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आपराधिक कानून

SC/ST अधिनियम की धारा 3(1) के तहत अपराध

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 12-Dec-2024

रवींद्र कुमार छतोई बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य

"कथित कृत्य को सार्वजनिक दृष्टि में किसी भी सार्वजनिक स्थान पर नहीं किया गया है।"

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि जहाँ कथित कथन निजी घर के पिछवाड़े में दिया गाय था, वहाँ यह नहीं कहा जा सकता कि यह कृत्य किसी सार्वजनिक स्थान पर किया गया था।            

  • उच्चतम न्यायालय ने रवींद्र कुमार छतोई बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य के मामले में यह निर्णय सुनाया।

रवींद्र कुमार छतोई बनाम ओडिशा राज्य एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • इस मामले में अपीलकर्त्ता ने भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 294 और धारा 506 के साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 (SC & ST (POA) अधिनियम) की धारा 3 (1) (x) के तहत एक आपराधिक शिकायत दर्ज की।
  • जिस घटना की शिकायत की गई है वह अपीलकर्त्ता के घर के पिछले हिस्से में घटित हुई।
  • अपीलकर्त्ता का मामला यह है कि परिवादी अपने कर्मचारियों के साथ उसके घर के पिछवाड़े में प्लास्टर करने के लिये घुस आई थी और उसने बिना किसी अनुमति के अपीलकर्त्ता की संपत्ति में अतिचार कर लिया था, जिसके कारण अपीलकर्त्ता ने ये शब्द कहे होंगे।
  • अपीलकर्त्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 239 के तहत रिहाई के लिये आवेदन दायर किया।
  • इस आवेदन को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश के साथ-साथ उच्च न्यायालय ने भी खारिज कर दिया था।
  • इस प्रकार, उच्चतम न्यायालय के समक्ष अपील दायर की गई।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • न्यायालय ने कहा कि यदि धारा 3 के तहत कोई अपराध माना जाता है तो यह साबित करना होगा कि ये शब्द अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम की धारा 3 के अनुसार किसी सार्वजनिक स्थान पर कहे गए थे, जैसा कि संशोधन से पहले था।
  • न्यायालय ने कहा कि घटनास्थल एक निजी घर का पिछवाड़ा था, जिसे सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं कहा जा सकता।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने माना कि इन परिस्थितियों में यह नहीं कहा जा सकता कि अपीलकर्त्ता का कथित कथन किसी सार्वजनिक स्थान पर था।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश और अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को रद्द कर दिया।

SC/ST (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 क्या है?

परिचय:

  • SC/ST अधिनियम 1989 संसद द्वारा पारित एक अधिनियम है, जो SC & ST समुदायों के सदस्यों के विरुद्ध भेदभाव का निषेध करने तथा उनके विरुद्ध अत्याचार को रोकने के लिये बनाया गया है।
  • यह अधिनियम 11 सितम्बर, 1989 को भारतीय संसद में पारित किया गया तथा 30 जनवरी, 1990 को अधिसूचित किया गया।
  • यह अधिनियम इस निराशाजनक वास्तविकता को भी स्वीकार करता है कि अनेक उपाय करने के बावजूद अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों को उच्च जातियों के हाथों विभिन्न प्रकार के अत्याचारों का सामना करना पड़ रहा है।
  • यह अधिनियम भारतीय संविधान, 1950 के अनुच्छेद 15, 17 और 21 में उल्लिखित संवैधानिक सुरक्षा उपायों को ध्यान में रखते हुए लागू किया गया है, जिसका दोहरा उद्देश्य - इन कमज़ोर समुदायों के सदस्यों की सुरक्षा करना तथा जाति आधारित अत्याचारों के पीड़ितों को अनुतोष और पुनर्वास प्रदान करना है।

SC/ST (संशोधन) अधिनियम, 2015:

