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हेतुक

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 14-Aug-2024

सुनील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य

“जहाँ प्रत्यक्ष एवं विश्वसनीय साक्ष्य उपस्थित हों, वहाँ हेतुक पीछे रह जाता है।”

न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता, न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति राजीव गुप्ता एवं न्यायमूर्ति मोहम्मद अज़हर हुसैन इदरीसी की पीठ ने कहा कि जहाँ प्रत्यक्ष साक्ष्य संदिग्ध प्रतीत होते हैं, वहाँ हेतुक का अस्तित्व या अनुपस्थिति महत्त्वपूर्ण हो जाती है।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सुनील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

सुनील बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या है?

15 जुलाई 2006 को रात्रि लगभग 9:30 बजे शिकायतकर्त्ता विनोद कुमार ने एक तहरीर प्रस्तुत की, जिसमें घटना वाले दिन की घटना का विवरण था।

इसके अनुसार 7:30 बजे जब शिकायतकर्त्ता वापस लौट रहा था तो उसने देखा कि सुनील (आरोपी) अपनी पत्नी को ज़मीन पर पटकने के बाद उसके सिर एवं चेहरे पर ईंट से वार कर रहा था।

उसके चिल्लाने एवं रोने पर कई अन्य लोग मौके पर एकत्र हो गए।

विवेचना प्रारंभ की गई तथा आरोपी को गिरफ्तार कर लिया गया।

भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 304 एवं धारा 452 के अधीन आरोप-पत्र दायर किया गया।

अभियोजन पक्ष ने साक्ष्य प्रस्तुत किये तथा उसके बाद दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 313 के अधीन आरोपी की जाँच की गई।

बचाव पक्ष ने कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया।

वर्तमान अपील अतिरिक्त ज़िला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित दोषसिद्धि के आदेश के विरुद्ध उच्च न्यायालय में दायर की गई थी।

न्यायालय की क्या टिप्पणियाँ थीं?

इस मामले में उच्च न्यायालय ने माना कि जहाँ परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं, वहाँ पूरी शृंखला अपीलकर्त्ता के अपराध की ओर इशारा करती है।

न्यायालय ने माना कि अभियोजन पक्ष ने स्वतंत्र साक्षियों की उपलब्धता और मौके पर उनकी उपस्थिति के बावजूद उनसे पूछताछ नहीं की है।

उपरोक्त निर्णय देते हुए न्यायालय ने साक्ष्य की सराहना के लिये कुछ बिंदुओं को दोहराया।

FIR दर्ज करने में विलंब:

न्यायालय ने कहा कि विधि में यह तथ्य स्थापित है कि जब FIR दर्ज करने में विलंब होता है तो इससे अभियोजन पक्ष के मामले पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ता।

यदि इसका स्पष्टीकरण नहीं दिया जाता है तो अभियोजन पक्ष के मामले को केवल इसी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता, बल्कि न्यायालय का यह कर्त्तव्य है कि वह अभियोजन पक्ष के साक्ष्य की अतिरिक्त सावधानी एवं सतर्कता के साथ जाँच करे।

संबंधित एवं इच्छुक साक्षी के मध्य अंतर:

न्यायालय ने माना कि संबंधित साक्षी, हितबद्ध साक्षी के समतुल्य नहीं है।

हितबद्ध साक्षी वह होता है जिसकी वाद के परिणाम में, किसी सिविल मामले के निर्णय में या अभियुक्त को दण्डित होते देखने में रुचि होती है।

हेतुक:

अपीलकर्त्ता का कहना था कि अभियुक्त पर कोई उद्देश्य आरोपित नहीं किया गया था, इसलिये अभियोजन पक्ष का मामला विफल होना चाहिये।

इस संबंध में न्यायालय ने माना कि आपराधिक न्याय के विधि का यह स्थापित सिद्धांत है कि उद्देश्य किसी भी आपराधिक कृत्य का अनिवार्य अंग है।

उद्देश्य किसी अपराध को करने का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है।

न्यायालय ने पूर्व उदाहरणों पर विश्वास करते हुए कहा कि जहाँ प्रत्यक्ष एवं विश्वसनीय साक्ष्य हैं, वहाँ हेतुक पीछे रह जाता है।

हालाँकि जहाँ प्रत्यक्ष साक्ष्य संदिग्ध प्रतीत होता है, वहाँ हेतुक का अस्तित्व या अनुपस्थिति कुछ महत्त्व प्राप्त कर लेती है।

वर्तमान मामले में कोई प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं है। यहाँ तक ​​कि तथाकथित प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों की उपस्थिति भी संदिग्ध है। इसलिये हेतुक कुछ महत्त्व प्राप्त कर लेता है।

इस प्रकार, उच्च न्यायालय ने आरोपी को दोषमुक्त कर दिया।

हेतुक क्या है?

