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आपराधिक कानून

TIP का साक्ष्यिक मूल्य

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 18-Feb-2025

विनोद उर्फ नसमुल्ला बनाम छत्तीसगढ़ राज्य

"जब तक साक्षी बॉक्स में प्रवेश नहीं करता तथा स्वयं को प्रतिपरीक्षा के लिये प्रस्तुत नहीं करता, तब तक यह कैसे पता लगाया जा सकता है कि उसने किस आधार पर व्यक्ति या वस्तु की पहचान की।"

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति पी.एस. नरसिम्हा एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि TIP में अपीलकर्त्ता की पहचान करने वाले साक्षियों की सुनवाई के दौरान जाँच नहीं की गई, इसलिये TIP का कोई साक्ष्यिक मूल्य नहीं है।

  • उच्चतम न्यायालय ने विनोद उर्फ नस्मुल्ला बनाम छत्तीसगढ़ राज्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

विनोद उर्फ नस्मुल्ला बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला 28 सितंबर 1993 को रात करीब 11:30 बजे रायपुर जा रही आदर्श परिवहन बस सेवा की बस में हुई एक बस डकैती से जुड़ा है। 
  • अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया कि ड्राइवर के पीछे बैठे एक व्यक्ति ने ड्राइवर की कनपटी पर देसी पिस्तौल लगा दी और उसे बस रोकने को कहा। 
  • बस रुकने के बाद, कुल आठ लोगों (चार जो पहले से ही बस में थे और चार जो स्टॉप पर चढ़े थे) ने यात्रियों पर हमला करना आरंभ कर दिया और उनका सामान लूट लिया। 
  • घटना के दौरान, एक गोली चलाई गई, जिससे एक यात्री घायल हो गया।

  • बस चालक बस को अंबिकापुर पुलिस स्टेशन ले गया, जहाँ 29 सितंबर 1993 को रात 12:20 बजे FIR दर्ज की गई। 
  • पुलिस ने अपराधियों को भागने से रोकने के लिये बैरिकेड्स लगा दिये। 29 सितंबर 1993 को लगभग 3:00 बजे पुलिस कांस्टेबल खेमराज सिंह ने कथित तौर पर अपीलकर्त्ता विनोद उर्फ नस्मुल्ला को गिरफ्तार किया, जो कथित तौर पर एक देसी पिस्तौल और पाँच कारतूस (दो जिंदा और तीन खाली) लेकर जा रहा था। 
  • 30 सितंबर 1993 को एक टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) आयोजित की गई, जहाँ बस चालक राम सजीवन शर्मा और खलासी (क्लीनर) ऐनुल खान ने कथित तौर पर अपीलकर्त्ता की पहचान की। हालाँकि, बस कंडक्टर कमल सिंह उसे पहचानने में विफल रहा। 
  • अपीलकर्त्ता पर एक अन्य आरोपी मोहम्मद कलाम अंसारी के साथ सत्र न्यायालय, सरगुजा, अंबिकापुर में अभियोजन का वाद लाया गया। 
  • अभियोजन पक्ष ने कई साक्षी प्रस्तुत किये, जिनमें तीन चश्मदीद साक्षी शामिल थे जो बस में यात्री थे।
  • अपीलकर्त्ता या उसके पास से कोई भी चोरी या लूटी गई वस्तु बरामद नहीं की गई।
  • इस मामले में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 395 के साथ धारा 397 (मृत्यु या गंभीर चोट पहुँचाने के प्रयास के साथ डकैती) और शस्त्र अधिनियम, 1959 की धारा 25 के अधीन आरोप शामिल थे।
  • ट्रायल कोर्ट ने आरोपी को डकैती का दोषी पाया। इसी के विरुद्ध उच्च न्यायालय में अपील की गई।
  • उच्च न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के निर्णय को यथावत बनाए रखा तथा अपीलकर्त्ता की अपील को खारिज कर दिया। ट्रायल कोर्ट के निष्कर्षों में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं पाया गया
  • इसी के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में अपील की गई है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) के विषय पर:
      • TIP कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, बल्कि केवल पुष्टि करने वाला साक्ष्य है। 
      • चूँकि TIP में अपीलकर्त्ता की पहचान करने वाले साक्षियों की सुनवाई के दौरान जाँच नहीं की गई थी, इसलिये TIP का कोई साक्ष्यिक मूल्य नहीं था।
    • PW संख्या-9 का परिक्षण (पुलिस कार्मिक):
      • उनकी डॉक पहचान अविश्वसनीय पाई गई क्योंकि:
      • वह बस में अपनी उपस्थिति के विषय में संतोषजनक ढंग से नहीं बता सका।
      • उपलब्ध होने के बावजूद, उसे TIP के लिये प्रयोग नहीं किया गया।
      • उसने स्वीकार किया कि वह पहले भी अपीलकर्त्ता से मिल चुका है, फिर भी उसे TIP के लिये प्रयोग नहीं किया गया।
    • गिरफ्तारी एवं बरामदगी:
      • गिरफ्तारी की कहानी अविश्वसनीय लगी क्योंकि:
      • यह असंभव था कि एक सशस्त्र व्यक्ति एक पुलिसकर्मी से बचने के लिये हथियार का उपयोग न करे।
      • प्रतिरोध का दावा करने के बावजूद किसी के घायल होने की सूचना नहीं मिली।
      • जब्ती ज्ञापन तैयार करने में 9 घंटे का विलंब का कारण स्पष्ट नहीं था।
      • पिस्तौल विवरण में विसंगति को अपर्याप्त रूप से स्पष्ट किया गया था।
    • अंतिम निष्कर्ष:
      • अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपराध सिद्ध करने में विफल रहा।
      • अपीलकर्त्ता को संदेह का लाभ दिया गया।
      • दोनों अधीनस्थ न्यायालयों के निर्णय को रद्द कर दिया गया।
      • अपीलकर्त्ता को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया गया।
      • अपीलकर्त्ता की जमानत राशि को क्षमा कर दिया गया।
  • उच्चतम न्यायालय के निर्णय ने मुख्य रूप से इस तथ्य पर प्रकाश डाला कि किस प्रकार दोनों अधीनस्थ न्यायालय साक्ष्यों की गंभीरतापूर्वक जाँच करने में विफल रहीं तथा अभियोजन पक्ष के मामले को संभाव्यता एवं स्थापित विधिक सिद्धांतों के आधार पर परखे बिना ही स्वीकार कर लिया।

