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आपराधिक कानून

पहले पति से विवाह भंग न होने पर भी दूसरे पति से भरण-पोषण का दावा

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 06-Feb-2025

श्रीमती एन उषा रानी एवं अन्य बनाम मूडुदुला श्रीनिवास

“CrPC की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण का अधिकार पत्नी को मिलने वाला लाभ नहीं है, बल्कि यह पति का विधिक एवं नैतिक कर्त्तव्य है।”

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि एक महिला अपने दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की अधिकारी है, भले ही उसका पहले पति से विवाह भंग न हुआ हो।

  • उच्चतम न्यायालय ने श्रीमती एन उषा रानी एवं अन्य बनाम मूडुदुला श्रीनिवास (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

श्रीमती एन उषा रानी एवं अन्य बनाम मूडुदुला श्रीनिवास मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • अपीलकर्त्ता संख्या 1 (एन. उषा रानी) ने पहली शादी 30 अगस्त 1999 को हैदराबाद में नोमुला श्रीनिवास से की थी तथा 15 अगस्त 2000 को उनके साई गणेश नाम का एक बेटा हुआ। 
  • फरवरी 2005 में संयुक्त राज्य अमेरिका से लौटने के बाद, दंपति अलग-अलग रहने लगे तथा 25 नवंबर 2005 को उन्होंने अपनी शादी को भंग करने के लिये एक समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किये। 
  • अपीलकर्त्ता संख्या 1 ने फिर 27 नवंबर 2005 को प्रतिवादी (उसकी पड़ोसी) से शादी की, लेकिन प्रतिवादी द्वारा दायर याचिका के बाद 1 फरवरी 2006 को कुटुंब न्यायालय, हैदराबाद द्वारा इस विवाह को अमान्य घोषित कर दिया गया।
  • अपीलकर्त्ता संख्या 1 एवं प्रतिवादी ने 14 फरवरी 2006 को फिर से विवाह किया तथा यह विवाह 11 सितंबर 2006 को हैदराबाद में विवाह रजिस्ट्रार के पास पंजीकृत हुआ।
  • दंपति की 28 जनवरी 2008 को एक बेटी, वेंकट हर्षिनी (अपीलकर्त्ता संख्या 2) हुई, लेकिन बाद में उनके बीच मतभेद उत्पन्न हो गए।
  • अपीलकर्त्ता संख्या 1 ने प्रतिवादी और उसके परिवार के सदस्यों के विरुद्ध भारतीय दण्ड संहिता और दहेज निषेध अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत शिकायत दर्ज कराई।
  • कुटुंब न्यायालय ने दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अंतर्गत अपीलकर्त्ता संख्या 1 को 3,500 रुपये प्रति माह तथा अपीलकर्त्ता संख्या 2 (बेटी) को 5,000 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने का आदेश दिया। 
  • उच्च न्यायालय ने प्रतिवादी की आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के प्रत्युत्तर में बेटी के भरण-पोषण को यथावत बनाए रखा, लेकिन अपीलकर्त्ता संख्या 1 के भरण-पोषण को खारिज कर दिया तथा निर्णय दिया कि उसे प्रतिवादी की विधिक पत्नी नहीं माना जा सकता क्योंकि उसकी पहली शादी विधिक डिक्री के माध्यम से भंग नहीं हुई थी। 
  • इस प्रकार, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने पाया कि वर्तमान तथ्यों में प्रतिवादी अपीलकर्त्ता संख्या 1 (पत्नी) के भरण-पोषण के अधिकार को इस आधार पर पराजित करना चाहता है कि प्रतिवादी के साथ उसका विवाह अपीलकर्त्ता संख्या 1 की पहली शादी के कारण शुरू से ही शून्य था, जो अभी भी कायम है। 
  • न्यायालय ने इस मामले में दो बहुत महत्त्वपूर्ण तथ्यों का अवलोकन किया:
    • यह ऐसा मामला नहीं है जिसमें प्रतिवादी से सत्यता छिपाई गई हो।
    • पृथक्करण का समझौता ज्ञापन न्यायालय के समक्ष रखा गया था, जो अलगाव का विधिक आदेश नहीं है, लेकिन यह दस्तावेज एवं अन्य साक्ष्य इस तथ्य की ओर इशारा करते हैं कि पक्षों ने अपने संबंध समाप्त कर लिये हैं और अलग-अलग रह रहे हैं।
    • इसलिये, अपीलकर्त्ता वास्तव में अपने पहले पति से अलग हो चुकी है तथा उसे पहली शादी से कोई अधिकार और उत्तराधिकार नहीं मिलता है।
  • इस मामले में न्यायालय ने यह देखा कि सामाजिक कल्याण को ध्यान में रखने वाले प्रावधानों को व्यापक एवं लाभकारी रूप दिया जाना चाहिये। 
  • कोई भी वैकल्पिक निर्माण प्रावधान के उद्देश्य को विफल कर देगा, जिसका उद्देश्य व्यभिचार एवं अभाव को रोकना है। 
  • इस मामले में एकमात्र संभावित शरारत यह हो सकती है कि अपीलकर्त्ता नंबर 1 दोहरे भरण-पोषण का दावा कर सकता है, जो वर्तमान तथ्यों में मामला नहीं है।
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 125 के अंतर्गत भरण-पोषण महिला द्वारा प्राप्त लाभ नहीं है, बल्कि पति द्वारा निभाया गया विधिक एवं नैतिक कर्त्तव्य है। 
  • इसलिये, न्यायालय ने अपील को स्वीकार कर लिया तथा वर्तमान मामले के तथ्यों के आधार पर पत्नी को भरण-पोषण प्रदान किया।

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) की धारा 144 के अंतर्गत भरण पोषण क्या है?