अभिप्राय:

प्रेरणा एक ऐसी इच्छा है जो आचरण को प्रेरित करती है। यह एक ऐसी इच्छा है जो व्यावहारिक प्रोत्साहन या कार्यवाही के लिये उत्सुकता में परिवर्तित हो जाती है।

प्रेरणा एक मानसिक स्थिति है, एक इच्छा है, जो आवश्यक रूप से उस कार्य से पहले होती है जिसके लिये यह उत्तेजना प्रदान करती है।

प्रेरणा वह भावना है जो किसी कार्य को करने के लिये प्रेरित करती है।

हेतुक एवं आशय के मध्य अंतर:

आशय से तात्पर्य है किसी ऐसे कार्य में शामिल होने का सचेत उद्देश्य या उद्देश्य जिसे विधि में वर्जित है।

आशय उस तात्कालिक उद्देश्य को संदर्भित करता है जिसके लिये कार्य किया जाता है। हालाँकि हेतुक कार्य का गुप्त उद्देश्य है।

आशय उस उद्देश्य को संदर्भित करता है जिसके लिये कार्य किया जाता है तथा आशय वह कारण या वजह है जो किसी को इसे करने के लिये प्रेरित करता है।

आशय किसी व्यक्ति की जानबूझकर की गई इच्छा को दर्शाता हुआ कार्य के पीछे के लक्ष्य या उद्देश्य को दर्शाता है। उदाहरण के लिये, चाकू खरीदने वाला व्यक्ति इसे किसी भी उद्देश्य से खरीद सकता है- हत्या, खाना बनाना या कुछ और।

दूसरी ओर, आशय किसी कार्य के पीछे अंतर्निहित कारण या प्रेरणा को संदर्भित करता है। हेतुक किसी व्यक्ति की प्रेरणाओं या हितों या चिंताओं के रूप में हो सकता है। उदाहरण के लिये, कोई व्यक्ति वित्तीय हताशा, लालच आदि के कारण चोरी कर सकता है।

हेतुक की प्रासंगिकता:

भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 (IEA) की धारा 8 के अधीन हेतुक की प्रासंगिकता का प्रावधान किया गया है।

IEA की धारा 5 के अनुसार साक्ष्य केवल मुद्दे एवं प्रासंगिक तथ्य के आधार पर दिया जा सकता है।

IEA की धारा 8 में प्रावधान है कि कोई भी तथ्य प्रासंगिक है जो दर्शाता है या गठित करता है:

हेतुक

तैयारी या

आचरण

किसी भी मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य का

आचरण के संबंध में धारा 8 निम्नलिखित प्रावधान करती है:

किसका आचरण प्रासंगिक है?

पक्षकार

पक्षकार का अभिकर्त्ता

पीड़ित

किस प्रकार का आचरण प्रासंगिक है?

वाद या कार्यवाही के संदर्भ में आचरण

मुद्दे या प्रासंगिक तथ्य से प्रभावित या प्रभावित आचरण

यह पिछला या बाद का आचरण हो सकता है

धारा 8 के स्पष्टीकरण 1 में यह प्रावधान है कि इस धारा में "आचरण" शब्द के अंतर्गत कथन शामिल नहीं हैं, जब तक कि वे कथन कथनों के अतिरिक्त अन्य कार्यों के साथ न हों तथा उन्हें स्पष्ट न करें; किंतु यह स्पष्टीकरण इस अधिनियम की किसी अन्य धारा के अंतर्गत कथनों की प्रासंगिकता को प्रभावित नहीं करेगा।

धारा 8 की व्याख्या 2 में यह प्रावधान है कि जब किसी व्यक्ति का आचरण प्रासंगिक हो, तो उसके समक्ष या उसकी उपस्थिति और विचारण में दिया गया कोई भी कथन, जो ऐसे आचरण को प्रभावित करता है, प्रासंगिक है। यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 (BSA) की धारा 6 में निहित है।

उद्देश्य के साक्ष्यात्मक मूल्य पर निर्णयज विधियाँ क्या हैं?

बादाम सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2004)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि "यद्यपि विश्वसनीय प्रत्यक्ष साक्ष्य होने पर हेतुक का अस्तित्व महत्त्व खो देता है, फिर भी ऐसे मामले में जहाँ प्रत्यक्ष साक्ष्य संदिग्ध प्रतीत होता है, हेतुक का अस्तित्व या अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले की संभावना के संबंध में कुछ महत्त्व प्राप्त कर लेता है।"

उत्तर प्रदेश राज्य बनाम किशनपाल (2008)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि यह सर्वविदित है कि जहाँ प्रत्यक्षदर्शी का प्रत्यक्ष साक्ष्य उपलब्ध हो, वहाँ उद्देश्य अपना महत्त्व खो देता है।

इस प्रकार, जहाँ अपराध करने का कोई स्पष्ट उद्देश्य नहीं है, वहाँ अभियोजन पक्ष प्रत्यक्षदर्शी की स्पष्ट एवं विश्वसनीय गवाही के आधार पर भी सफल हो सकता है।

नंदू सिंह बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने माना कि ऐसा नहीं है कि मामले में अभियोजन पक्ष द्वारा स्थापित किया जाने वाला एकमात्र हेतुक ही महत्त्वपूर्ण कड़ी है तथा इसके अभाव में अभियोजन पक्ष का आरोप विफल हो जाएगा।

हालाँकि हेतुक का पूर्ण अभाव निश्चित रूप से अभियुक्त के पक्ष में जाता है।

अनवर अली बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य (2020)

इस मामले में उच्चतम न्यायालय ने दोषसिद्धि के लिये एक परिस्थिति के रूप में हेतुक के संबंध में विभिन्न निर्णयों में निर्धारित सिद्धांतों का अवलोकन किया।

न्यायालय ने देखा कि सुरेश चंद्र बाहरी बनाम बिहार राज्य (1995) के मामले में यह माना गया था कि यदि हेतुक सिद्ध हो जाता है तो यह साक्ष्य की परिस्थितियों की शृंखला में एक कड़ी प्रदान करेगा, लेकिन हेतुक की अनुपस्थिति अभियोजन पक्ष के मामले को खारिज करने का आधार नहीं हो सकती है।

वहीं बाबू बनाम केरल राज्य (2010) में न्यायालय ने माना कि परिस्थितिजन्य साक्ष्य पर निर्भर किसी मामले में हेतुक एक ऐसा कारक है जो अभियुक्त के पक्ष में भारी पड़ता है।