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राजस्थान

CrPC की धारा 167 के तहत हिरासत

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 08-Aug-2023

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और एम. एम. सुंदरेश की पीठ ने धन शोधन मामले (money laundering case) में तमिलनाडु के मंत्री सेंथिल बालाजी की उस याचिका को खारिज कर दिया है जिसमें मंत्री ने स्वयं को प्रवर्तन निदेशालय द्वारा हिरासत में लेने के फैसले को चुनौती दी थी। 
वी. सेंथिल बालाजी बनाम तमिलनाडु राज्य (प्रतिनिधित्व उप निदेशक और अन्य द्वारा किया गया।) मामले में अदालत ने यह टिप्पणी की। 

पृष्ठभूमि  

  1. अपीलार्थी और अन्य व्यक्तियों के खिलाफ 2021 में मामला दर्ज़ किया गया था  

  1. यह पाते हुए कि अपीलार्थी मामले की जाँच में पर्याप्त सहयोग नहीं दे रहा था, प्राधिकरण ने जून 2023 में गिरफ्तारी के माध्यम से धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA)) की धारा 19 लागू की  

  1. प्रतिवादियों ने 15 दिनों की न्यायिक हिरासत की मांग करते हुए माननीय प्रधान सत्र न्यायाधीश के समक्ष एक आवेदन दायर किया  

  • उन्हें 28.06.2023 तक न्यायिक हिरासत में भेजते हुए प्रतिप्रेषण (रिमांड) का आदेश पारित किया गया । 

  1. अपीलार्थी ने एक विशेष अनुमति याचिका से उत्पन्न अपील दायर की जिसमें कहा गया कि: 

  • किसी अधिकृत अधिकारी के पक्ष में हिरासत की मांग करने के लिये धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 (Prevention of Money Laundering Act, 2002 (PMLA)) के तहत कोई शक्ति निहित नहीं है । 

  • ऐसा अधिकृत अधिकारी पुलिस अधिकारी नहीं है और इसलिये, दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC)) की धारा 167(2), उसके पक्ष में प्रतिप्रेषण (रिमांड) के विशेष संदर्भ में, उपलब्ध नहीं है  

  • CrPC, 1973 की धारा 167(2) के तहत हिरासत केवल एक पुलिस अधिकारी के पक्ष में हो सकती है, किसी अन्य एजेंसी के पक्ष में नहीं  

न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations) 

न्यायालय ने इस मामले में निम्नलिखित टिप्पणियाँ दीं: 

  1. CrPC की धारा 167 के तहत “ऐसी हिरासत जिसे मजिस्ट्रेट उचित समझे" शब्द उसके लिये उपलब्ध विवेक की सीमा को दोहराएँगे  

  • हिरासत के सवाल पर फैसला करना संबंधित मजिस्ट्रेट का काम है, चाहे वह हिरासत न्यायिक हो या किसी जाँच एजेंसी को या किसी दिये गए मामले में किसी अन्य संस्था को दी गई हो। 

CrPC की धारा 167 के पहलू (Facets of Section 167 CrPC) 

  1. 'हिरासत' शब्द का तात्पर्य किसी को सुरक्षात्मक निगरानी में रखना है  

  1. न्यायिक हिरासत और पुलिस हिरासत के रूप में हिरासत धारा 167 के अंतर्गत आती है जो CrPC के अध्याय XII के तहत प्रतिष्ठितहै  

  1. CrPC की धारा 167 में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • चौबीस घंटे के अंदर जाँच पूरी नहीं होने पर प्रक्रिया 

  • मजिस्ट्रेट की शक्तियाँ 

  • मजिस्ट्रेट की शक्तियों पर सीमाएँ 

  1. यह प्रावधान पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत दोनों के लिये एक समयसीमा तय करता है। 

  1. धारा 167 तब लागू की जाती है जब आरोपी को उसकी हिरासत के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश नहीं किया जाता है और भारत के संविधान, 1950 के अनुच्छेद 22 (2) द्वारा प्रदत्त उसके मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है  

  1. उच्च न्यायालय द्वारा द्वितीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट को अभियुक्त को पुलिस हिरासत में रखने का आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है। 
     
    पुलिस हिरासत (Police Custody) 

