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आपराधिक कानून
यौन उत्पीड़ित गर्भवती महिलाओं हेतु व्यवहारात्मक दिशा-निर्देश
« »10-Aug-2023
स्रोत : दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने नबल ठाकुर बनाम राज्य मामले में यौन उत्पीड़ित गर्भवती महिलाओं के साथ व्यवहार करने के दौरान अधिकारियों और डॉक्टरों द्वारा पालन किये जाने वाले दिशा-निर्देशों की एक शृंखला जारी की है।
पृष्ठभूमि
- न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न के आरोपी व्यक्ति द्वारा दायर दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Code of Criminal Procedure, 1973 (CrPC)) की धारा 439 के तहत जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किये।
- वर्तमान प्रकरण/वाद में आरोपी व्यक्ति पीड़िता के घर के पास ही रहता था।
- उसने लड़की को झूठे बहाने से अपने घर बुलाया और उससे कहा कि वह उसे तब तक नहीं जाने देगा, जब तक वह बालिग नहीं हो जाती, उस समय लड़की 16 वर्ष की थी।
- पीड़िता को दो महीने बाद उसके घर वापस जाने दिया गया और उसकी मेडिकल जांच से पता चला कि वह गर्भवती थी।
- उसकी गर्भावस्था की अवधि चार सप्ताह और पांच दिन पाई गई।
- उसने डॉक्टरों के सामने खुलासा किया कि उस आदमी ने उसके साथ ज़बरन शारीरिक संबंध बनाए।
- न्यायालयने उस व्यक्ति की जमानत याचिका यह कहते हुए खारिज़ कर दी कि आरोपी ने लड़की के साथ बार-बार बलात्कार किया था और इसलिये, जमानत देने का कोई आधार नहीं है।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तथ्य के बावजूद कि लड़की को कई बार अस्पताल में भर्ती कराया गया था, घर पर उसका गर्भपात हो गया, जिसके कारण भ्रूण का नमूना संरक्षित नहीं किया जा सका।
न्यायालय की टिप्पणियाँ (Court’s Observations)
- इस प्रकरण/वाद में संबंधित अस्तपाल के मेडिकल रिकॉर्ड में कई खामियाँ पाई गईं, जिनमें सबसे महत्त्वपूर्ण यह खामी है कि इस प्रकरण/वाद में डॉक्टरों की लापरवाही के कारण साक्ष्य (भ्रूण) को संरक्षित नहीं किया जा सका, इसलिये न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने अस्पतालों और अन्य अधिकारियों के लिये दिशानिर्देश जारी किये हैं, जिनका उन्हें यौन उत्पीड़न से पीड़ित गर्भवती महिला के साथ व्यवहार करते समय पालन करना चाहिये।
- ये दिशानिर्देश इस प्रकार हैं:
- मौजूदा दिशानिर्देशों और मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) का प्रसार: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (Department of Health and Family Welfare, Government of NCT of Delhi) और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय (Ministry of Health and Family Welfare) को यह सुनिश्चित करना होगा कि यौन उत्पीड़न की पीड़िताओं की जांच के लिये मौजूदा दिशानिर्देश/मानक संचालन प्रक्रिया दिल्ली के सभी अस्पतालों में अवश्य भेजी जाए।
- इस निर्णय के तहत जारी किये गए अतिरिक्त निर्देशों के संबंध में: उपरोक्त मंत्रालयों को वर्तमान निर्णय में दिये गए अतिरिक्त निर्देशों को प्रसारित करने का भी निर्देश दिया गया है, जिन्हें मौजूदा मानक संचालन प्रक्रिया (SoP) में जोड़ा जाएगा।
- जब गर्भ 20 सप्ताह से कम अवधि का हो तो आदेश के 24 घंटे के भीतर पीड़िता को अस्पताल में पेश करना: संबंधित जांच अधिकारी सक्षम प्राधिकारी के आदेश पारित होने के 24 घंटे के भीतर पीड़िता को गर्भावस्था के चिकित्सीय समापन के लिये संबंधित अस्पताल के अस्पताल अधीक्षक के समक्ष पेश करेगा।
- भ्रूण का संरक्षण : यह निर्देशित किया जाता है कि संबंधित डॉक्टर यह सुनिश्चित करेगा कि भ्रूण संरक्षित है और पीड़िता को जल्दबाजी में छुट्टी नहीं दी जाएगी, जिसके परिणामस्वरूप पीड़िता के जीवन को खतरा होगा और यौन उत्पीड़न के साक्ष्य समाप्त हो जाएँगे।
- गर्भ के चिकित्सीय समापन के बिना छुट्टी के कारणों की रिकॉर्डिंग: यदि पीड़िता को गर्भावस्था की चिकित्सीय समाप्ति के बिना छुट्टी दे दी जाती है, तो संबंधित डॉक्टर इसके कारणों का भी उल्लेख करेगा ताकि भ्रूण के रूप में महत्त्वपूर्ण साक्ष्य नष्ट न हो जाएँ।
- गर्भ के चिकित्सीय समापन हेतु उपचार के विवरण की रिकॉर्डिंग: संबंधित डॉक्टर का यह कर्तव्य होगा कि वह यौन उत्पीड़न की पीड़िता को दिये गए उपचार, जिसमें गर्भावस्था को समाप्त करने के उद्देश्य से दी गई कोई दवा या प्रक्रिया भी शामिल है, का विस्तार से उल्लेख करे।
