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सिविल कानून

अंतःकालीन लाभ

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 08-Apr-2025

अमृतपाल जगमोहन सेठी बनाम हरिभाऊ पुंडलिक इंगोले

"चूँकि बेदखली का आदेश महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत पारित किया गया था, इसलिये विधि की स्थापित स्थिति यह है कि बेदखली का आदेश पारित होने पर ही मकान मालिक एवं किरायेदार का रिश्ता समाप्त हो जाता है।"

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ

स्रोत: उच्चतम न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका एवं न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयाँ की पीठ ने कहा कि मकान मालिक एवं किरायेदार का संबंध तभी समाप्त हो जाता है जब बेदखली का आदेश पारित हो जाता है।

  • उच्चतम न्यायालय ने अमृतपाल जगमोहन सेठी बनाम हरिभाऊ पुंडलिक इंगोले (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।

अमृतपाल जगमोहन सेठी बनाम हरिभाऊ पुंडलिक इंगोले (2025) मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान तथ्यों में, अपीलकर्त्ता किराएदार था एवं मकान मालिक प्रतिवादी था। 
  • प्रतिवादी ने महाराष्ट्र किराया नियंत्रण अधिनियम, 1999 के अंतर्गत विभिन्न आधारों पर बेदखली के लिये वाद दायर किया। 
  • ट्रायल कोर्ट द्वारा कब्जे का आदेश पारित किया गया तथा अपीलकर्त्ता को बेदखल कर दिया गया। 
  • इस मामले में मुद्दा डिक्री के ऑपरेटिव भाग में जारी निर्देश के विषय में था, जो इस प्रकार है: "सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश XX नियम 12 (1) (c) के अंतर्गत भविष्य के अंतःकालीन लाभ की जाँच वाद की तिथि से लेकर प्रतिवादी द्वारा वादी को वाद की संपत्ति के खाली शांतिपूर्ण कब्जे की डिलीवरी तक की जानी चाहिये"।
  • इस प्रकार, मामला उच्चतम न्यायालय के समक्ष था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि विधि की यह स्थापित स्थिति है कि किराएदार एवं मकान मालिक का रिश्ता तभी खत्म होता है जब बेदखली का आदेश पारित हो जाता है। 
  • न्यायालय ने आदेश के ऑपरेटिव भाग को संशोधित किया जो इस प्रकार है:
    • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के आदेश XX नियम 12(1)(c) के अंतर्गत भावी अंतःकालीन लाभ की जाँच 29 मार्च, 2014 से प्रतिवादी द्वारा वादी को वाद संपत्ति के खाली कब्जे की डिलीवरी तक की जाएगी।
  • इस प्रकार न्यायालय ने उपरोक्त संशोधन के अधीन अपील को स्वीकार कर लिया।

अंतःकालीन लाभ क्या है?

  • धारा 2 (12) परिभाषा
    • अंतःकालीन लाभ वह धन है जो किसी व्यक्ति द्वारा दोषपूर्ण तरीके से संपत्ति पर कब्जा करने के बाद उसके असली मालिक को दिया जाता है। 
    • इस धन में शामिल हैं:
      • संपत्ति पर दोषपूर्ण तरीके से कब्जा करते समय उससे वास्तव में प्राप्त लाभ।
      • वे लाभ जो सामान्य प्रयास से उचित रूप से अर्जित किये जा सकते थे।
      • इन लाभों पर ब्याज।
    • दोषपूर्ण कब्जेदार द्वारा किये गए सुधारों से प्राप्त लाभ को इसमें शामिल नहीं किया जाता है।
  • आदेश XX नियम 12 = कब्जे एवं अंतःकालीन लाभ के लिये डिक्री
    • नियम 12 (1) उन वाद पर लागू होता है, जहाँ कोई व्यक्ति अचल संपत्ति (भूमि, भवन) पर कब्ज़ा वापस पाने की कोशिश कर रहा हो तथा किराया या अंतःकालीन लाभ की मांग कर रहा हो। 
    • न्यायालय निम्नलिखित को शामिल करते हुए डिक्री जारी कर सकता है:
      • संपत्ति का कब्ज़ा।
      • वाद दायर होने से पहले बकाया राशि।
      • वाद के दौरान और उसके बाद बकाया राशि।
    • न्यायालय यह आदेश दे सकता है कि सही मालिक को संपत्ति का कब्ज़ा वापस मिल जाए। 
    • वाद-पूर्व किराया: न्यायालय निम्न में से कोई भी आदेश दे सकता है:
      • वाद आरंभ होने से पहले बकाया किराए की राशि सीधे बताना। 
      • या इस राशि का निर्धारण करने के लिये जाँच का आदेश देना।
    • पूर्व-वाद अंतःकालीन लाभ: न्यायालय या तो:
      • वाद आरंभ होने से पहले बकाया लाभ की राशि सीधे बताना। 
      • या इस राशि का निर्धारण करने के लिये जाँच का आदेश देना।
    • भविष्य में बकाया राशि: न्यायालय वाद दायर होने के समय से लेकर इनमें से किसी एक के घटित होने तक किराये या अंतःकालीन लाभ की जाँच का आदेश दे सकता है:
      • सही मालिक को कब्ज़ा वापस मिल जाता है।
      • दोषपूर्ण कब्ज़ा करने वाला व्यक्ति उचित विधिक नोटिस के साथ कब्ज़ा छोड़ देता है।
      • न्यायालय के निर्णय की तिथि़ से तीन वर्ष बीत जाते हैं।