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पारिवारिक कानून
रेस जूडीकेटा और स्थायी निर्वाह व्यय का सिद्धांत
«26-Nov-2024
X बनाम Y “न्याय के अंतर्निहित सिद्धांतों पर विचार किये बिना प्रक्रियात्मक नियमों का सख्ती से पालन करने से ऐसे परिणाम सामने आ सकते हैं, जहाँ तकनीकी बातें मूल अधिकारों से अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाती हैं, जिससे पक्षकारों के पास कोई सार्थक उपाय नहीं रह जाता।” न्यायमूर्ति पुष्पेंद्र सिंह भाटी और न्यायमूर्ति मुन्नुरी लक्ष्मण |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, राजस्थान उच्च न्यायालय ने X बनाम Y के मामले में माना है कि रेस जूडीकेटा का सिद्धांत स्थायी अनुतोष और स्त्रीधन के अनुतोष पर लागू नहीं होगा।
X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में, उदयपुर ज़िले में 12 जून, 2017 को एक विवाहित पत्नी और पति के बीच वैवाहिक विवाद उत्पन्न हुआ।
- विवाह के कुछ समय बाद ही पति ने पत्नी को मानसिक रूप से विशेषकर उसके कुछ सोने के आभूषणों को लेकर, प्रताड़ित करना शुरू कर दिया।
- पत्नी का आरोप है कि उसके पति का विवाह से पहले किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध था और वह उस पर नौकरी छोड़ने का दबाव बना रहा था।
- 25 जनवरी, 2018 को पति ने उसे अपने वैवाहिक घर से निकाल दिया और उसे अपने माता-पिता के साथ रहने के लिये मजबूर कर दिया।
- पति गुजरात के गांधीनगर में रहता था।
- इसके बाद, पत्नी को पता चला कि उसके पति ने 8 मार्च, 2021 को गांधीनगर की एक न्यायालय से एकपक्षीय विवाह-विच्छेद का आदेश प्राप्त कर लिया है।
- उत्तर में, उसने उदयपुर के कुटुंब न्यायालय में एक आवेदन दायर किया, जिसमें निम्न मांगें शामिल थीं:
- विवाह-विच्छेद
- स्थायी निर्वाह व्यय
- स्त्रीधन (निजी संपत्ति) पर कब्ज़ा
- कुटुंब न्यायालय ने यह कहते हुए उसकी अर्ज़ी खारिज कर दी कि पिछली विवाह-विच्छेद की डिक्री के कारण मामला रेस जूडीकेटा द्वारा वर्जित है।
- इसके बाद पत्नी ने राजस्थान उच्च न्यायालय में एक सिविल अपील दायर की, जिसमें अपने पति के विरुद्ध भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 498A और 406 के तहत आपराधिक शिकायत दर्ज कराई, जो दहेज़ उत्पीड़न और आपराधिक विश्वासघात से संबंधित हैं।
- उसकी अपील का मुख्य उद्देश्य स्थायी निर्वाह व्यय और स्त्रीधन की वसूली के लिये उसके दावों को खारिज किये जाने को चुनौती देना था, तथा तर्क दिया कि पिछली एकपक्षीय विवाह-विच्छेद की डिक्री को उसे इन कानूनी उपायों को लेने से नहीं रोकना चाहिये।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 25 (स्थायी निर्वाह व्यय) की व्याख्या:
- धारा 25 एक सामाजिक कल्याण प्रावधान है जिसका उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित करना है।
- यह प्रावधान सतत् प्रकृति का है और वैवाहिक कार्यवाही के किसी भी चरण में इसका प्रयोग किया जा सकता है।
- इस विधायी उद्देश्य महिलाओं को वित्तीय स्वतंत्रता प्रदान करना है।
- न्यायालय ने सामाजिक न्याय को आगे बढ़ाने वाली उद्देश्यपूर्ण व्याख्या की आवश्यकता पर बल दिया।
- राजस्थान में महिलाओं का सामाजिक-आर्थिक संदर्भ:
- न्यायालय ने महिलाओं के सामने आने वाली महत्त्वपूर्ण सामाजिक और वित्तीय बाधाओं को स्वीकार किया।
- अधिकार क्षेत्र संबंधी विचार:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 19, पत्नी को उस न्यायालय में याचिका दायर करने की अनुमति देती है जिसके अधिकार क्षेत्र में वह रहती है।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि महिलाओं को मौलिक कानूनी अनुतोष पाने के लिये "एक जगह से दूसरी जगह भटकना" नहीं चाहिये।
- स्त्रीधन (निजी संपत्ति):
- यह एक महिला की पूर्ण संपत्ति होती है।
- इस बात पर प्रकाश डाला कि स्त्रीधन पर पति का कोई नियंत्रण नहीं होता है।
