Drishti IAS द्वारा संचालित Drishti Judiciary में आपका स्वागत है










होम / करेंट अफेयर्स

सिविल कानून

IBBI विनियम, 2016 के नियम 12 के अंतर्गत अनिवार्य समय-सीमा

    «    »
 09-Sep-2024

वी.एस. पलानीवेल बनाम पी. श्रीराम सी.एस. लिक्विडेटर आदि

"नियम 12 को अनिवार्य माना जाएगा क्योंकि इसमें शेष विक्रय मूल्य का भुगतान न करने की स्थिति में परिणाम की बात कही गई है।"

न्यायमूर्ति हिमा कोहली

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

हाल ही में वी.एस. पलानीवेल बनाम पी. श्रीराम सी.एस. लिक्विडेटर आदि के मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना है कि इंडियन इन्साॅल्वेंसी एंड बैंकरप्सी बोर्ड (लिक्विडेटर प्रक्रिया) विनियम, 2016 (IBBIR) की अनुसूची 1 के अंतर्गत नियम 12 अनिवार्य प्रकृति का है तथा लिक्विडेटर अपने विवेक के अधीन नियम के अंतर्गत उल्लिखित समय-सीमा को नहीं बढ़ा सकता है।

वी.एस. पलानीवेल बनाम पी. श्रीराम सीएस लिक्विडेटर इत्यादि मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • वर्तमान मामले में, श्री लक्ष्मी होटल्स प्राइवेट लिमिटेड (कॉर्पोरेट देनदार (CD), जिसे आगे कंपनी के रूप में संदर्भित किया जाएगा) नामक एक कंपनी चार सदस्यों (शेयरधारकों: अपीलीय, उनकी पत्नी, उनकी एवं उनकी पुत्रवधू) द्वारा स्थापित की गई थी।
  • कंपनी ने वर्ष 2006 में वित्तीय लेनदार से ऋण लिया था।
  • दोनों के बीच एक विवाद उत्पन्न हुआ, जिसके विरुद्ध वित्तीय लेनदार (FC) ने पक्षों के बीच मध्यस्थता खंड लागू किया।
  • मध्यस्थ ने वित्तीय कंपनी के पक्ष में निर्णय पारित किया तथा जब कंपनी ने मद्रास उच्च न्यायालय में अपील की तो उच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया।
  • कंपनी द्वारा वित्तीय कंपनी को दी गई राशि का भुगतान किये जाने के परिणामस्वरूप वित्तीय कंपनी ने कंपनी के विरुद्ध कॉर्पोरेट दिवाला समाधान प्रक्रिया (CIRP) आरंभ करने के लिये अधिकरण (AA) के समक्ष आवेदन दायर किया।
  • प्रतिवादी संख्या 2 (अंतरिम समाधान पेशेवर [IRP], समाधान पेशेवर [RP] और परिसमापक) को नियुक्त किया गया, लेकिन कंपनी के पुनरुद्धार के लिये उनके द्वारा कोई समाधान योजना की अनुशंसा नहीं की गई।
  • लेनदारों की समिति ने कंपनी के परिसमापन के लिये समाधान योजना की अनुशंसा की।
  • मूल्यांकन रिपोर्ट प्रस्तुत की गई, तथा नीलामी की तिथि आरक्षित मूल्य के साथ तय की गई।
  • यह आरोप लगाया गया कि परिसमापक ने अपीलकर्त्ता से स्टेकहोल्डर्स कमेटी में एक व्यक्ति को नामित करने का अनुरोध किया, जिसे अपीलकर्त्ता ने करने में विफल रहा।
  • प्रथम नीलामी में कोई बोली प्राप्त नहीं हुई, जिसके कारण आरक्षित मूल्य मूल आरक्षित मूल्य से 25% कम कर दिया गया।
  • मैसर्स केएमसी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल्स (इंडिया) लिमिटेड (क्रेता) बयाना राशि जमा करके सफल बोली लगाने वाले के रूप में उभरा।
  • अपीलकर्त्ता ने तर्क दिया कि शेष राशि IBBIR के विनियमन 33 के अंतर्गत अनुसूची-I के नियम 12 के अनुसार 90 दिनों के अंतर्गत भुगतान की जानी चाहिये।
  • शेष राशि की मांग करने वाला पत्र 24 दिसंबर 2019 को भेजा गया तथा क्रेता को 26 दिसंबर 2019 को प्राप्त हुआ।
  • यह तर्क दिया गया कि 90 दिनों की सीमा की गणना के लिये 25 दिसंबर से तिथि मानी जाएगी।
  • जबकि क्रेता ने तर्क दिया कि जिस तिथि को पत्र उनके संज्ञान में आया, उसे 90 दिनों की सीमा के लिये माना जाना चाहिये अर्थात् 26 दिसंबर 2019।
  • जबकि क्रेता ने तर्क दिया कि जिस तिथि को पत्र उसके संज्ञान में आया, उसे 90 दिन की सीमा के रूप में माना जाना चाहिये, अर्थात् 26 दिसंबर 2019।
  • अपीलकर्त्ता ने नीलामी कार्यवाही को रद्द करने के लिये AA के समक्ष आवेदन दायर किया, जिसे खारिज कर दिया गया।
  • जबकि क्रेता ने शेष विक्रय प्रतिफल का भुगतान करने के लिये समय बढ़ाने के लिये AA के समक्ष आवेदन दायर किया।
