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आपराधिक कानून

नया जमानत आवेदन दाखिल करना

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 18-Feb-2025

विपिन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य 

“एक बार पूर्व में दायर जमानत याचिका के अस्वीकृत होने के उपरांत पुनः जमानत याचिका दायर करना अधिकार का मामला है।”  

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति पंकज मित्तल एवं न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने कहा कि पूर्व में दायर जमानत याचिका के अस्वीकृत होने के उपरांत पुनः जमानत याचिका दायर करना अधिकार का मामला है।  

  • उच्चतम न्यायालय ने विपिन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया। 

विपिन कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?  

  • अपीलकर्त्ता की पूर्व के जमानत आवेदन को उच्च न्यायालय ने 3 अक्टूबर 2023 को स्वीकार कर लिया था।   
  • उच्चतम न्यायालय ने जमानत देने वाले उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया।  
  • इसके पश्चात् अपीलकर्त्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष जमानत के लिये नया आवेदन दाखिल किया। ​​ 
  • उच्चतम न्यायालय के समक्ष विवाद्यक यह था कि क्या नए जमानत आवेदन को स्वीकार किया जाना चाहिये।  

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?  

  • इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि पिछली अस्वीकृति/रद्दीकरण के पश्चात् नए जमानत आवेदन दाखिल करना अधिकार का मामला है।   
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिये जमानत आवेदन खारिज करना उच्च न्यायालय के लिये न्यायसंगत नहीं था क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने विशेष रूप से नए आवेदन दाखिल करने की अनुमति नहीं दी थी।  
  • उच्च न्यायालय ने इस नए आवेदन को केवल इस आधार पर खारिज कर दिया कि पिछली जमानत को रद्द करते समय उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट रूप से नए आवेदन को दाखिल करने की स्वतंत्रता नहीं दी थी।   
  • उच्चतम न्यायालय ने उपरोक्त तर्क को खारिज कर दिया। 
  • उच्चतम न्यायालय ने 31 मई 2024 को उच्च न्यायालय के आदेश को अपास्त कर दिया है और मामले को गुण-दोष के आधार पर निर्णय के लिये उच्च न्यायालय को वापस भेज दिया है।  

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन जमानत क्या है? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन धारा 2 (ख) के अधीन जमानत को परिभाषित किया गया है: 
    • “जमानत” का अर्थ है किसी व्यक्ति को छोड़ना  
      • अभियुक्त या 
      • अपराध करने का संदेह 
    • किसी व्यक्ति को विधि की अभिरक्षा से जमानत पर छोड़ा जाता है: 
      • किसी अधिकारी या न्यायालय द्वारा अधिरोपित की गई कुछ शर्तों पर 
      • ऐसे व्यक्ति द्वारा बंधपत्र या जमानतपत्र निष्पादित करने पर। 
  • धारा 2 (घ) जमानतपत्र से प्रतिभूति के साथ छोड़े जाने के लिये कोई वचनबंध अभिप्रेत है। 
  • धारा 2 (ड.) “बंधपत्र” को इस प्रकार परिभाषित करती है: 
    • व्यक्तिगत बंधपत्र या 
    • प्रतिभूति के बिना छोड़े जाने के लिये वचनबंध 

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अधीन जमानत को नियंत्रित करने वाले प्रावधान क्या हैं? 

