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विबंध
« »21-Nov-2024
अमित बनाम दिव्या "केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि जब अभिरक्षा विवाद मामले में न्यायालय द्वारा स्वयं कोई त्रुटि की जाती है तो किसी पक्षकार के विरुद्ध कोई रोक नहीं लगाई जा सकती।" न्यायमूर्ति पी. बी. सुरेश कुमार और न्यायमूर्ति सी. प्रतीप कुमार |
स्रोत: केरल उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
केरल उच्च न्यायालय ने हाल ही में अभिरक्षा विवाद में एक समीक्षा याचिका पर निर्णय दिया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि यदि न्यायालय द्वारा स्वयं कोई त्रुटि की जाती है तो किसी पक्षकार के विरुद्ध कोई रोक नहीं लगाई जा सकती। न्यायालय ने अपनी त्रुटियों को सुधारने को अपना कर्तव्य बताया और कहा कि यदि परिस्थितियाँ बदलती हैं तो अभिरक्षा आदेश बदले जा सकते हैं।
- यह मामला एक पिता द्वारा अपने बच्चे की अभिरक्षा की मांग से संबंधित था, लेकिन न्यायालय ने प्रारम्भ में मध्यस्थता समझौते के आधार पर, पिता के बच्चे से मिलने के अधिकार के अधीन, बच्चे की स्थायी अभिरक्षा माँ को प्रदान कर दी थी।
अमित बनाम दिव्या मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला एक तलाकशुदा दम्पति के बीच अपने अवयस्क बच्चे के संरक्षण के विवाद से संबंधित है, जिसमें पिता दुबई में काम करता है और माँ कनाडा में उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है।
- प्रारंभ में, दम्पति के बीच मध्यस्थता समझौता हुआ था, जिसके तहत बच्चे की स्थायी अभिरक्षा माँ को दी गई थी, तथा पिता को उससे मिलने का अधिकार दिया गया था।
- पुनर्विवाह करने और कनाडा में स्थानांतरित होने के बाद, माँ ने अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए बच्चे को भारत में अपने माता-पिता के पास छोड़ दिया।
- पिता ने कुटुम्भ न्यायालय में कई आवेदन दायर किये जिनमें निम्नलिखित शामिल थे:
- बच्चे की स्थायी अभिरक्षा।
- बच्चे को शिक्षा के लिये दुबई ले जाने की अनुमति।
- बच्चे की अंतरिम अभिरक्षा।
- माँ ने एक साथ निम्नलिखित अनुरोध सहित अन्य आवेदन दायर किये:
- बच्चे को कनाडा ले जाने की अनुमति।
- मौजूदा मिलने के अधिकारों को संशोधित करने की अनुमति।
- कुटुम्भ न्यायालय ने शुरू में माँ के कुछ आवेदनों को खारिज कर दिया था तथा पिता को कुछ शर्तों के अधीन आगामी शैक्षणिक वर्ष में बच्चे को दुबई ले जाने की अनुमति दे दी थी।
- इसके बाद, दोनों पक्षकारों ने कुटुम्भ न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए मूल याचिकाएँ दायर कीं, जिसके परिणामस्वरूप उच्च न्यायालय में आगे की कानूनी कार्यवाही हुई।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने एकल न्यायाधीश के आदेश में स्पष्ट त्रुटि की पहचान की, तथा विशेष रूप से यह उल्लेख किया कि कुटुम्भ न्यायालय के आदेशों से संबंधित मूल याचिकाओं के मुख्य मुद्दों पर पर्याप्त रूप से विचार नहीं किया गया था।
- न्यायालय ने कहा कि अभिरक्षा आदेश, चाहे अंतरिम हो या स्थायी, बदलती परिस्थितियों के आधार पर संशोधित किये जा सकते हैं और अपरिवर्तनीय नहीं हैं।
- पीठ ने संभावित प्रक्रियागत जटिलताओं पर प्रकाश डाला, जो न्यायालयी अभिलेखों के उचित रखरखाव न किये जाने की स्थिति में उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे आगामी कार्यवाहियों में कुटुम्भ न्यायालय की अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करने की क्षमता में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
- न्यायालय ने विबंध के कानूनी सिद्धांत की सूक्ष्म व्याख्या की तथा इस बात पर ज़ोर दिया कि किसी आदेश का लाभ स्वीकार करने वाले पक्षकारों को उसे चुनौती देने से रोका जा सकता है, लेकिन यह सिद्धांत समानता और अच्छे विवेक के सिद्धांतों को दरकिनार नहीं कर सकता।
- न्यायालय ने कहा कि कनाडा में भविष्य में बच्चे की देखभाल की मांग करने का माँ का अधिकार न्यायालय की गलती के कारण प्राप्त एक "अप्रत्याशित लाभ" प्रतीत होता है, जो कि पिछले कुटुम्भ न्यायालय के आदेशों के आधार पर उचित नहीं था।
- पीठ ने सुझाव दिया कि प्रतिवादी एक अनुचित लाभ को बनाए रखने और समीक्षा याचिका पर विचार को रोकने के लिये रणनीतिक रूप से अनुमोदन और निंदनीय के सिद्धांत को लागू कर रहा है।
- न्यायालय ने निर्धारित किया कि जब कोई त्रुटि स्वयं न्यायालय द्वारा की जाती है, तो उस त्रुटि को सुधारने की मांग करने वाले पक्षकार के विरुद्ध कोई वैध रोक नहीं लगाई जा सकती है, तथा न्यायालय का अपनी त्रुटियों को सुधारने का मौलिक कर्तव्य है।
विबंध क्या है?
