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आपराधिक कानून

बाल तस्करी पर दिशानिर्देश

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 16-Apr-2025

पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य

“बाल तस्करी के अभियोजन के वाद 6 महीने के अंदर पूरे किये जाएंगे; प्रभावी तरीके से मामले के निपटान के लिये राज्यों को दिशा-निर्देश जारी किये गए”

न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं आर. महादेवन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति आर. महादेवन की पीठ ने माना है कि बाल तस्करी से संबंधित मामलों में न्याय सुनिश्चित करने के लिये शीघ्र विचारण आवश्यक है, तथा सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया है कि वे ऐसे विचारण की निगरानी करें और उसे छह महीने के अंदर पूरा करना सुनिश्चित करें, साथ ही, BIRD रिपोर्ट की अनुशंसाओं के कार्यान्वयन को भी अनिवार्य बनाया है, जिसमें लापता बालकों के मामलों को संभावित तस्करी या अपहरण के रूप में माना गया है, जब तक कि अन्यथा सिद्ध न हो जाए।

  • उच्चतम न्यायालय ने पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

पिंकी बनाम उत्तर प्रदेश राज्य एवं अन्य, 2025 मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला एक अंतरराज्यीय बाल-तस्करी रैकेट से संबंधित है, जहाँ भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363, 311 एवं 370(5) के अधीन अपराधों के लिये वाराणसी के विभिन्न पुलिस स्टेशनों पर कई FIR (संख्या 201/2023, 193/2023, 76/2023, 74/2023 एवं 50/2023) दर्ज की गई थीं। 
  • पीड़ित गरीब पृष्ठभूमि के बच्चे थे, जिन्हें फुटपाथ या सड़कों पर अपने माता-पिता के साथ सोते समय अपहरण कर लिया गया था, जिसमें रोहित नाम का चार वर्ष का लड़का एवं मोहिनी नाम की एक वर्ष की लड़की शामिल थी। 
  • तस्करी के इस व्यवसाय में कई आरोपी व्यक्ति शामिल थे, जो बालकों का अपहरण करते थे और उन्हें राजस्थान, बिहार एवं झारखंड सहित विभिन्न राज्यों में निःसंतान दंपतियों को 40,000 रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक की राशि में बेच देते थे।
  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन मामलों में शामिल 13 आरोपियों को जमानत दे दी थी, जिसे पीड़ितों के परिवारों ने उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिकाओं के माध्यम से चुनौती दी थी। 

  • पुलिस विवेचना में अलग-अलग भूमिकाओं वाले एक संगठित रैकेट का पता चला: कुछ आरोपी अपहरण में शामिल थे, अन्य बालकों को ले जाने में, तथा कुछ ऐसे एजेंट के रूप में कार्य करते थे जो बालकों को खरीददारों को बेचते थे। 
  • वाराणसी में विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट संख्या 5 एवं मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में आरोप पत्र दायर किये गए थे, लेकिन मामले सत्र न्यायालय के समक्ष लंबित थे।
  • जमानत पर रिहा होने के बाद कई आरोपी फरार हो गए तथा पुलिस को उनके आश्रय स्थलों के विषय में पता नहीं चला, जिससे अभियोजन की कार्यवाही प्रभावित हुई। 
  • उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद तस्करी किये गए बालकों में से एक को 20.03.2025 को कोलकाता, पश्चिम बंगाल में आरोपी अनिल प्रसाद बरनवाल की अभिरक्षा से प्राप्त किया गया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने जमानत आवेदनों के निपटान में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के "बहुत ही लापरवाह" रवैये पर निराशा व्यक्त की, जिसके कारण अंततः कई आरोपी फरार हो गए और अभियोजन को खतरे में डाल दिया। 
  • न्यायालय ने उच्च न्यायालय के इस तथ्य के लिये आलोचना की कि उसने आरोपियों पर संबंधित पुलिस थाने में साप्ताहिक रूप से उपस्थित होने की शर्त नहीं लगाई, ताकि पुलिस उनकी गतिविधियों पर नज़र रख सके। 
  • न्यायालय ने स्थिति से निपटने के राज्य के तरीके पर असंतोष व्यक्त किया, प्रश्न किया कि उसने उच्च न्यायालय द्वारा दिये गए जमानत आदेशों को चुनौती क्यों नहीं दी तथा कहा कि "दुर्भाग्य से राज्य ने नाम मात्र की गंभीरता नहीं दिखाई है"। 
  • न्यायालय ने कहा कि बाल तस्करी के मामलों में, जिसे उसने "आधुनिक समय की गुलामी" के रूप में वर्णित किया, उच्च न्यायालय को अपराध की गंभीर प्रकृति एवं अपनाई गई कार्यप्रणाली को देखते हुए आरोपी व्यक्तियों के पक्ष में अपने विवेक का प्रयोग नहीं करना चाहिये था। 
  • न्यायालय ने इस तथ्य पर बल दिया कि "यह पता लगाने के लिये कि विवेक का विवेकपूर्ण तरीके से प्रयोग किया गया है या नहीं, सही परीक्षण यह देखना है कि क्या न्यायालय आरोपी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता एवं राज्य के हित, दूसरे शब्दों में, सामाजिक हितों के बीच संतुलन बनाने में सक्षम है"।  
  • न्यायालय ने कहा कि संतोष साव, जगवीर बरनवाल एवं मनीष जैन सहित कई आरोपी व्यक्तियों ने तस्करी नेटवर्क में महत्त्वपूर्णपूर्ण भूमिका निभाई, जिसमें मनीष जैन को "पूरे रैकेट के मुख्य संचालक में से एक" बताया गया।

उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी दिशानिर्देश क्या थे?

  • उच्चतम न्यायालय ने वाराणसी के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट को निर्देश दिया कि वे तीनों आपराधिक मामलों को दो सप्ताह के अंदर अनिवार्य रूप से सत्र न्यायालय को सौंप दें। 
  • न्यायालय ने आदेश दिया कि मामलों के सौंपे जाने के बाद, संबंधित ट्रायल कोर्ट एक सप्ताह के अंदर अलग-अलग आरोपियों के विरुद्ध आरोप तय करने की कार्यवाही करेगा। 
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि कोई आरोपी व्यक्ति फरार हो जाता है, तो ट्रायल कोर्ट गैर-जमानती वारंट जारी करके उनकी उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिये त्वरित निर्णय लेगा तथा फरार आरोपियों के अभियोजन को विधि के अनुसार अलग किया जाएगा ताकि अन्य सह-आरोपियों के अभियोजन में विलंब न हो।
  • न्यायालय ने आदेश दिया कि एक बार आरोप तय हो जाने के बाद, संबंधित ट्रायल कोर्ट साक्ष्य एकत्रित करने के लिये आगे बढ़ें, अधिमानतः दिन-प्रतिदिन के आधार पर और छह महीने के अंदर अभियोजन की कार्यवाही पूरी करें। 
  • न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह अभियोजन का वाद लाने के लिये शीघ्रात शीघ्र आपराधिक अभियोजन में पारंगत तीन विशेष सरकारी अभियोजकों को नियुक्त करे। 
  • न्यायालय ने आदेश दिया कि राज्य सरकार साक्ष्यों से छेड़छाड़ को रोकने के लिये पीड़ितों एवं उनके परिवारों को अभियोजन की प्रक्रिया के लंबित रहने तक पुलिस सुरक्षा प्रदान करे। 
  • न्यायालय ने राज्य पुलिस सभी फरार आरोपियों का पता लगाने, उन्हें गिरफ्तार करने एवं संबंधित न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने के लिये दो महीने का समय दिया। 
  • न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वह यह सुनिश्चित करे कि तस्करी किये गए बालकों को बालकों के मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम, 2009 के अनुसार स्कूलों में भर्ती कराया जाए और उनकी शिक्षा के लिये सहायता प्रदान करना जारी रखा जाए।
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि अभियोजन के वाद के अंत में संबंधित ट्रायल कोर्ट BNSS, 2023 और उत्तर प्रदेश रानी लक्ष्मी बाई महिला एवं बाल सम्मान कोष के अंतर्गत पीड़ितों को क्षतिपूर्ति के संबंध में उचित आदेश पारित करेगा। 
  • न्यायालय ने देश भर की सभी राज्य सरकारों को भारतीय अनुसंधान एवं विकास संस्थान (बर्ड) की 12.04.2023 की रिपोर्ट में की गई अनुशंसाओं का अध्ययन करने और उन्हें लागू करने का निर्देश दिया। 
  • न्यायालय ने देश भर के सभी उच्च न्यायालयों को बाल तस्करी से संबंधित लंबित अभियोजन प्रक्रिया की स्थिति के विषय में आवश्यक सूचना मांगने, छह महीने के अंदर अभियोजन प्रक्रिया को पूरा करने के लिये एक परिपत्र जारी करने और उच्चतम न्यायालय को अनुपालन रिपोर्ट भेजने का आदेश दिया। 
  • न्यायालय ने निर्धारित किया कि उसके निर्देशों का पालन न करने या किसी भी अधिकारी द्वारा किसी भी तरह की ढिलाई को बहुत सख्ती से देखा जाएगा और इसके परिणामस्वरूप अवमानना ​​की कार्यवाही हो सकती है। 
  • न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि किसी भी अस्पताल से किसी नवजात शिशु की तस्करी की जाती है, तो तत्काल कार्यवाही अन्य कानूनी कार्यवाही के अतिरिक्त अस्पताल का लाइसेंस निलंबित करना चाहिये।