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न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट

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 13-Sep-2024

न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट

“सिनेमा में महिलाओं की समस्याओं से निपटने के लिये सरकार द्वारा एक स्वतंत्र मंच का गठन किया जाना चाहिये”।

न्यायमूर्ति के. हेमा, टी. सारदा, के.बी. वलसालाकुमारी

स्रोत: द हिंदू

चर्चा में क्यों?

केरल सरकार ने एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाते हुए सिनेमा उद्योग में महिलाओं के सामने आने वाले विभिन्न मुद्दों पर अध्ययन करने और रिपोर्ट देने के लिये तीन सदस्यीय विशेषज्ञ समिति का गठन किया। भारत में अपनी तरह की पहली पहल, जिसका नेतृत्व केरल उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति के. हेमा ने किया।

न्यायमूर्ति हेमा समिति की पृष्ठभूमि क्या है?

  • समिति का गठन:
    • इस समिति का गठन वीमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) द्वारा केरल के मुख्यमंत्री श्री पिनाराई विजयन को प्रस्तुत याचिका के उत्तर में किया गया था।
    • मई 2017 में स्थापित WCC का उद्देश्य मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं को प्रभावित करने वाली अनेक चिंताओं का समाधान करना था।
    • न्यायमूर्ति हेमा समिति ने दिसंबर 2019 में राज्य सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपी; हालाँकि इसे 19 अगस्त 2024 को जारी किया गया।
  • समिति के सदस्य:
    • इस समिति में तीन प्रतिष्ठित सदस्य शामिल थे:
    • न्यायमूर्ति के. हेमा (अध्यक्ष)- पूर्व न्यायाधीश, केरल उच्च न्यायालय
    • श्रीमती टी. सारदा- एक कलाकार
    • श्रीमती के.बी. वलसालाकुमारी- प्रमुख सचिव (सेवानिवृत्त), केरल सरकार

न्यायमूर्ति हेमा समिति की रिपोर्ट के विचारणीय विषय क्या थे?

सरकार ने समिति के अध्ययन के लिये विशिष्ट संदर्भ शर्तें (TOR) जारी कीं। जाँचे जाने वाले मुख्य आयामों में शामिल हैं:

  • सिनेमा में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याएँ, जिनमें सुरक्षा संबंधी चिंताएँ और संभावित समाधान शामिल हैं।
  • सिनेमा में महिलाओं के लिये सेवा की शर्तें और पारिश्रमिक।
  • सिनेमा से जुड़े सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के उपाय।
  • सिनेमा के तकनीकी पक्ष में अधिक महिलाओं को लाने की रणनीतियाँ।
  • प्रसव, बच्चे की देखरेख या स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के कारण काम से अनुपस्थित रहने की अवधि के दौरान महिलाओं के लिये सहायता प्रणाली।
  • सिनेमा सामग्री में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना।
  • फिल्म निर्माण गतिविधियों में कम-से-कम 30% महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।

पहचाने गए प्रमुख मुद्दे क्या थे?

इस समिति ने मलयालम फिल्म उद्योग में महिलाओं के सामने आने वाले कई गंभीर मुद्दों की पहचान की:

  • यौन उत्पीड़न और दुर्व्यवहार:
    • सिनेमा में प्रवेश और भूमिकाएँ प्राप्त करने के लिये महिलाओं से यौन संबंध स्थापित करने की मांग की गईं।
    • कार्यस्थल पर, परिवहन के दौरान तथा आवास में यौन उत्पीड़न, दुर्व्यवहार और यौन हमला।
  • कार्यस्थल पर्यावरण और सुरक्षा:
    • सेट पर शौचालय और चेंजिंग रूम जैसी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध न कराकर मानवाधिकारों का उल्लंघन किया गया।
    • सिनेमा, आवास एवं परिवहन में सुरक्षा का अभाव।
  • शक्ति गतिशीलता तथा भेदभाव:
    • सिनेमा में काम करने वाले व्यक्तियों पर अनधिकृत एवं अवैध प्रतिबंध।
    • काम से प्रतिबंधित किये जाने की धमकी देकर महिलाओं को चुप करा दिया जाना।
    • उद्योग में पुरुषों का वर्चस्व, लैंगिक पूर्वाग्रह एवं भेदभाव।
    • पुरुषों एवं महिलाओं के पारिश्रमिकों में असमानता।
  • पेशेवर चुनौतियाँ:
    • सिनेमा उद्योग में घोर अनुशासनहीनता, जिसमें शराब पीना, नशीली दवाओं का प्रयोग और अव्यवस्थित आचरण शामिल है।
    • नियोक्ताओं तथा कर्मचारियों के बीच लिखित अनुबंधों का निष्पादन न होना।
    • सहमति के अनुसार पारिश्रमिक का भुगतान न करना।
    • महिलाओं को तकनीकी भूमिकाओं में शामिल करने और उन्हें अवसर प्रदान करने में प्रतिरोध।
  • विधिक एवं जागरूकता संबंधी मुद्दे:
    • ऑनलाइन उत्पीड़न (साइबर हमले)।
    • महिलाओं में अपने अधिकारों के विषय में विधिक जागरूकता का अभाव।
    • शिकायतों के निवारण के लिये किसी विधिक रूप से गठित अधिकरण का अभाव।