    • कोविड-19 महामारी के कारण और
    • नीलाम की गई संपत्ति को कुर्क करने के लिये आयकर प्राधिकरण द्वारा पारित आदेश के कारण
  • क्रेता द्वारा आवेदन को AA द्वारा स्वीकार कर लिया गया तथा शेष विक्रय मूल्य जमा करने के लिये दिये गए समय को क्रमशः केंद्र सरकार/राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन हटाए जाने तक के लिये स्थगित कर दिया गया।
  • हालाँकि क्रेता ने 24 अगस्त 2020 को शेष राशि का भुगतान किया तथा 28 अगस्त 2020 को विक्रय विलेख निष्पादित किया गया।
  • विक्रय विलेख के एक महीने के बाद अपीलकर्त्ता ने समय बढ़ाने के लिये AA के आदेश को चुनौती दी तथा विक्रय विलेख के निष्पादन को चुनौती दी।
  • AA ने निष्पादन विक्रय विलेख को रद्द करने के लिये अपीलकर्त्ता के आवेदन को खारिज कर दिया।
  • AA के निर्णय से व्यथित होकर कंपनी ने कंपनी-अपील दायर की जिसे अधिकरण ने खारिज कर दिया।
  • इसके बाद अपीलकर्त्ता ने निम्नलिखित आधारों पर उच्चतम न्यायालय के समक्ष वर्तमान अपील दायर की:
    • नीलामी कार्यवाही को रद्द करने के संबंध में AA द्वारा पारित आदेश को वापस लेने के लिये।
    • केंद्र/राज्य लॉकडाउन हटाए जाने के बाद शेष विक्रय प्रतिफल जमा करने के लिये समय बढ़ाने के लिये।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि IBBIR का विनियमन 47A, किसी परिसमापन प्रक्रिया के संबंध में किसी कार्य को पूरा करने के लिये समय-सीमा की गणना के लिये प्रावधानित किया गया था, जिसे लॉकडाउन की घोषणा के कारण पूरा नहीं किया जा सका था।
    • इसलिये, उच्चतम न्यायालय ने अपीलकर्त्ता के इस तर्क को खारिज कर दिया कि AA ने यह स्वीकार नहीं किया है कि कोविड-19 लॉकडाउन शेष विक्रय राशि जमा करने के लिये समय बढ़ाने का वैध कारण था।
  • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि:
    • IBBIR के नियम 12 का पहला प्रावधान यह है कि यदि भुगतान 30 दिनों के बाद किया जाता है, तो सफल बोली लगाने वाले को देय राशि पर 12 प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा।
    • IBBIR के नियम 12 का दूसरा प्रावधान भुगतान की बाहरी सीमा निर्धारित करता है तथा प्रावधानित करता है कि यदि भुगतान 90 दिनों के अंदर प्राप्त नहीं होता है, तो विक्रय रद्द हो जाएगी।
    • उच्चतम न्यायालय ने 'कर सकता है' और 'करेगा' शब्दों के प्रयोग पर ज़ोर देते हुए कहा कि विधि का उद्देश्य इसे अनिवार्य मानना ​​है क्योंकि इसमें उच्चतम बोली लगाने वाले के द्वारा 90 दिनों की निर्धारित समय-सीमा के अंदर शेष विक्रय राशि का भुगतान न करने की स्थिति में परिणाम की परिकल्पना की गई है, जो कि परिसमापक द्वारा विक्रय को रद्द करना है।
    • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि AA ने पर्याप्त कारण बताए जाने पर शेष विक्रय राशि जमा करने के लिये समय बढ़ाने के लिये नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल नियम, 2016 के नियम 11 के अंतर्गत अपनी अंतर्निहित शक्तियों के साथ अर्थात् कोविड-19 महामारी के कारण देशव्यापी लॉकडाउन के मद्देनज़र भारतीय बैकरप्सी कोड, 2016 (IBC) की धारा 35 के अंतर्गत सांविधिक शक्तियों का प्रयोग किया।
  • उच्चतम न्यायालय ने आगे कहा कि आयकर द्वारा कुर्की आदेश को हटाने के लिये AA द्वारा अनुमति दिये जाने के बाद भी नीलामी क्रेता की ओर से शेष विक्रय राशि जमा कराने में चूक हुई है।
    • न्यायालय ने आगे कहा कि क्रेता द्वारा भूमि पर अस्पताल के विकास को ध्यान में रखते हुए विक्रय विलेख को रद्द करना बहुत कठोर होगा, क्योंकि अपीलकर्त्ता भी उचित समय में आवेदन दायर करने में विफल रहा (उसने विक्रय विलेख के निष्पादन के 19 महीने बाद आवेदन दायर किया)।
    • इसलिये, उच्चतम न्यायालय ने क्रेता को अपीलकर्त्ता को अतिरिक्त राशि का भुगतान करने का आदेश दिया।

