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आपराधिक कानून
साक्षी के अभिकथन पर हस्ताक्षर न करना
« »19-Feb-2025
राजेंद्र सिंह बनाम हरियाणा राज्य “वारंट मामला रिकॉर्ड: साक्षी के अभिकथन पर हस्ताक्षर करने में मजिस्ट्रेट की विफलता अभियोजन पक्ष के लिये घातक है।” न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार |
स्रोत: पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में, न्यायमूर्ति हरप्रीत सिंह बरार की पीठ ने माना है कि धारा 275(4), CrPC (BNSS की धारा 310) के अंतर्गत वारंट मामले में साक्षी के अभिकथन पर हस्ताक्षर करने में मजिस्ट्रेट की विफलता अभियोजन पक्ष के लिये घातक है।
- पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने राजेंद्र सिंह बनाम हरियाणा राज्य (2025) के मामले में यह निर्णय दिया।
- न्यायालय ने कहा कि बिना हस्ताक्षर वाले अभिकथन को साक्ष्य नहीं माना जा सकता, जिससे पूरा मामला प्रभावित होगा।
राजेंद्र सिंह बनाम हरियाणा राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- यह मामला एक सरकारी स्कूल की महिला शिक्षिका द्वारा दो साथी शिक्षकों (याचिकाकर्त्ता) के विरुद्ध दायर की गई शिकायत से प्रारंभ हुआ।
- शिकायतकर्त्ता ने याचिकाकर्त्ता-शिक्षकों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया।
- एक विशेष घटना में, शिकायतकर्त्ता ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्त्ताओं ने उसे एक कमरे में धकेल दिया तथा उसका शील भंग करने के आशय से दरवाजा बंद करने का प्रयास किया।
- शिकायतकर्त्ता किसी तरह से भागने में सफल रही।
- आरोपियों पर भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 294 एवं 357 के अधीन आरोप तय किये गए।
- JMIC ने आरोपियों को दोषी ठहराया तथा उन्हें 3,000 रुपये के अर्थदण्ड के साथ 6 महीने के कठोर कारावास की सजा दी गई।
- आरोपियों ने अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के समक्ष अपील दायर की, जिसे खारिज कर दिया गया।
- इसके बाद, आरोपियों ने दोषसिद्धि के आदेश और अपील को खारिज करने के आदेश को रद्द करने की मांग करते हुए एक पुनरीक्षण याचिका दायर की।
- ASI राजबीर सिंह, जिन्होंने साइट प्लान तैयार किया तथा मामले की आंशिक विवेचना की, जो प्रतिपरीक्षा के लिये उपस्थित नहीं हुए।
- इस मामले की विवेचना राजबीर सिंह नामक दो विवेचना अधिकारियों ने की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्च न्यायालय ने कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 275 के अधीन वारंट मामले में मजिस्ट्रेट द्वारा साक्षियों के अभिकथनों पर हस्ताक्षर न करना अभियोजन पक्ष के मामले के लिये घातक है।
- न्यायालय ने माना कि CrPC की धारा 275(4) के अनुसार अधिकारिता वाले मजिस्ट्रेट द्वारा लिखित रूप में लिये गए किसी भी साक्ष्य को साक्ष्य के रूप में माना जाने के लिये उस पर उसके हस्ताक्षर होने चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 275(4) का पालन न करना न केवल एक महत्त्वहीन अनियमितता है, बल्कि पूरे अभियोजन पक्ष को प्रभावित करता है।
- न्यायालय ने कहा कि CrPC की धारा 275(4) का पालन किये बिना वारंट मामले में दर्ज किये गए अभिकथन को साक्ष्य के रूप में नहीं माना जा सकता।
- न्यायालय ने कहा कि विवेचना के दौरान विवेचना अधिकारी द्वारा एकत्र किये गए सभी साक्ष्य विधि के अनुसार सिद्ध किये जाने चाहिये।
- न्यायालय ने कहा कि प्रतिपरीक्षा के अवसर से वंचित करना निम्नलिखित का अतिलंघन करता है:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत स्वतंत्र एवं निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार।
- प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत।
- न्यायालय ने पाया कि दूसरे विवेचना अधिकारी (PW संख्या 5) के अभिकथन पर अधिकारिता वाले न्यायालय द्वारा हस्ताक्षर एवं समर्थन नहीं किया गया था, जिससे यह अविश्वसनीय हो गया।
- न्यायालय ने कहा कि जब तक विपक्षी पक्ष को प्रतिपरीक्षा का अवसर नहीं दिया जाता, तब तक अभिकथन को साक्ष्य के रूप में नहीं पढ़ा जा सकता।
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 310 क्या है?
- यह धारा विशेष रूप से मजिस्ट्रेट के समक्ष चल रहे वारंट मामलों पर लागू होती है।
- यह धारा अनिवार्य रूप से वारंट मामलों में साक्षियों के अभिकथन को दर्ज करने के लिये प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को स्थापित करती है, तथा साक्ष्य का उचित दस्तावेजीकरण और प्रमाणीकरण सुनिश्चित करती है।
- साक्ष्य की रिकॉर्डिंग:
- प्रत्येक साक्षी की जाँच के दौरान साक्ष्य को लिखित रूप में दर्ज किया जाना चाहिये।
- रिकॉर्डिंग तीन तरीकों से की जा सकती है:
- मजिस्ट्रेट द्वारा व्यक्तिगत रूप से।
- ओपन कोर्ट में मजिस्ट्रेट के आदेश पर।
- मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्त न्यायालय अधिकारी द्वारा, यदि मजिस्ट्रेट शारीरिक रूप से अक्षम है या रिकॉर्ड करने में असमर्थ है।
- वैकल्पिक रिकॉर्डिंग विधि:
- साक्ष्य को ऑडियो-वीडियो इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से भी रिकॉर्ड किया जा सकता है।
- यह आरोपी व्यक्ति के अधिवक्ता की उपस्थिति में किया जाना चाहिये।
- मजिस्ट्रेट द्वारा निर्गत प्रमाणपत्र की आवश्यकता:
- यदि मजिस्ट्रेट व्यक्तिगत रूप से साक्ष्य दर्ज नहीं करता है।
- तो उसे एक प्रमाण पत्र दर्ज करना होगा जिसमें यह स्पष्ट किया जाएगा कि वे स्वयं साक्ष्य क्यों नहीं दर्ज कर सकते।
- रिकॉर्डिंग का प्रारूप:
- साक्ष्य को सामान्यतः कथात्मक रूप में दर्ज किया जाना चाहिये।
- हालाँकि, मजिस्ट्रेट के पास प्रश्नोत्तर प्रारूप में किसी भी भाग को दर्ज करने का विवेकाधिकार है।
- प्रमाणीकरण की आवश्यकता:
- दर्ज किये गए साक्ष्य पर मजिस्ट्रेट के हस्ताक्षर होने चाहिये।
- हस्ताक्षर के बाद ही यह आधिकारिक न्यायालयी रिकॉर्ड का हिस्सा बनता है।
- अनिवार्य प्रकृति:
- हस्ताक्षर की आवश्यकता वैकल्पिक नहीं है।
- साक्ष्य को स्थायी न्यायालय रिकॉर्ड का हिस्सा होना चाहिये।