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राजस्थान

शादी के झूठे वादे पर सहमति

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 07-Aug-2023

चर्चा में क्यों? 

बबलूजुम्मन शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य के प्रकरण/वाद में बॉम्बे उच्च न्यायालय  ने अपनी मुवक्किल के साथ बलात्कार के आरोपी वकील को अग्रिम जमानत दे दी है, यह देखते हुए कि संबंध सहमति से बने प्रतीत होते हैं। 

पृष्ठभूमि 

आवेदक और प्राथमिकी दर्ज करवाने वाला व्यक्ति जनवरी 2023 के महीने में एक-दूसरे से परिचित हुए। 

प्राथमिकी दर्ज करवाने वाले का दावा है कि आवेदक जो पेशे से वकील है, उसकी मुकदमेबाज़ी में मदद कर रहा था। 

उसने उसे बताया कि वह अविवाहित है और उसने शादी का झूठा वादा करके उसकी सहमति के बिना उसके साथ यौन संबंध बनाए। 

मार्च 2023 में पीड़ित  ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (आईपीसी) की धारा 376 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर ) दर्ज कराई  । 

न्यायालय ने उन्हें आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 (सीआरपीसी) की धारा 438 के तहत एक आवेदन पर अग्रिम जमानत दे दी ।  

न्यायालय की टिप्पणियाँ 

●    न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री, विशेष रूप से व्हाट्सएप चैट, संदेश, प्रथम दृष्टया संकेत देते हैं कि प्राथमिकी दर्ज करवाने वाले ने न केवल घटना की कथित तारीख के बाद, बल्कि एफआईआर दर्ज कराने के बाद भी आवेदक के साथ लगातार संपर्क बनाए रखा  था, यानी यह जानने के बाद भी कि वह एक शादीशुदा आदमी है। 

●    न्यायालय ने यह कहा कि प्रथम दृष्टया यह संबंध आपसी सहमति से बना प्रतीत होता है। 

कानूनी प्रावधान 

धारा 376, आईपीसी 

●    यह धारा बलात्कार के लिये सज़ा से संबंधित है । 

●    बलात्कार करने की सज़ा दस साल का कठोर कारावास है जिसे आजीवन कारावास और जुर्माने तक बढ़ाया जा सकता है । 

●    आईपीसी की धारा 376 के तहत यह अपराध गैर-जमानती और संज्ञेय है। 

●    आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2013 के आधार पर आईपीसी की धारा 376 में निम्नलिखित संशोधन किये गए। 

●    धारा 376ए जोड़ी गई थी जिसमें कहा गया था कि यदि किसी व्यक्ति ने बलात्कारकिया है, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो गई, या वह बेहोशी की हालत में है या घायल हो गई है, तो उसे 20 साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। 

●    फिर धारा 376ख जोड़ी गई और इस धारा के अनुसार यदि कोई पति अलग होने के बाद अपनी पत्नी से बलात्कार का दोषी है, तो उसे 2 से 7 साल तक की कैद और जुर्माना होगा। 

●    इसके बाद, धारा 376ग शामिल की गई जिसमें कहा गया है कि अगर किसी भी प्राधिकार का कोई व्यक्ति बलात्कार करता है, तो उस व्यक्ति को कम से कम पाँच साल की कैद की सजा दी जाएगी, जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है और जुर्माना लगाया जाएगा। 

●    फिर धारा 376घ जोड़ी गई जिसमें सामूहिक बलात्कार के लिये 20 साल की सज़ा का प्रावधान किया गया , जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। 

●    इसके बाद, धारा 376ड जोड़ी गई जिसमें कहा गया है कि बलात्कार के लिये दूसरी बार दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास होगा। 

●    आपराधिक संशोधन अधिनियम, 2018 के आधार पर धारा 376 में निम्नलिखित संशोधन किये गए थे । 

o    किसी महिला से बलात्कार के लिये न्यूनतम सज़ा 7 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दी गई। 

o    16 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार के लिये न्यूनतम 20 साल की सजा होगी, जिसे आजीवन कारावास तक बढ़ाया जा सकता है। 

o    12 साल से कम उम्र की लड़की से बलात्कार पर न्यूनतम 20 साल की सज़ा होगी, जिसे आजीवन कारावास या मौत की सज़ा तक बढ़ाया जा सकता है।  

o    किसी लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में, 16 वर्ष से कम आयु में, आजीवन कारावास की सजा होगी।  

o    12 साल से कम उम्र की लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के मामले में, सज़ा आजीवन कारावास या मौत होगी। 

