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आपराधिक कानून
बचाव के रूप में विधि की अनभिज्ञता
« »25-Sep-2024
जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश न्यायालय ने माना कि विधि की अनभिज्ञता की अपील वैध बचाव हो सकती है यदि यह "परिणामस्वरूप दावा करने के किसी विशेष अधिकार के अस्तित्व या गैर-अस्तित्व के बारे में तथ्य की वैध और सद्भावनापूर्ण गलती को जन्म देती है।" भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला |
Source: Supreme Court
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला की पीठ ने बताया कि विधि की अनभिज्ञता को कब बचाव के अधिकार के रूप में लिया जा सकता है।
- उच्चतम न्यायालय ने जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस. हरीश मामले में इस अवधारणा को स्पष्ट किया।
जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन अलायंस बनाम एस हरीश मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- 29 जनवरी 2020 को, चेन्नई के अंबत्तूर में महिला पुलिस स्टेशन को अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त (महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अपराध शाखा) से एक पत्र मिला।
- पत्र में कहा गया है कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की एक साइबर टिपलाइन रिपोर्ट के अनुसार, प्रतिवादी (आरोपी) पोर्नोग्राफी का सक्रिय उपभोक्ता था और उसने कथित तौर पर अपने मोबाइल फोन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री डाउनलोड की थी।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 (आईटी अधिनियम) की धारा 67 (B) और लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) की धारा 14 (1) के तहत अपराधों के लिये उसी दिन प्रतिवादी के विरुद्ध एक प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) दर्ज की गई थी।
- जाँच के दौरान प्रतिवादी का मोबाइल फोन ज़ब्त कर लिया गया और फोरेंसिक जाँच के लिये भेज दिया गया।
- पूछताछ करने पर प्रतिवादी ने कॉलेज में नियमित रूप से पोर्नोग्राफी देखने की बात स्वीकार की।
- 22 अगस्त 2020 की कंप्यूटर फोरेंसिक विश्लेषण रिपोर्ट से पता चला कि प्रतिवादी के फोन पर चाइल्ड पोर्नोग्राफ़ी से संबंधित दो वीडियो फाइल पाई गईं, जिसमें दो कम उम्र के लड़कों को एक वयस्क महिला के साथ यौन गतिविधि में शामिल दिखाया गया था। फोन पर सौ से अधिक अन्य असामाजिक/अश्लील वीडियो फाइलें भी डाउनलोड और संग्रहीत पाई गईं।
- 19 सितंबर, 2023 को प्रतिवादी के विरुद्ध निम्नलिखित अपराधों के लिये आरोप-पत्र दायर किया गया:
- आईटी अधिनियम की धारा 67B
- POCSO अधिनियम की धारा 15(1) (जाँच निष्कर्षों के आधार पर प्रारंभिक रूप से पंजीकृत धारा 14(1) को परिवर्तित कर)
- POCSO अधिनियम की धारा (14(1) से 15(1)) में परिवर्तन जाँच के दौरान एकत्र सामग्री और कंप्यूटर फोरेंसिक विश्लेषण रिपोर्ट के निष्कर्षों के आधार पर किया गया था।
- आरोपी ने तर्क दिया कि उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि बाल पोर्नोग्राफी संग्रहित करना POCSO की धारा 15 के तहत दण्डनीय अपराध है।
- उसने दावा किया कि उनके मोबाइल फोन में चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री संग्रहीत पाई गई, ऐसा विधि की अनभिज्ञता के कारण हुआ तथा उनका यह विश्वास भी था कि इस तरह का भंडारण कोई अपराध नहीं है।
- विधि की जानकारी न होने के इस दावे के आधार पर आरोपी ने तर्क दिया कि उसे अपराध के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाना चाहिये।
- हालाँकि मद्रास उच्च न्यायालय ने आईटी अधिनियम की धारा 67B और POCSO अधिनियम की धारा 15(1) के तहत आरोप-पत्र को खारिज कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में त्रुटि की है।
- परिणामस्वरूप, सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को रद्द करने और विशेष सत्र मामला संख्या 170/2023 में दांडिक कार्यवाही को तिरुवल्लूर ज़िले में महिला नीति मंद्रम (फास्ट ट्रैक कोर्ट) के सत्र न्यायाधीश को बहाल करने का निर्णय लिया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने उस स्थिति को स्पष्ट किया जब विधि की अनभिज्ञता को बचाव के रूप में लिया जा सकता है और साथ ही भारत संघ और न्यायालयों को POCSO के बेहतर कार्यान्वयन के लिये सुझाव भी दिये।
विधि की अनभिज्ञता को कब बचाव के रूप में लिया जा सकता है?
