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सिविल कानून
मेडिकल बोर्ड द्वारा विकलांगता प्रमाणित
« »12-Feb-2025
प्रकाश चंद शर्मा बनाम रामबाबू सैनी एवं अन्य “मोटर दुर्घटना क्षतिपूर्ति मामलों में मेडिकल बोर्ड द्वारा प्रमाणित विकलांगता को पुनर्मूल्यांकन के बिना कम नहीं किया जा सकता।” न्यायमूर्ति संजय करोल एवं न्यायमूर्ति मनमोहन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति संजय करोल एवं न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने कहा है कि मेडिकल बोर्ड द्वारा जारी विकलांगता प्रमाण-पत्र को विशेषज्ञ साक्ष्य के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये, जब तक कि पुनर्मूल्यांकन का आदेश न दिया जाए। इसने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस निर्णय को खारिज कर दिया, जिसमें पुनर्मूल्यांकन के बिना 100% विकलांगता प्रमाण-पत्र को घटाकर 50% कर दिया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने प्रकाश चंद शर्मा बनाम रामबाबू सैनी एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया। न्यायालय ने कहा कि अधिकरण विशेषज्ञों की राय के स्थान पर अपना निर्णय नहीं दे सकते।
- यह निर्णय विकलांगता आकलन के लिये मुआवजे के दावों को प्रभावित करता है।
प्रकाश चंद शर्मा बनाम रामबाबू सैनी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह घटना 23 मार्च 2014 को हुई, जब दावेदार-अपीलकर्त्ता अपनी मोटरसाइकिल (नंबर RJ 02 SC 4860) पर चील की बावड़ी से अपने गांव राजपुर बड़ा लौट रहा था।
- विपरीत दिशा से आ रही एक मारुति ओमनी गाड़ी (नंबर RJ 02 UA 1663) कथित तौर पर सड़क के गलत साइड पर चल रही थी, जिसके परिणामस्वरूप टक्कर हो गई।
- दावेदार-अपीलकर्त्ता को गंभीर चोटें आईं, विशेषकर उसके सिर और दाहिने पैर में।
- इस अपराध के संबंध में पुलिस स्टेशन टहला में एक FIR (सं. 81/14) दर्ज की गई। पीड़ित को पहले बांदीकुई के कट्टा अस्पताल ले जाया गया तथा बाद में जयपुर के सवाई मानसिंह अस्पताल में अंतरित कर दिया गया।
- हालाँकि वह दुर्घटना में बच गया, लेकिन वह अभी भी कोमा में है।
- मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT), अलवर ने मामले की सुनवाई दावा संख्या 575/2014 के रूप में की, जिसमें तीन प्राथमिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया गया:
- दोषी यान की उतावलापन एवं लापरवाही।
- दावेदार का क्षतिपूर्ति पाने का अधिकार और निर्धारित राशि।
- बीमा कंपनी की ज़िम्मेदारी।
- MACT ने 16,29,465 रुपये का क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया, जिसे अपील पर राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर पीठ ने बढ़ाकर 19,39,418 रुपये कर दिया।
- एक मेडिकल बोर्ड ने दावेदार की स्थिति का आकलन किया तथा 100% स्थायी विकलांगता बताते हुए एक प्रमाण पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि:
- रोगी की बोलने की क्षमता समाप्त हो गई है तथा बौद्धिक क्षमता भी कमज़ोर है। वह न तो खड़ा हो सकता है और न ही चल सकता है।
- उसे कैथीटेराइजेशन की आवश्यकता है।
- वह दैनिक जीवन की गतिविधियों (ADL) के लिये पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर है।
- उसे बार-बार गिरने और संक्रमण का सामना करना पड़ता है।
- MACT और उच्च न्यायालय दोनों ने मेडिकल बोर्ड के आकलन पर प्रश्न किया तथा विकलांगता प्रतिशत को घटाकर 50% कर दिया, जिसका मुख्य कारण न्यूरोसर्जन या उपचार करने वाले डॉक्टर की गवाही का अभाव था।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने माना कि अधिकरण ने पुनर्मूल्यांकन का आदेश दिये बिना स्थायी विकलांगता का आकलन करने के लिये मेडिकल बोर्ड की क्षमता पर प्रश्न कर चूक की।
- न्यायालय ने कहा कि यदि अधिकरण को मेडिकल प्रमाणपत्र की विश्वसनीयता पर संदेह था, तो उसे विकलांगता निर्धारण के संबंध में अपने स्वयं के निर्णय को प्रतिस्थापित करने के बजाय पुनर्मूल्यांकन का निर्देश देना चाहिये था।