  • भरण-पोषण का प्रावधान CrPC की धारा 125 एवं BNSS की धारा 144 के अंतर्गत किया गया है।
  • कैप्टन रमेश चंद्र कौशल बनाम वीना कौशल एवं अन्य (1978) के मामले में न्यायमूर्ति कृष्ण अय्यर के माध्यम से उच्चतम न्यायालय ने CrPC की धारा 125 (अब BNSS की धारा 144) का उद्देश्य निर्धारित किया।
  • न्यायालय ने माना कि यह प्रावधान सामाजिक न्याय का एक उपाय है और महिलाओं एवं बच्चों की सुरक्षा के लिये अधिनियमित किया गया है तथा यह अनुच्छेद 39 द्वारा सुदृढ़ किये गए अनुच्छेद 15 (3) के संवैधानिक दायरे में आता है।
  • BNSS की धारा 144 (1) भरण-पोषण के अनुदान का प्रावधान करती है:
    • यदि पर्याप्त साधन संपन्न व्यक्ति अपने परिवार के कुछ सदस्यों का भरण-पोषण करने से मना करता है, तो प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट भरण-पोषण भुगतान का आदेश दे सकता है। 
    • वे लोग जो भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं:
      • एक पत्नी जो स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकती।
      • कोई भी वैध या नाजायज बच्चा (विवाहित या अविवाहित) स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकता।
      • कोई भी वयस्क वैध या नाजायज बच्चा जो अविवाहित है तथा शारीरिक या मानसिक विकलांगता के कारण स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ है।
      • माता-पिता जो स्वयं का भरण-पोषण नहीं कर सकते।
    • मजिस्ट्रेट मासिक भरण-पोषण राशि तय कर सकता है तथा निर्देश दे सकता है कि भुगतान किसे मिलना चाहिये। 
    • बालिकाओं के लिये विशेष प्रावधान:
      • यदि किसी विवाहित पुत्री का पति उसका भरण-पोषण नहीं कर सकता, तो मजिस्ट्रेट उसके पिता को आदेश दे सकता है कि वह उसके वयस्क होने तक भरण-पोषण का भुगतान करे।
    • अंतरिम भरण पोषण:
      • चल रहे भरण-पोषण मामले के दौरान, मजिस्ट्रेट अस्थायी मासिक भुगतान का आदेश दे सकता है। 
      • इसमें भरण-पोषण एवं विधिक व्यय दोनों शामिल हैं। 
      • अंतरिम भरण-पोषण के लिये आवेदन पर नोटिस देने के 60 दिनों के अंदर निर्णय लिया जाना चाहिये।
    • "पत्नी" के विषय में महत्त्वपूर्ण नोट:
      • "पत्नी" शब्द में वे तलाकशुदा महिलाएँ शामिल हैं जिन्होंने दोबारा शादी नहीं की है। 
      • इससे तात्पर्य यह है कि तलाकशुदा महिलाएँ अपने पूर्व पति से भरण-पोषण का दावा कर सकती हैं, अगर उन्होंने दोबारा शादी नहीं की है।
    • मजिस्ट्रेट को निम्नलिखित शक्तियाँ प्राप्त हैं:
      • निर्धारित करें कि व्यक्ति के पास पर्याप्त साधन हैं या नहीं।
      • मासिक भरण-पोषण राशि निर्धारित करना।
      • तय करना कि भुगतान किसे मिलना चाहिये।
      • कार्यवाही के दौरान अंतरिम भरण-पोषण का आदेश देना।

दूसरे विवाह के दौरान भरण-पोषण अनुदान के संबंध में ऐतिहासिक मामले क्या हैं?

  • द्वारिका प्रसाद सतपति बनाम विद्युत प्रावा दीक्षित एवं अन्य (1999):
    • न्यायालय ने गुजारा भत्ता प्रदान किया, जहाँ विवाह का प्रमाण अनिर्णायक था। 
    • न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 125 के अधीन प्रावधान का उपयोग निराश्रित महिलाओं, बच्चों या माता-पिता को विधायिका द्वारा दिये गए अधिकारों के विरुद्ध नहीं किया जाना चाहिये।
  • यमुनाबाई अनंतराव आधव बनाम अनंतराव शिवराम आधव एवं अन्य (1988):
    • इस मामले में न्यायालय ने CrPC की धारा 125 के अंतर्गत 'पत्नी' शब्द का कठोर निर्वचन के आधार पर पति की पहली शादी के दौरान दूसरी पत्नी को भरण-पोषण देने से मना कर दिया। 
    • न्यायालय ने विधायिका की मंशा को प्राथमिकता दी, जिसमें तलाकशुदा पत्नी को CrPC की धारा 125 के दायरे में शामिल किया गया, लेकिन उन वास्तविक पत्नियों का उल्लेख नहीं किया, जिनका विवाह शुरू से ही अमान्य है।
  • बादशाह बनाम उर्मिला बादशाह गोडसे एवं अन्य (2014):
    • इस मामले में न्यायालय ने दूसरी पत्नी को भरण-पोषण भत्ता दिया, जिसे उसके पति की पहली शादी के विषय में अंधेरे में रखा गया था। 
    • इस मामले में न्यायालय ने माना कि न्याय के लिये आगे बढ़ना न्यायालय का परम कर्त्तव्य है।