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प्रत्यक्ष साक्ष्य

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 25-Nov-2024

जय प्रकाश यादव बनाम झारखंड राज्य

“साक्ष्य अधिनियम की धारा 60 के तहत, कोई व्यक्ति जिसने घटना को देखा या सुना हो, उसे प्रत्यक्ष साक्ष्य कहा जा सकता है।”

न्यायमूर्ति आनंद सेन और न्यायमूर्ति गौतम कुमार चौधरी 

स्रोत: झारखंड उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, झारखंड उच्च न्यायालय ने जय प्रकाश यादव बनाम झारखंड राज्य के मामले में माना है कि घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखने या सुनने वाले प्रत्यक्षदर्शी साक्षी का परिसाक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य होता है।

जय प्रकाश यादव बनाम झारखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में अपीलकर्त्ता भारतीय रिज़र्व बटालियन में कांस्टेबल के पद पर कार्यरत था।
  • 18-19 मई, 2014 को अपीलकर्त्ता को पिपरवार शस्त्रागार (IRB-3 कैंप) में उमेश कुमार (हवलदार) और तीन अन्य कांस्टेबलों के साथ संतरी ड्यूटी (पहरेदारी) सौंपी गई थी।
  • अपीलकर्त्ता को आधिकारिक तौर पर उसकी ड्यूटी के लिये बट संख्या 351 वाली एक INSAS राइफल, 100 राउंड कारतूस और 5 मैगज़ीन आवंटित की गई थी।
  • यह घटना शाम करीब साढ़े सात बजे घटी जब कैंप में गोलियों की आवाज़ सुनी गई।
  • पीड़ित सुनील सोरेन, जो सब-इंस्पेक्टर (S.I.) के पद पर थे, कैंप में अपने कमरे में मृत पाए गए।
  • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 302 और आयुध अधिनियम, 1878 (AA) की धारा 27 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई।
  • अपराध स्थल से एकत्र भौतिक साक्ष्य में शामिल थे:
    • ग्यारह खाली कारतूस।
    • खून से सना प्लास्टर।
    • एक भरी हुई मैगज़ीन।
    • INSAS राइफल।
  • 19 मई, 2014 को पोस्टमार्टम किया गया, जिसमें मृतक के शरीर पर छह मृत्यु-पूर्व चोटों के निशान पाए गए।
  • अभियोजन पक्ष ने मुकदमे के दौरान दस साक्षी पेश किये, और तीन अतिरिक्त साक्षियों की न्यायालयी साक्षी के रूप में जाँच की गई।
  • साक्ष्य के तौर पर कई दस्तावेज़ प्रस्तुत किये गये, जिनमें शामिल थे:
    • पोस्टमार्टम रिपोर्ट।
    • अभिग्रहण सूची।
    • फर्दबयान (पुलिस को दिया गया पहला बयान)।
    • हथियार और गोला-बारूद निरीक्षण रिपोर्ट।
  • यह तर्क दिया गया कि यह मामला पारिस्थितिक साक्ष्य का नहीं बल्कि प्रत्यक्ष साक्ष्य का था।
  • ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ता को IPC की धारा 302 और AA अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषी ठहराया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

झारखंड उच्च न्यायालय ने कहा कि:

  • साक्षी के परिसाक्ष्य के संबंध में:
    • न्यायालय ने पाया कि साक्षियों में से एक प्रत्यक्षदर्शी साक्षी था, जिसका परिसाक्ष्य प्रतिपरीक्षा के दौरान भी बरकरार रहा।
    • न्यायालय ने पाया कि साक्षियों में से एक के साक्ष्य ने मुखबिर के बयान की पुष्टि की।
  • साक्ष्य शृंखला के संबंध में:
    • न्यायालय ने कहा कि यह विशुद्धतः पारिस्थितिक साक्ष्य नहीं था, बल्कि इसमें प्रत्यक्ष प्रत्यक्षदर्शी साक्षी भी शामिल थे।
    • न्यायालय ने राइफल एक्सचेंज के बारे में मोहम्मद अजमल हुसैन के स्पष्टीकरण को स्वीकार कर लिया, और स्पष्ट किया कि अपीलकर्त्ता के पास आवंटित राइफल नंबर 329 के बजाय राइफल नंबर 351 क्यों थी।
  • साक्ष्यिक मूल्य पर:
    • न्यायालय ने साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 6 के तहत मुखबिर के साक्ष्य को प्रासंगिक पाया।
    • छुट्टी न मिलने के कारण हत्या करने के बारे में अपीलकर्त्ता के बयान को न्यायेतर स्वीकारोक्ति माना गया।
    • न्यायालय ने कहा कि घटना के दिन ही FIR दर्ज कर ली गई थी।
    • न्यायालय ने पाया कि भौतिक साक्ष्य (अभिग्रहण की गई वस्तुएँ) मुखबिर के परिसाक्ष्य की पुष्टि करते हैं।
  • न्यायालय ने एक ही संव्यवहार के हिस्से के रूप में घटनाओं की निरंतरता स्थापित करने के लिये IEA की धारा 6 को लागू किया।
  • न्यायालय ने साक्षी के कथन की स्थिति को प्रत्यक्ष साक्ष्य के रूप में स्थापित करने के लिये IEA की धारा 60 को लागू किया।
  • साक्षियों के परिसाक्ष्य की पुष्टि के संबंध में IEA की धारा 157 का संदर्भ दिया गया।
  • न्यायालय ने पाया कि जाँच अधिकारी के परिसाक्ष्य घटनास्थल के बारे में मुखबिर के बयान की पुष्टि करती थी।
  • इन टिप्पणियों के आधार पर न्यायालय ने IPC की धारा 302 और AA अधिनियम की धारा 27 के तहत दोषसिद्धि में "कोई दोष" नहीं पाया।
  • इसलिये, झारखंड उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आदेश की पुष्टि की और कहा कि घटना को प्रत्यक्ष रूप से देखने या सुनने वाले प्रत्यक्षदर्शी साक्षी का परिसाक्ष्य प्रत्यक्ष साक्ष्य होता है।