विधि की अनभिज्ञता बनाम सद्भावनापूर्ण विश्वास:
- न्यायालय विधि की अनभिज्ञता और विधि की अनभिज्ञता से उत्पन्न सद्भावनापूर्ण विश्वास के मध्य अंतर करता है।
- केवल विधि की अनभिज्ञता एक वैध बचाव नहीं है।
- हालाँकि विधि की अनभिज्ञता जो किसी अधिकार या दावे के अस्तित्व में सद्भावनापूर्ण विश्वास की ओर ले जाती है, संभावित रूप से कुछ मामलों में एक वैध बचाव हो सकती है।
वैध बचाव के लिये चार-आयामी परीक्षण:
- किसी भी विधि की अज्ञानता या अनभिज्ञता मौजूद होनी चाहिये।
- ऐसी अज्ञानता या अनभिज्ञता एक संगत बचाव को जन्म देती है। जिसमें उचित और वैध अधिकार या दावा शामिल है ।
- ऐसे अधिकार या दावे का अस्तित्व सद्भावनापूर्वक माना जाना चाहिये।
- दण्डित किया जाने वाला प्रकल्पित कार्य ऐसे अधिकार या दावे के बल पर घटित होना चाहिये।
बचाव की सीमाएँ:
- यह बचाव वैधानिक नहीं है, बल्कि समानता के सिद्धांत का एक उत्पाद है।
- यह प्रत्येक मामले के विशिष्ट तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।
- समानता स्पष्ट और असंदिग्ध विधियों का स्थान नहीं ले सकती।
- जहाँ सकारात्मक विधियाँ मौजूद है, वहाँ समानता हमेशा उसका पालन करेगी।
चाइल्ड पोर्नोग्राफी मामलों में प्रयोज्यता:
- न्यायालय ने फैसला सुनाया कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी रखने के संबंध में विधि की जानकारी न होने से कोई वैध अधिकार या दावा उत्पन्न नहीं हो सकता।
- भले ही अभियुक्त को POCSO Act की धारा 15 के बारे में जानकारी न हो, लेकिन यह अपने आप में यह मानने के लिये कोई वैध या उचित आधार नहीं देता है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफिक सामग्री को संग्रहीत करने या रखने का कोई अधिकार था।
- इसलिये चाइल्ड पोर्नोग्राफी के मामलों में विधि की जानकारी न होने का बचाव विफल हो जाता है।
सांविधिक धारणाएँ और साक्ष्य:
- ऐसे मामलों में जहाँ दोषपूर्ण मानसिक स्थिति की सांविधिक धारणा लागू होती है, वहाँ ज्ञान की अल्पता या इरादे जैसे बचाव, परीक्षण के विषय होते हैं।
- अभियुक्त को परीक्षण में ठोस साक्ष्यों के माध्यम से दोषपूर्ण मानसिक स्थिति की अनुपस्थिति को स्थापित करना चाहिये।
- ऐसे बचावों पर यह निर्धारित करने के चरण में विचार नहीं किया जाना चाहिये कि क्या कोई प्रथम दृष्टया मामला मौजूद है।
न्यायालय द्वारा भारत संघ एवं अन्य न्यायालयों को क्या सुझाव दिये गए?
