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सिविल कानून
बीमा दावे का अस्वीकरण असंभव-पूर्ति स्थिति के लिये मान्य नहीं
« »09-Apr-2025
सोहोम शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य "अगर शर्त का सख्ती से निर्वचन किया जाए, तो बीमित व्यक्ति समुद्री दुर्घटना के मामले में दावा करने में असमर्थ होगा, जहाँ जहाज किसी खतरे के कारण अपनी यात्रा पूरी करने में असमर्थ है, जिससे विशेष शर्त का पालन करना असंभव हो जाता है। अंततः बीमित व्यक्ति बीमा के अंतर्गत किसी भी उपचार के बिना रह जाएगा। यह एक तर्कहीन तथ्य है, जो बीमा संविदा के पीछे के उद्देश्य को ही नष्ट कर देती है।" न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश एवं न्यायमूर्ति राजेश बिंदल |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में न्यायमूर्ति एम.एम.सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने कहा है कि किसी संविदा की शर्त के उल्लंघन के लिये बीमा दावे को अस्वीकार नहीं किया जा सकता, जिसे पूरा करना असंभव हो।
- उच्चतम न्यायालय ने सोहोम शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
सोहोम शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स द न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- सोहोम शिपिंग प्राइवेट लिमिटेड ने एक नवनिर्मित बजरा 'श्रीजॉय II' खरीदा और मुंबई से कोलकाता तक इसकी पहली यात्रा करने की मांग की।
- कंपनी ने शिपिंग महानिदेशक (DGS) को 'एकल यात्रा परमिट' के लिये आवेदन किया, जिसमें अनुमान लगाया गया कि जहाज 30 अप्रैल 2013 को मुंबई से रवाना होगा और 15 मई 2013 को कोलकाता पहुँचेगा।
- DGS ने भारतीय शिपिंग रजिस्टर (IRS) को जहाज का विस्तृत निरीक्षण करने का निर्देश दिया।
- सोहोम शिपिंग ने 16 मई 2013 से 15 जून 2013 के बीच की अवधि के लिये न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के साथ एक बीमा संविदा किया, जिसमें एक विशेष शर्त थी कि "यात्रा मानसून शुरू होने से पहले शुरू और पूरी होनी चाहिये"।
- जहाज ने 06 जून 2013 को यात्रा शुरू की, लेकिन अगले दिन खराब मौसम और इंजन की विफलता के कारण रत्नागिरी बंदरगाह के पास लंगर डाला गया, अंततः फंस गया।
- बीमा संविदा समाप्त होने के बाद, सोहोम शिपिंग ने बीमाकर्त्ता से जहाज को खींचने और बचाने के लिये सहायता मांगी।
- 25 जुलाई 2013 को, सोहोम शिपिंग ने बीमाकर्त्ता को 'परित्याग का नोटिस' जारी किया, जिसमें इस आधार पर कुल नुकसान का दावा किया गया कि जहाज की मरम्मत बीमित राशि से अधिक महंगी होगी।
- बीमाकर्त्ता ने 12 सितंबर 2013 को एक 'निराकरण नोटिस' जारी किया, जिसमें इस आधार पर दावे को खारिज कर दिया गया कि जहाज 'मानसून के आने' के बाद रवाना हुआ, जिससे बीमा संविदा में विशेष शर्त का उल्लंघन हुआ।
- निराकरण से व्यथित होकर, सोहोम शिपिंग ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) के समक्ष COPRA की धारा 21 के तहत एक उपभोक्ता शिकायत दर्ज की, जिसे बाद में खारिज कर दिया गया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने पाया कि बीमा पॉलिसी एक महीने की अवधि के लिये ली गई थी, विशेष तौर पर मुंबई से कोलकाता की यात्रा को शामिल करने के लिये, जिस दौरान 1 मई से पूर्वी तट पर खराब मौसम पहले से ही प्रभावी था।
- न्यायालय ने बीमाकर्त्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उन्हें खराब मौसम के दौरान यात्रा के विषय में कोई सूचना नहीं थी, यह देखते हुए कि अपीलकर्त्ता ने फॉर्म में स्पष्ट रूप से कहा था कि बीमा का उद्देश्य मुंबई से कोलकाता की यात्रा करना था।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि बीमा दोनों तटों पर खराब मौसम की अवधि को शामिल करने के लिये लिया गया था, क्योंकि भले ही यात्रा 16.05.2013 को तुरंत शुरू हुई हो, लेकिन जहाज पूर्वी तट पर मानसून की शुरुआत के बाद कोलकाता बंदरगाह पर पहुँचा होगा।
- न्यायालय ने माना कि यात्रा मार्ग और समय को देखते हुए मानसून से पहले यात्रा पूरी करने की विशेष शर्त का पालन करना असंभव था, जिससे यह शर्त महत्त्वहीन हो गई तथा पक्षकारों द्वारा स्पष्ट रूप से माफ कर दी गई।
- न्यायालय ने आगे कहा कि ऐसी शर्त के सख्त निर्वचन से मानसून के दौरान समुद्री दुर्घटनाओं के मामले में बीमित व्यक्ति को कोई उपचार नहीं मिलेगा, जो बीमा संविदा के मूल उद्देश्य को ही नष्ट कर देगा।
- न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि बीमाकर्त्ता विशेष शर्त के उल्लंघन के आधार पर दावे को अस्वीकार करने का अधिकारी नहीं है, क्योंकि इससे एक तर्कहीन तथ्य सामने आएगा जो संविदा के किसी भी उचित पक्ष की मंशा नहीं हो सकती है।
- परिणामस्वरूप उच्चतम न्यायालय ने अपील को अनुमति दे दी, NCDRC के आदेश को खारिज कर दिया और अपीलकर्त्ता को देय बीमित राशि की सीमा निर्धारित करने के लिये मामले को वापस भेज दिया।
उल्लिखित विधिक प्रावधान क्या हैं?
- उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 (COPRA) की धारा 67 - NCDRC के आदेश के विरुद्ध अपीलकर्त्ता द्वारा इस धारा के अंतर्गत अपील प्रस्तुत की गई।
- COPRA की धारा 21 - मूल उपभोक्ता शिकायत NCDRC के समक्ष इस धारा के अंतर्गत दायर की गई थी।
- बीमा संविदा का खंड 3, विशेष रूप से खंड 3.1.2 - इस खंड में समुद्री योग्यता से संबंधित पोत की वर्गीकरण सोसायटी द्वारा की गई अनुशंसाओं एवं आवश्यकताओं का अनुपालन आवश्यक था।
COPRA की धारा 67 एवं 21 क्या है?
COPRA की धारा 21 (2019)
केंद्रीय प्राधिकरण के पास व्यापारियों, निर्माताओं, अनुमोदकों, विज्ञापनदाताओं या प्रकाशकों को मिथ्यापूर्ण या भ्रामक विज्ञापनों को बंद करने या संशोधित करने के निर्देश जारी करने की शक्ति है, जो उपभोक्ता हितों को क्षति कारित हैं या उपभोक्ता अधिकारों का उल्लंघन करते हैं।
- केंद्रीय प्राधिकरण मिथ्यापूर्ण या भ्रामक विज्ञापनों के लिये निर्माताओं या समर्थकों पर दस लाख रुपये तक का जुर्माना लगा सकता है, जो बाद के उल्लंघनों के लिये पचास लाख रुपये तक हो सकता है।
- केंद्रीय प्राधिकरण मिथ्यापूर्ण या भ्रामक विज्ञापनों के समर्थकों को एक वर्ष तक किसी भी उत्पाद या सेवा का समर्थन करने से रोक सकता है, जिसे बाद के उल्लंघनों के लिये तीन वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है।
- भ्रामक विज्ञापनों के प्रकाशन में प्रकाशक या पक्षकारों को दस लाख रुपये तक के जुर्माने का सामना करना पड़ सकता है।
- समर्थक दण्ड से छूट का दावा कर सकते हैं यदि उन्होंने अपने द्वारा समर्थित विज्ञापनों में किये गए दावों को सत्यापित करने के लिये उचित परिश्रम किया हो।
- प्रकाशक बचाव का दावा कर सकते हैं यदि उन्होंने केंद्रीय प्राधिकरण द्वारा वापसी या संशोधन के किसी आदेश की पूर्व सूचना के बिना व्यवसाय के सामान्य क्रम में विज्ञापन प्रकाशित किया हो।
- दण्ड निर्धारित करते समय, प्राधिकरण जनसंख्या एवं प्रभावित क्षेत्र, अपराध की आवृत्ति एवं अवधि, प्रभावित व्यक्तियों की भेद्यता एँ अपराध के परिणामस्वरूप विक्रय से सकल राजस्व जैसे कारकों पर विचार करता है।
- इस धारा के अंतर्गत कोई भी आदेश पारित करने से पहले केंद्रीय प्राधिकरण को सुनवाई का अवसर प्रदान करना चाहिये।
COPRA की धारा 67 (2019)
धारा 58 की उपधारा (1) के खंड (a) के उपखंड (i) या (ii) के अधीन राष्ट्रीय आयोग द्वारा जारी आदेश से व्यथित कोई व्यक्ति आदेश के तीस दिन के अंदर उच्चतम न्यायालय में अपील कर सकता है।
- यदि विलंब के लिये पर्याप्त कारण स्थापित हो जाते हैं तो उच्चतम न्यायालय तीस दिन की अवधि के बाद दायर अपील पर विचार कर सकता है।
- यदि अपीलकर्त्ता को राष्ट्रीय आयोग के आदेश के अनुसार कोई राशि जमा करने की आवश्यकता होती है, तो अपील पर तभी विचार किया जाएगा जब अपीलकर्त्ता ने निर्धारित राशि का पचास प्रतिशत जमा कर दिया हो।
- यह खंड राष्ट्रीय आयोग के कुछ आदेशों को चुनौती देने के लिये उच्चतम न्यायालय को अपीलीय प्राधिकारी के रूप में स्थापित करता है।
- अपील तंत्र राष्ट्रीय आयोग के संभावित दोषपूर्ण निर्णयों के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है जबकि जमा आवश्यकता के माध्यम से सद्भावना अनुपालन की आवश्यकता होती है।