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सिविल कानून
मध्यस्थता खंड का आह्वान
« »18-Sep-2024
मूवी टाइम सिनेमाज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स चेतक सिनेमा “प्रथम दृष्टया निर्धारण का विधायी अधिदेश यह सुनिश्चित करता है कि निर्दिष्ट न्यायालय मध्यस्थ अधिकरण के अपने अधिकार क्षेत्र पर निर्णय देने के अधिकार को बाधित न करें।” न्यायमूर्ति डॉ. नूपुर भाटी |
स्रोत: राजस्थान उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान उच्च न्यायालय ने मूवी टाइम सिनेमाज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स चेतक सिनेमा के मामले में माना है कि यदि वैध मध्यस्थता करार की उपस्थिति स्थापित हो जाती है, तो इसे मध्यस्थ का नाम लिये बिना भी पक्षों द्वारा लागू किया जा सकता है।
मूवी टाइम सिनेमाज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स चेतक सिनेमा मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- वर्तमान मामले में, याचिकाकर्त्ता और प्रतिवादी ने एक पंजीकृत पट्टा विलेख पर हस्ताक्षर किये, जिसके अंतर्गत एक इमारत की दो मंज़िलें प्रतिवादी द्वारा याचिकाकर्त्ता को पट्टे पर दी गईं।
- याचिकाकर्त्ता ने पट्टे पर ली गई जगह पर कब्ज़ा कर लिया।
- इसके बाद, प्रतिवादी ने आरोप लगाया कि पट्टे पर दी गई संपत्ति पर तीसरे पक्ष का अधिकार है और उसने पट्टा विलेख से याचिकाकर्त्ता के चिह्नों को हटाने का प्रयास किया।
- इसके परिणामस्वरूप याचिकाकर्त्ता द्वारा पट्टा विलेख में उल्लिखित मध्यस्थता खंड का आह्वान किया गया।
- याचिकाकर्त्ता ने वाणिज्यिक न्यायालय के समक्ष मध्यस्थता एवं सुलह अधिनियम, 1996 (A & C अधिनियम) की धारा 9 के अंतर्गत आवेदन दायर किया।
- वाणिज्यिक न्यायालय ने प्रतिवादी को पट्टे पर दी गई संपत्ति की यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया।
- प्रतिवादी द्वारा वाणिज्यिक न्यायालय के आदेश का पालन न करने के कारण याचिकाकर्त्ता ने मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये A & C अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत आवेदन दायर किया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता खंड लागू करने के लिये मध्यस्थता समझौता होना चाहिये।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने कहा कि पक्षों के बीच पट्टा विलेख में वैध मध्यस्थता खंड है और इसलिये याचिकाकर्त्ता इसका सहारा ले सकता है।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि मध्यस्थ का नाम न होने के बावजूद याचिकाकर्त्ता ने पर्याप्त नोटिस दिये। न्यायालय ने मध्यस्थता मामलों में न्यूनतम न्यायिक हस्तक्षेप के सिद्धांत को लागू किया।
- राजस्थान उच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों पर भरोसा किया।
- इसलिये राजस्थान उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्त्ता के आवेदन को स्वीकार कर लिया और पक्षों के बीच विवाद का निपटारा करने के लिये एकमात्र मध्यस्थ नियुक्त किया।
मूवी टाइम सिनेमाज़ प्राइवेट लिमिटेड बनाम मेसर्स चेतक सिनेमा मामले में संदर्भित निर्णयज विधियाँ क्या हैं?
- कॉक्स एंड किंग्स लिमिटेड बनाम SAP इंडिया प्राइवेट लिमिटेड (2022): इस मामले में यह माना गया कि A & C अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत न्यायालय के लिये वैध मध्यस्थता करार की स्थापना आवश्यक है।
- NTPC लिमिटेड बनाम मेसर्स SPML इंफ्रा लिमिटेड (2022): इस मामले में यह माना गया कि A & C अधिनियम की धारा 11 के अंतर्गत न्यायालय को केवल तभी हस्तक्षेप करना चाहिये जब मामला पूर्व-दृष्टया समय-बाधित एवं समाप्त हो या कोई विवाद मौजूद न हो।
- मध्यस्थता और सुलह अधिनियम 1996 तथा भारतीय स्टाम्प अधिनियम (1899) के तहत मध्यस्थता समझौतों के बीच परस्पर क्रिया के संबंध में: इस मामले में यह माना गया कि A & C अधिनियम की धारा 8 या धारा 11 के स्तर पर एक निर्दिष्ट न्यायालय केवल प्रथम दृष्टया निर्धारण में प्रवेश कर सकता है।
मध्यस्थता समझौता क्या है?
