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आपराधिक कानून
जमानत देना
« »02-Nov-2023
मुंशी साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य। "एक सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देना किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं किया जा सकता है जिसे मुख्य आरोपी के रूप में वर्णित किया गया है।" जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम. त्रिवेदी स्रोत: उच्चतम न्यायालय |
चर्चा में क्यों?
- हाल ही में, मुंशी साह बनाम बिहार राज्य और अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देने के प्रश्न पर किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं किया जा सकता है, जिसे मामले में मुख्य आरोपी व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।
मुंशी साह बनाम बिहार राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अपीलकर्त्ता उस पति का भाई है जो दहेज़ हत्या के मामले में आरोपी है।
- सह-अभियुक्त होने के नाते अपीलकर्त्ता ने उच्चतम न्यायालय के समक्ष जमानत याचिका दायर की है।
- वर्तमान अपीलें एक महिला की अप्राकृतिक मौत के मामले से जुड़ी हुयी हैं, जिसके लिये भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 304-B और 120-B के तहत कार्यवाही शुरू की गई है।
- अब पति फरार है और उसकी गिरफ्तारी के बिना ही मुकदमा शुरू हो गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने जमानत याचिका मंजूर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- जस्टिस अनिरुद्ध बोस और बेला एम. त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा कि सह-अभियुक्त व्यक्ति को जमानत देने के सवाल को किसी अन्य आरोपी के आत्मसमर्पण पर निर्भर नहीं बनाया जा सकता है, जिसे इस मामले में मुख्य आरोपी व्यक्ति के रूप में वर्णित किया गया है।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि अपीलकर्त्ता को जमानत देने के लिये मृत/सह-अभियुक्त के पति के आत्मसमर्पण की शर्त लगाना और उसके बाद उसका पालन करना आवश्यक नहीं होगा।
इसमें कौन-से विधिक प्रावधान शामिल हैं?
भारतीय दंड संहिता, 1860
- धारा 304-B, IPC:
- यह धारा दहेज़ हत्या से संबंधित है। इसमें वार्णित है कि –
(1) जहाँ किसी स्त्री की मृत्यु किसी दाह या शारीरिक क्षति द्वारा की जाती है या उसके विवाह के सात वर्ष के भीतर सामान्य परिस्थितियों में हो जाती है और यह दर्शाया जाता है कि उसकी मृत्यु के कुछ पूर्व उसके पति ने या उसके पति के किसी नातेदार ने, दहेज़ की किसी मांग के लिये, या उसके संबंध में, उसके साथ क्रूरता की थी या उसे तंग किया गया था, तब वहाँ ऐसी मृत्यु को दहेज़ हत्या कहा जाएगा और पति या नातेदार को उसकी मृत्यु करने वाला समझा जाएगा ।
स्पष्टीकरण--इस उपधारा के प्रयोजनों के लिये दहेज़ का वही अर्थ है जो दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (1961 का 28) की धारा 2 में है ।
(2) दहेज़ हत्या करने वाला व्यक्ति को कारावास की सजा सुनाई जाएगी जिसकी अवधि सात वर्ष से कम की नही होगी, जो आजीवन कारावास तक हो सकती है।
- दहेज़ हत्या एक संज्ञेय एवं गैर जमानती अपराध है।
- बचनी देवी बनाम हरियाणा राज्य (2011) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि संपत्ति या मूल्यवान प्रतिभूति की कोई भी मांग जो किसी भी तरह से शादी से संबंधित है, तब वह दहेज़ की मांग कहलाती है।
- देवेंदर सिंह और अन्य बनाम उत्तराखंड राज्य (2022) मामले में, उच्चतम न्यायालय ने माना कि आईपीसी की धारा 304B में इस्तेमाल किये गए वाक्यांश 'उसकी मृत्यु से ठीक पहले' की व्याख्या पत्नी की मृत्यु से लगभग पहले की जानी चाहिये , न कि ऐसी मृत्यु से तुरंत पूर्व।
आईपीसी की धारा 120-B:
यह धारा आपराधिक साजिश की सजा से संबंधित है। यह कहती है कि-
भारतीय दंड संहिता की धारा 120B के अनुसार, (1) जो कोई मृत्यु , आजीवन कारावास या दो वर्ष या उससे अधिक अवधि के कठिन कारावास से दंडनीय अपराध करने के आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होगा, यदि ऐसे षड्यंत्र के दंड के लिये इस संहिता में कोई अभिव्यक्त उपबंध नहीं है, तो वह उसी प्रकार दंडित किया जाएगा, जैसे उसने ऐसे अपराध का दुष्प्रेरण किया था।(2) जो कोई पूर्वोक्त रूप से दंडनीय अपराध को करने के आपराधिक षड़यंत्र से भिन्न किसी आपराधिक षड़यंत्र में शामिल होगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि छह मास से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दंडित किया जाएगा।
आईपीसी की धारा 120A - आपराधिक षड्यंत्र की परिभाषा
भारतीय दंड संहिता की धारा 120A के अनुसार, जब दो या दो से अधिक व्यक्ति-
(1) कोई अवैध कार्य, अथवा
(2) कोई ऐसा कार्य, जो अवैध नहीं है, अवैध साधनों द्वारा, करने या करवाने को सहमत होते हैं, तब ऐसी सहमति आपराधिक षडयंत्र कहलाती है :
परंतु किसी अपराध को करने की सहमति के आलावा कोई सहमति आपराधिक षडयंत्र तब तक न होगी, जब तक कि सहमति के अलावा कोई कार्य उसके अनुसरण में उस सहमति के एक या अधिक पक्षकारों द्वारा नहीं कर दिया जाता ।
स्पष्टीकरण- यह तत्वहीन है कि अवैध कार्य ऐसी सहमति का चरम उद्देश्य है या उस उद्देश्य का आनुषंगिक मात्र है।