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सांविधानिक विधि
कानून एवं व्यवस्था बनाम लोक व्यवस्था
« »16-Dec-2024
अर्जुन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य "कानून और व्यवस्था बनाए रखने की शक्तियाँ प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करेंगी। इसलिये, किसी दिये गए मामले में शारीरिक हमला भी नहीं हो सकता है" न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, अर्जुन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि निवारक निरोध को उचित ठहराने के लिये आवश्यक उच्च सीमा केवल तभी स्वीकार्य होनी चाहिये जब लोक व्यवस्था भंग हो।
अर्जुन बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- अर्जुन गायकवाड़ (अपीलकर्त्ता) को परभणी के ज़िला मजिस्ट्रेट ने महाराष्ट्र झुग्गी-झोपड़ियों, शराब तस्करों, ड्रग अपराधियों, खतरनाक व्यक्तियों, वीडियो पाइरेट्स, रेत तस्करों और आवश्यक वस्तुओं की कालाबाज़ारी में लिप्त व्यक्तियों की खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम, 1981 (MPDA) की धारा 3(2) के तहत हिरासत में लिया था।
- निरोध आदेश बारह महीने की अवधि के लिये जारी किया गया था, जिसका घोषित उद्देश्य अर्जुन को अवैध शराब की गतिविधियों में शामिल होने से रोकना और सार्वजनिक शांति बनाए रखना था।
- यह निरोध मुख्य रूप से जनवरी और अक्तूबर 2023 के बीच राज्य आबकारी विभाग द्वारा अर्जुन के विरुद्ध दर्ज छह अलग-अलग मामलों पर आधारित था।
- ये मामले विशेष रूप से MPDA की विभिन्न धाराओं के तहत हस्तनिर्मित शराब के अवैध निर्माण से संबंधित था।
- उल्लेखनीय है कि इन छह मामलों के बावजूद आबकारी प्राधिकरण ने अपीलकर्त्ता को किसी भी बिंदु पर गिरफ्तार नहीं किया।
- 5 मार्च, 2024 को अर्जुन को निरोध के कारणों से अवगत कराया गया।
- इसके बाद 14 मार्च, 2024 को गृह विभाग द्वारा नज़रबंदी आदेश को मंज़ूरी दी गई और 8 मई, 2024 को महाराष्ट्र सरकार द्वारा इसकी पुष्टि की गई।
- निरोध आदेश में दो अज्ञात गवाहों के बयानों का भी हवाला दिया गया। इन गवाहों ने दावा किया कि:
- अपीलकर्त्ता कई वर्षों से हस्तनिर्मित शराब का उत्पादन कर रहा था।
- उसकी गतिविधियाँ सरकारी मशीनरी के लिये समस्याएँ उत्पन्न कर रही थीं।
- लोग उसके विरुद्ध शिकायत दर्ज कराने से डरते थे।
- गवाहों ने अर्जुन के साथ उसके शराब के कारोबार से जुड़ी धमकियों से जुड़ी व्यक्तिगत मुठभेड़ों का आरोप लगाया।
- अपीलकर्त्ता ने इस निरोध आदेश को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि:
- उनकी कथित गतिविधियों और निरोध आदेश के बीच कोई वास्तविक संबंध नहीं था।
- नज़रबंदी प्रस्ताव और वास्तविक आदेश के बीच काफी समय अंतराल (लगभग ढाई महीने) था।
- प्राधिकारी ने बिना किसी ठोस भौतिक साक्ष्य के यंत्रवत कार्य किया।
- कथित गतिविधियों से लोक व्यवस्था को कोई वास्तविक खतरा नहीं था तथा उनसे नियमित कानून प्रवर्तन द्वारा निपटा जा सकता था।
- यह अपील बॉम्बे उच्च न्यायालय द्वारा खारिज कर दी गई थी, जिसके निर्णय से व्यथित होकर वर्तमान अपील उच्चतम न्यायालय के समक्ष दायर की गई थी।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
- कानून और व्यवस्था बनाम लोक व्यवस्था के बीच अंतर:
- न्यायालय ने कानून और व्यवस्था तथा लोक व्यवस्था के बीच अंतर पर विस्तार से चर्चा की तथा राम मनोहर लोहिया बनाम बिहार राज्य (1966) जैसे पिछले ऐतिहासिक निर्णयों का संदर्भ दिया।
- न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर दिया कि शांति का हर उल्लंघन लोक अव्यवस्था का कारण नहीं बनता।
- उन्होंने लोक व्यवस्था को कानून और व्यवस्था के भीतर एक "संकेंद्रित वृत्त" के रूप में वर्णित किया, जहाँ कोई कार्य कानून और व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है, लेकिन जरूरी नहीं कि लोक व्यवस्था को प्रभावित करे।
