होम / करेंट अफेयर्स
सांविधानिक विधि
दंड पर लागू होगा समता का सिद्धांत
« »26-Dec-2024
अरुणाचलम पी. बनाम महानिदेशक CISF “दंड देते समय विभेदकारी व्यवहार नहीं किया जा सकता।” न्यायमूर्ति नवीन चावला और न्यायमूर्ति शालिंदर कौर |
स्रोत: दिल्ली उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अरुणाचलम पी. बनाम महानिदेशक CISF के मामले में माना है कि गृह मंत्रालय के अधीन विभिन्न बलों में दंड के लिये समता का सिद्धांत लागू होगा।
अरुणाचलम पी. बनाम महानिदेशक CISF मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में दो याचिकाकर्त्ता, विकेश कुमार सिंह और अरुणाचलम पी., केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) में कांस्टेबल (जनरल ड्यूटी) के पद पर कार्यरत थे।
- दोनों विदेश मंत्रालय के अंतर्गत ढाका स्थित भारतीय उच्चायोग (HCI) में प्रतिनियुक्ति पर तैनात थे।
- 26 जनवरी, 2018 को, जब अधिकारीगण गणतंत्र दिवस परेड की मेज़बानी करने गए हुए थे, एक अनधिकृत महिला चांसरी में घुस आई, जहाँ याचिकाकर्त्ता ड्यूटी पर थे।
- महिला कथित तौर पर भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (ITBP) के सदस्य हेड कांस्टेबल महेश मकवाना के साथ घुसी थी।
- इस सुरक्षा उल्लंघन के संबंध में HCI ने 13 फरवरी, 2018 को दोनों याचिकाकर्त्ताओं को कारण बताओ नोटिस जारी किया।
- याचिकाकर्त्ता के उत्तरों से असंतुष्ट होकर, भारतीय उच्चायोग ने समय से पहले ही दोनों याचिकाकर्त्ताओं को उनके राजनयिक मिशन ड्यूटी से वापस भेज दिया।
- यद्यपि HCI ने आगे की कार्रवाई के लिये कोई सिफारिश नहीं की, लेकिन CISF ने स्वतंत्र रूप से दोनों याचिकाकर्त्ताओं के विरुद्ध अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू कर दी।
- CISF ने 31 मार्च, 2018 को प्रभार ज्ञापन जारी किया, जिसमें CISF नियम, 2001 के नियम 36 के अंतर्गत प्रमुख दंड का प्रस्ताव किया गया।
- याचिकाकर्त्ताओं ने दावा किया कि वे मोर्चा ड्यूटी (सशस्त्र गार्ड ड्यूटी) पर थे और आगंतुकों के प्रवेश की जाँच करना उनकी ज़िम्मेदारी नहीं थी।
- उन्होंने बताया कि महिला HC मकवाना का कमरा साफ करने आई थी।
- अनुशासनात्मक कार्यवाही के बाद दोनों याचिकाकर्त्ताओं को सेवा से हटा दिया गया।
- याचिकाकर्त्ताओं ने इन आदेशों के विरुद्ध अपील की, लेकिन उनकी अपील खारिज कर दी गई।
- इसके बाद उन्होंने पुनरीक्षण याचिकाएँ दायर कीं, जिन्हें भी खारिज कर दिया गया।
- इस बीच, इसी घटना में शामिल ITBP के सदस्य, HC महेश मकवाना को उनके विभाग से दंड के रूप में केवल "कड़ी फटकार" मिली।
- एक ही घटना के लिये CISF और ITBP कर्मियों के बीच सज़ा की गंभीरता में अंतर इस मामले में एक प्रमुख मुद्दा बन गया, जिसके लिये याचिकाकर्त्ताओं द्वारा दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष रिट याचिका दायर की गई है।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
दिल्ली उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- कर्तव्य की अवहेलना पर:
- न्यायालय ने पाया कि याचिकाकर्त्ताओं ने अपने कर्तव्यों की स्पष्ट रूप से अवहेलना की है।
- उनके कार्यों से उनके कर्तव्य के प्रति गैर-गंभीर दृष्टिकोण का पता चलता है।
- उन्होंने एक महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील चौकी पर सुरक्षा भंग करने में सहायता की।
- इस उल्लंघन के परिणामस्वरूप गंभीर सुरक्षा चूक हो सकती थी।
- CISF द्वारा अतिरिक्त पूछताछ पर:
- न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं के इस तर्क को खारिज कर दिया कि HCI की जाँच के बाद भारत में आगे कोई जाँच नहीं की जा सकती।
- स्पष्ट किया कि HCI की प्रारंभिक जाँच केवल प्रत्यावर्तन पर निर्णय लेने के लिये थी।
- CISF के अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के अधिकार की पुष्टि की, भले ही उधार लेने वाले प्राधिकारी (HCI) ने ऐसा न किया हो।
- अनुशासनात्मक शक्तियों पर:
- न्यायालय ने कहा कि CISF अधिनियम का नियम 14 बल कर्मियों की प्रतिनियुक्ति से संबंधित है।
- नियम 41 में निलंबन और अनुशासनात्मक कार्यवाही के लिये उधार लेने वाले प्राधिकरण की शक्तियों को शामिल किया गया है।
- ये नियम उधार देने वाले प्राधिकरण (CISF) को अनुशासनात्मक जाँच शुरू करने से नहीं रोकते हैं।
- दंड में भेदभाव के संबंध में:
- न्यायालय ने पाया कि गृह मंत्रालय के अधीन सभी केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) समान नियमों द्वारा शासित होते हैं।
- दंड में असमानता पर ध्यान देना: ITBP के सदस्यों को 'कड़ी फटकार' मिली जबकि CISF के सदस्यों को सेवा से हटा दिया गया।
- पाया गया कि CAPF के बीच दंड में यह भिन्नता अन्याय को जन्म देगी।
- यह निष्कर्ष निकाला गया कि दंड भेदभावपूर्ण और असंगत था।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने अंततः याचिकाकर्त्ताओं के निष्कासन आदेश को रद्द कर दिया तथा पाँच वर्ष तक सेवा से बाहर रहने को पर्याप्त दंड माना।
- दिल्ली उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ताओं और ITBP सदस्य को बकाया वेतन या अन्य लाभ दिये बिना बहाल करने का निर्देश दिया।
समता का सिद्धांत क्या है?
- भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों के लिये “कानून के समक्ष समता” और “कानून का समान संरक्षण” के मौलिक अधिकार की पुष्टि करता है।
- पहली अभिव्यक्ति "कानून के समक्ष समता" इंग्लैंड की मूल है और दूसरी अभिव्यक्ति "कानून का समान संरक्षण" अमेरिकी संविधान से ली गई है।
- समता एक प्रमुख सिद्धांत है जिसे भारत के संविधान की प्रस्तावना में इसके प्राथमिक उद्देश्य के रूप में शामिल किया गया है।
- यह सभी मनुष्यों के साथ निष्पक्षता से व्यवहार करने की प्रणाली है।
- यह COI के अनुच्छेद 15 में उल्लिखित आधारों पर गैर-भेदभाव की प्रणाली भी स्थापित करता है।
- The purpose of Article 14 of the COI is to give similar treatment to similarly circumstanced persons, both in privileges conferred and liabilities imposed.
- COI के अनुच्छेद 14 का उद्देश्य समान परिस्थितियों वाले व्यक्तियों को प्रदत्त विशेषाधिकारों और अधिरोपित दायित्वों दोनों के मामले में समान व्यवहार प्रदान करना है।
- वर्गीकरण मनमाना नहीं बल्कि तर्कसंगत होना चाहिये।