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आपराधिक कानून
ज़मानत आदेश का कार्यान्वयन
« »03-Sep-2024
जितेन्द्र पासवान बनाम बिहार राज्य “छह महीने उपरांत ज़मानत देने का आदेश लागू होना आश्चर्यजनक है।” न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने ज़मानत की शर्त को हटा दिया और कहा कि ज़मानत की शर्त छह महीने उपरांत निष्पादित की जाएगी।
- उच्चतम न्यायालय ने जितेंद्र पासवान बनाम बिहार राज्य मामले में यह निर्णय दिया।
जितेंद्र पासवान बनाम बिहार राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?
- आवेदक को इस मामले में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 147, 148, 149, 341, 323, 324, 326, 307 और 302 के अधीन फँसाया गया था।
- पटना उच्च न्यायालय ने ज़मानत स्वीकार की थी, जिसमें कहा गया था कि याचिकाकर्त्ता को ज़मानत पर रिहा किया जाएगा।
- हालाँकि उच्च न्यायालय ने कहा कि ज़मानत देने का आदेश 6 महीने उपरांत ही प्रभावी होगा।
- इस आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि उच्च न्यायालय ने आश्चर्यजनक ढंग से यह माना है कि ज़मानत देने का आदेश छह महीने बाद ही प्रभावी होगा।
- उच्चतम न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली और "परंतु आज से 6 महीने बाद" शब्दों को हटा दिया।
- इस प्रकार, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि एक बार जब कोई आरोपी ज़मानत का अधिकारी हो जाता है तो ज़मानत में देरी नहीं की जा सकती और ऐसा करना भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।
ज़मानत क्या है?
परिचय:
- ज़मानत, दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अंतर्गत एक विधिक प्रावधान है, जो प्रतिभूति जमा करने पर लंबित वाद या अपील के दौरान जेल से रिहाई की सुविधा प्रदान करता है।
- CrPC की धारा 436 के अनुसार, ज़मानती अपराधों में ज़मानत का अधिकार होता है, जबकि गैर-ज़मानती अपराधों में न्यायालयों या नामित पुलिस अधिकारियों को विवेकाधिकार दिया जाता है, जैसा कि धारा 437 में उल्लिखित है।
- राजस्थान राज्य बनाम बालचंद (1977) के मामले में न्यायमूर्ति वी.आर. कृष्ण अय्यर ने माना कि मूल सिद्धांत ज़मानत नियम है, जेल नहीं। इसमें एक अवधारणा का उल्लेख किया गया है जो 'ज़मानत एक अधिकार है और जेल एक अपवाद है' के रूप में उल्लिखित है।
ज़मानत के प्रकार:
- नियमित ज़मानत: यह न्यायालय (देश के किसी भी न्यायालय) द्वारा किसी व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश है जो पहले से ही गिरफ़्तार है और पुलिस अभिरक्षा में है।
- अंतरिम ज़मानत: न्यायालय द्वारा अस्थायी और छोटी अवधि के लिये दी गई ज़मानत जब तक कि अग्रिम ज़मानत या नियमित ज़मानत की मांग करने वाला आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित है।
- अग्रिम ज़मानत: यह एक विधिक प्रावधान है जो किसी आरोपी व्यक्ति को गिरफ़्तार होने से पहले ज़मानत के लिये आवेदन करने की अनुमति देता है। भारत में, गिरफ्तारी से पहले ज़मानत CrPC की धारा 438 के अधीन दी जाती है। यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी की जाती है।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 (BNSS) के अधीन ज़मानत से संबंधित प्रावधान क्या हैं?
