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आपराधिक कानून
फिरौती हेतु व्यपहरण
« »03-Jul-2024
योगेश साहू और अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य “भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 364 A के अधीन तब तक कोई दोषसिद्धि नहीं की जा सकती जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा यह सिद्ध नहीं कर दिया जाता कि व्यपहरण के साथ फिरौती की मांग और जान से मारने की धमकी भी दी गई थी”। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत |
स्रोत: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने योगेश साहू एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य के मामले में माना है कि भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 364 A के अधीन तब तक कोई दोषसिद्धि नहीं की जा सकती जब तक अभियोजन पक्ष द्वारा यह सिद्ध नहीं कर दिया जाता कि व्यपहरण के साथ फिरौती की मांग और जान से मारने की धमकी भी थी।
योगेश साहू एवं अन्य बनाम छत्तीसगढ़ राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अभियोजन का मामला संक्षेप में यह है कि शिकायतकर्त्ता भगवंता साहू द्वारा रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि दिनांक 3 अप्रैल 2022 को शाम करीब 06:30 बजे अपीलकर्त्ता योगेश साहू और नंदू उसके घर आए और बोले कि उन्हें एक कार देखनी है, फिर वे उसके साथ एक वाहन में बैठ गए।
- अपीलकर्त्ता उसे पाटन से रवेली गाँव ले गए, वहाँ उन्होंने उसे अपने घर में बंधक बना लिया और कहा कि वह अपनी पत्नी से कहे कि गाज़ी खान से बाकी पैसे लेकर आए, तभी उसे छोड़ा जाएगा और उसे कमरे के अंदर जंज़ीर से बाँधकर रखा।
- 7 अप्रैल 2022 को उसकी पत्नी राधा ने योगेश साहू को बताया कि भगवंता को छुड़वाने के लिये गाज़ी खान ने दो लाख रुपए जमा कर दिये हैं और वह शेष रकम को चेक द्वारा दे रहा है।
- जाँच पूरी होने के बाद 6 मई 2022 को अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध ट्रायल कोर्ट में आरोप-पत्र पेश किया गया।
- रिकॉर्ड पर उपलब्ध मौखिक और लिखित साक्ष्यों की सराहना करने के बाद ट्रायल कोर्ट ने अपीलकर्त्ताओं को दोषी ठहराया तथा सज़ा सुनाई, साथ ही निम्नलिखित तरीके से सभी सज़ाएँ एक साथ चलाने का निर्देश दिय
दोषसिद्धि |
दण्ड |
● भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364A के अंतर्गत |
आजीवन कारावास एवं 2000/- रुपए का अर्थदण्ड, अर्थदण्ड न चुका पाने पर 01 वर्ष का अतिरिक्त कठोर कारावास। |
● भारतीय दण्ड संहिता की धारा 343 के अंतर्गत |
2 वर्ष का कठोर कारावास।
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● भारतीय दण्ड संहिता की धारा 323/34 के अंतर्गत |
6 महीने का कठोर कारावास।
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- इसके बाद, ट्रायल कोर्ट के निर्णय को चुनौती देते हुए छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में एक आपराधिक अपील दायर की गई।
- उच्च न्यायालय ने अपील स्वीकार कर ली और अपीलकर्त्ताओं को उनके विरुद्ध लगाए गए भारतीय दण्ड संहिता की धारा 364A, 343 तथा 323/34 के अधीन आरोपों से दोषमुक्त कर दिया।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत की पीठ ने कहा कि IPC की धारा 364 A के अधीन तब तक कोई दोषसिद्धि नहीं की जा सकती जब तक अभियोजन पक्ष यह सिद्ध नहीं कर देता कि अपहरण के साथ फिरौती की मांग और जान से मारने की धमकी भी थी।
- न्यायालय ने आगे कहा कि यह फिरौती का मामला नहीं है, क्योंकि अपीलकर्त्ताओं ने उसके पति को छोड़ने के बदले में उससे फिरौती देने के लिये फोन नहीं किया है और यह संभव है कि उसके पति तथा अपीलकर्त्ताओं ने गाज़ी खान से ट्रक की शेष राशि प्राप्त करने की योजना बनाई हो।
इसमें प्रासंगिक विधिक प्रावधान क्या हैं?