- इस बात पर ज़ोर दिया कि स्त्रीधन में किसी अन्य द्वारा हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
- पूर्व विवाह-विच्छेद आदेश:
- उल्लेखनीय है कि गुजरात न्यायालय द्वारा एकपक्षीय विवाह-विच्छेद का आदेश पहले ही पारित किया जा चुका है।
- यह देखा गया है कि ऐसे आदेश को केवल अपीलीय न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती है।
- प्रक्रियात्मक दृष्टिकोण:
- इस बात पर ज़ोर दिया गया कि प्रक्रिया को "न्याय की दासी होना चाहिये, न कि उसकी स्वामिनी" (handmaid of justice, not its mistress)।
- कठोर प्रक्रियात्मक व्याख्याओं के विरुद्ध तर्क दिया गया जो वास्तविक न्याय को रोक सकती हैं।
- कानूनी व्याख्या:
- व्याख्या के "सुनहरे नियम" को लागू किया।
- कानूनी कहावत "यूटी रेस मैगिस वैलेट क्वाम पेरेट- ut res magis valeat quam pereat" (व्याख्या को सिस्टम के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करना चाहिये) का उपयोग किया।
- HMA की धारा 25 को लागू करके कानूनों की व्याख्या इस तरह से करने पर ध्यान केंद्रित किया कि उनका वास्तविक विधायी उद्देश्य प्राप्त हो।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के प्रावधानों के अनुसार रेस जूडीकेटा का सिद्धांत स्थायी अनुतोष और स्त्रीधन के राहत पर लागू नहीं होगा।
- न्यायालय की टिप्पणियाँ मूलतः न्याय सुनिश्चित करने, महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने तथा कानूनों की व्याख्या इस प्रकार करने पर केंद्रित थीं, जिससे उनका सामाजिक कल्याण उद्देश्य पूरा हो सके।
रेस जूडीकेटा का सिद्धांत क्या है?
परिचय:
- इस सिद्धांत का स्पष्ट अर्थ यह है कि किसी भी मामले पर दोबारा निर्णय नहीं दिया जाना चाहिये, अथवा उसी मुद्दे पर कोई दूसरा मुकदमा दायर नहीं किया जाना चाहिये जिस पर न्यायालय पहले ही निर्णय दे चुका है।
- रेस जूडीकेटा का सिद्धांत तीन लैटिन सिद्धांतों पर आधारित है:
- इंटरेस्ट रिपब्लिका यूटी सिट फिनिस लिटियम (Interest Reipublicae Ut Sit Finis Litium): इसका अर्थ है कि यह राज्य के हित में है कि मुकदमेबाज़ी का अंत होना चाहिये।
- निमो डेबेट बिस वेक्सारी प्रो ऊना ईटी ईएडेम कॉसा (Nemo Debet Bis Vexari Pro Una Et Eadem Causa): इसका अर्थ है कि किसी भी व्यक्ति को एक ही कारण से दो बार परेशान नहीं किया जाना चाहिये।
- रेस जुडीकाटा प्रो वेरिटेट ओसीसीपिटुर (Res Judicata Pro Veritate Occipitur): इसका अर्थ है कि न्यायिक निर्णय को सही माना जाना चाहिये। ऐसे मामलों में जहाँ निर्णय में विरोधाभास होता है, तो इससे न्यायपालिका को शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।
आवश्यक तत्त्व:
- विवादित मामला समान होना चाहिये: रेस जूडीकेटा के सिद्धांत को लागू करने के लिये, बाद के वाद में मामला सीधे और मूलतः पूर्ववर्ती वाद के समान होना चाहिये।
- समान पक्षकार: पूर्ववर्ती वाद समान पक्षकारों के बीच, या उन पक्षकारों के बीच होना चाहिये जिनके अंतर्गत वे या उनमें से कोई दावा करता है।
- समान शीर्षक: पक्षकारों को पूर्व और बाद के दोनों वादों में समान शीर्षक के तहत मुकदमा लड़ना होगा।
- सक्षम क्षेत्राधिकार: जिस न्यायालय ने पूर्ववर्ती वाद का निर्णय किया था, उसके पास आगामी वाद या उस वाद की सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार होना चाहिये जिसमें मुद्दा उठाया गया हो।
- सुना गया और अंततः निर्णय लिया गया: विवादित मामले की सुनवाई पूर्व न्यायालय द्वारा की गई होगी और अंतिम रूप से निर्णय हुआ होगा।
विस्तार और प्रयोज्यता:
- रेस जूडीकेटा का सिद्धांत सिविल वादों, निष्पादन कार्यवाही, कराधान मामलों, औद्योगिक न्यायनिर्णयन, प्रशासनिक आदेशों, अंतरिम आदेशों आदि पर लागू होता है।
- CPC की धारा 11 में संहिताबद्ध रेस जूडीकेटा का सिद्धांत संपूर्ण नहीं है।
स्थायी भरण-पोषण क्या है?
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