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आपराधिक कानून

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 के अधीन 'साशय अपमान'

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 13-Feb-2025

बी.वी. राम कुमार बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य

“वरिष्ठ की चेतावनी को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 के अधीन ' प्रकोपित करने के आशय से साशय अपमान' के रूप में नहीं माना जा सकता है।” 

जस्टिस संजय करोल और संदीप मेहता

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति संजय करोल और संदीप मेहता की पीठ ने कहा है कि कार्यस्थल पर एक साधारण मौखिक झगड़ा अपीलकर्त्ता को साशय अपमान के अपराध के लिये उत्तरदायी नहीं बनाता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने बी.वी. राम कुमार बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य (2025) के वाद में यह निर्णय सुनाया।

बी.वी. राम कुमार बनाम तेलंगाना राज्य और अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • डॉ. बी.वी. राम कुमार (अपीलकर्त्ता) सिकंदराबाद में बौद्धिक विकलांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण के लिये राष्ट्रीय संस्थान में कार्यवाहक निदेशक के रूप में कार्यरत थे।
  • 2 फरवरी 2022 को उन्होंने अपने परिचारक के माध्यम से बाल रोग के सहायक प्रोफेसर (परिवादकर्त्ता) को अपने कक्ष में बुलाया।
  • परिवादकर्त्ता हाल ही में कोविड-19 से ठीक हुआ था और उस समय उसे लगातार चिकित्सा संबंधी समस्याएँ हो रही थीं। 
  • परिवादकर्त्ता के अनुसार, जब वह उसके कक्ष में दाखिल हुई, तो अपीलकर्त्ता ने उससे उच्च स्वर में बात करना प्रारंभ कर दिया, और उच्च अधिकारियों के समक्ष उसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने के संबंध में उससे प्रश्न करने लगा।
  • परिवादकर्त्ता ने हाल ही में कोविड-19 से ठीक होने और चिकित्सा समस्याओं का हवाला देते हुए उसकी उच्च स्वर का विरोध किया। उसे शारीरिक लक्षण (हाथ कांपना और पसीना आना) महसूस होने लगे और वह यह कहते हुए चैंबर से बाहर चली गई कि वह लिखित जवाब देगी। 
  • परिवादकर्त्ता ने उसी दिन पुलिस में परिवाद दर्ज कराया, जिसके कारण 5 फरवरी 2022 को हैदराबाद के बोवेनपल्ली पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी (FIR) दर्ज की गई।
  • प्रारंभिक प्राथमिकी में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 269, 270, 504 और 354 के अधीन आरोप सम्मिलित थे।

  • विवेचना के दौरान, पुलिस को यह भी पता चला कि अपीलकर्त्ता संस्थान में पर्याप्त पीपीई किट और दस्ताने (PPE kits and gloves ) उपलब्ध कराने में असफल रहा था, जिससे कोविड-19 के फैलने का खतरा पैदा हो गया था।
  • अन्वेषण के पश्चात्, पुलिस ने 27 सितंबर, 2022 को आरोप पत्र दाखिल किया, जिसमें धारा 354 को हटा दिया गया, किंतु भारतीय दण्ड संहिता की धारा 269, 270 और 504 के अधीन आरोप बरकरार रखे गए।
  • परिवादकर्त्ता ने आरोप लगाया कि अपीलकर्त्ता अक्टूबर 2021 से कार्यस्थल पर उसका मानसिक उत्पीड़न कर रहा था, जिसमें आंतरिक शिकायतों में हस्तक्षेप करना और उसके मेडिकल अवकाश के दौरान ज्ञापन भेजना सम्मिलित था।
  • संस्थान के दो साक्षियों (एक हिंदी अनुवादक और एक डाटा एंट्री ऑपरेटर) ने कथन किया कि संस्थान में पीपीई किट, मास्क या सैनिटाइज़र की कोई कमी नहीं थी।
  • यह घटना छात्रों के संरक्षकों की मौजूदा शिकायतों के संदर्भ में हुई, जिसमें परिवादकर्त्ता की ड्यूटी के दौरान कथित रूप से अनुपलब्ध रहने की बात कही गई थी, जो निदेशक के रूप में डॉ. राम कुमार के पास लंबित थी।
  • विचारण न्यायालय (11वें अतिरिक्त मुख्य महानगर मजिस्ट्रेट, हैदराबाद) ने आरोप पत्र के आधार पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 269, 270 और 504 के अधीन अपराधों का संज्ञान लिया।
  • अपीलकर्त्ता ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के अधीन एक याचिका दायर की जिसमें आरोप पत्र को रद्द करने की मांग की गई जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया।
  • उच्च न्यायालय के निर्णयों से व्यथित होकर वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई है। 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय से असहमति जताई और अपील स्वीकार कर ली।
  • उच्चतम न्यायालय द्वारा की गई मुख्य टिप्पणियाँ: 
    • आरोपपत्र में लगाए गए आरोप पूरी तरह से काल्पनिक थे।
    • आरोप भारतीय दण्ड संहिता की धारा 269 और 270 के अधीन अपराध के तत्त्व नहीं थे।
    • विवेचना अधिकारी संवेदनशील स्थिति से अनुचित रूप से प्रभावित दिखाई दिये।
    • पीपीई किट की कमी के आरोप का साक्षियों के कथन से खण्डन किया गया।
    • एक साधारण मौखिक झगड़े ने अपीलकर्त्ता को भारतीय दण्ड संहिता धारा 504 के अधीन उत्तरदायी नहीं बनाया।
    • निदेशक के रूप में, अपीलकर्त्ता के लिये अपने कनिष्ठों से उच्च अपेक्षाएँ रखना उचित था।
    • अधीनस्थों को अनुशासन बनाए रखने के लिये फटकारना 'साशय अपमान' नहीं माना जा सकता।
    • अनुशासन बनाए रखने की कोशिश करने के लिये निदेशक के विरुद्ध आपराधिक आरोप लगाने की अनुमति देने से विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।
    • अपराध के लिये आवश्यक तत्त्व मौजूद नहीं थे।
    • उपरोक्त टिप्पणियों के आधार पर उच्चतम न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के विरुद्ध दायर आरोप पत्र को रद्द कर दिया।

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 504 क्या है?

  • यह धारा लोक शांति भंग करने को प्रकोपित करने के आशय से साशय अपमान करने से संबंधित है।
  • यह धारा बताती है कि जो कोई किसी व्यक्ति को साशय अपमानित करेगा और तद्द्वारा उस व्यक्ति को इस आशय से, या यह संभाव्य जानते हुए, प्रकोपित करेगा कि ऐसे प्रकोपन से वह लोक शांति भंग या कोई अन्य अपराध कारित करेगा, वह दोनों में से ती भाँति के कारावास से, जिसकी अवधि दो वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
  • यह एक असंज्ञेय, शमनीय और जमानतीय अपराध है और किसी भी मजिस्ट्रेट द्वारा विचारण किया जा सकता है।
  • इसी धारा को भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 352 के अधीन बताया गया है।