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सांविधानिक विधि

वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमितता

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 01-Aug-2024

अरिजीत सिंह बनाम कोडिबल वेंचर्स LLP 

“अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, किसी सेलिब्रिटी की सहमति के बिना उसके व्यक्तित्व का उल्लंघन करने या उसका शोषण करने का लाइसेंस नहीं है"।

न्यायमूर्ति रियाज़ छागला 

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में अरिजीत सिंह बनाम कोडिबल वेंचर्स LLP मामले में थर्ड पार्टी को बॉलीवुड गायक अरिजीत सिंह के व्यक्तित्व अधिकारों, जिसमें उनकी आवाज़, व्यक्तित्व और हस्ताक्षर शामिल हैं, का उनकी सहमति के बिना शोषण करने से प्रतिबंधित कर दिया। यह निर्णय AI कंटेंट क्रिएटर्स द्वारा मशहूर सेलिब्रिटीज़ की विशेषताओं के अनधिकृत उपयोग के बढ़ते मुद्दे पर विधिक प्रतिक्रिया को प्रकट करता है, जो डिजिटल युग में गोपनीयता और बौद्धिक संपदा के विषय में चिंताओं को दर्शाता है।

अरिजीत सिंह बनाम कोडिबल वेंचर्स LLP की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वादी, अरिजीत सिंह, एक प्रमुख भारतीय गायक हैं, जिन्होंने सेलिब्रिटी का दर्जा प्राप्त किया है तथा अपने कॅरियर के दौरान महत्त्वपूर्ण साख और प्रतिष्ठा अर्जित की है।
  • सिंह ने बॉम्बे उच्च न्यायालय में एक वाद दायर कर विभिन्न प्रतिवादियों द्वारा अनधिकृत व्यावसायिक शोषण के विरुद्ध अपने व्यक्तित्व अधिकारों और प्रचार के अधिकार की सुरक्षा की मांग की।
  • प्रतिवादियों पर निम्नलिखित गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है:
    • बिना अनुमति के सिंह की आवाज़ की नकल करते हुए AI आवाज़ मॉडल बनाया।
    • AI का उपयोग करके सिंह की आवाज़ की नकल करने के तरीके पर ट्यूटोरियल तैयार किया और साझा किया।
    • बिना अनुमति के सिंह का नाम, चित्र और समानता वाली वस्तुएँ बेची।
    • बिना अनुमति के सिंह का नाम, चित्र और समानता वाली वस्तुएँ बेचना।
    • सिंह की छवि और व्यक्तित्व का उपयोग करके GIF और अन्य सामग्री बनाई तथा साझा की।
    • सिंह का पूरा नाम शामिल करते हुए डोमेन नाम पंजीकृत किया।
  • सिंह का तर्क है कि ये गतिविधियाँ कॉपीराइट अधिनियम के अंतर्गत एक कलाकार के रूप में उनके व्यक्तित्व अधिकारों, प्रचार के अधिकार और नैतिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं।
  • वादी का कहना है कि उसके व्यक्तित्व के अनधिकृत उपयोग से, विशेष रूप से AI वॉयस क्लोनिंग के माध्यम से, उसके करियर और प्रतिष्ठा को आर्थिक हानि पहुँचने का खतरा है।
  • प्रतिवादी का तर्क है कि वादी के नाम, आवाज, फोटोग्राफ, छवि, समानता और व्यक्तित्व पर आधारित गाने तथा वीडियो सहित नई ऑडियो या वीडियो सामग्री बनाने के लिये AI प्रौद्योगिकी का उपयोग करना अधिकारों का उल्लंघन नहीं है।
    • प्रतिवादी का दावा है कि ऐसी सामग्री का निर्माण और उपयोग ऐसे तरीकों से किया जाता है जिन्हें कुछ संदर्भों में परिवर्तनकारी या गैर-वाणिज्यिक माना जाता है।
    • प्रतिवादियों का यह भी कहना है कि उनकी गतिविधियों का उद्देश्य वादी के कॅरियर या आजीविका को खतरे में डालना नहीं है, बल्कि उनका उद्देश्य उचित उपयोग की सीमाओं के भीतर तकनीकी प्रगति और रचनात्मक अभिव्यक्तियों की खोज करना है।
