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आपराधिक कानून

घरेलू कर्मकारों के अधिकारों की रक्षा के लिये विधान

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 30-Jan-2025

अजय मलिक बनाम उत्तराखंड राज्य

"वास्तव में, भारत में घरेलू कर्मकार बड़े पैमाने पर असुरक्षित हैं तथा उन्हें कोई व्यापक विधिक मान्यता नहीं दी गई है। परिणामस्वरूप, उन्हें अक्सर कम वेतन, असुरक्षित वातावरण एवं प्रभावी उपाय के बिना लंबे समय तक कार्य करना पड़ता है।"

न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति सूर्यकांत एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ की पीठ ने केंद्र सरकार को घरेलू कर्मकारों के अधिकारों की रक्षा के लिये विधान बनाने पर विचार करने का निर्देश दिया है।

अजय मलिक बनाम उत्तराखंड राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ता अजय मलिक DRDO के वैज्ञानिक हैं तथा अशोक कुमार (सह-आरोपी) अजय मलिक के पड़ोसी हैं। 
  • शिकायतकर्त्ता अनुसूचित जनजाति समुदाय से एक घरेलू कर्मकार है। 
  • शिकायतकर्त्ता बिरहिपानी नवाटोली बोखी, जिला जशपुर, छत्तीसगढ़ की रहने वाली थी। 
  • 2009 में, उसके पड़ोसी (सुभाष एवं मोहन राम) उसे नौकरी दिलाने का वचन देकर दिल्ली ले आए।
  • उसे शंभू को सौंप दिया गया जो सेंट मरियम प्लेसमेंट सर्विसेज चलाता था। 
  • प्लेसमेंट एजेंसी ने उसे कई घरों में घरेलू सहायिका के तौर पर कार्य पर रखा। 
  • कथित तौर पर उसे उसके कार्य के लिये उचित पारिश्रमिक नहीं दिया गया। 
  • 16 अक्टूबर 2016 को अपीलकर्त्ता ने प्लेसमेंट एजेंसी के माध्यम से शिकायतकर्त्ता की भर्ती की।
  • वह देहरादून में उनके आधिकारिक आवास पर कार्य करती थी। 
  • एक निश्चित दिन, अपीलकर्त्ता अपने परिवार के साथ कानपुर में आधिकारिक ड्यूटी के लिये चला गया। 
  • घर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ताला लगा हुआ था। 
  • एक अतिरिक्त चाबी अशोक कुमार (पड़ोसी) को दी गई थी। 
  • अपीलकर्त्ता ने शिकायतकर्त्ता के पास एक मोबाइल फोन छोड़ दिया।
  • बाद में, शिकायतकर्त्ता ने पुलिस से संपर्क किया तथा आरोप लगाया कि उसे सदोष परिरोध में रखा गया है। 
  • पुलिस ने अशोक कुमार की सहायता से उसे परिसर से बरामद किया। 
  • प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई तथा भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 343 (सदोष परिरोध कारित करना) और 370 (दुर्व्यापार) के अधीन आरोप लगाए गए।
  • अपीलकर्त्ता ने उच्च न्यायालय में कार्यवाही रद्द करने के लिये याचिका संस्थित की, जिस पर उच्च न्यायालय ने सुनवाई की कार्यवाही पर रोक लगा दी। 
  • बाद में अपीलकर्त्ता ने समझौता हेतु आवेदन दायर किया। 
  • उच्च न्यायालय ने दोनों आवेदनों को खारिज कर दिया। 
  • सह-अभियुक्त ने आरोप मुक्त करने के लिये याचिका संस्थित की, जिसे प्रारंभ में सत्र न्यायालय ने खारिज कर दिया। 
  • बाद में उच्च न्यायालय ने पुनरीक्षण को स्वीकार कर लिया तथा उसे आरोप मुक्त कर दिया।
  • अपीलकर्त्ता की अपनी निरस्तीकरण याचिका की अस्वीकृति के विरुद्ध अपील।
  • सह-अभियुक्त को दोषमुक्त किये जाने के विरुद्ध उत्तराखंड राज्य की अपील।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

उच्चतम न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:

