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सिविल कानून

सादा बंधक और सशर्त विक्रय द्वारा बंधक के बीच अंतर

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 11-Dec-2024

लीला अग्रवाल बनाम सरकार एवं अन्य

“अधिनियम की धारा 58(c) के तहत सशर्त विक्रय द्वारा बंधक के सभी आवश्यक तत्त्व वर्तमान मामले में संतुष्ट हैं क्योंकि बंधककर्त्ता द्वारा बंधकदार को संपत्ति का स्पष्ट विक्रय किया गया था और विक्रय सशर्त था”।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी. वराले

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, लीला अग्रवाल बनाम सरकार एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि जब मूल बंधक "सशर्त विक्रय द्वारा बंधक" था, तो बंधककर्त्ता द्वारा मात्र कब्ज़ा लेना "सादा बंधक" नहीं माना जाता है।

लीला अग्रवाल बनाम सरकार एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला दो पक्षों के बीच भूमि बंधक संव्यवहार के इर्द-गिर्द घूमता है।
  • वादी (एक भूस्वामी) ने वित्तीय आवश्यकताओं के कारण प्रतिवादी को 2 एकड़ कृषि भूखंड बंधकित किया था।
  • प्रारंभिक बंधक राशि ₹75,000 थी, इस समझौते के साथ कि वादी तीन वर्षों के भीतर कुल ₹1,20,000 (जिसमें मूलधन, ब्याज और व्यय शामिल थे) चुकाकर भूमि को छुड़ा सकता है।
  • बंधक विलेख में एक महत्त्वपूर्ण खंड था: यदि वादी तीन वर्षों के भीतर राशि चुकाने में विफल रहा, तो बंधक स्वतः ही प्रतिवादी के पक्ष में पूर्ण विक्रय में परिवर्तित हो जाएगा।
  • वर्ष 1993 में जब वादी ने 1,20,000 रुपए की बंधक राशि चुकाने का प्रयास किया तो प्रतिवादी ने भुगतान स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
  • प्रतिवादी ने तर्क दिया कि बंधक विलेख की शर्तों के अनुसार, वादी द्वारा निर्धारित समय सीमा के भीतर ऋण चुकाने में विफल रहने के कारण भूमि पहले ही उसकी पूर्ण संपत्ति बन चुकी थी।
  • प्रतिवादी के इनकार से असंतुष्ट होकर वादी ने वर्ष 2001 में एक सिविल वाद दायर किया जिसमें निम्नलिखित मांगें की गईं:
    • बंधक का मोचन।
    • यह घोषणा कि प्रतिवादी का स्वामित्व का दावा अमान्य था।
  • मामला बंधक की प्रकृति की व्याख्या करने पर टिका था - क्या यह एक सादा बंधक था या सशर्त विक्रय द्वारा बंधक था, और संपरिवर्तन खंड की वैधता।
  • ट्रायल कोर्ट ने माना कि बंधक के विक्रय में परिवर्तित करने की शर्त "मोचन की इक्विटी पर अवरोध" थी।
  • इसके बाद मामले की अपील की गई, जिसके बाद छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी की अपील को खारिज कर दिया और इस बात पर ज़ोर दिया कि वादी के पास भूमि का कब्ज़ा बना हुआ है, जिससे पता चलता है कि यह एक सादा बंधक था और इस बात पर सहमति थी कि संपरिवर्तन खंड मोचन की इक्विटी पर एक अवरोध था।
  • इस निर्णय से व्यथित होकर वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • यह पाया गया कि बंधक विलेख संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 (TPA) की धारा 58 (c) के तहत सशर्त विक्रय द्वारा बंधक के सभी तत्त्वों को संतुष्ट करता है।
    • यह पाया गया कि वादी द्वारा कब्जे से संव्यवहार की प्रकृति का खंडन नहीं होता।
  • अवर न्यायालयों की आलोचना की गई:
    • कब्ज़े पर अनावश्यक ज़ोर देना।
    • बंधक विलेख की स्पष्ट शर्तों की अनदेखी करना।
    • पक्षों के स्पष्ट आशय की अनदेखी करना।
  • यह उल्लेख किया गया कि वादी निम्नलिखित में असफल रहा:
    • न्यायालय में व्यक्तिगत रूप से साक्ष्य देने में।
    • भुगतान के प्रयास का विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करने में।
    • छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता, 1959 की धारा 165 की प्रयोज्यता स्थापित करने में।
  • अंततः अपील स्वीकार कर ली गई और:
    • ट्रायल कोर्ट और उच्च न्यायालय दोनों के निर्णय को खारिज कर दिया।
    • वादी के वाद को खारिज कर दिया।
    • ट्रायल कोर्ट को जमा की गई राशि ब्याज सहित वापस करने का निर्देश दिया।
  • उच्चतम न्यायालय ने मूलतः पूर्ववर्ती न्यायालयों की व्याख्या को पलट दिया तथा बंधक विलेख के बारे में प्रतिवादी की समझ के पक्ष में निर्णय दिया।

बंधक क्या है?