  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के अध्याय 35 में जमानत और बंधपत्रों के बारे में उपबंधित किया गया हैं। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 478 से धारा 496 में जमानत से संबंधित उपबंध हैं। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 485 में अभियुक्त और प्रतिभूओं के बंधपत्र का उपबंध है।  
  • धारा 485 (1) में उपबंध है कि: 
    • किसी व्यक्ति को बंधपत्र या जमानतपत्र पर छोड़े जाने जाने से पूर्व, उसे एक निश्चित राशि के लिये बंधपत्र निष्पादित करना होगा। 
    • बंधपत्र की राशि पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा निर्धारित की जाती है, जो उनके अनुसार पर्याप्त है।  
    • जब व्यक्ति को बंधपत्र या जमानतपत्र पर छोड़ा जाता है, तो एक या अधिक पर्याप्त प्रतिभूओं को भी बंधपत्र निष्पादित करना होगा। 
    • बंधपत्र में एक शर्त होती है कि व्यक्ति बंधपत्र में उल्लिखित निर्दिष्ट समय और स्थान पर उपस्थित होगा।  
    • व्यक्ति को पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा अन्यथा निर्देश दिये जाने तक निर्देशानुसार उपस्थित रहना आवश्यक है। 
    • यह उपबंध इस बात पर ध्यान दिये बिना लागू होता है कि छोड़ा जाना पुलिस अधिकारी या न्यायालय द्वारा अधिकृत है या नहीं। 
    • बंधपत्र का उद्देश्य आवश्यक कार्यवाही में व्यक्ति की उपस्थिति सुनिश्चित करना है।  
  • धारा 485 (2) में उपबंध है कि जहाँ किसी व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के लिये कोई शर्त अधिरोपित की जाती है, बंधपत्र या जमानतपत्र में वह शर्त भी सम्मिलित होनी चाहिये। 
  • धारा 485 (3) में उपबंध है कि यदि मामले की आवश्यकता हो, तो बंधपत्र या जमानतपत्र पर ,जमानत पर छोड़े गए व्यक्ति को उच्च न्यायालय, सेशन न्यायालय या अन्य न्यायालय में आरोप का उत्तर देने के लिये बुलाए जाने पर उपस्थित होने के लिये भी बाध्य करेगा। 
  • धारा 485 (4) में उपबंध है कि: 
    • न्यायालय प्रतिभूओं की पर्याप्तता या उपयुक्तता के संबंध में तथ्यों के सबूत के रूप में शपथपत्र को स्वीकार कर सकता है।   
    • यदि आवश्यक हो, तो न्यायालय प्रतिभूओं की उपयुक्तता या पर्याप्तता निर्धारित करने के लिये स्वयं जांच करने का विकल्प चुन सकता है। 
    • वैकल्पिक रूप से, न्यायालय अधीनस्थ मजिस्ट्रेट को प्रतिभू योग्यता पर जांच करने का निर्देश दे सकता है। 
    • यह उपबंध न्यायालय को प्रक्रिया की उचित निगरानी करते हुए प्रतिभू की उपयुक्तता की पुष्टि करने में लचीलापन प्रदान करता है। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 486 प्रतिभूओं द्वारा घोषणा का उपबंध करती है।  
    • किसी अभियुक्त व्यक्ति को जमानत पर छोड़ने के लिये प्रतिभू के रूप में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष घोषणा करनी चाहिये। 
    • इस घोषणा में उन व्यक्तियों की कुल संख्या का प्रकटन करना चाहिये जिनके लिये व्यक्ति प्रतिभू है (वर्तमान अभियुक्त सहित) सभी सुसंगत विवरणों के साथ। 
  • भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 487 अभिरक्षा से छोड़े जाने का उपबंध करती है  
    • बंधपत्र या जमानतपत्र के निष्पादन पर, जिस व्यक्ति की उपस्थिति के लिये इसे निष्पादित किया गया था, उसे तुरंत छोड़ दिया जाएगा। 
    • यदि व्यक्ति जेल में है, तब उसकी जमानत मंजूर करने वाला न्यायालय जेल के भारसाधक अधिकारी को उसके छोड़े जाने के लिये आदेश जारी करेगा। 
    • यह आदेश प्राप्त करने पर जेल अधिकारी व्यक्ति को छोड़ने के लिये बाध्य है। 
    • यद्यपि, इस उपबंध के अधीन ऐसे व्यक्ति को छोड़ने करने की आवश्यकता नहीं है जिसे उस मामले के अतिरिक्त किसी अन्य कारण से अभिरक्षा में लिया जा सकता है जिसके लिये बंधपत्र/जमानतपत्र निष्पादित किया गया था।