- न्यायालय ने कहा कि चूँकि पुनर्मूल्यांकन का आदेश नहीं दिया गया था, इसलिये मेडिकल बोर्ड की राय, विशेषज्ञ साक्ष्य होने के नाते, निर्णायक मानी जानी चाहिये।
- विकलांगता मूल्यांकन के संबंध में, न्यायालय ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट ने स्पष्ट रूप से स्थापित किया है कि:
- दावेदार-अपीलकर्त्ता के पास बोलने या बौद्धिक क्षमता नहीं थी।
- वह खड़े होने या चलने में असमर्थ था।
- उसे कैथीटेराइजेशन की आवश्यकता थी।
- वह दैनिक गतिविधियों के लिये पूरी तरह से दूसरों पर निर्भर था।
- न्यायालय ने मानसिक एवं शारीरिक पीड़ा, दर्द एवं सुविधाओं की क्षति के लिये दिये गए 2,00,000/- रुपये की क्षतिपूर्ति को परिस्थितियों के अनुसार अपर्याप्त पाया।
- काजल के मामले से गणना सिद्धांत का पालन करते हुए, परिचर शुल्क पर, न्यायालय ने इसकी गणना 7,80,000/- रुपये (5,000 x 12 x 13 रुपये) के रूप में की।
- न्यायालय ने सामान्य शीर्ष से 'शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा' (2,00,000/- रुपये) के अंतर्गत क्षतिपूर्ति को विभाजित किया तथा 'दर्द एवं पीड़ा' के लिये 6,00,000/- रुपये जोड़े।
- उम्र, विकलांगता की प्रकृति एवं अन्य प्रासंगिक कारकों पर विचार करते हुए, न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि 100% विकलांगता का निष्कर्ष उचित था।
- न्यायालय ने विभिन्न मदों के अंतर्गत क्षतिपूर्ति निर्धारित करने के लिये के.एस. मुरलीधर बनाम आर. सुब्बुलक्ष्मी सहित हाल के उदाहरणों पर विश्वास किया।
- न्यायालय ने दावा याचिका की तिथि से 7% प्रति वर्ष ब्याज के साथ कुल क्षतिपूर्ति बढ़ाकर 48,70,000/- रुपये कर दिया, जो उच्च न्यायालय के 19,39,418/- रुपये के पंचाट से काफी अधिक है।
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि ऐसे मामलों में जहाँ मेडिकल बोर्ड के माध्यम से विशेषज्ञ चिकित्सा साक्ष्य उपलब्ध हैं, न्यायालयों को उचित औचित्य या पुनर्मूल्यांकन के बिना अपना स्वयं का मूल्यांकन नहीं करना चाहिये।
विकलांगता प्रमाणन एवं क्षतिपूर्ति पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय द्वारा स्थापित महत्त्वपूर्ण विधिक सिद्धांत क्या हैं?
- स्थापित विधिक सिद्धांत:
- मेडिकल बोर्ड का विकलांगता प्रमाणपत्र विशेषज्ञ साक्ष्य होता है तथा इसे न्यायालयों द्वारा उसी रूप में स्वीकार किया जाना चाहिये।
- यदि अधिकरण को किसी मेडिकल प्रमाणपत्र पर संदेह है, तो उसे अपना निर्णय देने के बजाय पुनर्मूल्यांकन का आदेश देना चाहिये।
- न्यायालय विशेषज्ञ मेडिकल साक्ष्य के बिना विकलांगता प्रतिशत का स्वतंत्र रूप से निर्धारण नहीं कर सकते।
- क्षतिपूर्ति की गणना का सिद्धांत:
- भविष्य की आय हानि की गणना प्रमाणित विकलांगता प्रतिशत के आधार पर की जानी चाहिये।
- 50 वर्ष से कम आयु के दावेदारों के लिये भविष्य की संभावनाओं को 25% पर जोड़ा जाना चाहिये।
- काजल के मामले में स्थापित सूत्र के अनुसार परिचारक शुल्क की गणना की जानी चाहिये।
- शारीरिक एवं मानसिक पीड़ा का मूल्यांकन दर्द एवं पीड़ा से अलग किया जाना चाहिये।
- दावा याचिका की तिथि से 7% प्रति वर्ष की दर से ब्याज लागू है।
- मोटर यान अधिनियम सिद्धांत:
- अपराधी यान की उतावलापन एवं लापरवाही का आकलन।
- क्षतिपूर्ति की मात्रा का निर्धारण।
- बीमा कंपनी की देयता स्थापित करना।
- क्षतिपूर्ति की गणना में स्थायी विकलांगता पर विचार।
- साक्ष्य विधि का सिद्धांत:
- विशेषज्ञ साक्ष्य (मेडिकल बोर्ड प्रमाणपत्र) गैर-विशेषज्ञ न्यायिक मूल्यांकन पर वरीयता प्राप्त करता है।
- दावेदार के मामले को गलत सिद्ध करने का भार प्रतिवादियों पर है।
- मेडिकल साक्ष्य को सक्षम साक्षियों के माध्यम से उचित रूप से सिद्ध किया जाना चाहिये।
भारत में विकलांगता प्रमाण पत्र जारी करने के लिये दिशानिर्देश एवं नियम क्या हैं?