  1. पुलिस हिरासत से तात्पर्य संदिग्ध को हिरासत में लेने के लिये पुलिस स्टेशन के लॉक-अप में पुलिस के साथ किसी संदिग्ध को हिरासत में रखने से है। 

  1. जब पुलिस किसी संदिग्ध को हिरासत में लेती है, तो उसे गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है  

  1. मजिस्ट्रेट इस धारा के तहत पंद्रह दिनों से अधिक की पुलिस हिरासत की अनुमति नहीं दे सकता है  

  • यदि मजिस्ट्रेट के पास मामले की सुनवाई का कोई अधिकार क्षेत्र नहीं है और वह मानता है कि आगे की हिरासत अप्रासंगिक है, तो वह आरोपी की सुनवाई को उच्च रैंक के ऐसे किसी मजिस्ट्रेट को भेजने का आदेश दे सकता है जो इस धारा के तहत मामले की सुनवाई करने के लिये अधिकृत है।  

न्यायिक हिरासत (Judicial Custody) 

CrPC की धारा 167(2)(a) के तहत,  

धारा 167 (2) (a) के तहत मजिस्ट्रेट पंद्रह दिनों की अवधि से अधिक, पुलिस की हिरासत के अलावा, आरोपी व्यक्ति की हिरासत को अधिकृत कर सकता है; यदि वह संतुष्ट है कि ऐसा करने के लिये उचित आधार मौज़ूद हैं, लेकिन किसी भी स्थिति में, मजिस्ट्रेट निम्नलिखित से अधिक अवधि के लिये हिरासत का आदेश नहीं दे सकता: 

  1. 90 दिन, यदि आरोपी पर मृत्यु, आजीवन कारावास या कारावास जो दस वर्ष से कम नहीं है से दंडनीय अपराध का आरोप लगाया जाता है। 

  1. 60 दिन, यदि जाँच किसी अन्य अपराध से संबंधित है। 60 दिनों या 90 दिनों की समय अवधि पूरी होने के बाद, आरोपी को जमानत पर रिहा किया जाएगा यदि वह जमानत देने में सक्षम है। इस अवधि की गिनती उस दिन से की जाती है जिस दिन उसे हिरासत में लिया गया था न कि गिरफ्तारी की तारीख से। 

  1. यदि 90 या 60 दिनों के भीतर जाँच पूरी नहीं होती है, तो उसे धारा 167 (2) के प्रावधानों के तहत जमानत पर रिहा करना होगा। 

    ऐतिहासिक मामले 

  1. ज्ञान सिंह बनाम राज्य (दिल्ली प्रशासन) (1981): 

  • मजिस्ट्रेट की अनुमति से न्यायिक हिरासत के दौरान पुलिस द्वारा मात्र पूछताछ से, हिरासत की प्रकृति नहीं बदली जा सकती। 

  1. केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, विशेष अन्वेषण प्रकोष्ठ- I, नई दिल्ली बनाम अनुपम जे. कुलकर्णी (1992): 

  • यह माना गया कि धारा 167(2) के तहत मजिस्ट्रेट आरोपी को ऐसी हिरासत में रखने का अधिकार दे सकता है जैसा वह उचित समझे लेकिन यह कुल मिलाकर पंद्रह दिनों से अधिक नहीं होनी चाहिये 

  • इसलिये, हिरासत शुरू में कुल मिलाकर पंद्रह दिन से अधिक नहीं होनी चाहिये, चाहे पुलिस हिरासत हो या न्यायिक हिरासत। 

  1. कोसानापु रामरेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य और अन्य (1994): 

  • उच्चतम न्यायालय (SC) ने माना कि न्यायिक हिरासत में आरोपी को, यदि परिस्थितियाँउचित हों, तो CrPC की धारा 167(2) में निर्धारित समय सीमा (15 दिन) के भीतर पुलिस हिरासत में या इसके विपरीत भेजा जा सकता है। 

  1. गौतम नवलखा बनाम राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (2021): 

  • ‘हाउस अरेस्ट' और 'ट्रांजिट रिमांड' को शामिल करके प्रावधान का दायरा बढ़ा दिया। 

  • न्यायालय ने कहा कि उचित मामलों में निचले न्यायालयों द्वारा न्यायिक या पुलिस हिरासत के बजाय हाउस अरेस्ट का आदेश दिया जा सकता है