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सांविधानिक विधि

पूर्व-संबंध का सिद्धांत

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 13-Aug-2024

राम निवास सिंह एवं 5 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ एवं 5 अन्य

"संबंध की वापसी का सिद्धांत सेवा मामलों में लागू होगा, विशेष रूप से तब जब किसी कर्मचारी के पक्ष में बाद में दोषमुक्ति या पारित आदेश प्रारंभिक विवाद से संबंधित हो।"

न्यायमूर्ति मनीष माथुर

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने राम निवास सिंह एवं 5 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य के माध्यम से अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ एवं 5 अन्य के मामले में माना है कि पूर्व-संबंध का सिद्धांत उस समय से लागू होना चाहिये जब कार्यवाही का कारण उत्पन्न हुआ था।

राम निवास सिंह एवं 5 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य, अपर मुख्य सचिव बेसिक शिक्षा लखनऊ एवं 5 अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामले में याचिकाकर्त्ता को प्रतिवादी संस्था में सहायक अध्यापक के पद पर नियुक्त किया गया था तथा अन्य याचिकाकर्त्ताओं को उसी संस्था में चतुर्थ श्रेणी के पद पर नियुक्त किया गया था। 
  • याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि प्रतिवादी एक सहायता प्राप्त संस्था है, जिसने वर्ष 1998 में याचिकाकर्त्ता की नियुक्ति तथा वेतन को रद्द कर दिया था।
  • इसे रिट दायर करके चुनौती दी गई थी, जिसका निपटारा शिक्षा निदेशक को 30 जून 2021 को उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त बेसिक स्कूल (जूनियर हाईस्कूल) (शिक्षकों की भर्ती एवं सेवा की शर्तें) नियमावली, 1978 के अनुसार कर्मचारियों की शिकायत और उनके वेतन अधिकारों पर उचित आदेश पारित करने का निर्देश देकर किया गया था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने वर्तमान याचिका में दलील दी है कि राज्य सरकार ने उनकी नियुक्तियों को वैध मानते हुए उन्हें राज्य कोष के माध्यम से वेतन दिये जाने के लिये योग्य और पात्र पाया है तथा यह पूर्वव्यापी प्रभाव से लागू होना चाहिये।
  • हालाँकि राज्य सरकार ने तर्क दिया कि वेतन पूर्वव्यापी प्रभाव से नहीं दिया जाएगा क्योंकि राज्य सरकार द्वारा आदेश की पूर्वव्यापी प्रयोज्यता के संबंध में कोई निर्देश नहीं थे। 
  • इस विवाद को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष रिट दायर करके प्रस्तुत किया गया था।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पाया कि यह संस्था एक मान्यता प्राप्त सहायता प्राप्त जूनियर हाई स्कूल है, जिसे अनुदान सहायता के तहत लाया गया है तथा याचिकाकर्त्ताओं सहित कर्मचारियों को वेतन का भुगतान राज्य के खजाने से किया जाता है। 
  • न्यायालय ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्त्ता की नियुक्ति के समय राज्य सरकार के आदेश के माध्यम से राज्य ने याचिकाकर्त्ताओं को वेतन का भुगतान करने का निर्देश दिया था।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दिल्ली जल बोर्ड बनाम महिंदर सिंह (2000) के निर्णय का हवाला दिया तथा वर्तमान मामले में संबंध-वापसी के सिद्धांत को लागू किया। 
  • न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि कार्यवाही का कारण तब उत्पन्न हुआ जब याचिकाकर्त्ता की नियुक्ति रद्द कर दी गई तथा इसलिये वेतन से संबंधित राज्य सरकार के आदेश को पूर्वव्यापी रूप से लागू किया जाना चाहिये, भले ही राज्य सरकार के आदेशों में इसका स्पष्ट उल्लेख न किया गया हो।

पूर्व-संबंध का सिद्धांत क्या है?

परिचय:

  • ब्लैक लॉ डिक्शनरी के अनुसार इस सिद्धांत को ‘एक सिद्धांत के रूप में परिभाषित किया गया है जिसके अनुसार आज किया गया कार्य पहले किया गया माना जाता है’। 
  • इससे तात्पर्य है कि किसी व्यक्ति द्वारा वर्तमान में किया गया कार्य उसके पिछले कार्यों से संबद्ध हो सकता है। 
  • इस सिद्धांत की अलग-अलग विधियों के साथ अलग-अलग अनुप्रयोज्यता है।

उद्देश्य:

  • यह सिद्धांत न्याय प्रदान करते समय अस्पष्टता को दूर करने के लिये उपयोगी है। 
  • यह किसी मामले में परिसीमाओं एवं प्रतिबंधों से बचने में सहायता करता है। 
  • यह चूक करने की संभावनाओं को और कम करता है।

अनुप्रयोज्यता: 

  • हिंदू विधि: 
    • हिंदू दत्तक ग्रहण एवं भरण-पोषण अधिनियम, 1956 (HAMA) की धारा 12 में प्रावधान है कि दत्तक किसी भी व्यक्ति को उस संपत्ति से वंचित नहीं करेगा जो गोद लेने से पहले उसके पास निहित है। इस प्रकार, गोद लेने का उस संपत्ति पर कोई प्रभाव नहीं होगा जो पहले से ही किसी व्यक्ति के पास निहित है।
    • HAMA की धारा 12(c) संबंध वापसी के सिद्धांत को नकारती है, जिसे संपत्ति के निहितीकरण एवं विनिवेश के मामले में लागू और प्रयोग किया गया था।
  • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 (CPC): संहिता के आदेश VI नियम 17 के अंतर्गत संबंध वापसी का सिद्धांत निहित रूप से दिया गया है। यह प्रावधान करता है कि यदि पक्षों के मध्य मुद्दों को निर्धारित करना आवश्यक हो, तो न्यायालय वाद से पहले किसी भी समय किसी पक्ष को दलीलों में संशोधन करने की अनुमति दे सकता है।
  • भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 (ICA): ICA के अंतर्गत संबंध वापसी के सिद्धांत का अनुप्रयोग ICA की धारा 196 के अंतर्गत दिये गए अनुसमर्थन की अवधारणा में पाया जा सकता है।
  • परिसीमा अधिनियम, 1963: परिसीमा अधिनियम, 1963 की धारा 21 में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि पक्षों का प्रतिस्थापन या संबंध योजन के सिद्धांत द्वारा शासित होगा।

महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • दिल्ली जल बोर्ड बनाम महिंदर सिंह (2000): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि अनुशासनात्मक जाँच के निष्कर्षों को अधिकारी को दोषमुक्त करने के लिये प्रभावी माना जाना चाहिये क्योंकि वे स्पष्ट रूप से उस तिथि से संबंधित हैं जिस दिन आरोप तय किये गए थे। यदि अनुशासनात्मक जाँच उसके पक्ष में समाप्त हुई, तो ऐसा लगता है कि अधिकारी पर कोई अनुशासनात्मक जाँच नहीं की गई थी।