  • अपीलकर्त्ता के संबंध में:
    • भारतीय दण्ड संहिता की धारा 343 (सदोष परिरोध) के अधीन प्रथम दृष्टया कोई मामला स्थापित नहीं पाया गया:
      • शिकायतकर्त्ता के पास वैकल्पिक निकास उपलब्ध था।
      • शिकायतकर्त्ता के पास संचार के लिये एक मोबाइल फोन था।
      • DRDO कॉलोनी द्वारा जारी अस्थायी पास।
      • शिकायतकर्त्ता का अनापत्ति शपथपत्र जिसमें परिरोध से मना किया गया है।
    • भारतीय दण्ड संहिता के अधीन धारा 370 (दुर्व्यापार) के आरोपों में कोई सत्यता नहीं पाई गई:
      • FIR का बड़ा हिस्सा अन्य सह-आरोपियों पर केंद्रित था। 
      • शिकायतकर्त्ता के धारा 164 के अभिकथन में अपीलकर्त्ता के विरुद्ध न्यूनतम आरोप थे। 
      • शिकायतकर्त्ता के बाद के शपथपत्रों में किसी भी दुर्व्यापार या सदोष परिरोध कारित किये जाने से मना किया गया।
  • आपराधिक षड्यंत्र पर (IPC के अधीन धारा 120B):
    • सह-आरोपी के साथ किसी सुनियोजित व्यवस्था का कोई साक्ष्य नहीं मिला।
    • केवल शिकायतकर्त्ता को कार्य पर रखने तक ही बातचीत सीमित थी।
    • आरोपों को अत्यधिक काल्पनिक पाया गया।
  • सह-अभियुक्त के संबंध में:
    • उच्च न्यायालय के आरोपमुक्ति आदेश को यथावत रखा तथा कहा कि:
      • शिकायतकर्त्ता द्वारा कोई प्रत्यक्ष आरोप नहीं। 
      • मूल FIR में नाम नहीं। 
      • किसी भी सदोष परिरोध के विषय में सज्ञान का कोई साक्ष्य नहीं। 
      • प्रत्यक्ष भागीदारी या दुराशय का अभाव।
  • अतिरिक्त अवलोकन:
    • घरेलू कर्मकारों के अधिकारों से संबंधित प्रणालीगत मुद्दों की पहचान की गई। 
    • घरेलू कर्मकारों के संरक्षण में विधिक शून्यता पर ध्यान दिया गया।
      • न्यायालय ने व्यापक विधान के अभाव पर ध्यान दिया।
      • घरेलू कर्मकारों को कई मौजूदा श्रम विधियों से बाहर रखा गया है।
      • पिछले विधायी प्रयास विफल रहे हैं।
    • घरेलू कर्मकारों के लिये विधिक ढाँचे पर विचार करने हेतु विशेषज्ञ समिति के गठन का निर्देश दिया गया, जिसमें निम्नलिखित पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा:
      • कार्य करने की परिस्थितियाँ।
      • सामाजिक सुरक्षा लाभ।
      • शोषण से सुरक्षा।
      • उचित वेतन एवं विनियमित कार्य घंटे।
      • पंजीकरण एवं दस्तावेज़ीकरण।
      • कल्याणकारी योजनाओं तक पहुंच।
    • घरेलू कर्मकारों के अधिकारों की रक्षा के लिये विधायी हस्तक्षेप का आह्वान किया गया।
      • न्यायालय ने अंतरिम दिशा-निर्देश जारी न करने का निर्णय लिया।
      • शक्तियों के पृथक्करण का सम्मान किया।
      • आवश्यक कदम उठाने के लिये विधायिका पर विश्वास किया।
  • उच्चतम न्यायालय ने अंततः:
    • अपीलकर्त्ता के विरुद्ध अपील स्वीकार की गई तथा कार्यवाही रद्द कर दी गई। 
    • अशोक कुमार को दोषमुक्त किये जाने के विरुद्ध राज्य की अपील खारिज कर दी गई। 
    • घरेलू कर्मकारों के अधिकारों की रक्षा के लिये निर्देश जारी किये गए।

अजय मलिक बनाम उत्तराखंड राज्य मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा जारी निर्देश क्या थे?

  • ये निर्देश शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक ढाँचे का सम्मान करते हुए, भारत में घरेलू कर्मकारों के अधिकारों को मान्यता देने एवं उनकी रक्षा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • ये निर्देश शक्तियों के पृथक्करण के संवैधानिक ढाँचे का सम्मान करते हुए, भारत में घरेलू कर्मकारों के अधिकारों को मान्यता देने एवं उनकी रक्षा करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है।
  • विशेषज्ञ समिति का गठन: कई मंत्रालयों को संयुक्त रूप से एक समिति गठित करने का निर्देश दिया गया:
    • श्रम एवं रोजगार मंत्रालय।
    • सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय।
    • महिला एवं बाल विकास मंत्रालय।
    • विधि एवं न्याय मंत्रालय।
  • समिति का अधिदेश: विधिक ढाँचे की अनुशंसा करने की वांछनीयता पर विचार करना तथा निम्नलिखित पर ध्यान केंद्रित करना:
    • घरेलू कर्मकारों के लिये लाभ।
    • घरेलू कर्मकारों की सुरक्षा।
    • घरेलू कर्मकारों के अधिकारों का विनियमन।
  • समिति की संरचना:
    • विषय-वस्तु विशेषज्ञों को शामिल करना। 
    • सटीक संरचना भारत सरकार और संबंधित मंत्रालयों के विवेक पर छोड़ दी गई है।
  • समय-सीमा: समिति को 6 महीने के अंदर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
  • सरकार की भूमिका: रिपोर्ट प्राप्त होने पर, भारत सरकार निम्नलिखित पर विचार करेगी:
    • विधिक ढाँचा निर्मित करने की आवश्यकता। 
    • घरेलू कर्मकारों के कारणों एवं चिंताओं को दूर करने के प्रभावी तरीके।