  • इस अधिनियम को और अधिक कठोर बनाने के उद्देश्य से वर्ष 2015 में निम्नलिखित प्रावधानों के साथ संशोधित किया गया:
    • अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध अत्याचार के अधिक मामलों को अपराध के रूप में मान्यता दी गई।
    • इसने धारा 3 में कई नए अपराध जोड़े तथा संपूर्ण धारा को पुनः क्रमांकित किया, क्योंकि मान्यता प्राप्त अपराध लगभग दोगुना हो गया।
    • अधिनियम में अध्याय IVA की धारा 15A (पीड़ितों और गवाहों के अधिकार) को जोड़ा गया, तथा अधिकारियों द्वारा कर्तव्य की उपेक्षा और जवाबदेही तंत्र को अधिक सटीक रूप से परिभाषित किया गया।
    • इसमें विशेष न्यायालयों और विशेष सरकारी अभियोजकों की स्थापना का प्रावधान किया गया।
    • सभी स्तरों पर लोक सेवकों के संदर्भ में इस अधिनियम में जानबूझकर की गई लापरवाही शब्द को परिभाषित किया गया है।

SC/ST (संशोधन) अधिनियम, 2018:

  • पृथ्वीराज चौहान बनाम भारत संघ (2020) के मामले में, उच्चतम न्यायालय ने अत्याचार निवारण अधिनियम में संसद के वर्ष 2018 संशोधन की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा। इस संशोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:
    • इसने मूल अधिनियम में धारा 18A जोड़ी।
    • इसमें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के विरुद्ध विशिष्ट अपराधों को अत्याचार के रूप में वर्णित किया गया है तथा इन कृत्यों से निपटने के लिये रणनीतियों का वर्णन और दंड का प्रावधान किया गया है।
    • यह बताता है कि कौन से कृत्य "अत्याचार" माने जाते हैं और अधिनियम में सूचीबद्ध सभी अपराध संज्ञेय हैं। पुलिस बिना वारंट के अपराधी को गिरफ़्तार कर सकती है और न्यायालय से कोई आदेश लिये बिना मामले की जाँच शुरू कर सकती है।
    • अधिनियम में सभी राज्यों से प्रत्येक ज़िले में विद्यमान सत्र न्यायालय को विशेष न्यायालय में परिवर्तित करने का आह्वान किया गया है, ताकि इसके अंतर्गत पंजीकृत मामलों की सुनवाई की जा सके तथा विशेष न्यायालयों में मामलों की सुनवाई के लिये लोक अभियोजकों/विशेष लोक अभियोजकों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।
    • इसमें राज्यों के लिये प्रावधान किया गया है कि वे उच्च स्तर की जातिगत हिंसा वाले क्षेत्रों को "अत्याचार-प्रवण" घोषित करें तथा कानून और व्यवस्था की निगरानी और उसे बनाए रखने के लिये योग्य अधिकारियों की नियुक्ति करें।
    • इसमें गैर-SC/ST लोक सेवकों द्वारा जानबूझकर अपने कर्तव्यों की उपेक्षा करने पर दंड का प्रावधान है।
    • इसका कार्यान्वयन राज्य सरकारों और केंद्रशासित प्रदेश प्रशासनों द्वारा किया जाता है, जिन्हें उचित केन्द्रीय सहायता प्रदान की जाती है।

SC/ST अधिनियम की धारा 3(1) क्या है?

SC/ST अधिनियम की धारा 3(1) में निम्नलिखित अपराधों का प्रावधान है:

खंड

निषिद्ध कार्य

विवरण

दंड

(a)

अखाद्य/अप्रिय पदार्थों के सेवन के लिये मजबूर करना

इसमें ऐसे पदार्थों को मुँह में डालना या जबरदस्ती सेवन कराना शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(b)

परिसर में अप्रिय पदार्थ फेंकना

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के परिसर में या उसके निकट मल, शव आदि डालना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(c)

पड़ोस में अप्रिय पदार्थ फेंकना

अपमान या परेशानी उत्पन्न करने के आशय से।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(d)

जूतों की माला पहनाना या नग्न/अर्द्धनग्न होकर परेड करना

SC/ST सदस्यों के विरुद्ध।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(e)

अपमानजनक कार्य करने के लिये मजबूर करना

इसमें जबरन सिर मुंडवाना, शरीर पर पेंटिंग करना, कपड़े उतारना आदि शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(f), (g)

भूमि पर गलत कब्ज़ा/बेदखल करना

इसमें इच्छा के विरुद्ध भूमि पर कब्ज़ा करना, दबाव में सहमति प्राप्त करना, या अभिलेखों में हेराफेरी करना शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(h)

