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सांविधानिक विधि

SC/ST उप-वर्गीकरण मामले में असहमति

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 05-Aug-2024

पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य

“राज्य, औचित्यानुसार विभेदक कोटा आवंटन के लिये अनुसूचित जातियों को उप-वर्गीकरण  कर सकते हैं।”

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति बी.आर. गवई, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी, न्यायमूर्ति पंकज मिथल, न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पंजाब राज्य और अन्य बनाम दविंदर सिंह और अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय की 7 जजों की बेंच ने राज्यों को अनुसूचित जातियों (SC ) को उप-वर्गीकृत करने की अनुमति दी ताकि SC श्रेणी के भीतर अधिक पिछड़े समूहों के लिये अलग कोटा प्रदान किया जा सके। परंतु जस्टिस त्रिवेदी ने असहमति जताते हुए तर्क दिया कि यह उप-वर्गीकरण अनुच्छेद 341 के अंतर्गत स्थापित SC समुदाय की राष्ट्रपति सूची में हस्तक्षेप करता है, जिसे केवल संसदीय विधान द्वारा संशोधित किया जा सकता है।

  • उन्होंने चिंता व्यक्त की कि इस तरह के उप-वर्गीकरण से SC/ST सूची में राजनीतिक तत्व शामिल हो सकते हैं, जिससे राजनीतिक प्रभाव को रोकने का इसका मूल उद्देश्य कमज़ोर हो सकता है।