- संसद को “चाइल्ड पोर्नोग्राफी” पद के स्थान पर “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” (CSEAM) पद रखने के उद्देश्य से POCSO में संशोधन लाने पर गंभीरता से विचार करना चाहिये, ताकि ऐसे अपराधों की वास्तविकता को अधिक सटीक रूप से दर्शाया जा सके। इस बीच, भारत संघ अध्यादेश के माध्यम से POCSO में सुझाए गए संशोधन को लाने पर विचार कर सकता है।
- हमने न्यायालयों को यह सूचित किया कि किसी भी न्यायिक आदेश या निर्णय में "चाइल्ड पोर्नोग्राफी" पद का प्रयोग नहीं किया जाएगा तथा इसके स्थान पर “बाल यौन शोषण और दुर्व्यवहार सामग्री” (CSEAM) पद का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- व्यापक यौन शिक्षा कार्यक्रमों को लागू करना जिसमें चाइल्ड पोर्नोग्राफी के विधिक और नैतिक परिणामों के बारे में जानकारी शामिल हो, संभावित अपराधियों को रोकने में मदद कर सकता है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से सामान्य भ्रम की स्थितियों को संबोधित करना चाहिये और युवाओं को सहमति एवं शोषण के प्रभाव की स्पष्ट समझ प्रदान करनी चाहिये।
- पीड़ितों को सहायता सेवाएँ प्रदान करना और अपराधियों के लिये पुनर्वास कार्यक्रम आवश्यक है। इन सेवाओं में मनोवैज्ञानिक परामर्श, चिकित्सीय हस्तक्षेप और अंतर्निहित मुद्दों को संबोधित करने तथा स्वस्थ विकास को बढ़ावा देने के लिये शैक्षिक सहायता शामिल होनी चाहिये। जो लोग पहले से ही चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखने या वितरित करने में शामिल हैं, उनके लिये CBT संज्ञानात्मक विकृतियों को संबोधित करने में प्रभावी साबित हुआ है जो इस तरह के व्यवहार को बढ़ावा देते हैं। थेरेपी कार्यक्रमों के माध्यम से, सहानुभूति विकसित करने, पीड़ितों को होने वाली हानि को समझने एवं विकृत विचारों को बदलने पर ध्यान दिया जाना चाहिये।
- सार्वजनिक अभियानों के माध्यम से बाल यौन शोषण सामग्री की वास्तविकताओं और इसके परिणामों के बारे में जागरूकता के प्रसार से इसके प्रचलन को कम करने में मदद मिल सकती है। इन अभियानों का उद्देश्य रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना और सामुदायिक सतर्कता को प्रोत्साहित करना होना चाहिये।
- जोखिमपूर्ण व्यक्तियों की त्वरित पहचान और विकृत यौन व्यवहार (PSB) वाले युवाओं के लिये हस्तक्षेप रणनीतियों को लागू करना कई चरणों का कार्य है जिसके लिये शिक्षकों, स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, विधि प्रवर्तन और बाल कल्याण सेवाओं सहित विभिन्न हितधारकों के बीच समन्वित प्रयास की आवश्यकता होती है। शिक्षकों, स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों और विधि प्रवर्तन अधिकारियों को PSB के संकेतों की पहचान करने के लिये प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। जागरूकता कार्यक्रम इन पेशेवरों को प्रारंभिक चेतावनी संकेतों को पहचानने और उचित तरीके से प्रतिक्रिया करने के तरीके को समझने में मदद कर सकते हैं।
- स्कूल भी प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। स्कूल-आधारित कार्यक्रमों को लागू करना जो विद्यार्थियों को स्वस्थ संबंधों, सहमति और उचित व्यवहार के विषय में प्रशिक्षण प्रदान करते हैं, PSB को रोकने में मदद कर सकते हैं।
- उपर्युक्त सुझावों को सार्थक रूप देने और आवश्यक तौर-तरीके तय करने के लिये, भारत संघ एक विशेषज्ञ समिति गठित करने पर विचार कर सकता है, जिसका कार्य स्वास्थ्य और यौन शिक्षा के लिये एक व्यापक कार्यक्रम या तंत्र तैयार करना, साथ ही देश भर में बच्चों के बीच कम उम्र से ही POCSO के बारे में जागरूकता बढ़ाना, ताकि बाल संरक्षण, शिक्षा और यौन कल्याण के लिये एक मज़बूत और सुविचारित दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जा सके।