●    आईपीसी की धारा 375 बलात्कार को परिभाषित करती है और इसमें किसी महिला के साथ बिना सहमति के संभोग सहित सभी प्रकार के यौन उत्पीड़न शामिल हैं। 

●    हालाँकि, यह प्रावधान दो अपवाद भी बताता है। 

o    वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के अलावा, इसमें उल्लेख किया गया है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं या हस्तक्षेपों को बलात्कार नहीं माना जाएगा। 

o    आईपीसी की धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि "किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ यौन संबंध बनाना, और अगर पत्नी पंद्रह वर्ष से कम उम्र की न हो, तो बलात्कार नहीं है"। 

●    विजय जाधव बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य मामले में यानी (शक्ति मिल्स रेप केस2013) में, बॉम्बे उच्च न्यायालय  ने आईपीसी की धारा 376ई को संवैधानिक रूप से वैध घोषित किया। 

●    मुकेश और अन्य बनाम दिल्ली एनसीटी और अन्य मामले यानी (निर्भया केस2017) में, सर्वोच्च न्यायालय ने आरोपियों को दी गई मौत की सज़ा को बरकरार रखा और कहा कि यह मामला "दुर्लभ से दुर्लभतम" श्रेणी में आता है। इस घटना के बाद वर्ष 2013 में आपराधिक कानून में संशोधन किया गया। 

धारा 438, सीआरपीसी 

●    सीआरपीसी की धारा 438 अग्रिम जमानत के प्रावधान से संबंधित है। 

●    अग्रिम जमानत के तहत, कोई आरोपी गिरफ्तार होने से पहले जमानत के लिये आवेदन कर सकता है। 

●    यह सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है। 

●    यह जमानत विवेकाधीन है और न्यायालय अपराध की प्रकृति और गंभीरता पर विचार करने के बाद जमानत दे सकती है। 

●    सीआरपीसी, 1973 के अनुसार अग्रिम जमानत में निम्नलिखित में से कोई भी शर्त हो सकती है: 

o    आवेदक आवश्यकता पड़ने पर पूछताछ के लिये उपलब्ध होगा , जिसका अर्थ है कि वह जाँच में सहयोग करेगा। 

o    आवेदक किसी भी गवाह को प्रेरित नहीं करेगा, धमकी नहीं देगा या मना नहीं करेगा । 

o    आवेदक न्यायालय की पूर्व अनुमति के बिना भारत नहीं छोड़ेगा । 

o    कोई अन्य शर्त जिसे न्यायालय उचित समझे। 

●    सीआरपीसी की धारा 437(5) एवं धारा 439 अग्रिम जमानत को रद्द करने से संबंधित है। तथ्यों पर उचित विचार करने पर न्यायालय को जमानत रद्द करने या जमानत से संबंधित आदेश वापस लेने का अधिकार है।  

●    गुरबख्श सिंह सिब्बिया बनाम पंजाब राज्य (1980) में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि सीआरपीसी की धारा 438(1) की व्याख्या संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा) के आलोक में की जानी चाहिये । न्यायालय ने यह भी माना कि किसी व्यक्ति के अधिकार के मामले के रूप में अग्रिम जमानत देना निश्चित अवधि तक सीमित नहीं होना चाहिये। 

●    सलाउद्दीन अब्दुलसमद शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य (1995) में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पहले के फैसले को खारिज कर दिया और कहा कि अग्रिम जमानत देना निश्चित अवधि तक सीमित होना चाहिये। 

●    सुशीला अग्रवाल और अन्य बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली 2020) में, शीर्ष न्यायालय ने माना कि सामान्य नियम के रूप में अग्रिम जमानत एक निश्चित अवधि तक सीमित नहीं होगी ।