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सिविल कानून

विधिक पेशे में नि:शक्तता कोई बाधा नहीं

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 04-Mar-2025

न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल 

दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के लिये ‘अनुपयुक्त’ नहीं कहा जा सकता है और वे न्यायिक सेवा में पदों के लिये चयन में भाग लेने के पात्र हैं।” 

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की पीठ ने निर्णीत किया कि दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के लिये ‘अनुपयुक्त’ नहीं कहा जा सकता है और वे न्यायिक सेवा में पदों के लिये चयन में भाग लेने के पात्र हैं 

  • उच्चतम न्यायालय ने न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल (2025) के मामले में यह निर्णीत किया गया 

न्यायिक सेवाओं में दृष्टिबाधित व्यक्तियों की भर्ती के संबंध में बनाम मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?  

  • यह मामला मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा द्वारा स्थापित एक नियम से संबंधित है, जो दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के पदों पर नियुक्ति के लिये आवेदन करने से रोकता है। 
  • यह नियम दृष्टिबाधित योग्य उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के भीतर पदों के लिये चयन प्रक्रिया में भाग लेने से प्रभावी रूप से रोकता है, चाहे उनकी योग्यता या क्षमता कुछ भी हो। 
  • इस नियम को इस आधार पर चुनौती दी गई थी कि यह नि: शक्त व्यक्तियों के साथ भेदभाव करता है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। 
  • चुनौती में कहा गया था कि न्यायिक सेवाओं से दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को पूरी तरह से अयोग्य ठहराना मनमाना भेदभाव है और लोक रोजगार में समान अवसर से वंचित करता है। 
  • यह मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष लाया गया, जिसे यह निर्धारित करने का काम सौंपा गया था कि क्या ऐसा प्रतिषेध सांविधानिक है और नि:शक्तता अधिकार विधि के अनुसार है। 
  • इस मामले ने उचित समायोजन, वास्तविक समानता और नि:शक्त व्यक्तियों के पेशेवर क्षेत्रों, विशेष रूप से न्यायपालिका में पूर्ण रूप से भाग लेने के अधिकारों के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाए। 
  • चुनौती इस उपधारणा के विरुद्ध दी गई थी कि दृष्टिबाधित उम्मीदवार न्यायिक सेवा के लिये स्वाभाविक रूप से "अनुपयुक्त" होते हैं, चाहे उनकी योग्यता, कौशल या उपलब्ध तकनीकी सुविधाएँ कुछ भी हों। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं: 

  • उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवाओं के उस नियम को रद्द कर दिया, जिसके अनुसार दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवारों को न्यायिक सेवाओं में नियुक्ति की अनुमति नहीं थी। 
  • न्यायालय ने कहा कि "दृष्टिबाधित उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा के लिये 'अनुपयुक्त' नहीं कहा जा सकता है और वे न्यायिक सेवा में पदों के लिये चयन में भाग लेने के पात्र हैं।" 
  • न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और आर. महादेवन की पीठ ने सकारात्मक कार्रवाई के माध्यम से उचित समायोजन के मौलिक अधिकार पर बल दिया। 
  • न्यायालय ने यह स्वीकार करते हुए मौलिक समानता को मान्यता दी कि किसी भी प्रकार का अप्रत्यक्ष भेदभाव भी बहिष्कार की ओर ले जाएगा। 
  • न्यायालय ने भारत और विश्व भर के न्यायाधीशों और वकीलों सहित सफल दृष्टिबाधित विधिक पेशेवरों के कई उदाहरणों का हवाला दिया, जिससे यह प्रदर्शित किया जा सके कि "नि:शक्तता विधिक पेशे या किसी अन्य क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिये कोई बाधा नहीं है।"  
  • न्यायालय ने कहा कि ये व्यक्ति इस तथ्य के प्रमाण हैं कि दृष्टिबाधितता पेशेवर उत्कृष्टता, समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने और न्याय वितरण प्रणाली में महत्त्वपूर्ण योगदान करने में बाधा नहीं बनती है। 

दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 क्या है? 

  • इसे 27 दिसंबर 2016 को नि:शक्त व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 की जगह लागू किया गया था। 
  • यह अधिनियम 19 अप्रैल 2017 को लागू हुआ, जिसने भारत में दिव्यांगजन  व्यक्तियों (PWDs) के अधिकारों और मान्यता के एक नए युग की शुरुआत की। 
  • यह अधिनियम दिव्यांगजन के दायरे को बढ़ाकर 21 स्थितियों को सम्मिलित करता है, जिसमें शारीरिक, बौद्धिक, मानसिक और संवेदी दिव्यांगजन सम्मिलित हैं। 
  • यह अनिवार्य करता है कि शैक्षणिक संस्थान और सरकारी संगठन दिव्यांगजन व्यक्तियों के लिये सीटें और पद आरक्षित करें, जिससे शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक उनकी पहुँच सुनिश्चित हो सके। 
  • यह अधिनियम लोक स्थानों, परिवहन और सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों में बाधा-मुक्त वातावरण के निर्माण पर बल देता है, जिससे दिव्यांगजन व्यक्तियों के लिये अधिक पहुँच संभव हो सके। 
  • यह सरकार को दिव्यांगजन व्यक्तियों की सामाजिक सुरक्षा, स्वास्थ्य सेवा और पुनर्वास के लिये योजनाएं और कार्यक्रम तैयार करने का अधिकार देता है। 
  • यह अधिनियम सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करने के लिये लोक भवनों के लिये दिशा-निर्देश और मानक तैयार करने का अधिकार देता है।