- यौन उत्पीड़न के मामलों में एमएलसी के पठन में कठिनाई और टंकित एमएलसी दाखिल करने की आवश्यकता: न्यायालय इस तथ्य से अवगत है कि जब मेडिको लीगल केस (MLC) डॉक्टर द्वारा तैयार किया जा रहा है, तो विभिन्न बाधाओं एवं कारणों और पीड़ित की गोपनीयता आदि के कारण, यह हस्तलिखित ही होना चाहिये। इसलिये, न्यायालय ने निर्देश दिया कि ऐसे मामलों में, जिनमें यौन उत्पीड़ित की मेडिकल जांच की जाती है, सभी संबंधित अस्पताल यह सुनिश्चित करेंगे कि संबंधित अस्पताल द्वारा ऐसी पीड़िता की मूल MLC के साथ-साथ डिस्चार्ज समरी की एक टंकित प्रति भी तैयार की जाएँ और यह डिस्चार्ज समरी एक सप्ताह की अवधि के भीतर जांच अधिकारी को प्रदान की जाएगी।
- एमएलसी की टंकित प्रति इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जांच अधिकारी (IO) को भेजी जा सकती है अर्थात् समय बचाने के लिये टंकित MLC इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी IO को भेजी जा सकती है।
विधायी प्रावधान
दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Procedure Code, 1973)
- जमानत का अर्थ मुकदमे या अपील की प्रतीक्षा कर रहे किसी व्यक्ति की जेल से रिहाई पर सुरक्षा जमा करके यह सुनिश्चित करना है कि वह आवश्यक समय पर कानूनी प्राधिकारी के समक्ष प्रस्तुत हो सके ।
- जमानत के प्रावधान CRPC के अध्याय XXXIII की धारा 436-450 के तहत प्रदान किये जाते हैं।
धारा 439 - जमानत के संबंध में उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय की विशेष शक्तियाँ –
(1)उच्च न्यायालय या सत्र न्यायालय निर्देश दे सकता है कि--
(क) किसी ऐसे व्यक्ति को, जिस पर किसी अपराध का अभियोग है और जो अभिरक्षा में है, जमानत पर छोड़ दिया जाए और यदि अपराध धारा 437 की उपधारा (3) में विनिर्दिष्ट प्रकार का है, तो वह ऐसी कोई शर्त, जिसे वह उस उपधारा में वर्णित प्रयोजनों के लिये आवश्यक समझे, अधिरोपित कर सकता है;
(ख) किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के समय मजिस्ट्रेट द्वारा अधिरोपित कोई शर्त अपास्त या उपांतरित कर दी जाए:
परन्तु उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय किसी ऐसे व्यक्ति की, जो ऐसे अपराध का अभियुक्त है जो अनन्यत: सेशन न्यायालय द्वारा विचारणीय है, या जो यद्यपि इस प्रकार विचारणीय नहीं है, आजीवन कारावास से दंडनीय है, जमानत लेने के पूर्व जमानत के लिये आवेदन की सूचना लोक अभियोजक को उस दशा के सिवाय देगा जब उसकी, ऐसे कारणों से, जो लेखबद्ध किये जाएंगे यह राय है कि ऐसी सूचना देना साध्य नहीं है।
(2) उच्च न्यायालय या सेशन न्यायालय, किसी ऐसे व्यक्ति को, जिसे इस अध्याय के अधीन जमानत पर छोड़ा जा चुका है, गिरफ्तार करने का निदेश दे सकता है और उसे अभिरक्षा के लिये सुपुर्द कर सकता है।
बालकों के यौन शोषण संबंधी कानून
पॉक्सो (POCSO) अधिनियम
- यह अधिनियम बाल दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न, यौन प्रहार और बालकोंसे जुड़ी अश्लील साहित्य सहित कई प्रकार के कृत्यों को अपराधीकरण से निपटने के लिये अधिनियमित किया गया था और यह 14 नवंबर, 2012 को लागू हुआ।
- पॉक्सो (POCSO) अधिनियम की धारा 2(D) अठारह वर्ष से कम आयु के किसी भी व्यक्ति को बच्चे के रूप में परिभाषित करती है।
- यह कानून बाल यौन उत्पीड़न मामलों में त्वरित सुनवाई की सुविधा के लिये विशेष न्यायालयों की स्थापना को अनिवार्य बनाता है।
भारतीय दंड संहिता, 1860
इस संहिता में 2018 के संशोधन में बालकों के यौन उत्पीड़न के संबंध में निम्नलिखित बातें जोड़ी गईं।
महिला की आयु |
अपराध |
प्रावधान |
दंड |
12 वर्ष से कम |
दुष्कर्म |
धारा 376 AB |
न्यूनतम- 20 वर्ष |
अधिकतम- आजीवन कारवास जिसका अर्थ होगा कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास, जिसमें जुर्माना और मृत्युदंड भी शामिल किया जा सकता है। |
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सामूहिक दुष्कर्म |
धारा 376 AB |
आजीवन कारवास जिसका अर्थहोगा कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास, जिसमें जुर्माना और मृत्युदंड भी शामिल किया जा सकता है। |
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12 वर्षसे कम |
सामूहिक दुष्कर्म |
धारा 376 DA |
आजीवन कारवास जिसका अर्थहोगा कि उस व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिये कारावास, जिसमें जुर्माना और मृत्युदंड भी शामिल किया जा सकता है। |