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आपराधिक कानून
आत्महत्या के दुष्प्रेरण हेतु आवश्यक तत्त्व
« »22-Aug-2024
खैरू उर्फ़ सतेंद्र सिंह रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य "ऐसा कोई सकारात्मक या प्रत्यक्ष आरोप नहीं है कि याचिकाकर्त्ता का आशय वंदना की हत्या करना था या उसने उसे आत्महत्या करने के लिये दुष्प्रेरित करना या प्रोत्साहित करना था।" न्यायमूर्ति संजीव एस. कलगांवकर |
स्रोत: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने खैरू उर्फ़ सतेंद्र सिंह रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य के मामले में माना है कि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का आरोप स्थापित करने के लिये वास्तविक आशय होना चाहिये तथा यदा कदा उत्पीड़न या दुर्व्यवहार को आत्महत्या का दुष्प्रेरण नहीं माना जाएगा।
खैरू उर्फ़ सतेंद्र सिंह रावत बनाम मध्य प्रदेश राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- इस मामले में, वंदना (मृतक) विक्रम की पत्नी थी, जो साड़ी के सहारे छत के पंखे से लटकी हुई पाई गई थी।
- मृतक के रिश्तेदारों द्वारा आत्महत्या के दुष्प्रेरण के आरोप में एक व्यक्ति (इस मामले में याचिकाकर्त्ता) एवं उसके पति के विरुद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी तथा उन पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 34 एवं धारा 306 के अधीन आरोप लगाए गए थे।
- आरोप लगाया गया कि याचिकाकर्त्ता एवं उसका पति मृतका के साथ दुर्व्यवहार करते थे तथा पति नशे में मृतका के साथ मारपीट करता था।
- मामला ट्रायल कोर्ट में प्रस्तुत किया गया, जहाँ यह माना गया कि याचिकाकर्त्ता एवं सह-आरोपी (विक्रम) मृतका को आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण एवं परेशान करने के आरोपों के अधीन उत्तरदायी हैं।
- इस निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्त्ता ने इस आधार पर मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय में आपराधिक पुनरीक्षण याचिका दायर की कि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण के लिये कोई दुष्प्रेरण या कृत्य कारित नहीं किया गया था।
न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने इस मामले के निर्णय को पूरा करने के लिये विभिन्न ऐतिहासिक मामलों का उदाहरण दिया।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने कहा कि आरोपी व्यक्ति का प्रत्यक्ष कृत्य ऐसी प्रकृति का होना चाहिये, जहाँ पीड़ित के पास आत्महत्या करने के अतिरिक्त कोई विकल्प न हो।
- उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि यह मानते हुए भी कि याचिकाकर्त्ता ने मृतक के साथ दुर्व्यवहार किया, यह आचरण "दुष्प्रेरण" या "दुष्प्रेरण" के अंतर्गत नहीं आता।
- मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उपरोक्त टिप्पणियों के बाद ट्रायल कोर्ट के निर्णय को पलट दिया तथा माना कि याचिकाकर्त्ता एवं सह-आरोपी के विरुद्ध लगाए गए आरोपों में कोई प्रथम दृष्टया साक्ष्य नहीं है और इसलिये आपराधिक पुनरीक्षण को स्वीकार कर लिया।
आत्महत्या का दुष्प्रेरण क्या है?
- परिचय:
- IPC की धारा 306, आत्महत्या का दुष्प्रेरण से संबंधित है, जबकि यही प्रावधान भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 108 के अधीन शामिल किया गया है।
- इसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या करता है, तो जो कोई भी ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करता है, उसे किसी भी प्रकार के कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है एवं अर्थदण्ड भी देना होगा।
- उपरोक्त प्रावधान को पढ़ने से पता चलता है कि IPC की धारा 306 के अधीन अपराध के लिये, आत्महत्या एवं आत्महत्या का दुष्प्रेरण, दो आवश्यकताएँ हैं।
- आत्महत्या करना दण्डनीय नहीं है, इसलिये नहीं कि यह दोषी नहीं है, बल्कि इसलिये कि उत्तरदायी व्यक्ति किसी अभियोग का सामना करने से पहले ही इस दुनिया से चला जाता है।
- जबकि आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण को विधि द्वारा बहुत गंभीरता से लिया जाता है।
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- प्राचीन काल में भारत में सती प्रथा प्रचलित थी, जिसमें हिंदू महिलाएँ अपने पति की मृत्यु पर स्वयं को जला देती थीं।
- इस परंपरा को महिला के जीवन को समाप्त करने का सबसे शुद्ध रूप माना जाता था।
- परंपरा के नाम पर ऐसी प्रथाओं को खत्म करने के लिये आत्महत्या के प्रावधान जोड़े गए।
- इसके अतिरिक्त दहेज़ न लाने पर ससुराल वालों द्वारा दुर्व्यवहार एवं पति या ससुराल वालों द्वारा महिला पर अत्याचार व क्रूरता के कारण आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण की प्रथा शुरू हो जाती है।
- IPC में प्रावधान:
- आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण की सज़ा IPC की धारा 306 के अधीन दी जाती है।
- यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या कारित करता है, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है तथा वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
- BNS में प्रावधान:
- आत्महत्या के दुष्प्रेरण की सज़ा BNS की धारा 108 के अधीन दी जाती है।
- यदि कोई व्यक्ति आत्महत्या कारित करता है, तो जो कोई ऐसी आत्महत्या का दुष्प्रेरण कारित करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा, जिसे दस वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, तथा वह अर्थदण्ड के लिये भी उत्तरदायी होगा।
दुष्प्रेरण क्या है?