पंजाब राज्य एवं अन्य बनाम दविंदर सिंह एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला पंजाब में अनुसूचित जाति (SC) आरक्षण के अंतर्गत कुछ समुदायों को वरीयता देने के प्रयास से उत्पन्न हुआ।
  • वर्ष 2006 में पंजाब विधानमंडल ने पंजाब अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग (सेवाओं में आरक्षण) अधिनियम पारित किया।
  • इस अधिनियम की धारा 4(5) में यह प्रावधान है कि सीधी भर्ती में अनुसूचित जाति कोटे के अंतर्गत 50% रिक्तियाँ, यदि उपलब्ध हों, तो अनुसूचित जाति के अभ्यर्थियों में प्रथम वरीयता के रूप में बाल्मीकि और मज़हबी सिखों को दी जाएंगी।
  • पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने ई.वी. चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2005) में उच्चतम  न्यायालय के निर्णय पर भरोसा करते हुए वर्ष 2010 में इस प्रावधान को रद्द कर दिया था।
  • ई.वी. चिन्नैया मामले में निर्णय में कहा गया था कि अनुसूचित जातियाँ एक समरूप वर्ग हैं और इन्हें आगे उप-विभाजित या उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
  • उप-वर्गीकरण के इसी तरह के प्रयास अन्य राज्यों द्वारा भी किये गए थे: a. वर्ष 1994 में, हरियाणा ने आरक्षण के उद्देश्य से अनुसूचित जातियों को दो श्रेणियों (ब्लॉक A और B) में वर्गीकृत करने की अधिसूचना जारी की। b. वर्ष 2009 में, तमिलनाडु ने अरुंथथियार अधिनियम पारित किया, जिसके तहत शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों के लिये आरक्षित 16% सीटें अरुंथथियारों को आवंटित की गईं।
  • उप-वर्गीकरण के इन प्रयासों को ई.वी. चिन्नैया निर्णय का उदाहरण देते हुए विभिन्न न्यायालयों में चुनौती दी गई।
  • पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह के मामले में यह मामला उच्चतम  न्यायालय पहुँचा।
  • 27 अगस्त, 2020 को उच्चतम न्यायालय की पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने माना कि ई.वी. चिन्नैया निर्णय पर एक वृहद् पीठ द्वारा पुनर्विचार किये जाने की आवश्यकता है।
  • न्यायालय ने पाया कि ई.वी. चिन्नैया मामला अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण से संबंधित महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर विचार करने में विफल रहा।
  • पंजाब राज्य बनाम दविंदर सिंह मामले में इस रेफरल के परिणामस्वरूप सकारात्मक कार्यवाही और आरक्षण के लिये अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की वैधता की जाँच करने के लिये सात न्यायाधीशों की संविधान पीठ का गठन किया गया।
  • सात न्यायाधीशों की पीठ को दो मुख्य पहलुओं पर विचार करने का काम सौंपा गया था: (a) क्या आरक्षित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण की अनुमति दी जानी चाहिये। (b) ई.वी. चिन्नैया निर्णय की सत्यता, जिसमें कहा गया था कि अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जातियाँ एक समरूप समूह बनाती हैं, जिन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता।
  • इस मामले ने आरक्षण नीतियों और अनुसूचित जातियों से संबंधित संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या पर इसके संभावित प्रभाव के कारण काफी ध्यान आकर्षित किया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी ने अपनी असहमति में कहा कि अनुच्छेद 341 के अंतर्गत अधिसूचित अनुसूचित जातियों की राष्ट्रपति सूची को राज्यों द्वारा परिवर्तित नहीं किया जा सकता।
    • संविधान के अनुच्छेद 341 के अंतर्गत अधिसूचित अनुसूचित जातियों की अध्यक्षीय सूची प्रकाशन के बाद अंतिम हो जाती है तथा राज्यों द्वारा इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
    • केवल संसद को विधि द्वारा अनुच्छेद 341(1) के अंतर्गत राष्ट्रपति की अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में किसी जाति, मूलवंश, जनजाति या उसके समूह को शामिल करने या बाहर करने का अधिकार है।
  • स्पष्ट अर्थ या शाब्दिक व्याख्या का नियम प्राथमिक नियम है, जिसका संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या करते समय व्यापक और उदार दृष्टिकोण के साथ पालन किया जाना चाहिये।
    • अनुसूचित जातियाँ, विविध जातियों, नस्लों या जनजातियों से उत्पन्न होने के बावजूद, अनुच्छेद 341 के अंतर्गत राष्ट्रपति की अधिसूचना के आधार पर एक समरूप वर्ग का दर्जा प्राप्त करती हैं, जिसे राज्य की कार्यवाही से विभाजित नहीं किया जा सकता है।
  • राज्यों के पास राष्ट्रपति की अधिसूचना में उल्लिखित अनुसूचित जातियों को उपविभाजित, उप-वर्गीकृत या पुनर्समूहीकृत करके विशेष जातियों को आरक्षण या अधिमान्य उपचार प्रदान करने के लिये विधान बनाने की विधायी क्षमता का अभाव है।
  • राज्यों द्वारा कमज़ोर वर्गों के लिये आरक्षण या सकारात्मक कार्यवाही प्रदान करने की आड़ में राष्ट्रपति सूची में परिवर्तन करने या अनुच्छेद 341 में परिवर्तन करने का कोई भी प्रयास संविधान के विरुद्ध है।
  • ई.वी. चिन्नैया मामले में संविधान पीठ द्वारा स्थापित पूर्वनिर्णय, जिसमें इंदिरा साहनी सहित सभी पिछले पूर्व निर्णयों पर विचार किया गया था, पर संदेह नहीं किया जाना चाहिये था और पूर्वनिर्णय तथा एक निर्णीतानुसरण के सिद्धांतों के पालन में, बिना ठोस कारणों के इसे एक वृहद् पीठ को नहीं भेजा जाना चाहिये था।
  • अनुच्छेद 142 के अंतर्गत उच्चतम  न्यायालय की शक्ति का प्रयोग राज्य की उन कार्यवाहियों को वैध ठहराने के लिये नहीं किया जा सकता जो संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन करती हैं, भले ही ऐसी कार्यवाहियाँ उचित आशय से की गई हों या सकारात्मक प्रकृति की हों।
  • सकारात्मक कार्यवाही और विधिक ढाँचे को, अधिक समतापूर्ण समाज का लक्ष्य रखते हुए, निष्पक्षता तथा संवैधानिकता सुनिश्चित करने के लिये कठिन विधिक सिद्धांतों पर भी विचार करना होगा।
  • पाँच न्यायाधीशों की पीठ द्वारा ई.वी. चिन्नैया मामले में प्रतिपादित विधि को अनुच्छेद 341 की सही व्याख्या माना गया है तथा इसकी पुष्टि की जानी चाहिये।

अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कौन हैं?

  • परिचय:
    • संविधान में यह परिभाषित नहीं किया गया है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति कौन है।
    • तथापि, अनुच्छेद 341 और 342 राष्ट्रपति को इन जातियों तथा जनजातियों की सूची तैयार करने का अधिकार देते हैं।
    • अनुसूचित जातियाँ और अनुसूचित जनजातियाँ वे जातियाँ या जनजातियाँ हैं जिन्हें राष्ट्रपति सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा निर्दिष्ट कर सकते हैं। 
    • यदि ऐसी अधिसूचना किसी राज्य के संबंध में है तो ऐसा संबंधित राज्य के राज्यपाल के परामर्श के बाद किया जा सकता है।
    • राष्ट्रपति की अधिसूचना में किसी भी जाति, वंश या जनजाति को शामिल या बहिष्कृत करने का कार्य संसद द्वारा विधान बनाकर किया जा सकता है।
    • यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विशेष जनजाति इस अनुच्छेद के अर्थ में जनजाति है या नहीं, तो अनुच्छेद 341 (l) के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा जारी सार्वजनिक अधिसूचना को देखना होगा।
    • संविधान में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के लिये निम्नलिखित विशेष प्रावधान किये गए हैं।
  • विधिक प्रावधान:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियों की सूची से संबंधित है।
    • अनुच्छेद 341(1) राष्ट्रपति किसी राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में, और जहाँ वह राज्य है, वहाँ उसके राज्यपाल से परामर्श के पश्चात्, लोक अधिसूचना द्वारा, उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों अथवा जातियों, मूलवंशों या जनजातियों के भागों या समूहों को विनिर्दिष्ट कर सकेगा, जो इस संविधान के प्रयोजनों के लिये, यथास्थिति, उस राज्य या संघ राज्यक्षेत्र के संबंध में अनुसूचित जातियाँ समझी जाएंगी।
    • अनुच्छेद 341(2) संसद विधि द्वारा खंड (1) के अधीन जारी की गई अधिसूचना में विनिर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में किसी जाति, मूलवंश या जनजाति अथवा किसी जाति, मूलवंश या जनजाति के भाग या समूह को सम्मिलित कर सकेगी या उसमें से निकाल सकेगी, किंतु जैसा पूर्वोक्त है उसके सिवाय उक्त खंड के अधीन जारी की गई अधिसूचना में किसी पश्चातवर्ती अधिसूचना द्वारा परिवर्तन नहीं किया जाएगा।