  • प्रतिवादियों के दृष्टिकोण से, वादी की विशेषताओं को दर्शाने वाली AI-जनरेटेड सामग्री के निर्माण और व्यवसायीकरण को प्रौद्योगिकी के अभिनव उपयोग के रूप में बचाव किया जाता है जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा रचनात्मक स्वतंत्रता के तहत संरक्षित किया जाना चाहिये।
    • उनका मानना ​​है कि बौद्धिक संपदा और व्यक्तित्व अधिकारों को नियंत्रित करने वाले विधिक ढाँचे की व्याख्या तकनीकी विकास को समायोजित करने के लिये की जानी चाहिये, जिससे संभवतः AI-जनित सामग्री के अनुमति योग्य उपयोगों की पुनर्परिभाषा की जा सके।
  • अरिजीत सिंह ने अपने अधिकारों के आगे उल्लंघन को रोकने के लिये प्रतिवादियों के विरुद्ध एकपक्षीय अंतरिम निषेधाज्ञा की मांग की।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने प्रथम दृष्टया पाया कि वादी अरिजीत सिंह ने अपनी सेलिब्रिटी स्थिति स्थापित कर ली है तथा अपना बहुमूल्य व्यक्तित्व अधिकार और प्रचार का अधिकार अर्जित कर लिया है।
  • न्यायालय ने कहा कि किसी भी आवाज़ को सेलिब्रिटी की आवाज़ में बदलने के लिये AI उपकरणों का अनधिकृत उपयोग सेलिब्रिटी के व्यक्तित्व अधिकारों का उल्लंघन है।
  • न्यायालय ने कहा कि इस तरह का तकनीकी शोषण, व्यक्ति के अपनी छवि और आवाज़ को नियंत्रित करने एवं उसकी रक्षा करने के अधिकार का उल्लंघन करता है तथा उसकी पहचान के वाणिज्यिक व भ्रामक उपयोग को रोकने की उसकी क्षमता को क्षीण करता है।
  • न्यायालय ने मशहूर हस्तियों, विशेषकर कलाकारों, के अनाधिकृत जनरेटिव AI सामग्री द्वारा निशाना बनाए जाने की आशंका पर आश्चर्य व्यक्त किया।
  • न्यायालय ने पाया कि प्रतिवादीगण वादी की लोकप्रियता और प्रतिष्ठा का लाभ उठाकर अपनी वेबसाइटों तथा AI प्लेटफाॅर्मों पर आगंतुकों को आकर्षित कर रहे थे, जिससे उसके व्यक्तित्व अधिकारों का दुरुपयोग होने की संभावना थी।
  • न्यायालय ने पाया कि वादी की सहमति के बिना उसकी AI आवाज़ या प्रतिरूप में नई ऑडियो या वीडियो सामग्री का निर्माण, वादी के कॅरियर और आजीविका को संभावित रूप से खतरे में डाल सकता है।
  • न्यायालय ने कहा कि वादी के व्यक्तित्व के निरंतर अनधिकृत उपयोग की अनुमति देने से न केवल गंभीर आर्थिक हानि का खतरा है, बल्कि बेईमान व्यक्तियों द्वारा दुरुपयोग के अवसर भी उत्पन्न होते हैं।
  • न्यायालय ने कहा कि यद्यपि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आलोचना और टिप्पणी की अनुमति देती है, परंतु यह व्यावसायिक लाभ के लिये किसी सेलिब्रिटी के व्यक्तित्व का शोषण करने की छूट नहीं देती है।
  • न्यायालय ने कहा कि वादी ने हाल के वर्षों में ब्रांड एंडोर्समेंट या अपने व्यक्तित्व लक्षणों के सकल व्यवसायीकरण से परहेज़ करने का सचेत व्यक्तिगत निर्णय लिया था।
  • न्यायालय ने पाया कि सुविधा का संतुलन वादी के पक्ष में था और अनुरोधित राहत के बिना उसे अपूरणीय क्षति होगी।
  • न्यायालय ने वादी के अधिकारों के संभावित भविष्य के उल्लंघन को संबोधित करने के लिये गतिशील निषेधाज्ञा प्रदान करना उचित समझा।
  • न्यायालय ने कहा कि कुछ उल्लंघनकारी वीडियो क्लिप्स के लिये, उन्हें पूरी तरह से हटाने के बजाय, वादी के व्यक्तित्व लक्षणों के सभी संदर्भों को हटाना ही पर्याप्त होगा।

वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित क्यों नहीं है?

  • संवैधानिक ढाँचे में निहित वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार, लोकतांत्रिक समाजों की आधारशिला है, जो व्यक्तियों को अपनी राय व्यक्त करने तथा खुले विचार-विमर्श में शामिल होने की अनुमति देता है।
  • यह अधिकार पूर्ण नहीं है तथा विधि द्वारा निर्धारित सीमाओं एवं प्रतिबंधों के अधीन है।
  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के सिद्धांत को गोपनीयता, बौद्धिक संपदा और सार्वजनिक व्यवस्था सहित अन्य अनिवार्य हितों तथा अधिकारों के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
  • विधिक क्षेत्राधिकार सार्वभौमिक रूप से यह मानते हैं कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति के प्रयोग को दूसरों के अधिकारों को हानि पहुँचाने और उनके उल्लंघन से बचाकर रखना चाहिये।
  • यद्यपि व्यक्तियों को अपने विचार व्यक्त करने का अधिकार है, परंतु यह अधिकार उन कार्यों तक विस्तारित नहीं होता है जो मानहानि, हिंसा को प्रोत्साहन, या सेलिब्रिटी सहित व्यक्तिगत विशेषताओं के अनधिकृत दोहन का गठन करते हों।
  • बौद्धिक संपदा एवं व्यक्तित्व अधिकारों के संबंध में, यह विधि किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के अनधिकृत उपयोग या शोषण के विरुद्ध विशिष्ट सुरक्षा प्रदान करती है।
    • इसमें उनका नाम, उनकी छवि, आवाज़ और अन्य व्यक्तिगत विशेषताएँ शामिल हैं। न्यायालयों ने यह माना है कि इस तरह के अनाधिकृत शोषण को उचित ठहराने के लिये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उदाहरण नहीं दिया जा सकता है, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि व्यक्तिगत अधिकारों और गोपनीयता का सम्मान एक वैध तथा लागू करने योग्य हित है।
  • न्यायिक पूर्वनिर्णय इस बात की पुष्टि करते हैं कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बौद्धिक संपदा अधिकारों के उल्लंघन या किसी व्यक्ति की सहमति के बिना उसके व्यक्तित्व के व्यावसायिक शोषण की अनुमति नहीं देती है। इस प्रकार की सुरक्षा यह सुनिश्चित करने के लिये अभिन्न है कि स्वतंत्र भाषण का प्रयोग, व्यक्तियों के अपनी व्यक्तिगत और व्यावसायिक पहचान को नियंत्रित करने तथा उससे लाभ उठाने के अधिकारों का अतिक्रमण न करे।
  • संक्षेप में, जबकि वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक महत्त्वपूर्ण और संरक्षित अधिकार है, यह अन्य अधिकारों तथा हितों की रक्षा के लिये बनाए गए विधिक प्रतिबंधों से बंधा हुआ है। यह संतुलन सुनिश्चित करता है कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का प्रयोग व्यक्तियों के संरक्षित अधिकारों, जिसमें उनके व्यक्तिगत और बौद्धिक संपदा अधिकार शामिल हैं, को क्षीण या उल्लंघन नहीं करता है।

इसमें क्या विधिक प्रावधान शामिल हैं?

  • भारत में, भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a) में निहित है।
  • इस अनुच्छेद का दर्शन संविधान की प्रस्तावना में निहित है, जहाँ सभी नागरिकों को विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का गंभीर संकल्प किया गया है।
  • अनुच्छेद 19(1)(a) में निम्नलिखित आयाम शामिल हैं:
    • प्रेस की स्वतंत्रता
    • व्यावसायिक भाषण की स्वतंत्रता
    • प्रसारण का अधिकार
    • सूचना का अधिकार
    • आलोचना का अधिकार
    • राष्ट्रीय सीमाओं से परे अभिव्यक्ति का अधिकार
    • न बोलने का अधिकार या चुप रहने का अधिकार
  • संविधान के अनुच्छेद 19(1)(a), के आवश्यक तत्त्व:
    • यह अधिकार केवल भारत के नागरिकों को उपलब्ध है, विदेशी नागरिकों को नहीं।
    • इसमें किसी भी मुद्दे पर किसी भी माध्यम से अपने विचार और राय व्यक्त करने का अधिकार शामिल है, जैसे मौखिक रूप से, लिखित रूप में, मुद्रण द्वारा, चित्र, फिल्म, चलचित्र आदि के माध्यम से।
    • हालाँकि यह अधिकार असीमित नहीं है और यह सरकार को तर्कसंगत प्रतिबंध लगाने के लिये विधान बनाने की अनुमति देता है।
  • अनुच्छेद 19(2) भारत की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, न्यायालय की अवमानना, मानहानि या किसी अपराध के लिये उकसावे के मामले में इस अधिकार पर तर्कसंगत प्रतिबंध लगाता है।
  • इन प्रावधानों की न्यायिक व्याख्या समय के साथ विकसित हुई है, जिसने भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रूपरेखा को आकार दिया है।

निर्णयज विधियाँ:

  • श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ (2015):
    • उच्चतम न्यायालय ने सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66A को रद्द कर दिया, जो संचार सेवाओं के माध्यम से "आपत्तिजनक" संदेश भेजने को अपराध बनाती थी।
    • न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट है तथा इसका अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
    • इस निर्णय में ऑनलाइन अभिव्यक्ति की सुरक्षा के महत्त्व पर ज़ोर दिया गया तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लिये उच्च मानदंड निर्धारित किये गये।
    • हालाँकि न्यायालयों ने लगातार यह माना है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है।
  • सुब्रमण्यम स्वामी बनाम भारत संघ (2016):
    • उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक मानहानि विधियों की संवैधानिक वैधता को यथावत रखते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का अर्थ किसी अन्य की प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचाने की स्वतंत्रता नहीं है, जिसे संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षण प्राप्त है।
    • व्यक्तित्व अधिकार की अवधारणा, जिसमें प्रचार का अधिकार भी शामिल है, को भारतीय न्यायालयों द्वारा अनुच्छेद 21 के अंतर्गत गोपनीयता के अधिकार के विस्तार के रूप में मान्यता दी गई है।
  • ICC डेवलपमेंट (इंटरनेशनल) लिमिटेड बनाम आर्वी एंटरप्राइजेज़ (2003):
    • दिल्ली उच्च न्यायालय ने सेलिब्रिटी की पहचान के व्यावसायिक मूल्य तथा उसे अनधिकृत शोषण से बचाने की आवश्यकता को स्वीकार किया।