अपहरण का अपराध:
परिचय:
- आपराधिक विधि में व्यपहरण किसी व्यक्ति का उसकी इच्छा के विरुद्ध अवैध रूप से अपहरण और बंधक बनाना है।
- व्यपहरण एक आपराधिक कृत्य है जो भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 21 के अधीन व्यक्ति के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करता है।
व्यपहरण के प्रमुख तत्त्व:
व्यपहरण के अपराध को गठित करने वाले तत्व हैं:
ले जाना या फुसलाना- व्यपहरण में किसी व्यक्ति को उसके वैध संरक्षण या सुरक्षित स्थान से शारीरिक रूप से ले जाना या फुसलाना शामिल होता है।
सहमति के बिना- यह कार्य व्यक्ति या उसके वैध अभिभावक की सहमति के बिना किया जाना चाहिये।
आशय- अपराध करने का आशय अवश्य होना चाहिये।
IPC के अधीन व्यपहरण:
- IPC की धारा 359 में कहा गया है कि व्यपहरण दो प्रकार का होता है:
- भारत से व्यपहरण
- वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण
- IPC की धारा 360 भारत से व्यपहरण को परिभाषित करती है।
- इस धारा में कहा गया है कि जो कोई, किसी व्यक्ति को उसकी सहमति के बिना, या उस व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिये विधिक रूप से प्राधिकृत किसी व्यक्ति की सहमति के बिना भारत की सीमाओं से बाहर ले जाता है, तो यह कहा जाता है कि उसने उस व्यक्ति का भारत से व्यपहरण किया है।
- IPC की धारा 361 वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण को परिभाषित करती है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई भी किसी नाबालिग को, यदि वह पुरुष है तो सोलह वर्ष से कम आयु का, या यदि वह महिला है तो अठारह वर्ष से कम आयु का, या किसी विकृत चित्त वाले व्यक्ति को, ऐसे नाबालिग या विकृत चित्त वाले व्यक्ति के वैध अभिभावक की देखरेख से, ऐसे संरक्षक की सहमति के बिना ले जाता है या बहलाता है, तो उसे ऐसे नाबालिग या व्यक्ति को वैध अभिभावकत्व से व्यपहरण करना कहा जाता है।
- अपवाद: यह धारा ऐसे किसी व्यक्ति के कार्य पर लागू नहीं होगी जो सद्भावपूर्वक अपने को किसी नाजायज़ बच्चे का पिता मानता है, या जो सद्भावपूर्वक अपने को ऐसे बच्चे की वैध अभिरक्षा का अधिकारी मानता है, जब तक कि ऐसा कार्य किसी अनैतिक या अविधिक उद्देश्य के लिये न किया गया हो।
- भारतीय दण्ड संहिता की धारा 363 के अनुसार भारत से व्यपहरण करने तथा वैध अभिभावकत्व से बाहर ले जाने पर सात वर्ष तक के कारावास तथा अर्थदण्ड का प्रावधान है।
भारतीय न्याय संहिता, 2023 के अधीन व्यपहरण:
- भारतीय न्याय संहिता, 2023 (BNS) की धारा 137 व्यपहरण के अपराध से संबंधित है। इसमें कहा गया है कि-
(1) व्यपहरण दो प्रकार का होता है: भारत से व्यपहरण और वैध संरक्षकता से व्यपहरण–
(a) जो कोई किसी व्यक्ति को उस व्यक्ति की सहमति के बिना, या उस व्यक्ति की ओर से सहमति देने के लिये विधिक रूप से अधिकृत किसी व्यक्ति की सहमति के बिना भारत की सीमाओं से बाहर ले जाता है, यह कहा जाता है कि वह उस व्यक्ति का भारत से व्यपहरण करता है;