- BNSS के अध्याय 35 में ज़मानत एवं बॉण्ड के संबंध में प्रावधान किये गए हैं।
धारा 478 |
किन मामलों में ज़मानत लेनी होगी? |
धारा 479 |
विचाराधीन कैदी को अभिरक्षा में रखने की अधिकतम अवधि |
धारा 480 |
गैर-ज़मानती अपराध के मामले में ज़मानत कब ली जा सकती है |
धारा 481 |
ज़मानत के लिये आरोपी को अगली अपीलीय न्यायालय में उपस्थित होना आवश्यक होगा |
धारा 482 |
गिरफ्तारी की आशंका वाले व्यक्ति को ज़मानत देने का निर्देश (अग्रिम गिरफ्तारी) |
धारा 483 |
ज़मानत के संबंध में उच्च न्यायालय और सत्र न्यायालय की विशेष शक्तियाँ |
धारा 484 |
ज़मानत की राशि एवं कटौती |
धारा 485 |
अभियुक्त एवं ज़मानतदारों का बॉण्ड |
धारा 486 |
ज़मानतदारों द्वारा घोषणा |
धारा 487 |
अभिरक्षा से रिहाई |
धारा 488 |
जब पहली बार ली गई ज़मानत अपर्याप्त हो तो पर्याप्त ज़मानत देने का अधिकार |
धारा 489 |
ज़मानतदारों से उन्मुक्ति |
धारा 490 |
पहचान-पत्र के बदले जमा |
धारा 491 |
बॉण्ड ज़ब्त होने पर प्रक्रिया |
धारा 492 |
बॉण्ड एवं ज़मानत बॉण्ड रद्द करना |
ज़मानत देते समय क्या शर्तें लगाई जा सकती हैं?
- CrPC की धारा 437 (3) न्यायालय पर यह अनिवार्य कर्त्तव्य अध्यारोपित करती है कि वह ज़मानत देने से पहले अभियुक्त पर कुछ शर्तें लगाए। ये हैं:
- अभियुक्त को उसके द्वारा निष्पादित बॉण्ड की शर्तों के अनुसार न्यायालय में उपस्थित होना होगा।
- अभियुक्त समान प्रकृति का कोई अन्य अपराध नहीं करेगा।
- अभियुक्त मामले के तथ्यों से परिचित किसी भी व्यक्ति को कोई प्रलोभन, धमकी या वचन नहीं देगा।
- अभियुक्त मामले के साक्ष्य के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा।
- यह प्रावधान BNSS की धारा 480(3) में दोहराया गया है।
ज़मानत देते समय कौन-सी शर्तें अध्यारोपित की जा सकती हैं?
- मुनीश भसीन एवं अन्य बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) (2009):
- न्यायालय ने कहा कि जो शर्तें बोझिल एवं न्यायोचित नहीं हैं, उन्हें नहीं लगाया जाना चाहिये।
- इस मामले में न्यायालय ने कहा कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498A के अधीन ज़मानत देते समय पत्नी को 12,500 रुपए प्रतिमाह भरण-पोषण देने की शर्त बोझिल है तथा इसलिये इसे खारिज किया जाना चाहिये।
- सुमित मेहता बनाम राज्य (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली) (2013):
- न्यायालय ने ज़मानत दिये जाने पर “किसी शर्त” शब्द की व्याख्या की।
- न्यायालय ने कहा कि “किसी शर्त” शब्द को न्यायालय को कोई भी शर्त लगाने का पूर्ण अधिकार प्रदान करने के रूप में नहीं माना जाना चाहिये।
- कोई भी शर्त जो परिस्थितियों में स्वीकार्य तथ्यों में स्वीकार्य एवं व्यावहारिक अर्थों में प्रभावी एक उचित शर्त के रूप में लगाई जानी चाहिये तथा ज़मानत दिये जाने के आदेश को विफल नहीं करना चाहिये।
- दाताराम सिंह बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2018):
- ज़मानत देने की शर्तें इतनी सख्त नहीं होनी चाहिये कि उनका पालन करना असंभव हो जाए तथा ज़मानत देना भ्रामक हो जाए।
- गुड्डन उर्फ रूप नारायण बनाम राजस्थान राज्य (2023):
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान उच्च न्यायालय के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें 1,00,000 रुपए का कठोर अर्थदण्ड, 100,000 रुपए की ज़मानत एवं 50,000 रुपए के दो ज़मानत बॉण्ड लगाने का आदेश दिया गया था।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ये शर्तें अत्यधिक हैं तथा ज़मानत देने से मना करती हैं।
- अपर्णा भट्ट बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2021):
- उच्चतम न्यायालय ने मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के उस विवादित आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर ज़मानत दी गई थी।
- उच्चतम न्यायालय ने कहा कि ज़मानत की शर्तों में आरोपी एवं पीड़िता के बीच व्यक्तिगत संपर्क से बचना चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि शर्तों में रूढ़िवादी टिप्पणियों से बचना चाहिये।