- कानून और व्यवस्था बनाम लोक व्यवस्था के बीच अंतर:
- लोक व्यवस्था में गड़बड़ी के लिये मानदंड:
- किसी कार्य को लोक व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न करने के लिये यह आवश्यक है कि:
- व्यापक समुदाय पर प्रभाव पड़ना चाहिये।
- डर, घबराहट या असुरक्षा की भावनाएँ उत्पन्न होना चाहिये।
- "समुदाय के जीवन की धारा" बाधित होनी चाहिये।
- वर्तमान मामले का मूल्यांकन:
- न्यायालय ने पाया कि सभी छह मामले अवैध शराब निर्माण से संबंधित थे।
- उल्लेखनीय बात यह है कि छह मामलों के बावजूद, आबकारी प्राधिकरण ने अपीलकर्त्ता को गिरफ्तार करना कभी आवश्यक नहीं समझा।
- साक्षी के बयान इस प्रकार पाए गए:
- अस्पष्ट।
- रूढ़िबद्ध।
- व्यापक सामुदायिक खतरों के बजाय मूलतः व्यक्तिगत संघर्षों का वर्णन करना।
- निवारक निरोध सिद्धांत:
- न्यायालय ने दोहराया कि निवारक निरोध एक कठोर उपाय है।
- जब सामान्य कानून और व्यवस्था तंत्र स्थिति को संभाल सकता है, तो इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिये।
- निरोधक प्राधिकारी की व्यक्तिपरक संतुष्टि को लोक व्यवस्था के खतरे के स्पष्ट सबूतों से प्रमाणित किया जाना चाहिये।
- किसी कार्य को लोक व्यवस्था में व्यवधान उत्पन्न करने के लिये यह आवश्यक है कि:
- इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय अंततः इस निष्कर्ष पर पहुँचा है कि अपीलकर्त्ता लोक व्यवस्था के लिये कोई खतरा नहीं है, इसलिये निरोध आदेश अनुचित माना गया।
- न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश और मूल निरोध आदेश दोनों को रद्द कर दिया।
कानून एवं व्यवस्था तथा लोक व्यवस्था के बीच मुख्य अंतर क्या हैं?
पहलू |
कानून एवं व्यवस्था |
लोक व्यवस्था |
परिभाषा |
न्याय सुनिश्चित करने और कानूनी मानदंडों को बनाए रखने के लिये कानूनों और विनियमों के प्रवर्तन को संदर्भित करता है। |
व्यवधान या अराजकता को रोकने के लिये समाज में शांति, सुरक्षा और व्यवस्था बनाए रखने से संबंधित है। |
फोकस |
कानूनी प्रक्रियाओं, न्याय वितरण और आपराधिक गतिविधियों से निपटने पर ज़ोर। |
सामाजिक सद्भाव, गड़बड़ी को रोकने और सामूहिक सुरक्षा सुनिश्चित करने पर ज़ोर। |
मुख्य तत्त्व |
पुलिस जाँच, कानूनी परीक्षण, न्यायिक प्रक्रियाएँ और नैतिक/कानूनी विचार। |
कानून प्रवर्तन, सामुदायिक सहभागिता, कानूनी ढाँचा, तथा व्यक्तिगत अधिकारों और सुरक्षा में संतुलन। |
दायरा |
मुख्य रूप से अपराध, उनकी जाँच और न्यायिक समाधान से संबंधित है। |
इसमें अपराध की रोकथाम, विरोध प्रदर्शनों का प्रबंधन और सार्वजनिक सुरक्षा सहित व्यापक सामाजिक संदर्भ को शामिल किया गया है। |
शामिल संस्थान |
पुलिस, न्यायालय, अधिवक्ता और न्यायपालिका। |
पुलिस, स्थानीय प्राधिकारी, नियामक निकाय और सामुदायिक संगठन। |
मीडिया प्रतिनिधित्व |
अक्सर व्यक्तिगत मामलों और नैतिक दुविधाओं पर ध्यान केंद्रित करके चित्रित किया जाता है। |
कम नाटकीय; अक्सर सामाजिक स्थिरता, विरोध प्रदर्शन या कानून प्रवर्तन के संदर्भ में चर्चा की जाती है। |
उदहारण |
चोरी, हत्या, धोखाधड़ी और उसके बाद के कानूनी मुकदमों की जाँच करना। |
सार्वजनिक समारोहों का प्रबंधन करना, दंगों पर नियंत्रण करना, आपात स्थिति के दौरान सार्वजनिक सुरक्षा सुनिश्चित करना। |
लक्ष्य |
कानून लागू करके और अपराधियों को दंडित करके न्याय सुनिश्चित करना। |
सामाजिक शांति बनाए रखना, अराजकता को रोकना और सामूहिक कल्याण की रक्षा करना। |
चुनौतियाँ |
नैतिक दुविधाएँ, उचित संदेह से परे अपराध सिद्ध करना, तथा कानूनी जटिलताएँ। |
व्यक्तिगत अधिकारों को सामूहिक सुरक्षा के साथ संतुलित करना, प्राधिकार के दुरुपयोग को रोकना, तथा विश्वास को बढ़ावा देना। |