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A & C अधिनियम की धारा 11 क्या है?
- मध्यस्थों की राष्ट्रीयता:
- किसी भी राष्ट्रीयता का कोई भी व्यक्ति मध्यस्थ हो सकता है, जब तक कि दोनों पक्ष अन्यथा सहमत न हों।
- नियुक्ति प्रक्रिया:
- उपधारा (6) के अधीन, पक्षकार मध्यस्थों की नियुक्ति के लिये प्रक्रिया पर सहमत होने के लिये स्वतंत्र हैं।
- किसी करार के अभाव में, तीन-मध्यस्थ अधिकरण के लिये, प्रत्येक पक्ष एक मध्यस्थ की नियुक्ति करता है, तथा दो नियुक्त मध्यस्थ तीसरे (अध्यक्ष) मध्यस्थ का चयन करते हैं।
- मध्यस्थ संस्थाओं की भूमिका:
- उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय मध्यस्थों की नियुक्ति के लिये श्रेणीबद्ध मध्यस्थ संस्थाओं को नामित कर सकते हैं।
- जिन न्यायक्षेत्रों में श्रेणीबद्ध संस्थाएँ नहीं हैं, वहाँ उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मध्यस्थों का एक पैनल बनाए रख सकते हैं।
- इन मध्यस्थों को मध्यस्थ संस्थाएँ माना जाता है तथा वे चौथी अनुसूची में निर्दिष्ट शुल्क के अधिकारी होते हैं।
- विफलता की स्थिति में नियुक्ति:
- यदि कोई पक्ष अनुरोध प्राप्त होने के 30 दिनों के भीतर मध्यस्थ नियुक्त करने में विफल रहता है, या यदि दो नियुक्त मध्यस्थ 30 दिनों के भीतर तीसरे पर सहमत होने में विफल रहते हैं, तो नियुक्ति नामित मध्यस्थ संस्था द्वारा की जाती है।
- अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता के लिये उच्चतम न्यायालय संस्था को नामित करता है; अन्य मध्यस्थताओं के लिये उच्च न्यायालय ऐसा करता है।
- एकमात्र मध्यस्थ की नियुक्ति:
- यदि पक्षकार 30 दिनों के भीतर एकमात्र मध्यस्थ पर सहमत होने में विफल रहते हैं, तो नियुक्ति उपधारा (4) के अनुसार की जाती है।
- सहमत प्रक्रिया के तहत कार्य करने में विफलता:
- यदि कोई पक्ष, नियुक्त मध्यस्थ, या नामित व्यक्ति/संस्था सहमत प्रक्रिया के अंतर्गत कार्य करने में विफल रहता है, तो न्यायालय द्वारा नामित मध्यस्थ संस्था नियुक्ति करती है।
- प्रकटीकरण आवश्यकताएँ:
- मध्यस्थ नियुक्त करने से पहले, मध्यस्थ संस्था को धारा 12(1) के अनुसार भावी मध्यस्थ से लिखित प्रकटीकरण प्राप्त करना होगा।
- संस्था को पक्षों के करार और प्रकटीकरण की विषय-वस्तु द्वारा अपेक्षित किसी भी योग्यता पर विचार करना होगा।
- अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता:
- अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थता में एकमात्र या तीसरे मध्यस्थ की नियुक्ति के लिये, नामित संस्था पक्षों से भिन्न राष्ट्रीयता के मध्यस्थ की नियुक्ति कर सकती है।
- एकाधिक नियुक्ति अनुरोध:
- यदि विभिन्न संस्थाओं से कई अनुरोध किये जाते हैं, तो पहला अनुरोध प्राप्त करने वाली संस्था ही नियुक्ति करने के लिये सक्षम होगी।
- नियुक्ति के लिये समय-सीमा:
- मध्यस्थ संस्था को नियुक्ति के लिये आवेदन का निपटारा विपरीत पक्ष को नोटिस देने के 30 दिनों के भीतर करना होगा।
- शुल्क निर्धारण:
- मध्यस्थ संस्था, चौथी अनुसूची में निर्धारित दरों के अधीन, मध्यस्थ अधिकरण के शुल्क और भुगतान पद्धति निर्धारित करती है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय वाणिज्यिक मध्यस्थताओं पर लागू नहीं होता है या जहाँ पक्षकार मध्यस्थ संस्था के नियमों के अनुसार शुल्क निर्धारण पर सहमत हो गए हों।
- न्यायिक शक्ति का अप्रत्यायोजन:
- उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय द्वारा किसी व्यक्ति या संस्था को नामित करना न्यायिक शक्ति का प्रत्यायोजन नहीं माना जाता है।