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सांविधानिक विधि

मैनुअल स्कैवेंजिंग

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 23-Aug-2024

श्रमिक जनता संघ बनाम महाराष्ट्र राज्य

“न्यायालय ने महाराष्ट्र सरकार को मैनुअल स्कैवेंजिंग की घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिये एक सोशल मीडिया हैंडल बनाने का निर्देश दिया है।”

न्यायमूर्ति नितिन जामदार एवं मिलिंद सथाये

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने हाल ही में महाराष्ट्र सरकार को मैनुअल स्कैवेंजिंग की घटनाओं की रिपोर्टिंग के लिये एक सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म स्थापित करने का निर्देश दिया है। इस पहल का उद्देश्य मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार के निषेध एवं उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 को लागू करने में ज़िला स्तरीय एवं सतर्कता समितियों की सहायता करना है, ताकि मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रथाओं के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित की जा सके।

  • न्यायमूर्ति नितिन जामदार एवं न्यायमूर्ति मिलिंद सथाये ने श्रमिक जनता संघ बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

श्रमिक जनता संघ बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • श्रमिक जनता संघ ने महाराष्ट्र में मैनुअल स्कैवेंजिंग के मुद्दे पर बॉम्बे उच्च न्यायालय में याचिका दायर की।
  • याचिका में इस प्रथा के कारण मरने वाले मैनुअल स्कैवेंजरों के परिवारों के लिये उचित क्षतिपूर्ति की भी मांग की गई।
  • महाराष्ट्र सरकार ने अपने नोडल अधिकारी (आयुक्त, समाज कल्याण विभाग, पुणे) के माध्यम से पहले दावा किया था कि राज्य के सभी 36 ज़िले मैनुअल स्कैवेंजिंग से मुक्त हैं।
  • यह दावा 2 अगस्त, 2023 को सभी 36 ज़िलों के कलेक्टरों द्वारा भारत सरकार को सौंपे गए प्रमाण-पत्रों पर आधारित था।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने इस दावे का खंडन करते हुए राज्य भर के कुछ ज़िलों में अप्रैल एवं अगस्त 2024 में होने वाली मैनुअल स्कैवेंजिंग की घटनाओं का उदाहरण दिया।
  • मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोजगार का निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013, इस मुद्दे को नियंत्रित करने वाली प्राथमिक विधि है।
  • याचिकाकर्त्ताओं ने यह भी प्रश्न किया कि यदि राज्य के रिकॉर्ड के अनुसार मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त कर दिया गया था, तो 81 मामलों में क्षतिपूर्ति क्यों दिया गया।
  • अधिनियम मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध सुनिश्चित करने के लिये ज़िला स्तरीय समितियों एवं सतर्कता समितियों के गठन को अनिवार्य बनाता है।
  • राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अप्रैल 2024 में कुछ मैनुअल स्कैवेंजरों की मृत्यु के विषय में प्रश्न किये थे, जो इस मामले के लिये प्रासंगिक है।
  • यह मामला डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ के मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्णय के आलोक में 2013 अधिनियम की धारा 2(g) के अनुसार "मैनुअल स्कैवेंजर" की परिभाषा की व्याख्या से जुड़ा है।
  • याचिका में मैनुअल स्कैवेंजिंग को खत्म करने के राज्य के दावों एवं इसके जारी रहने की कथित घटनाओं के बीच विसंगति को दूर करने की मांग की गई है।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