जबरन बेगार, बंधुआ या बलपूर्वक श्रम कराना

सरकार द्वारा लगाई गई अनिवार्य सार्वजनिक सेवा के अलावा।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(i)

शवों को नष्ट करने या कब्र खोदने के लिये मजबूर करना

SC/ST सदस्यों के विरुद्ध।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(j)

मैला ढोने के लिये मजबूर करना

ऐसी गतिविधियों को नियोजित करना या अनुमति देना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(k)

महिलाओं को देवदासी या इसी तरह की प्रथाओं के रूप में समर्पित करना

इसमें ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा देना भी शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(l)

चुनावों में मतदान/नामांकन के लिये बाध्य करना या रोकना

इसमें जबरदस्ती, धमकी या रोकथाम शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(m)

निर्वाचित SC/ST प्रतिनिधियों के कर्तव्यों में बाधा डालना

पंचायतों या नगर पालिकाओं में।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(n)

चुनाव-पश्चात हिंसा

नुकसान पहुँचाना, बहिष्कार करना, या सार्वजनिक सेवाओं तक पहुँच को रोकना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(o)

मतदान व्यवहार के कारण अपराध

इसमें किसी विशिष्ट उम्मीदवार को वोट देने या न देने पर हिंसा शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(p)

झूठी कानूनी कार्यवाही

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध दुर्भावनापूर्ण या परेशान करने वाले मामले।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(q)

लोक सेवकों को गलत जानकारी प्रदान करना

जिसके परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को चोट या परेशानी हो।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(r), (s)

सार्वजनिक रूप से अपमान या गाली देना

इसमें सार्वजनिक रूप से अपमान, धमकी या जाति-आधारित दुर्व्यवहार शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(t)

पवित्र वस्तुओं को अपवित्र करना

इसमें मूर्तियों, तस्वीरों या चित्रों को नुकसान पहुँचाना भी शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(u)

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के विरुद्ध शत्रुता या दुर्भावना को बढ़ावा देना

शब्दों, संकेतों या चित्रणों के माध्यम से।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(v)

श्रद्धेय मृतक व्यक्तियों का अनादर करना

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उच्च सम्मान प्राप्त व्यक्तियों का अनादर करना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(w)

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति महिलाओं का यौन उत्पीड़न

इसमें बिना सहमति के यौन प्रकृति का स्पर्श या इशारे करना शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(x)

जल स्रोतों को दूषित करना

अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के उपयोग के लिये जल को अनुपयुक्त बनाना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(y)

सार्वजनिक स्थानों पर प्रवेश से इनकार करना

इसमें सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग या मार्ग में बाधा डालना भी शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(z)

जबरदस्ती बेदखल करना

सार्वजनिक कर्तव्य मामलों को छोड़कर, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को अपना निवास छोड़ने के लिये मजबूर करना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(za)

साझा संसाधनों के उपयोग में बाधा डालना

इसमें कब्रिस्तान, स्नान स्थल, सार्वजनिक सड़कें और पूजा स्थल शामिल हैं।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(zb)

जादू-टोने के आरोप लगाना

ऐसे आरोपों के आधार पर नुकसान पहुँचाना।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

(zc)

सामाजिक या आर्थिक बहिष्कार

इसमें ऐसे बहिष्कार की धमकियाँ या वास्तविक रूप से लागू करना भी शामिल है।

कारावास (6 महीने से 5 वर्ष) + जुर्माना

  • उल्लेखनीय है कि दिनांक 26 जनवरी, 2016 के संशोधन से पहले, धारा 3 (1) (x) में निम्नलिखित प्रावधान थे:
    • इस अपराध में अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य का जानबूझकर अपमान करना या उसे डराना शामिल है।
    • यह उस व्यक्ति द्वारा किया जाएगा जो अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति का नहीं है।
    • उपर्युक्त कथित कृत्य किसी सार्वजनिक स्थान पर किया गया होगा।
    • अपराधी को कम-से-कम छह महीने से लेकर पाँच वर्ष तक की कैद और जुर्माने की सज़ा हो सकती है।