जिसने बाद में कानूनी सलाह प्राप्त करने के बाद ही अपील दायर की।
  • इसके बाद, मकान मालिक ने याचिकाकर्त्ता को बेदखल करने के लिये किराया नियंत्रण न्यायालय में एक और कार्यवाही शुरू की जिसमें याचिकाकर्त्ता ने पुनः मकान मालिक के स्वामित्व को चुनौती दी।
    • इसे न्यायिक निर्णय द्वारा वर्जित मानकर ख़ारिज कर दिया गया।
    • याचिकाकर्त्ता ने उक्त आदेश को अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष चुनौती दी और उसे खारिज कर दिया गया।
    • याचिकाकर्त्ता ने आगे उपर्युक्त आदेश के खिलाफ अपील दायर की।
  • उक्त अपील दायर करने में 1160 दिनों की देरी हुई थी और इसलिये याचिकाकर्त्ता ने माफी में विलंब के लिये एक आवेदन प्रस्तुत किया है।
  • विलंब माफी करने के आवेदन के समर्थन में दायर हलफनामे में याचिकाकर्त्ता द्वारा बताया गया एकमात्र कारण यह था कि उसकी ओर से वकील ने उसे ऐसे समय में आदेश के खिलाफ अपील करने की सलाह दी थी।
  • अपीलीय प्राधिकारी ने विलंब माफी करने से इनकार कर दिया।
  • याचिकाकर्त्ता ने इस प्रकार उच्च न्यायालय के समक्ष यह याचिका दायर की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ

  • न्यायाधीश पी.बी. सुरेश कुमार और न्यायाधीश पी.जी. अजितकुमार ने कहा कि यदि किसी पक्षकार द्वारा प्राप्त कानूनी सलाह के आधार पर विलंब माफी दे दिया जाता है, तो इससे परिसीमा अधिनियम का उद्देश्य विफल हो जाएगा।
  • न्यायालय ने यह भी कहा, "परिसीमा अधिनियम की धारा 5 के संदर्भ में कार्यवाही शुरू करने में विलंब माफी करने पर कानूनी सलाह को एक कारण के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है, किसी भी पर्याप्त कारण के रूप में तो बिल्कुल भी नहीं, क्योंकि यदि बाद की कानूनी सलाह को एक कारण के रूप में स्वीकार किया जाता है तो कार्यवाही शुरू करने में विलंब माफी करने का कारण, परिसीमा अधिनियम के उद्देश्य को ही विफल हो जाएगा, अर्थात, प्रत्येक उपाय केवल विधायिका द्वारा निर्धारित अवधि की समाप्ति तक ही रहना चाहिये जो कि सार्वजनिक नीति पर स्थापित एक सिद्धांत है। ”

परिसीमा अधिनियम, 1963 में शामिल कानूनी प्रावधान

  • यह अधिनियम निम्नलिखित सिद्धांतों पर आधारित है:
    • इंटरेस्ट रिपब्लिके यूट सिट फिनिस लिटियम - जनता के हित में, मुकदमेबाजी समाप्त होनी चाहिये।
    • विजिलेंटिबस नॉन डोरमेंटिबस जुरा सबवेनिनेट - न्यायालय उन लोगों की रक्षा करता है, जो अपने अधिकारों के प्रति सतर्क हैं।
  • अधिनियम की धारा 5 के तहत विलंब माफी की अवधारणा का उल्लेख किया गया है।

धारा 5 - विहित काल का कतिपय दशाओं में विस्तारण-कोई भी अपील या कोई भी आवेदन, जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (1908 का 5) के आदेश 21 के उपबंधों में से किसी के अधीन के आवेदन से भिन्न हो, विहित काल के पश्चात् ग्रहण किया जा सकेगा यदि अपीलार्थी या आवेदक, न्यायालय का यह समाधान कर दे कि उसके पास ऐसे काल के भीतर अपील या आवेदन न करने के लिये पर्याप्त हेतुक था।

स्पष्टीकरण-यह तथ्य कि अपीलार्थी या आवेदक विहित काल का अभिनिश्चय या संगणना करने में उच्च न्यायालय के किसी आदेश, पद्धति या निर्णय के कारण भुलावे में पड़ गया था, इस धारा के अर्थ के भीतर पर्याप्त हेतुक हो सकेगा।

  • यदि न्यायालय संतुष्ट है कि पर्याप्त कारण मौज़ूद है तो वह माफी में विलंब कर सकता है।
  • हाल ही में साबरमती गैस लिमिटेड बनाम शाह अलॉयज लिमिटेड (वर्ष 2023) में उच्चतम न्यायालय (SC) ने पर्याप्त कारण को ऐसे कारण के रूप में परिभाषित किया जिसके लिये किसी पक्षकार को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है।
  • इसमें पर्याप्त कारण में शामिल हो सकते हैं:
    • बीमारी: यह केवल एक पर्याप्त कारण हो सकता है, जहाँ व्यक्ति किसी भी कर्त्तव्य करने में पूरी तरह से अक्षम होता है।
      • उदाहरण के लिये - एक दुर्घटना जिसमें कोई व्यक्ति गंभीर रूप से घायल हो गया हो, उसे पर्याप्त कारण माना जाएगा जबकि सामान्य फ्लू के कारण होने वाली बीमारी को पर्याप्त कारण नहीं माना जा सकता है।
      • प्राकृतिक आपदाएँ: यदि बाढ़, भूकंप, या अन्य प्राकृतिक आपदा ने किसी को वैधानिक सीमा अवधि के भीतर अपना मामला दायर करने से रोका है, तो इसे पर्याप्त कारण माना जा सकता है।
      • वकील की गलती: सलाह स्वयं पर्याप्त कारण के दायरे में नहीं आती है, लेकिन मोहनलाल बनाम तेजसिंह ठाकुर (वर्ष 1958) मामले में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने माना कि जहाँ सलाह सद्भावना के आधार पर दी जाती है और वहाँ वकील की ओर से कोई लापरवाही या उचित कौशल की कमी नहीं होती है, इसे पर्याप्त कारण माना जा सकता है।
      • तथ्य की गलती: बीरबल बनाम हीरालाल (वर्ष 1953) में, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने माना कि पक्षकार या उसके अभिकर्त्ता की ओर से तथ्य की वास्तविक गलती को पर्याप्त कारण माना जाएगा।
      • कानून की गलती: इसे आमतौर पर पर्याप्त कारण नहीं माना जाता है, लेकिन परस्पर विरोधी निर्णयों के अस्तित्व के कारण अपील दायर करने वाले पक्ष के लिये भ्रम उत्पन्न हो गया है, जिसे माफी में विलंब करने के लिये विस्तारण मांगने का एक वैध कारण माना जा सकता है।
      • कानूनी नोटिस न मिलना: यदि व्यक्ति को सीमा अवधि समाप्त होने के बाद तक मामले से संबंधित कानूनी नोटिस या महत्त्वपूर्ण दस्तावेज़ नहीं मिले हैं, तो इसे पर्याप्त कारण माना जा सकता है।