आंतरिक शिकायत समिति (ICC) पर न्यायमूर्ति हेमा समिति का क्या दृष्टिकोण है?

  • आंतरिक शिकायत समिति:
    • वूमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (WCC) ने एक रिट याचिका दायर कर प्रत्येक प्रोडक्शन यूनिट और एसोसिएशन ऑफ मलयालम मूवी आर्टिस्ट्स (AMMA) में ICC गठित करने के निर्देश देने की मांग की।
    • AMMA ने तर्क दिया कि वह नियोक्ता नहीं है और इसलिये ICC बनाने के लिये बाध्य नहीं है।
    • समिति ने पाया कि उद्योग के भीतर ICC का गठन शक्ति गतिशीलता एवं धमकी की संभावना के कारण प्रभावी नहीं हो सकता है।
  • स्वतंत्र मंच की स्थापना:
    • सिनेमा में महिलाओं के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिये सरकार द्वारा एक स्वतंत्र मंच की स्थापना की जाएगी।
    • रिपोर्ट में इस बात पर ज़ोर दिया गया है कि केवल ऐसे स्वतंत्र निकाय के माध्यम से ही महिलाओं को मलयालम फिल्म उद्योग में प्रणालीगत मुद्दों से मुक्ति मिल सकती है।

श्रीमती टी. सारदा की टिप्पणियाँ क्या थीं?

समिति की सदस्य श्रीमती टी. सारदा ने उद्योग में महिलाओं द्वारा उपलब्ध कराए गए साक्ष्य के आधार पर आगे की चिंताएँ जताई:

  • यौन उत्पीड़न:
    • यौन उत्पीड़न उद्योग में एक सतत् मुद्दा रहा है। हालाँकि यह पहले भी मौजूद था, परंतु सामाजिक परिवर्तन और पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव ने इस तरह के व्यवहार को और अधिक स्पष्ट कर दिया है।
    • समिति ने कहा कि अब महिलाओं को रात में "असहज स्थितियों" का सामना करना पड़ता है एवं तथाकथित "कास्टिंग काउच" हमेशा से मौजूद रहा है, परंतु अब इसके विषय में अधिक खुले तौर पर बात की जाती है।
  • प्रतिबंध:
    • अतीत में भी अनौपचारिक प्रतिबंध का खतरा बना हुआ था, परंतु उसका क्रियान्वयन शायद ही कभी हुआ।
    • हालाँकि आज, जो महिलाएँ अपनी आवाज उठाती हैं या अधिक पारिश्रमिक की मांग करती हैं, उन्हें अक्सर फिल्मों से दूर रखा जाता है।
  • संविदाओं का अभाव:
    • संविदाओं के अभाव के कारण कई महिलाओं को उचित पारिश्रमिक नहीं मिलता है। संविदा यह सुनिश्चित करेगा कि निर्माता तय की गई राशि का भुगतान करने के लिये बाध्य हैं।
  • शराब एवं नशीली दवाओं का प्रचलन:
    • फिल्म उद्योग में युवा पीढ़ी के बीच नशीली दवाओं और शराब का प्रयोग बड़े स्तर पर हो रहा है, जिससे कार्यस्थल पर अनुशासनहीनता बढ़ रही है।
  • असुरक्षित आवास:
    • महिलाओं को अक्सर असुरक्षित एवं अनुपयुक्त आवास उपलब्ध कराया जाता है, जिससे उनका प्रदर्शन प्रभावित होता है। समिति ने अनुशंसा की है कि महिलाओं को एक साथ, सुरक्षित वातावरण में, बिना पुरुषों से अलग किये रहने की जगह दी जानी चाहिये।
  • समान पारिश्रमिक:
    • श्रीमती टी. सारदा ने समान पारिश्रमिक की मांग से असहमति जताते हुए कहा कि फिल्मों में महिलाओं के लिये दर्शकों की मांग पुरुषों के समान नहीं है।
  • कार्यस्थल परिभाषा:
    • फिल्म उद्योग में केवल इनडोर स्टूडियो और आउटडोर स्थानों को ही कार्यस्थल के रूप में परिभाषित किया जाना चाहिये।
  • साइबर हमले:
    • सरकार को साइबर हमलों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही करनी चाहिये, जो उद्योग में महिलाओं और पुरुषों के कॅरियर को बर्बाद कर देते हैं।
  • मेकअप कलाकारों के लिये आयु सीमा:
    • श्रीमती सारदा ने मेकअप महिलाओं के लिये आयु सीमा पर सवाल उठाया और कहा कि उन्हें जॉब कार्ड क्यों नहीं जारी किये जाते।
  • लैंगिक भेदभाव:
    • महिला निर्माताओं को केवल लिंग के कारण अभिनेताओं और निर्देशकों से अपमान एवं दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है।

