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आपराधिक कानून

चेक अनादर के लिये दायित्व

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 06-Mar-2025

के.एस. मेहता बनाम मेसर्स मॉर्गन सिक्योरिटीज एंड क्रेडिट्स प्राइवेट लिमिटेड

“शिकायत में ऐसे विशिष्ट कथनों का अभाव है जो अपीलकर्त्ता(ओं) और संबंधित वित्तीय संव्यवहार के बीच सीधा संबंध स्थापित करते हों या कंपनी के वित्तीय मामलों में उनकी संलिप्तता को प्रदर्शित करते हों।”

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना एवं न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि मात्र निदेशक पद पर आसीन होने से परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 की धारा 141 के अंतर्गत स्वतः दायित्व उत्पन्न नहीं होता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने के.एस. मेहता बनाम मेसर्स मॉर्गन सिक्योरिटीज एंड क्रेडिट्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) मामले में यह निर्णय दिया।

के.एस. मेहता बनाम मेसर्स मॉर्गन सिक्योरिटीज एंड क्रेडिट्स प्राइवेट लिमिटेड (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • दिल्ली उच्च न्यायालय के 28 नवंबर 2023 के आदेश के विरुद्ध अपील दायर की गई थी, जिसमें आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 482 के तहत याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। 
  • अपीलकर्त्ता, के.एस. मेहता और बसंत कुमार गोस्वामी, ब्लू कोस्ट होटल्स एंड रिसॉर्ट्स लिमिटेड के गैर-कार्यकारी निदेशक थे। उन्हें चेक अनादर से संबंधित NI अधिनियम की धारा 138 एवं 141 के तहत आपराधिक आरोपों का सामना करना पड़ा। 
  • वे गैर-कार्यकारी निदेशक थे जिनके पास कोई वित्तीय निर्णय लेने की शक्ति नहीं थी तथा उन्हें SEBI लिस्टिंग समझौते (खंड 49) के अनुसार नियुक्त किया गया था। उनका दैनिक संचालन या वित्तीय संव्यवहार में कोई जुड़ाव नहीं था।
  • विवाद 09 सितंबर 2002 को निष्पादित एक इंटर-कॉर्पोरेट डिपाजिट (ICD) समझौते से उत्पन्न हुआ, जिसके तहत कंपनी ने प्रतिवादी से ₹5 करोड़ का ऋण लिया था। ऋण स्वीकृत होने के समय अपीलकर्त्ता बोर्ड की बैठक में उपस्थित नहीं थे तथा उन्होंने किसी भी वित्तीय दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर नहीं किये। 
  • पुनर्भुगतान के रूप में दो पोस्ट-डेटेड चेक जारी किये गए: चेक नंबर 842628 (₹50,00,000), दिनांक 28 फरवरी 2005 एवं चेक नंबर 842629 (₹50,00,000), दिनांक 30 मार्च 2005, अपर्याप्त धन के कारण दोनों चेक बाउंस हो गए। 
  • विधिक नोटिस भेजे गए, लेकिन कोई भुगतान नहीं किया गया। ऋण समझौते में एक मध्यस्थता खंड शामिल था, जिसके विषय में अपीलकर्त्ता अनभिज्ञ थे। 27 मई 2003 को, कुछ आरोपी पक्षों के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किये गए, लेकिन अपीलकर्त्ता इस समझौते का हिस्सा नहीं थे। 
  • के.एस. मेहता ने 10 नवंबर 2012 को त्यागपत्र दे दिया, जबकि बसंत कुमार गोस्वामी 2014 तक गैर-कार्यकारी निदेशक बने रहे। ROC और CGR रिपोर्ट सहित आधिकारिक रिकॉर्ड ने उनकी गैर-कार्यकारी स्थिति की पुष्टि की, और उन्हें मामूली बैठक शुल्क के अतिरिक्त कोई वेतन नहीं मिला। 
  • अपीलकर्त्ताओं के विरुद्ध आपराधिक शिकायतें दर्ज की गईं: चेक संख्या 842629 के लिये शिकायत संख्या 15857/2017 (10 नवंबर 2005 को दायर) और चेक संख्या 842628 के लिये शिकायत संख्या 15858/2017 (25 अक्टूबर 2005 को दायर)। 
  • अपीलकर्त्ताओं ने मामले को रद्द करने के लिये CrPC की धारा 482 के तहत याचिकाएँ दायर कीं, लेकिन उच्च न्यायालय ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने माना कि यह लगातार माना जाता रहा है कि गैर-कार्यकारी और स्वतंत्र निदेशकों को NI अधिनियम की धारा 141 के साथ धारा 138 के तहत उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, जब तक कि विशिष्ट आरोप प्रासंगिक समय पर कंपनी के मामलों में उनकी प्रत्यक्ष भागीदारी को प्रदर्शित न करें। 
  • न्यायालय ने माना कि वर्तमान तथ्यों में अपीलकर्त्ता (ओं) ने न तो हस्ताक्षर किये और न ही चेक के निष्पादन में उनकी कोई भूमिका थी। 
  • न्यायालय ने पाया कि कंपनी के मामलों में उनकी भागीदारी पूरी तरह से गैर-कार्यकारी थी और शासन की निगरानी तक सीमित थी तथा वित्तीय निर्णय लेने या परिचालन प्रबंधन तक विस्तारित नहीं थी। 
  • हालाँकि शिकायत में ऐसे विशिष्ट कथन नहीं किये गए हैं जो अपीलकर्त्ता (ओं) और संबंधित वित्तीय संव्यवहार के बीच प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करते हों या कंपनी के वित्तीय मामलों में उनकी भागीदारी को प्रदर्शित करते हों। 
  • केवल यह तथ्य कि अपीलकर्त्ता बोर्ड की बैठकों में शामिल हुए थे, अपीलकर्त्ताओं पर वित्तीय दायित्व लगाने के लिये पर्याप्त नहीं होगा तथा यह स्वचालित रूप से वित्तीय संचालन पर नियंत्रण में परिवर्तित नहीं होता है। 
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि अपीलकर्त्ता (ओं) को NI अधिनियम की धारा 141 के तहत प्रतिरूपी रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है। 
  • विशिष्ट आरोपों की कमी और पूर्वोक्त टिप्पणियों के मद्देनजर, अपीलकर्त्ता (ओं) को NI अधिनियम की धारा 141 के तहत प्रतिरूपी रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है।