(b) जो कोई किसी बालक या किसी विकृत चित्त वाले व्यक्ति को, ऐसे बालक या विकृत चित्त वाले व्यक्ति के विधिपूर्ण संरक्षक की सम्मति के बिना, उसके संरक्षण से ले जाता है या फुसलाता है, यह कहा जाता है कि वह ऐसे बालक या व्यक्ति का विधिपूर्ण अभिभावकत्व से व्यपहरण करता है।
स्पष्टीकरण–इस खंड में “विधिवत् संरक्षक” शब्दों के अंतर्गत ऐसा कोई व्यक्ति भी है जिसे विधिपूर्वक ऐसे बच्चे या अन्य व्यक्ति की देखरेख या अभिरक्षा सौंपी गई है।
अपवाद- यह खंड किसी ऐसे व्यक्ति के कार्य पर लागू नहीं होगा जो सद्भावपूर्वक अपने को किसी नाजायज़ बच्चे का पिता मानता है, या जो सद्भावपूर्वक अपने को ऐसे बच्चे की वैध अभिरक्षा का अधिकारी मानता है, जब तक कि ऐसा कार्य किसी अनैतिक या अविधिक उद्देश्य के लिये न किया गया हो।
(2) जो कोई किसी व्यक्ति को भारत से या वैध अभिभावकत्व से अपहरण करता है, उसे किसी एक अवधि के लिये कारावास से दण्डित किया जाएगा जो सात वर्ष तक बढ़ सकती है और अर्थदण्ड भी देना होगा।
फिरौती हेतु व्यपहरण:
- IPC की धारा 364A फिरौती आदि के लिये व्यपहरण से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई भी व्यक्ति, किसी व्यक्ति का व्यपहरण करता है, उसे बंदी बनाता है, या उसे जान से मारने या चोट पहुँचाने की धमकी देता है, ताकि सरकार को कोई कार्य करने या कोई कार्य करने से विरत रहने के लिये बाध्य किया जा सके या फिर फिरौती दी जा सके, उसे मृत्युदण्ड, आजीवन कारावास और अर्थदण्ड से दण्डित किया जाएगा।
- BNS की धारा 140(2) फिरौती आदि के लिये व्यपहरण से संबंधित है।
- इसमें कहा गया है कि जो कोई किसी व्यक्ति का व्यपहरण या अपहरण करता है या ऐसे व्यपहरण या अपहरण के बाद किसी व्यक्ति को निरुद्धि में रखता है और ऐसे व्यक्ति को मौत या चोट पहुँचाने की धमकी देता है, या अपने आचरण से ऐसी आशंका उत्पन्न करता है कि ऐसे व्यक्ति को मृत्यु या चोट कारित की जा सकती है, या सरकार या किसी विदेशी राज्य या अंतर्राष्ट्रीय अंतर-सरकारी संगठन या किसी अन्य व्यक्ति को कोई कार्य करने या न करने या फिरौती देने के लिये बाध्य करने के लिये ऐसे व्यक्ति को चोट या मृत्यु कारित करने का कारण बनता है, तो उसे मृत्युदण्ड या आजीवन कारावास से दण्डित किया जाएगा और अर्थदण्ड भी देना होगा।
निर्णयज विधियाँ:
● प्रकाश बनाम हरियाणा राज्य (2004) में, उच्चतम न्यायालय ने कहा कि IPC की धारा 361 के अधीन नाबालिग की सहमति पूरी तरह से अप्रासंगिक है जिसे ले जाया या बहलाया जाता है। केवल अभिभावक की सहमति ही मामले को इस दायरे से बाहर करती है। साथ ही, यह आवश्यक नहीं है कि ले जाना या बहलाना, बलपूर्वक या धोखाधड़ी से ही हो। नाबालिग की ओर से इच्छा उत्पन्न करने के लिये अभियुक्त द्वारा अनुनय इस धारा को आकर्षित करने के लिये पर्याप्त है।
● एस. वरदराजन बनाम मद्रास राज्य (1965) मामले में उच्चतम न्यायालय ने टिप्पणी की थी कि किसी नाबालिग को किसी व्यक्ति द्वारा साथ ले जाना और उसे जाने की अनुमति देना एक ही बात नहीं मानी जानी चाहिये