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वाणिज्यिक विधि

भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 74 के अधीन दण्ड के रूप में बयाना राशि की ज़ब्ती

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 04-Feb-2025

गोदरेज प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम अनिल कार्लेकर और अन्य

“यदि किसी संविदा के अधीन बयाना राशि की ज़ब्ती युक्तियुक्त है, तो यह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 74 के अधीन नहीं आता है, क्योंकि ऐसी ज़ब्ती जुर्माना आरोपित करने के समान नहीं है”। 

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति एस.वी.एन. भट्टी की पीठ ने अभिनिर्धारित कि यदि किसी संविदा के अधीन बयाना राशि की ज़ब्ती युक्तियुक्त है, तो यह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 74 के अधीन नहीं आता है, क्योंकि ऐसी ज़ब्ती जुर्माना आरोपित करने के समान नहीं है ।         

  • उच्चतम न्यायालय ने गोदरेज प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम अनिल कार्लेकर (2025) के मामले में यह निर्णय दिया । 

गोदरेज प्रोजेक्ट्स डेवलपमेंट लिमिटेड बनाम अनिल कार्लेकर मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?  

  • अपार्टमेंट की बुकिंग:
    • 10 जनवरी2014 को, परिवादियों ने सेक्टर-104, गुड़गाँव, हरियाणा में “गोदरेज समिट” परियोजना में एक अपार्टमेंट बुक किया और आवेदन राशि के रूप में ₹10,00,000 जमा किये । 
  • अपार्टमेंट का आवंटन:
    • 20 जून2014 को अपीलकर्त्ता ने परिवादियों को अपार्टमेंट संख्या C-1501 (14वीं मंजिल, टॉवर ‘C’) आवंटित किया । 
    • दोनों पक्षकारों के बीच ‘अपार्टमेंट क्रेता करार’ निष्पादित किया गया ।
  • पूर्णता एवं अधिभोग प्रमाण-पत्र:
    • 20 जून2017 को अपीलकर्त्ता ने निदेशक, नगर एवं ग्राम नियोजन विभाग, हरियाणा से अधिभोग प्रमाण-पत्र प्राप्त किया । 
  • कब्ज़े का प्रस्ताव:
    • 28 जून2017 को अपीलकर्त्ता ने अपार्टमेंट पर कब्ज़ा देने का प्रस्ताव किया । 
    • परिवादियों ने कब्ज़े से इंकार कर दिया, आवंटन रद्द करने की मांग की तथा भुगतान की गईसंपूर्ण राशि वापस करने की मांग की । 
  • धन वापसी के लिये विधिक नोटिस:
    • 29 सितंबर2017 को परिवादी ने अपीलकर्त्ता को विधिक नोटिस जारी कर 51,12,310 रुपए की वापसी की मांग की । 
  • उपभोक्ता परिवाद:
    • 14 नवंबर2017 को, परिवादियों ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के समक्ष उपभोक्ता परिवाद संख्या 262/2018 दायर की, जिसमें निम्नलिखित मांग की गई: 
      • प्रत्येक भुगतान की तिथि से वसूली तक18% वार्षिक ब्याज के साथ 51,12,310 रुपए की वापसी । 
  • राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश:
    • 25 अक्टूबर2022 को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अपीलकर्त्ता को निर्देश दिया:  
      • रद्दकरण शुल्क के रूप मेंबीएसपी का 10% (17,08,140 रुपए) काट लें । 
      • शेष राशि 34,04,170 रुपए प्रत्येक भुगतान की तिथि से वापसी तक 6% प्रति वर्ष साधारण ब्याज के साथ तीन माह के भीतर वापस करें । 
  • समीक्षा-आवेदन खारिज़:
    • 5 दिसंबर2022 को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने अपीलकर्त्ता द्वारा दायर समीक्षा-आवेदन को खारिज़ कर दिया । 
  • अपील दायर:
    • 10 जनवरी2023 को अपीलकर्त्ता ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के 25 अक्टूबर 2022 के आदेश को चुनौती देते हुए वर्तमान अपील दायर की । 
  • उच्चतम न्यायालय का स्थगन आदेश:
    • 24 अप्रैल2023 को न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के अधीन, आरोपित आदेश पर स्थगन प्रदान किया: 
      • बयाना राशि जमा के रूप में 20% की कटौती के बाद राशि वापस करना। 
      • संविदा रद्द करने की तिथि से 6% प्रति वर्ष ब्याज का भुगतान करना होगा । 
  • अब, यह मामला अंतिम निर्णय के लिये उच्चतम न्यायालय के समक्ष है ।

न्यायालय की टिप्पणियां क्या थीं?  