  • न्यायालय ने मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के राज्य के दावे एवं याचिकाकर्त्ताओं द्वारा इसके जारी रहने के साक्ष्य के बीच विसंगति को नोट किया, जिससे महाराष्ट्र में मैनुअल स्कैवेंजिंग की वर्तमान स्थिति की आगे की जाँच की आवश्यकता हुई।
  • न्यायालय ने मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार के निषेध एवं उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 की धारा 2(g) के अनुसार "मैनुअल स्कैवेंजर" की परिभाषा का पालन करने के महत्त्व पर ज़ोर दिया, जैसा कि डॉ. बलराम सिंह बनाम भारत संघ एवं अन्य, (2023) में उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्वचन किया गया था।
  • न्यायालय ने पाया कि ज़िला कलेक्टरों द्वारा ज़िलों को मैनुअल स्कैवेंजिंग से मुक्त घोषित करने वाले प्रमाण-पत्र 2023 की स्थिति से संबंधित थे, न कि वर्तमान स्थिति से, इसलिये मैनुअल स्कैवेंजिंग के हालिया मामलों की नए सिरे से जाँच की आवश्यकता है।
  • न्यायालय ने राज्य, ज़िला एवं सतर्कता समितियों सहित 2013 अधिनियम के अंतर्गत अनिवार्य समितियों की संरचना एवं कार्यप्रणाली के संबंध में अधिक पारदर्शिता व पहुँच की आवश्यकता को मान्यता दी।
  • न्यायालय ने कहा कि ईमेल पते एवं सोशल मीडिया हैंडल जैसे समर्पित संचार चैनलों के निर्माण से मैनुअल स्कैवेंजिंग की घटनाओं की रिपोर्टिंग व समाधान में अधिक प्रभावी ढंग से सहायता मिल सकती है।
  • न्यायालय ने मैनुअल स्कैवेंजिंग को समाप्त करने के लिये चल रहे प्रयासों को सुनिश्चित करने के लिये 2013 अधिनियम के अंतर्गत समितियों द्वारा की गई कार्यवाही के नियमित अपडेट एवं उचित दस्तावेज़ीकरण के महत्त्व पर ध्यान दिया।

मैनुअल स्कैवेंजिंग क्या है?

  • परिचय:
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग को शुष्क शौचालयों, सीवरों एवं अन्य स्वच्छता सुविधाओं से मानव मल को हाथ से साफ करने, ले जाने, निपटाने या अन्यथा संभालने की प्रथा के रूप में परिभाषित किया जाता है।
    • इस प्रथा में उचित सुरक्षात्मक उपकरण या स्वच्छता उपकरणों के बिना मानव अपशिष्ट को मैन्युअल रूप से हटाना शामिल है, अक्सर बाल्टी, झाड़ू एवं टोकरियों जैसे अल्पविकसित उपकरणों का उपयोग करके।
    • हाथ से मैला ढोने के काम में संलग्न होने के कारण अक्सर खतरनाक कार्य स्थितियों के कारण मौतें होती हैं, विशेष रूप से पर्याप्त सुरक्षा उपकरणों के बिना मैनहोल एवं सीवर की सफाई के कारण।
  • जाति व्यवस्था से संबंध
    • यह भारत में जाति व्यवस्था से अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है, जिसके अंतर्गत कुछ सामाजिक रूप से हाशिये पर पड़े समुदायों के लोगों को पारंपरिक रूप से इस व्यवसाय में रखा जाता है।
  • विधिक स्थिति
    • हाथ से मैला ढोने की प्रथा भारतीय संविधान में प्रदत्त मानवीय गरिमा एवं मौलिक अधिकारों का गंभीर उल्लंघन है।
    • मैनुअल स्कैवेंजरों का रोज़गार एवं शुष्क शौचालयों का निर्माण (निषेध) अधिनियम, 1993 ने भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग की प्रथा को स्पष्ट रूप से प्रतिबंधित कर दिया।
    • इस अधिनियम ने मैनुअल स्कैवेंजिंग पर प्रतिबंध को और सुदृढ़ किया तथा इस प्रथा में लगे व्यक्तियों के पुनर्वास का प्रावधान किया।
    • विधायी प्रतिबंधों के बावजूद, मैनुअल स्कैवेंजिंग प्रथाएँ मौजूदा विधियों का उल्लंघन हैं तथा संवैधानिक सुरक्षा उपायों को लागू करने में विफलता है।
    • मैनुअल स्कैवेंजिंग के उन्मूलन के लिये न केवल सख्त विधि प्रवर्तन की आवश्यकता है, बल्कि प्रभावित व्यक्तियों एवं समुदायों के लिये व्यापक सामाजिक-आर्थिक पुनर्वास उपायों की भी आवश्यकता है।

मैनुअल स्कैवेंजर्स के लिये संवैधानिक सुरक्षा उपाय क्या हैं?

संवैधानिक उपबंध:

  • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के अंतर्गत मैनुअल स्कैवेंजरों सहित सभी नागरिकों को विधि के समक्ष समानता एवं विधियों के समान संरक्षण की गारंटी दी गई है।
  • संविधान का अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता को समाप्त करता है तथा किसी भी रूप में इसके आचरण पर रोक लगाता है, जो विशेष रूप से मैनुअल स्कैवेंजरों के लिये प्रासंगिक है, जिन्हें अक्सर सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रदान किया गया जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार मैनुअल स्कैवेंजरों तक विस्तारित होता है, जो उनकी गरिमा एवं आजीविका की रक्षा करता है।
  • संविधान का अनुच्छेद 23 मानव तस्करी एवं बलात् श्रम पर प्रतिबंध लगाता है, जिसका उपयोग मैनुअल स्कैवेंजरों के शोषण को रोकने के लिये किया जा सकता है।

मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध एवं उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013 क्या है?

परिचय:

  • यह अधिनियम किसी भी व्यक्ति को मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में रोज़गार या नियुक्ति पर रोक लगाता है।
  • 2013 का अधिनियम पहचाने गए मैनुअल स्कैवेंजरों के पुनर्वास को अनिवार्य बनाता है, जिसमें वैकल्पिक रोज़गार, वित्तीय सहायता एवं अन्य सहायता उपायों का प्रावधान शामिल है।
  • स्थानीय अधिकारियों को अपने अधिकार क्षेत्र में मैनुअल स्कैवेंजरों एवं अस्वास्थ्यकर शौचालयों की पहचान करने के लिये सर्वेक्षण करने के लिये अधिनियम के अंतर्गत विधिक रूप से बाध्य किया गया है।
  • अधिनियम अपने प्रावधानों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न स्तरों पर सतर्कता समितियों एवं निगरानी समितियों सहित एक व्यापक संस्थागत तंत्र स्थापित करता है।
  • अधिनियम में प्रावधान है कि अपराध संज्ञेय एवं गैर-ज़मानती हैं, जो मैनुअल स्कैवेंजिंग से संबंधित उल्लंघनों की गंभीरता पर ज़ोर देता है।

प्रमुख विधिक प्रावधान:

  • धारा 5 अस्वास्थ्यकर शौचालयों के निर्माण एवं मैनुअल स्कैवेंजरों के नियोजन पर रोक लगाती है तथा मौजूदा अस्वास्थ्यकर शौचालयों को बदलने या ध्वस्त करने का आदेश देती है।
  • धारा 7 सीवरों एवं सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के लिये व्यक्तियों की नियुक्ति या नियोजन पर रोक लगाती है।
  • धारा 11 एवं धारा 14 के अंतर्गत नगर पालिकाओं व पंचायतों को क्रमशः शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों में मैनुअल स्कैवेंजरों की पहचान करने के लिये सर्वेक्षण करने की आवश्यकता होती है।
  • धारा 13 और धारा 16 में पहचाने गए मैनुअल स्कैवेंजरों के लिये पुनर्वास उपाय प्रदान किये गए हैं, जिनमें फोटो पहचान-पत्र, एकमुश्त नकद सहायता, बच्चों के लिये छात्रवृत्ति, आवास, कौशल विकास प्रशिक्षण एवं वैकल्पिक व्यवसाय के लिये सब्सिडी का प्रावधान शामिल है।
  • धारा 18 अधिनियम के कार्यान्वयन के लिये स्थानीय अधिकारियों एवं ज़िला मजिस्ट्रेटों को शक्तियाँ प्रदान करने एवं कर्त्तव्यों को लागू करने के लिये उपयुक्त सरकार को सशक्त बनाती है।
  • धारा 20 में निरीक्षकों की नियुक्ति का प्रावधान है, जिन्हें परिसर की जाँच करने, निरीक्षण करने एवं मैनुअल स्कैवेंजरों के रोज़गार से संबंधित साक्ष्य एकत्र करने की शक्तियाँ दी गई हैं।
  • धारा 22 इस अधिनियम के अंतर्गत अपराधों को संज्ञेय एवं गैर-ज़मानती बनाती है।
  • धारा 24 एवं धारा 26 में अधिनियम के कार्यान्वयन की देखरेख के लिये क्रमशः ज़िला एवं उप-मंडल स्तर पर सतर्कता समितियों व एक राज्य निगरानी समिति के गठन का प्रावधान है।
  • धारा 33 स्थानीय प्राधिकारियों पर यह दायित्व आरोपित करती है कि वे मलमूत्र को हाथ से साफ करने की आवश्यकता को समाप्त करने के लिये सीवरों एवं सेप्टिक टैंकों की सफाई के लिये आधुनिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करें।
  • धारा 36 उपयुक्त सरकार को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये नियम बनाने का अधिकार देती है।