फिल्म सामग्री में लैंगिक न्याय के लिये क्या अनुशंसाएँ थीं?

फिल्मों की विषय-वस्तु में लैंगिक न्याय प्राप्त करने के लिये श्रीमती के.बी. वलसलाकुमारी द्वारा निम्नलिखित उपायों का उल्लेख किया गया:

  • स्क्रीन पर महिलाओं और लड़कियों की दृश्यता बढ़ाएँ:
    • महिलाओं और लड़कियों को स्क्रीन पर प्रमुखता से दिखना चाहिये, ताकि समाज में उनका प्रतिनिधित्व झलके। मोशन पिक्चर एसोसिएशन ऑफ अमेरिका (MPAA) के सहयोग से किये गए अध्ययन से पता चला है कि:
      • उदाहरण के लिये, भारत में केवल 24.9% महिला पात्र ही प्रमुख या सह-प्रमुख भूमिकाओं में हैं।
      • कोरिया, जापान और चीन जैसे देशों में प्रतिनिधित्व दर भारत की तुलना में अधिक है।
  • सत्ता के पदों पर आसीन महिलाओं का चरित्र चित्रण:
    • युवा लड़कियों को प्रेरित करने और विविध रोल मॉडल को प्रदर्शित करने के लिये महिलाओं को राजनेता, न्यायाधीश, वैज्ञानिक, व्यवसायी, IAS/IPS अधिकारी, राजदूत, पायलट एवं पत्रकार जैसे उच्च पद पर चित्रित करना आवश्यक है।
    • महिलाओं को इन भूमिकाओं में चित्रित करके, सामग्री निर्माता पारंपरिक लिंग बाधाओं को तोड़ने में मदद कर सकते हैं।
  • लिंग जागरूकता प्रशिक्षण कार्यक्रम:
    • फिल्म निर्माण में शामिल सभी लोगों के लिये लिंग जागरूकता प्रशिक्षण अनिवार्य होना चाहिये- निर्माता, निर्देशक, सामग्री लेखक, अभिनेता, तकनीशियन और यहाँ तक ​​कि ड्राइवर एवं जूनियर कलाकार भी।
    • यह प्रशिक्षण पुरुषों द्वारा सत्ता पर लंबे समय से चले आ रहे एकाधिकार को समाप्त करने में सहायता करेगा तथा लैंगिक भूमिकाओं की पुनः कल्पना को प्रोत्साहित करेगा।
  • पुरुषत्व और स्त्रीत्व को पुनर्परिभाषित करना:
    • फिल्मों में प्रायः पुरुषत्व को हिंसक, आक्रामक एवं क्रूरता के पर्याय के रूप में चित्रित किया जाता है, जबकि स्त्रीत्व को निष्क्रिय एवं विनम्र के रूप में दर्शाया जाता है।
    • फिल्मों की एक नई शैली उभरनी चाहिये, जो पुरुषत्व को देखभाल करने वाले, न्यायप्रिय एवं दयालु के रूप में दिखाए।
  • लैंगिक न्याय का प्रमाणन:
    • फिल्मों में पशुओं के प्रयोग से संबंधित प्रमाणन प्रक्रिया के समान, प्रत्येक फिल्म को एक प्रमाण-पत्र प्रदर्शित करना चाहिये जिसमें यह कहा गया हो कि फिल्म का कोई भी संवाद या स्थिति लैंगिक अन्याय का महिमामंडन नहीं करती है।
    • इससे यह सुनिश्चित होगा कि फिल्में निष्पक्ष प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देंगी और हानिकारक रूढ़िवादिता को हतोत्साहित करेंगी।