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142 क्या है?

  • अनुच्छेद 142 उच्चतम न्यायालय के आदेशों और डिक्रियों के प्रवर्तन तथा खोज आदि से संबंधित आदेशों से संबंधित है।
  • उच्चतम  न्यायालय को अपने समक्ष आने वाले मामलों में पूर्ण न्याय प्रदान करने के लिये आवश्यक कोई भी आदेश या डिक्री जारी करने का अधिकार है।
    • ऐसे आदेश या डिक्री संपूर्ण+ भारत क्षेत्र में लागू होंगे।
    • प्रवर्तन पद्धति संसदीय विधान द्वारा या उसके अभाव में राष्ट्रपति के आदेश द्वारा निर्धारित की जा सकती है।
  • उच्चतम  न्यायालय को भारत के संपूर्ण क्षेत्र पर अधिकार प्राप्त है। 
    a. किसी भी व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करना
    b. दस्तावेज़ों की खोज या उत्पादन का आदेश 
    c. स्वयं की अवमानना ​​की जाँच करने  या दण्डित करने
  • ये शक्तियाँ संसद द्वारा पारित किसी भी प्रासंगिक कानून के अधीन हैं।
  • यह प्रावधान उच्चतम न्यायालय को विचाराधीन मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिये असाधारण उपाय करने का अधिकार देता है।
    • यह अनुच्छेद उच्चतम न्यायालय को उन विशिष्ट परिस्थितियों से निपटने के लिये व्यापक विवेकाधीन शक्तियाँ प्रदान करता है, जो मौजूदा विधानों या प्रक्रियाओं के अंतर्गत नहीं आती हैं।
  • इस अनुच्छेद के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का अधिकार व्यापक है, परंतु असीमित नहीं है, क्योंकि यह संसदीय कानून के अधीन है।

भारत में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

  • भाग XVI केंद्रीय एवं राज्य विधानमंडलों में अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण से संबंधित है।
  • संविधान के अनुच्छेद 15(4) और 16(4) राज्य तथा केंद्र सरकारों को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिये सरकारी सेवाओं में सीटें आरक्षित करने का अधिकार देते हैं।
  • संविधान (77वाँ संशोधन) अधिनियम, 1995 द्वारा संविधान में संशोधन किया गया तथा अनुच्छेद 16 में एक नया खंड (4A) जोड़ा गया, ताकि सरकार पदोन्नति में आरक्षण प्रदान कर सके।
    • बाद में, आरक्षण देकर पदोन्नत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के अभ्यर्थियों को परिणामी वरिष्ठता प्रदान करने के लिये संविधान (85वें संशोधन) अधिनियम, 2001 द्वारा खंड (4A) को संशोधित किया गया।
  • संविधान के 81वें संशोधन अधिनियम, 2000 द्वारा अनुच्छेद 16 (4B) को शामिल किया गया, जो राज्य को किसी वर्ष में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों के लिये आरक्षित रिक्तियों को अगले वर्ष भरने का अधिकार देता है, जिससे उस वर्ष की कुल रिक्तियों पर पचास प्रतिशत आरक्षण की अधिकतम सीमा समाप्त हो जाती है।
  • अनुच्छेद 330 और 332 क्रमशः संसद और राज्य विधानसभाओं में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों के आरक्षण के माध्यम से विशिष्ट प्रतिनिधित्व का प्रावधान करते हैं।
  • अनुच्छेद 243D प्रत्येक पंचायत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों का आरक्षण प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद 233T प्रत्येक नगर पालिका में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिये सीटों के आरक्षण का प्रावधान करता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 335 में कहा गया है कि प्रशासन की प्रभावकारिता बनाए रखने के लिये अनुसूचित जनजातियों और अनुसूचित जनजातियों के दावों पर विचार किया जाएगा।