- परिचय:
- यदि कोई व्यक्ति किसी को आत्महत्या करने के लिये विवश करता है, दुष्प्रेरित करता है, प्रोत्साहित करता है।
- आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण का कृत्य किसी को आत्महत्या करने में सहायता करने एवं प्रोत्साहित करने का एक मानसिक कृत्य है।
- विधिक प्रावधान:
- BNS की धारा 45 एवं IPC की धारा 107 में दुष्प्रेरण को इस प्रकार परिभाषित किया गया है
- कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने के लिये दुष्प्रेरित करता है, जो—
- किसी व्यक्ति को उस कार्य को करने के लिये दुष्प्रेरित करता है; या
- उस कृत्य को करने के लिये किसी षडयंत्र में एक या एक से अधिक अन्य व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ शामिल होता है, यदि उस षडयंत्र के अनुसरण में और उस कार्य को करने के लिये कोई कार्य या अवैध लोप घटित होता है; या
- उस कार्य को करने में किसी कार्य या अवैध लोप द्वारा जानबूझ कर सहायता करता है।
- स्पष्टीकरण 1: कोई व्यक्ति, जो जानबूझकर मिथ्याव्यपदेशन करके या किसी ऐसे महत्त्वपूर्ण तथ्य को जानबूझकर छिपाकर, जिसे प्रकट करने के लिये वह आबद्ध है, स्वेच्छा से कोई कार्य करवाता है या करता है या करवाने का प्रयत्न करता है, उस कार्य को करवाने के लिये उकसाता है।
- स्पष्टीकरण 2: जो कोई, किसी कार्य के किये जाने से पूर्व या किये जाने के समय, उस कार्य के किये जाने को सुगम बनाने के लिये कुछ करता है तथा तद्द्वारा उसके किये जाने को सुगम बनाता है, उस कार्य को किये जाने में सहायता करता है, यह कहा जाता है।
- महत्त्वपूर्ण निर्णय
- गंगुला मोहन रेड्डी बनाम आंध्र प्रदेश राज्य (2010): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि
- दुष्प्रेरण में किसी व्यक्ति को किसी काम को करने के लिये दुष्प्रेरण या जानबूझकर सहायता करने की मानसिक प्रक्रिया शामिल होती है।
- आत्महत्या करने के लिये दुष्प्रेरण या सहायता करने के लिये अभियुक्त की ओर से परिणामी कृत्य किये बिना, दोषसिद्धि कायम नहीं रह सकती।
- अपराध करने के लिये स्पष्ट मंशा होनी चाहिये।
- इसके लिये एक सक्रिय कार्य या प्रत्यक्ष कार्य की भी आवश्यकता होती है जिसके कारण मृतक ने कोई विकल्प न देखकर आत्महत्या कर ली तथा इस कार्य का उद्देश्य मृतक को ऐसी स्थिति में धकेलना रहा होगा कि उसने आत्महत्या कर ली।
- संजू उर्फ़ संजय सिंह सेंगर बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2002): इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ऐसा कोई साक्ष्य नहीं है कि अभियुक्त ने मृतक को आत्महत्या करने के लिये दुष्प्रेरित किया, प्रोत्साहित किया या उकसाया, इसलिये यह नहीं माना जा सकता कि मृतक इतना भयभीत था कि उसके पास आत्महत्या करने के अतिरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं बचा था तथा वह ऐसा करने के लिये विवश हो गया।
आत्महत्या का दुष्प्रेरण का विधिक स्थिति क्या है?
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- अपराध का विनिश्चय
- आत्महत्या के प्रयास का अपराधीकरण दो पहलुओं पर आधारित है:
- क्या यह स्वैच्छिक था?
- क्या इसे बढ़ावा दिया गया था?
- भारतीय विधिक व्यवस्था किसी भी ऐसे व्यक्ति को अपराधी मानती है जो आत्महत्या का प्रयास करता है तथा जिससे सार्वजनिक व्यवस्था में व्यवधान पड़ता है।
- इसे राज्य के विरुद्ध अपराध माना जाता है तथा IPC की धारा 309 के अधीन अधिकतम 10 वर्ष का कारावास की सज़ा दी जाती है।
- अपराधमुक्ति की मांग
- प्रताड़ित व्यक्ति को दण्डित करने की अवधारणा पर अक्सर विभिन्न कार्यकर्त्ताओं एवं न्यायविदों द्वारा प्रश्न किये जाते हैं।
- यह अवधारणा आत्महत्या को बढ़ावा नहीं देती है, बल्कि यह आत्महत्या का प्रयास करने वाले व्यक्ति के परिवर्तन को बढ़ावा देती है।
- यह भी कहा जा सकता है कि गैर-अपराधीकरण से उन लोगों द्वारा अधिक खुली चर्चा की जाएगी जो आत्महत्या करने की सोच रहे हैं या जिन्हें ऐसा मानसिक संकट है कि वे आत्महत्या का प्रयास करने के लिये प्रेरित होते हैं।
- आत्महत्या के प्रयासों को अपराधमुक्त करने से समय पर चिकित्सा सहायता मिलने से व्यक्ति के ठीक होने की संभावना बढ़ जाएगी।
- इच्छामृत्यु एवं आत्महत्या का दुष्प्रेरण
- इच्छामृत्यु शब्द ग्रीक शब्दों "यू" एवं "थानोटोस" से लिया गया है जिसका शाब्दिक अर्थ है अच्छी मौत एवं इसे अन्यथा दया मृत्यु के रूप में वर्णित किया जाता है।
- इसे आगे सक्रिय एवं निष्क्रिय के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- आत्महत्या के लिये दुष्प्रेरण अच्छी मृत्यु नहीं माना जा सकता है, बल्कि यह एक ऐसा कार्य है जिसमें कोई व्यक्ति किसी को मानसिक या शारीरिक या भावनात्मक कष्ट देकर आत्महत्या करने के लिये विवश करता है।