धारा 141 NI अधिनियम के तहत एक कंपनी का दायित्व क्या है?

  • NI अधिनियम की धारा 141 (1) निम्नलिखित का प्रावधान करती है:
    • यदि कोई कंपनी NI अधिनियम की धारा 138 (चेक अनादर) के तहत कोई अपराध करती है, तो उस समय कंपनी के व्यवसाय के लिये उत्तरदायी और प्रभारी प्रत्येक व्यक्ति को भी दोषी माना जाएगा और उसे दण्डित किया जा सकता है। 
    • यदि कोई व्यक्ति यह सिद्ध कर सकता है कि:
      • अपराध उनकी सूचना के बिना किया गया था।
      • उन्होंने अपराध को रोकने के लिये उचित तत्परता बरती।
    • सरकार द्वारा नामित निदेशक (केन्द्र/राज्य सरकार या सरकारी स्वामित्व वाले वित्तीय निगम में उनकी भूमिका के कारण नियुक्त) पर इस धारा के तहत वाद नहीं लाया जा सकता।
  • NI अधिनियम की धारा 141 (2) निम्नलिखित प्रावधान करती है:
    • यदि कोई कंपनी इस अधिनियम के अंतर्गत कोई अपराध करती है, तो कंपनी के कुछ व्यक्तियों को भी दोषी ठहराया जा सकता है, यदि यह सिद्ध हो जाए कि अपराध किया गया था:
      • उनकी सहमति से।
      • उनकी संलिप्तता से (सक्रिय भागीदारी या अनुमोदन)।
      • उनकी उपेक्षा के कारण।
    • यह कंपनी के निदेशकों, प्रबंधकों, सचिवों या अन्य अधिकारियों पर लागू होता है। 
    • स्पष्टता के लिये परिभाषा:
      • "कंपनी" में कोई भी कॉर्पोरेट निकाय, फर्म या व्यक्तियों का संघ शामिल है। 
      • "निदेशक" (फर्म के मामले में) फर्म में भागीदार को संदर्भित करता है"

निदेशक के दायित्व पर ऐतिहासिक मामले क्या हैं?

  • एस.एम.एस. फार्मास्यूटिकल्स लिमिटेड बनाम नीता भल्ला एवं अन्य (2005)
    • इस मामले में न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया कि केवल निदेशक के रूप में पदनाम पर्याप्त नहीं है; शिकायत में विशिष्ट भूमिका और उत्तरदायित्व स्थापित की जानी चाहिये।
  • पूजा रविंदर देवीदासानी बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य (2014)
    • एक गैर-कार्यकारी निदेशक की मुख्य भूमिका शासन की होती है तथा वह कंपनी के दैनिक संचालन या वित्तीय मामलों को नहीं संभालता है। 
    • NI अधिनियम की धारा 141 के तहत उत्तरदायी ठहराए जाने के लिये, आरोपी को अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय का सक्रिय रूप से प्रभारी होना चाहिये। 
    • केवल निदेशक होने से कोई व्यक्ति अधिनियम के तहत स्वचालित रूप से उत्तरदायी नहीं हो जाता है। 
    • विधि लगातार यह मानता है कि केवल दिन-प्रतिदिन के व्यावसायिक संचालन के लिये उत्तरदायी लोगों पर ही वाद लाया जा सकता है।
  • हितेश वर्मा बनाम मेसर्स हेल्थ केयर एट होम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड एवं अन्य, (2025)
    • धारा 138 के अंतर्गत केवल चेक पर हस्ताक्षर करने वाला ही उत्तरदायी होता है, जब तक कि धारा 141 के तहत दायित्व स्थापित न हो जाए। 
    • धारा 141(1) के तहत प्रतिनिधिक दायित्व के लिये दो शर्तें पूरी होनी चाहिये:
      • अपराध के समय आरोपी कंपनी के व्यवसाय का प्रभारी रहा होगा।
      • आरोपी कंपनी के व्यवसाय के संचालन के लिये जिम्मेदार रहा होगा।
    • कंपनी का प्रभारी होना और उसके व्यावसायिक संचालन के लिये उत्तरदायी होना दो अलग-अलग तथ्य हैं।
    • दायित्व स्थापित करने के लिये दोनों स्थितियों का शिकायत में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया जाना चाहिये।
    • चूँकि शिकायतों में यह आरोप नहीं लगाया गया है कि अपीलकर्त्ता अपराध के समय कंपनी के व्यवसाय का प्रभारी था, इसलिये उन पर धारा 141(1) के तहत वाद नहीं लाया जा सकता।