प्रत्यक्ष साक्ष्य क्या है?

  • सामान्य नियम यह है कि किसी वाद के पक्षकार को न्यायालय के समक्ष मौखिक रूप से अथवा भौतिक या इलेक्ट्रॉनिक रूप में दस्तावेज़ प्रस्तुत करके अपना पक्ष सिद्ध करना आवश्यक होता है।
  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) के अध्याय IV में कहा गया है कि मौखिक साक्ष्य से संबंधित प्रावधानों को प्रत्यक्ष साक्ष्य माना जाएगा।
  • प्रत्यक्ष साक्ष्य को मूल साक्ष्य माना जाता है तथा संबंधित तथ्यों को सिद्ध या असिद्ध करने के लिये किसी अन्य पुष्टि की आवश्यकता नहीं होती।

BSA के अध्याय IV के अंतर्गत दो धाराएँ बताई गई हैं:

  • धारा 54: यह धारा मौखिक साक्ष्य द्वारा तथ्यों के प्रमाण के बारे में बताती है:
    • दस्तावेजों की अंतर्वस्तु को छोड़कर सभी तथ्य मौखिक साक्ष्य द्वारा साबित किये जा सकेंगे।
  • धारा 55: इस धारा में कहा गया है कि मौखिक साक्ष्य प्रत्यक्ष होगा:
    • मौखिक साक्ष्य को प्रत्यक्ष माना जाएगा यदि:
      • कोई तथ्य जो किसी साक्षी द्वारा देखा गया हो और ऐसा प्रत्यक्षदर्शी साक्षी यह स्वीकार करता हो कि उसने उसे देखा है।
      • कोई भी तथ्य जो किसी साक्षी द्वारा सुना गया हो और ऐसे साक्षी को यह स्वीकार करना होगा कि उसने वह तथ्य सुना है।
      • कोई भी तथ्य जिसे किसी अन्य इंद्रिय द्वारा देखा जा सकता है और ऐसे साक्षी को यह स्वीकार करना होगा कि उसने उसे देखा है।
      • किसी साक्षी द्वारा दी गई राय या वह आधार जिस पर ऐसी राय दी गई है और साक्षी को ऐसी राय स्वीकार करनी होगी।
      • यह प्रावधान है कि सामान्यतः विक्रय के लिये प्रस्तुत किसी ग्रंथ में व्यक्त विशेषज्ञों की राय और वे आधार, जिन पर ऐसी राय रखी गई है, ऐसी ग्रंथ को प्रस्तुत करके साबित की जा सकती है, यदि लेखक मर चुका है या मिल नहीं सकता है, या साक्ष्य देने में असमर्थ हो गया है, या उसे बिना किसी विलम्ब या व्यय के, जिसे न्यायालय अनुचित समझता है, साक्षी के रूप में नहीं बुलाया जा सकता है।
      • आगे यह भी उपबंधित है कि यदि मौखिक साक्ष्य में दस्तावेज़ के अलावा किसी भौतिक वस्तु के अस्तित्व या स्थिति का उल्लेख है तो न्यायालय, यदि वह ठीक समझे, अपने निरीक्षण के लिये ऐसी भौतिक वस्तु को पेश करने की अपेक्षा कर सकता है।

प्रत्यक्ष और पारिस्थितिक साक्ष्य के बीच क्या अंतर है?

प्रत्यक्ष साक्ष्य

पारिस्थितिक साक्ष्य

प्रत्यक्ष साक्ष्य किसी तथ्य को प्रत्यक्षतः सिद्ध करता है।

पारिस्थितिक साक्ष्य को निष्कर्ष से जोड़ने के लिये अनुमान की आवश्यकता होती है।

प्रत्यक्षदर्शी साक्षी के परिसाक्ष्य को आमतौर पर प्रत्यक्ष साक्ष्य माना जाता है।

अपराध स्थल पर पाए जाने वाले भौतिक सुराग अक्सर पारिस्थितिक होते हैं।

न्यायालय आमतौर पर प्रत्यक्ष साक्ष्य को अधिक महत्त्व देते हैं।

पारिस्थितिक साक्ष्य भी समान रूप से वैध हो सकते हैं यदि वे साक्ष्यों की एक पूरी शृंखला बनाते हैं।

प्रत्यक्ष साक्ष्य को आमतौर पर कम पुष्टि की आवश्यकता होती है।

पारिस्थितिक साक्ष्य को अक्सर अपने सत्यापनात्मक मूल्य को मज़बूत करने के लिये सहायक तथ्यों की आवश्यकता होती है।