- विकलांगता प्रमाणपत्र:
- यह किसी व्यक्ति की विकलांगता स्थिति के आधिकारिक प्रमाण के रूप में कार्य करता है।
- यह केंद्र और राज्य सरकारों से लाभ, सुविधाएँ और अधिकार प्राप्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
- यह प्रमाण पत्र विभिन्न सक्षम विधियों के अंतर्गत अधिकारों तक पहुँच को सक्षम बनाता है।
- इसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा विनियमित किया जाता है।
- प्रमाणपत्र जारी करने के लिये सक्षम प्राधिकारी:
- केंद्र या राज्य सरकार द्वारा विधिवत गठित मेडिकल बोर्ड सक्षम प्राधिकारी है।
- मेडिकल बोर्ड में कम से कम तीन सदस्य होने चाहिये।
- एक सदस्य संबंधित विकलांगता क्षेत्र का विशेषज्ञ होना चाहिये:
- मानसिक विकलांगता के लिये: मनोचिकित्सक/बाल रोग विशेषज्ञ/क्लिनिकल मनोवैज्ञानिक।
- दृश्य विकलांगता के लिये: नेत्र रोग विशेषज्ञ।
- भाषण/श्रवण विकलांगता के लिये: ENT विशेषज्ञ।
- चलन विकलांगता के लिये: भौतिक चिकित्सा/पुनर्वास/हड्डी रोग विशेषज्ञ।
- स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक किसी भी विवाद को सुलझाने के लिये अंतिम प्राधिकारी हैं।
- प्रमाणपत्र प्राप्त करने की शर्तें:
- आवेदक भारतीय नागरिक होना चाहिये।
- विकलांगता के प्रकार को स्पष्ट करने वाली मेडिकल रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी चाहिये।
- पात्र होने के लिये विकलांगता की न्यूनतम डिग्री 40% होनी चाहिये।
- आवश्यक दस्तावेजों में शामिल हैं:
- विकलांग व्यक्ति की पहचान की प्रति।
- विकलांगता को दर्शाने वाली दो तस्वीरें।
- सभी उपलब्ध चिकित्सा एवं मनोवैज्ञानिक रिपोर्ट।
- स्थायी/अस्थायी प्रमाणपत्र:
- अस्थायी प्रमाणपत्र:
- पाँच वर्ष के लिये वैध।
- अस्थायी विकलांगता के लिये जारी किया गया।
- मेडिकल बोर्ड को यह बताना होगा कि क्या स्थिति है:
- प्रगतिशील/गैर-प्रगतिशील।
- सुधार की संभावना/सुधार की संभावना नहीं।
- क्या पुनर्मूल्यांकन की अनुशंसा की जाती है।
- स्थायी प्रमाण पत्र:
- स्थायी विकलांगता के लिये जारी किया गया।
- वैधता को 'स्थायी' के रूप में चिह्नित किया जाता है।
- विकलांगता की डिग्री में भिन्नता की कोई संभावना नहीं होने पर दिया जाता है।
- आवेदक को सुनवाई का अवसर दिये बिना प्रमाण पत्र देने से इनकार नहीं किया जा सकता।
- मेडिकल बोर्ड आवेदक के अभ्यावेदन पर सभी तथ्यों एवं परिस्थितियों पर विचार करते हुए अपने निर्णय की समीक्षा कर सकता है।
- अस्थायी प्रमाणपत्र: