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सांविधानिक विधि

न्यायमूर्ति सूर्यकांत को उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया

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 14-Nov-2024

न्यायमूर्ति सूर्यकांत का नामांकन

“LSA अधिनियम की धारा 3A द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश, माननीय न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायाधीश, भारत के उच्चतम न्यायालय को उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के अध्यक्ष के रूप में नामित करते हैं।”

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में उच्चतम न्यायालय के न्यायमूर्ति सूर्यकांत को भारत के भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI ) द्वारा उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति (SCLSC) के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।

समाचार की पृष्ठभूमि क्या है?

  • वर्तमान नामांकन में, न्यायमूर्ति सूर्यकांत को SCLSC के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया है।
  • इससे पहले यह पद उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी.आर. गवई के पास था, जिन्हें अब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
  • मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 (LSA) की धारा 3A द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए न्यायमूर्ति सूर्यकांत को इस पद के लिये नामित किया।
  • इस संबंध में अधिसूचना 12 नवंबर, 2024 को जारी की गई।

उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति क्या है?

परिचय:

  • SCLSC का गठन LSA की धारा 3A के तहत किया गया था, ताकि शीर्ष अदालत के अधिकार क्षेत्र में आने वाले मामलों में “समाज के कमज़ोर वर्गों को मुफ्त और सक्षम कानूनी सेवाएँ” प्रदान की जा सकें।
  • LSA अधिनियम की धारा 3A में कहा गया है कि NALSA समिति का गठन करेगा।
  • इसमें उच्चतम न्यायालय के एक वर्तमान न्यायाधीश शामिल होते हैं, जो इसके अध्यक्ष होते हैं, साथ ही केंद्र द्वारा निर्धारित अनुभव और योग्यता रखने वाले अन्य सदस्य भी होते हैं। अध्यक्ष एवं अन्य सदस्यों को मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित किया जाएगा।
  • इसके अलावा, मुख्य न्यायाधीश समिति के लिये सचिव की नियुक्ति कर सकते हैं।

सदस्य:

  • SCLSC में एक अध्यक्ष और मुख्य न्यायाधीश द्वारा नामित नौ सदस्य होते हैं।
  • समिति, मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, केंद्र द्वारा निर्धारित अधिकारियों और अन्य कर्मचारियों की नियुक्ति कर सकती है।
  • इसके अतिरिक्त, NALSA नियम, 1995 के नियम 10 में SCLSC सदस्यों की संख्या, उनके अनुभव और योग्यता का विवरण दिया गया है।
  • LSA की धारा 27 के तहत केंद्र को अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिये मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से अधिसूचना द्वारा नियम बनाने का अधिकार है।

भारत में विधिक सेवाओं के प्रावधान को अनिवार्य बनाने वाले संवैधानिक प्रावधान क्या हैं?

    • भारतीय संविधान के कई प्रावधानों में कानूनी सेवाएँ प्रदान करने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है।
    • अनुच्छेद 39A में कहा गया है कि राज्य यह सुनिश्चित करेगा कि विधिक प्रणाली का संचालन समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा दे तथा विशेष रूप से उपयुक्त कानून या योजनाओं या किसी अन्य तरीके से निःशुल्क विधिक सहायता उपलब्ध कराएगा, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आर्थिक या अन्य असमर्थताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय प्राप्त करने के अवसर से वंचित न किया जाए।
    • इसके अलावा, अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 22(1) (गिरफ्तारी के आधार की जानकारी पाने का अधिकार) भी राज्य के लिये कानून के समक्ष समानता एवं समान अवसर के आधार पर न्याय को बढ़ावा देने वाली कानूनी प्रणाली सुनिश्चित करना अनिवार्य बनाते हैं।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत

परिचय:

    • न्यायमूर्ति सूर्यकांत का जन्म 10 फरवरी, 1962 को हिसार (हरियाणा) में हुआ था। उन्होंने वर्ष 1981 में राजकीय पोस्ट कॉलेज हिसार से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और वर्ष 1984 में महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से कानून में स्नातक की डिग्री पूरी की।   
    • उन्हें 7 जुलाई, 2000 को हरियाणा का महाधिवक्ता नियुक्त किया गया था।
    • उन्हें मार्च 2001 में वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित किया गया था।
    • उन्हें 9 जनवरी, 2004 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नामित किया गया था।
    • उन्होंने 5 सितंबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद का कार्यभार ग्रहण किया।
    • उन्हें 24 मई, 2019 को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत द्वारा पारित महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • एस.जी. वोम्बटकेरे बनाम भारत संघ (2022):
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 124A की वैधता को इस आधार पर चुनौती देते हुए याचिकाएँ दायर की गईं कि यह भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 19 (1)(a), अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।
    • इस मामले में न्यायालय ने आदेश पारित किया कि राज्य सरकार और केंद्र सरकार को IPC की धारा 124A लागू करके FIR दर्ज करने, कोई भी जाँच जारी रखने या कोई भी दंडात्मक उपाय करने से रोका जाना चाहिये।
    • न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया कि भारतीय दंड संहिता की धारा 124A से उत्पन्न सभी कार्यवाही स्थगित रखी जाए।
  • कलमनी टेक्स बनाम पी. बालसुब्रमण्यम (2022):
    • उच्चतम न्यायालय ने कहा कि जब चेक या विलेख पर हस्ताक्षर स्वीकार कर लिये गए, तो विचारण न्यायालय को यह मान लेना चाहिये था कि चेक कानूनी रूप से लागू ऋण के लिये जारी किया गया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 (2023) के संबंध में:
    • उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के निर्णय की वैधता को स्वीकार किया।
    • न्यायालय ने कहा कि व्याख्या खंड का उपयोग संविधान में संशोधन करने के लिये नहीं किया जा सकता, इसका उपयोग केवल विशेष शब्दों को परिभाषित करने या अर्थ देने के लिये किया जा सकता है।
    • न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति को अनुच्छेद 370(3) के तहत एकतरफा रूप से यह अधिसूचित करने का अधिकार है कि अनुच्छेद 370 समाप्त किया जाएगा।
    • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने यह निर्णय लिया कि अनुच्छेद 370(1)(d) के अंतर्गत शक्ति के प्रयोग के लिये राज्य सरकार की अनुमति की आवश्यकता नहीं है, इसलिये राष्ट्रपति द्वारा भारत संघ की सहमति प्राप्त करना किसी भी प्रकार से दुर्भावनापूर्ण नहीं माना जा सकता।
  • अरविंद कुमार पांडे बनाम गिरीश पांडे (2024):
    • इस मामले में मोटर एक्सीडेंट क्लेम ट्रिब्यूनल के समक्ष मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के अंतर्गत दावा दायर किया गया।
    • मृतका 50 वर्षीय महिला थी जो गृहिणी थी।
    • न्यायालय ने कहा कि गृहिणी की भूमिका परिवार के किसी भी अन्य सदस्य के समान ही महत्त्वपूर्ण है, जिसकी आय परिवार के लिये आजीविका के स्रोत के रूप में मूर्त हो।
    • न्यायालय ने कहा कि एक गृहिणी के रूप में उसकी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष मासिक आय किसी भी परिस्थिति में न्यूनतम मज़दूरी अधिनियम के तहत उत्तराखंड राज्य में एक दैनिक मज़दूर को मिलने वाली मज़दूरी से कम नहीं हो सकती।
  • दिल्ली सरकार बनाम मेसर्स BSK रियलटर्स LLP एवं अन्य (2024): 
    • न्यायालय ने कहा कि मुकदमेबाज़ी के पहले दौर में लिया गया निर्णय दूसरे दौर पर रोक लगाने के लिये न्यायिक निर्णय के रूप में काम नहीं कर सकता, विशेष रूप से उन स्थितियों पर विचार करते हुए जहाँ व्यापक सार्वजनिक हित दांव पर लगा हो।
      • इसने उल्लेख किया कि GNCTD और DDA के बीच न तो उच्च न्यायालय के समक्ष और न ही उच्चतम न्यायालय के समक्ष कोई परस्पर विरोधी हित थे।
      • पहले दौर में उनके बीच कोई विवादित मुद्दा नहीं था।
    • जनहित की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए, दिल्ली सरकार द्वारा दायर अधिकांश अपीलों को स्वीकार कर लिया गया तथा निर्देश जारी किये गए।
      • अन्य मामलों में अलग आदेश पारित किये गये।
    • न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति उज्जल भुयान की पीठ ने कहा कि ऐसे मामलों में, "न्यायालय को अधिक लचीला दृष्टिकोण अपनाना चाहिये, क्योंकि कुछ मामले व्यक्तिगत विवादों से परे होते हैं और इनके दूरगामी जनहित निहितार्थ होते हैं।"