  • न्यायालय ने सबसे पहले विवादित संविदा की शर्तों पर टिप्पणी किया ।
    • करार के अनुसार, परिवादी को बीएसपी का 20% बयाना राशि जमा करानी थी ।
    • क्रेता की व्यतिक्रम के कारण समाप्ति पर डेवलपर को संपूर्ण बयाना राशि तथा संविदा में निर्दिष्ट विलंबित भुगतानों पर ब्याज सहित अन्य बकाया राशि जब्त करने का अधिकार होगा ।
  • यह उल्लेखनीय है कि प्रत्यर्थी (परिवादी अर्थात् क्रेता) नेबाजार में मंदी के कारण सौदा रद्द कर दिया था । 
  • न्यायालय ने पूर्ववर्ती मामलों का हवाला दिया, जिसमें यह अभिनिर्धारित किया गया था किअग्रिम राशि की “बयाना राशि” का भाग होने के कारण, ज़ब्ती को न्यायोचित ठहराने के लिये संविदा की शर्तें स्पष्ट और स्पष्ट होनी चाहिये । यद्यपि, यह स्पष्ट किया गया कि यदि भुगतान केवल प्रतिफल के आंशिक भुगतान के लिये किया जाता है और बयाना राशि के रूप में आशयित नहीं है, तो ज़ब्ती खण्ड लागू नहीं होगा । 
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि यदि संविदा के अधीन बयाना राशि की ज़ब्ती युक्तियुक्त नहीं है, तो यह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 की धारा 74 के अधीन नहीं आता है, क्योंकि ऐसीराशि “जुर्माना” के दायरे में नहीं आएगी । 
  • यद्यपि, यदि बयाना राशि की ज़ब्ती जुर्माने के रूप में हो, तो धारा 74 लागू होगी ।
  • इस संबंध में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पहले भी विभिन्न मामलों में अभिनिर्धारित किया है कि बीएसपी का 10% एक उचित राशि है, जिसे बयाना राशि के रूप में जब्त किया जा सकता है ।
  • इस प्रकार, न्यायालय नेबीएसपी के 10% से अधिक राशि की वापसी के लिये राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के निर्देश में हस्तक्षेप नहीं किया । यद्यपि, न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग द्वारा वापस की जाने वाली राशि पर ब्याज देने का निर्णय न्यायोचित नहीं था । 
  • न्यायालय ने आगे प्रेक्षित किया कि प्रतिवादियों ने फ्लैटों की कीमतों में भारी गिरावट के कारण आवंटन रद्द करने की मांग की है । इसलिये, यह संभव है कि प्रत्यर्थी ने इस धन का प्रयोग कम दर पर दूसरी संपत्ति खरीदने में किया हो ।
  • इस प्रकार, न्यायालय नेअपील को आंशिक रूप से स्वीकार कर लिया । 

बयाना राशि क्या है? 

  • सरल शब्दों में, ‘बयाना राशि’ वह राशि है जो स्थावर संपत्ति के संव्यवहार,जैसे कुछ प्रमुख संव्यवहार मेंप्रतिभूति जमा के एक विशिष्ट रूप में देय होती है । 
  • सतीश बत्रा बनाम सुधीर रावल (2013)के मामले में न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि ‘बयाना राशि’ संविदा के सम्यक् अनुपालन के लिये प्रतिज्ञा के रूप में दी जाती है और जमाकर्त्ता द्वारा संविदा का अनुपालन न करने की स्थिति में इसे जब्त कर लिया जाएगा । 
  • यह भी विधि है कि क्रय-मूल्य का आंशिक भुगतान तब तक जब्त नहीं किया जा सकता, जब तक कि वह संविदा के सम्यक् अनुपालन की गारंटी न हो ।
  • न्यायालय ने आगे स्पष्ट किया कि अग्रिम राशि को “बयाना राशि” का भाग मानने के लिये उसे जब्त करने को न्यायोचित ठहराने के लिये संविदा की शर्तें स्पष्ट एवं सुस्पष्ट होनी चाहिये ।
  • यद्यपि, यदि भुगतान केवल आंशिक भुगतान के लिये किया गया है तथा बयाना राशि के रूप में नहीं किया गया है, तो ज़ब्ती खण्ड लागू नहीं होगा ।

‘बयाना राशि’ जब्त करने की विधि और भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 74 क्या है? 

  • कैलाश नाथ एसोसिएट्स बनाम दिल्ली विकास प्राधिकरण (2015)के मामले में न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 74 किसी संविदा के अधीन बयाना राशि जब्त करने के मामलों में लागू होगी । 
  • यद्यपि, यदि करार होने से पूर्व सार्वजनिक नीलामी की शर्तों के अधीन ज़ब्ती होती है, तो धारा 74 लागू नहीं होगी ।
  • इसके अतिरिक्त, दिल्ली उच्च न्यायालय ने अडानी एंटरप्राइजेज बनाम श्री सोमनाथ फैब्रिक्स प्राइवेट लिमिटेड (2024)के मामले में अभिनिर्धारित किया कि भारतीय संविदा अधिनियम की धारा 73 और धारा 74 के आलोक में बयाना राशि जब्त करने के लिये वास्तविक हानि का सबूत आवश्यक है ।