  • TPA की धारा 58 (a) के तहत बंधक को किसी विशिष्ट स्थावर संपत्ति में हित के अंतरण के रूप में परिभाषित किया गया है, जिसका उद्देश्य ऋण के रूप में अग्रिम या दिये जाने वाले धन का भुगतान, मौजूदा या भविष्य का ऋण, या किसी ऐसे कार्य का निष्पादन जिससे आर्थिक (मौद्रिक) दायित्व उत्पन्न हो सकता है।
  • अंतरक को बंधककर्त्ता, अंतरिती को बंधकदार कहा जाता है; वह मूलधन और ब्याज जिसका भुगतान कुछ समय के लिये सुरक्षित है, बंधक-धन कहलाता है, तथा वह लिखत (यदि कोई हो) जिसके द्वारा अंतरण किया जाता है, बंधक-विलेख कहलाता है।

सादा बंधक और सशर्त विक्रय द्वारा बंधक के बीच क्या अंतर है?

पहलू

सादा बंधक

सशर्त विक्रय द्वारा बंधक

परिभाषा (धारा)

TPA की धारा 58(b) के तहत परिभाषित

TPA की धारा 58(c) के तहत परिभाषित

संव्यवहार की प्रकृति

बंधककर्त्ता संपत्ति का कब्ज़ा दिये बिना ऋण चुकाने के लिये स्वयं को व्यक्तिगत रूप से बाध्य करता है।

बंधककर्त्ता, बंधक रखी गई संपत्ति को, भुगतान न करने या डिफाॅल्ट होने की शर्त के साथ बेचता है।

कब्ज़ा और उपभोग

बंधककर्त्ता के साथ बने रहता है

संपत्ति का कब्ज़ा विक्रय और पुनर्भुगतान की शर्तों से संबंधित होता है

डिफाॅल्ट के संबंध में शर्त

यदि ऋण का भुगतान नहीं किया जाता है तो बंधककर्त्ता को न्यायालय के माध्यम से संपत्ति बेचने का अधिकार होता है।

पुनर्भुगतान की स्थिति के आधार पर विक्रय पूर्ण, शून्य हो जाता है, या संपत्ति पुनः अंतरित कर दी जाती है।

स्वामित्व या कब्ज़े का वितरण

संपत्ति का स्वामित्व या कब्जा नहीं दिया जाएगा।

स्वामित्व पुनर्भुगतान की शर्तों पर निर्भर करते हुए दृश्यमान विक्रय।

पुरोबंध

कोई पुरोबंध नहीं।

इसका उपाय पुरोबंध है।

विक्रय की शक्ति

केवल न्यायालय के माध्यम से ही प्रयोग किया जाता है।

विक्रय की कोई शक्ति नहीं; उपाय पुरोबंध में निहित है।

रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकताएँ

रजिस्ट्रीकृत लिखत द्वारा प्रभावित होना चाहिये।

अनिवार्य रजिस्ट्रीकरण केवल तभी होगा जब राशि 500 ​​रुपए से अधिक हो।

शामिल दस्तावेज़

निर्दिष्ट नहीं है लेकिन रजिस्ट्रीकरण की आवश्यकता होती है।

विक्रय और पुनर्भुगतान की शर्तों को शामिल करने वाला एक ही दस्तावेज़ होना चाहिये।

बंधककर्त्ता का व्यक्तिगत दायित्व

बंधककर्त्ता पुनर्भुगतान के लिये व्यक्तिगत रूप से ज़िम्मेदार होता है।

ऋण चुकाने के लिये बंधककर्त्ता की कोई व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी नहीं होती।

बंधकदार के उपाय

  • बंधककर्त्ता के विरुद्ध धन संबंधी आदेश प्राप्त करें।
  • संपत्ति के विक्रय के लिये डिक्री प्राप्त करें।

इसका उपाय केवल पुरोबंध होता है।

 

मोचन पर रोक क्या है?

  • रोक का अर्थ प्रतिबंध है।
  • मोचन के अधिकार पर कोई भी प्रतिबंध अमान्य और आरंभ से ही शून्य होता है।
  • यह बंधक विलेख में उसके अधिकारों के विरुद्ध कोई प्रतिबंधात्मक शर्तें डालकर बंधककर्त्ता के विरुद्ध किया जाने वाला कार्य है।
  • मोचन पर रोक केवल न्यायालय के आदेश पारित होने के पश्चात ही लागू की जा सकती है, अन्यथा नहीं।
  • मोचन पर रोक केवल तभी लागू हो सकती है जब बंधककर्त्ता का मोचन का अधिकार पूरी तरह समाप्त हो जाए।