IBBIR का नियम 12 क्या है?

  • यह IBBIR की अनुसूची 1 के अंतर्गत दिया गया है, जिसमें विक्रय के तरीके के विषय में नियम प्रावधानित किये गए हैं।
  • IBBIR का विनियमन 33 विक्रय के तरीके की प्रक्रिया प्रावधानित करता है।
  • नियम 12 को IBBIR के विनियमन 33 के साथ अध्यारोपित किया जाना चाहिये, जिसके अंतर्गत:
    • खंड (1) में कहा गया है कि परिसमापक आमतौर पर अनुसूची I में निर्दिष्ट तरीके से नीलामी के माध्यम से कॉर्पोरेट देनदार की परिसंपत्तियों को बेचेगा।
    • खंड (2) में कहा गया है कि परिसमापक विनियमन 31 A के अंतर्गत परामर्श समिति के साथ पूर्व परामर्श के बाद ही अनुसूची I में निर्दिष्ट तरीके से निजी विक्रय के माध्यम से कॉर्पोरेट देनदार की परिसंपत्तियों को बेच सकता है।
    • परिसंपत्ति नाशवान है;
      • यदि इसे तुरंत नहीं बेचा गया तो परिसंपत्ति के मूल्य में काफी गिरावट आने की संभावना है।
      • ऐसी विक्रय के लिये न्यायनिर्णायक प्राधिकरण की पूर्व अनुमति प्राप्त कर ली गई है:
    • बशर्ते कि परिसमापक, न्यायनिर्णायक प्राधिकरण की पूर्व अनुमति के बिना, निजी विक्रय के माध्यम से परिसंपत्तियों को नहीं बेचेगा-
      • कॉर्पोरेट देनदार का कोई संबंधित पक्ष;
      • उसका संबंधित पक्ष;
        या
      • उसके द्वारा नियुक्त कोई पेशेवर।
    • खंड (3) में कहा गया है कि यदि परिसमापक के पास यह मानने का कारण है कि क्रेताओं, या कॉर्पोरेट देनदार के संबंधित पक्षों व क्रेताओं, या लेनदारों व क्रेता के बीच कोई संलिप्तता है, तो वह परिसंपत्ति की विक्रय के साथ आगे नहीं बढ़ेगा तथा इस संबंध में न्यायनिर्णायक अधिकरण को एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा, जिसमें संलिप्त पक्षों के विरुद्ध उचित आदेश की मांग की जाएगी।
  • IBBIR का नियम 12 इस प्रकार है:
    • खंड (1) में कहा गया है कि नीलामी की समाप्ति पर, उच्चतम बोली लगाने वाले को ऐसी मांग की तिथि से नब्बे दिन या खंड 3 के अंतर्गत नीलामी नोटिस में उल्लिखित अवधि के अंदर शेष विक्रय प्रतिफल प्रदान करने के लिये आमंत्रित किया जाएगा।
    • यह प्रावधान किया गया है कि तीस दिनों के उपरांत किये गए भुगतान पर बारह प्रतिशत की दर से ब्याज लगेगा।
    • इसमें आगे यह भी प्रावधान किया गया है कि यदि इस खंड के अंतर्गत निर्धारित अवधि के अंदर भुगतान प्राप्त नहीं होता है तो विक्रय रद्द कर दिया जाएगा।
  • 2024 के संशोधन से पहले इस नियम का खंड (1) इस प्रकार था, "नीलामी समाप्त होने पर, उच्चतम बोली लगाने वाले को ऐसी मांग की तिथि से नब्बे दिनों के अंदर शेष विक्रय प्रतिफल प्रदान करने के लिये आमंत्रित किया जाएगा"।