टेस्ट आइडेंटिफिकेशन परेड (TIP) क्या है?

परिचय:

  • अभियुक्त की पहचान स्थापित करने के तरीकों में से एक TIP है जो भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 9 के अंतर्गत प्राप्त की जाती है।
  • IEA की धारा 9 प्रासंगिक तथ्यों को स्पष्ट करने या प्रस्तुत करने के लिये आवश्यक तथ्यों से संबंधित है। 
  • इसी धारा को भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 7 के अंतर्गत शामिल किया गया है।

उद्देश्य:

  • परेड का उद्देश्य साक्षी की सत्यता का परीक्षण करना है, इस प्रश्न पर कि क्या वह कई लोगों में से किसी अज्ञात व्यक्ति को पहचानने में सक्षम है, जिसे उसने अपराध के संदर्भ में देखा था। 
  • इसके दो प्रमुख उद्देश्य हैं:
    • जाँच अधिकारियों को यह संतुष्टि प्रदान करना कि अपराध में एक निश्चित व्यक्ति शामिल था, जिसे साक्षी पहले से नहीं जानते थे। 
    • संबंधित साक्षी द्वारा न्यायालय के समक्ष दिये गए परीक्षण की पुष्टि के लिये साक्ष्य प्रस्तुत करना।

आवश्यक तत्त्व:

  • जहाँ तक संभव हो, जेल में न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा परीक्षण के लिये परेड आयोजित की जाएगी। 
  • पहचान परेड के दौरान पहचान करने वाले साक्षी द्वारा दिये गए अभिकथनों को कार्यवाही में दर्ज किया जाना चाहिये। अगर कोई साक्षी गलती भी करता है, तो उसे दर्ज किया जाना चाहिये। 
  • TIP विधि में साक्ष्य का एक ठोस टुकड़ा नहीं है तथा इसका प्रयोग केवल न्यायालय में दिये गए संबंधित साक्षी के साक्ष्यों की पुष्टि या खंडन के लिये किया जा सकता है।

भारतीय न्याय संहिता 2023 (BNS) की धारा 310:

  • यह धारा डकैती के विरुद्ध सजा से संबंधित है। 
  • इसमें प्रावधानित किया गया है कि जो कोई भी डकैती कारित करेगा, उसे आजीवन कारावास या दस वर्ष तक का कठोर कारावास की सजा दी जाएगी और अर्थदण्ड भी देना होगा। 
  • डकैती के अपराध को IPC की धारा 397 के अधीन वर्णित किया गया है।