- विबंध एक कानूनी सिद्धांत है जो किसी व्यक्ति को उसके पिछले कथन या व्यवहार का खंडन करने से रोकता है, यदि अन्य लोगों ने अपने नुकसान के लिये उस पर भरोसा किया हो।
- यह कानूनी और व्यक्तिगत व्यवहार में निष्पक्षता और स्थिरता सुनिश्चित करता है, जो लैटिन कहावत "एलेगन्स कॉन्ट्रैरिया नॉन ऑडिएंडस एस्ट" (allegans contraria non audiendus est- विरोधाभासी तथ्यों का आरोप लगाने वाले व्यक्ति की बात नहीं सुनी जानी चाहिये) पर आधारित है।
विबंध के प्रकार क्या हैं?
- रेस जूडीकेटा (रिकॉर्ड द्वारा विबंध):
- एक बार सक्षम न्यायालय द्वारा निर्णायक रूप से निर्णय दिये जाने के बाद एक ही मामले में उन्हीं पक्षकारों के बीच पुनः मुकदमा दायर होने से रोकता है।
- कानून में आधार: भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 40-44 इस अवधारणा को संहिताबद्ध करती है।
- विलेख द्वारा विबंध:
- औपचारिक समझौते या विलेख के पक्षकार बाद में उसमें निहित तथ्यों से इनकार नहीं कर सकते, यदि उन्होंने उस पर कार्रवाई की है।
- धोखाधड़ी वाले कार्य इस नियम के अपवाद हैं।
- आचरण द्वारा विबंध:
- यह तब होता है जब किसी व्यक्ति के व्यवहार या चूक के कारण कोई अन्य व्यक्ति किसी निश्चित तथ्य पर विश्वास करने लगता है, जिससे उस पर भरोसा हो जाता है।
- व्यक्ति बाद में अपने प्रतिनिधित्व की वैधता से इनकार नहीं कर सकता।
- वचन-विबंध:
- यदि कोई व्यक्ति कोई वचन करता है, जिससे कोई दूसरा व्यक्ति उस पर कार्यवाई करने के लिये प्रेरित होता है, तो उसे औपचारिक विचार-विमर्श के बिना भी, वचन से मुकरने से रोका जाता है।
- मुख्य मामला: सेंट्रल लंदन प्रॉपर्टी ट्रस्ट बनाम हाई ट्रीज़ हाउस लिमिटेड ने इसे अंग्रेजी कानून में पेश किया। भारतीय कानून के तहत, भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 115 के तहत वचनबद्धता निजी और सरकारी दोनों पक्षकारों पर लागू होती है।
विबंध किसे किया जा सकता है?
- किरायेदार, लाइसेंसधारी और कब्ज़ारखने वाला:
- किरायेदार या लाइसेंसधारी अपनी किरायेदारी की शुरुआत में अपने मकान मालिक के स्वामित्व को अस्वीकार नहीं कर सकते (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 116)।
- भले ही स्वामित्व बदल जाए, किरायेदार किरायेदारी के दौरान नए मालिक के स्वामित्व पर विवाद नहीं कर सकते, जब तक कि धोखाधड़ी शामिल न हो।
- विनिमय पत्र का प्रतिग्रहीता, उपनिहिती या लाइसेंसधारी:
- यदि परक्राम्य लिखत वैध रूप से जारी की गई है तो परक्राम्य लिखत का प्रतिग्रहीता, आहर्ता के अधिकार पर विवाद नहीं कर सकता (भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 117)।
- कोई उपनिहिती जो सुरक्षित रखने के लिये माल प्राप्त करता है, वह निक्षेपक के शीर्षक पर विवाद नहीं कर सकता, जब तक कि कोई तीसरा पक्ष श्रेष्ठ शीर्षक का दावा न करे।
- अवयस्क:
- अवयस्कों को, एक नियम के रूप में, विबंध द्वारा बाध्य नहीं किया जाता है क्योंकि अवयस्कों के साथ किये गए संविदा शुरू से ही शून्य होती हैं।
- अपवाद: अंग्रेजी कानून के तहत, अवयस्कों को प्राप्त लाभों को बहाल करने की सीमा तक विबंध किया जा सकता है, जैसा कि लेस्ली बनाम शेल में हुआ।
- सरकार एवं सरकारी एजेंसियाँ:
- जबकि सरकारें आमतौर पर संप्रभु कृत्यों में विबंध से मुक्त होती हैं, वचन संबंधी विबंध उन्हें स्पष्ट, सुस्पष्ट वादों के मामलों में बाध्य कर सकता है जो हानिकारक निर्भरता की ओर ले जाता है।
- सीमाएँ: यदि वचन को लागू करने से कानून या सार्वजनिक हित का उल्लंघन होता है तो विबंध लागू नहीं होता है।
विबंध के अपवाद क्या हैं?
- धोखाधड़ी या दुर्व्यपदेशन:
- विबंध का उपयोग धोखाधड़ी या अवैध कार्यों की रक्षा के लिये नहीं किया जा सकता है।
- जाली विलेख या धोखाधड़ीपूर्ण प्रतिनिधित्व विबंध को निरस्त कर देता है।
- पक्षकारों की योग्यता:
- विबंध का आह्वान करने वाले पक्षकारों के पास बयान देने या उन पर भरोसा करने की कानूनी क्षमता होनी चाहिये।
- सार्वजनिक हित और संप्रभु अधिनियम:
- सरकारों को संप्रभु कार्यों में विबंध से छूट दी गई है।