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आपराधिक कानून

शासकीय गुप्त बात अधिनियम

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 08-Oct-2024

सुभाष रामभाऊ अठारे बनाम महाराष्ट्र राज्य

“पुलिस द्वारा किया गया कोई भी कार्य शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 की धारा 3 के अंतर्गत बिल्कुल भी शामिल नहीं है।”

न्यायमूर्ति एस.जी. चपलगांवकर एवं न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी

स्रोत: बॉम्बे उच्च न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति एस.जी. चपलगांवकर एवं न्यायमूर्ति विभा कंकनवाड़ी की पीठ ने कहा कि पुलिस थाने में किया गया कोई भी कार्य शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 (OSA) की धारा 3 के अंतर्गत बिल्कुल भी शामिल नहीं है।

  • बॉम्बे उच्च न्यायालय ने सुभाष रामभाऊ अठारे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले में यह निर्णय दिया।

सुभाष रामभाऊ अठारे बनाम महाराष्ट्र राज्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • वर्तमान मामला पाथर्डी पुलिस स्टेशन में भारतीय दण्ड संहिता, 1860 (IPC) की धारा 120B एवं धारा 506 और शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 (OSA) की धारा 3 के अधीन दण्डनीय अपराध के लिये दर्ज की गई प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR) को रद्द करने से संबंधित है।
  • आवेदक ने आरोप लगाया है कि FIR मिथ्या एवं मनगढ़ंत है।
  • आवेदक मुंबई पुलिस में तैनात एक पुलिस कांस्टेबल है, हालाँकि उसका मूल निवास पाथर्डी है।
  • 21 अप्रैल 2022 को तीन व्यक्तियों ने आवेदक के घर में उस समय बलात प्रवेश किया जब आवेदक घर पर नहीं थे, हालाँकि माँ घर पर थी।
  • इन तीनों व्यक्तियों ने माँ के साथ मारपीट की तथा धमकी दी और साथ ही उसकी गरिमा को ठेस पहुँचाई।
  • हालाँकि पाथर्डी पुलिस स्टेशन ने 26 अप्रैल 2022 को केवल असंज्ञेय मामला दर्ज किया।
  • जब आवेदक ने पूछा कि केवल NCR मामला क्यों दर्ज किया गया, तो विवेचना अधिकारी ने उसे गंदी गाली दी तथा उसके साथ दुर्व्यवहार किया।
  • आवेदक को कथित FIR में सूचक द्वारा 2 मई 2022 को बुलाया गया तथा उसे मां द्वारा दर्ज की गई शिकायत वापस लेने के लिये धमकाया और अत्याचार अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज करने की भी धमकी दी।
  • आवेदक ने उक्त धमकी के संबंध में ऑडियो रिकॉर्डिंग की थी तथा पुलिस महानिदेशक को शिकायत की थी।
  • आवेदक का मामला यह है कि वर्तमान FIR दर्ज की गई है।
  • आवेदक ने आरोप लगाया है कि FIR स्वयं मनगढ़ंत एवं मिथ्या आधारित है।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • यहाँ पर विचार करने योग्य पहला तथ्य यह है कि कथित रूप से पूरा प्रकरण पुलिस स्टेशन में हुआ।
  • इस मामले में पुलिस ने OSA लगाया।
  • न्यायालय ने पाया कि OSA की धारा 2 (8) में "निषिद्ध स्थान" को परिभाषित किया गया है तथा पुलिस स्टेशन इस परिभाषा में शामिल नहीं है।
  • न्यायालय ने आगे कहा कि पुलिस थाने में किया गया कोई भी कृत्य OSA की धारा 3 के अंतर्गत बिल्कुल भी शामिल नहीं है। इसलिये, न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि उक्त धारा के तत्त्व बिल्कुल भी निहित नहीं होते हैं।
  • न्यायालय ने आगे यह देखना संबंधित न्यायालय पर छोड़ दिया कि क्या IPC की धारा 120बी और धारा 506 के अधीन अपराध बनते हैं या नहीं।
  • इस प्रकार, न्यायालय ने आंशिक रूप से आवेदन को स्वीकार कर लिया।

शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 क्या है?

परिचय:

  • इस अधिनियम की उत्पत्ति ब्रिटिश औपनिवेशिक काल से मानी जा सकती है।
  • इस अधिनियम का उद्देश्य जासूसी, राजद्रोह एवं राष्ट्र की अखंडता के लिये अन्य संभावित खतरों का सामना करना है।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत जासूसी, 'गुप्त' सूचना साझा करना, वर्दी का अनाधिकृत उपयोग, निषिद्ध/प्रतिबंधित क्षेत्रों में पुलिस या सशस्त्र बलों के साथ हस्तक्षेप करना आदि को दण्डनीय अपराध माना गया है।
  • यह मुख्य कानून है जो राष्ट्रीय सुरक्षा को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है:
    • जासूसी करना या किसी प्रतिबंधित जगह में प्रवेश करना आदि
    • दोषपूर्ण संचार
    • जासूसों को पनाह देना
    • वर्दी का अनाधिकृत उपयोग, रिपोर्ट में गड़बड़ी
    • किसी प्रतिबंधित जगह के पास पुलिस या सेना के कार्य में दखलंदाजी
  • दोषी पाए जाने पर व्यक्ति को 14 वर्ष तक की जेल की सजा हो सकती है।

शासकीय गुप्त बात अधिनियम, 1923 की धारा 3:

  • दण्ड प्रावधानित करने वाली गतिविधियाँ-
    • यह धारा यह प्रावधान करती है कि सूचीबद्ध कार्य राज्य की सुरक्षा या हितों के प्रतिकूल उद्देश्य से किये जाने चाहिये।
    • सूचीबद्ध किये गए कार्य जो दण्डनीय बनाए गए हैं वे हैं:
      • किसी निषिद्ध स्थान पर पहुँचता है, उसका निरीक्षण करता है, उसके ऊपर से गुजरता है या उसके आस-पास रहता है या उसमें प्रवेश करता है; या
      • कोई ऐसा रेखाचित्र, योजना, मॉडल या नोट बनाता है जो किसी शत्रु के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगी हो सकता है या उपयोगी होने का आशय रखता है; या
      • कोई गुप्त सरकारी कोड या पासवर्ड, या कोई रेखाचित्र, योजना, मॉडल, लेख या नोट या अन्य दस्तावेज या सूचना प्राप्त करना, एकत्र करना, रिकॉर्ड करना या प्रकाशित करना या किसी अन्य व्यक्ति को संप्रेषित करना, जो किसी शत्रु के लिये प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उपयोगी हो सकती है या होने का आशय रखती है या जो किसी ऐसे मामले से संबंधित है जिसके प्रकट होने से भारत की संप्रभुता एवं अखंडता, राज्य की सुरक्षा या विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।
  • उपरोक्त कार्यवाही के लिये दण्ड-
    • जहाँ अपराध रक्षा, शस्त्रागार, नौसेना, सैन्य या वायु सेना प्रतिष्ठान या स्टेशन, खदान, बारूदी सुरंग, कारखाने, डॉकयार्ड, शिविर, जहाज या विमान के किसी कार्य के संबंध में या सरकार के नौसेना, सैन्य या वायु सेना के मामलों के संबंध में या किसी गुप्त आधिकारिक कोड के संबंध में किया जाता है, तो दण्ड चौदह वर्ष तक कारावास है।
    • अन्य मामलों में, दण्ड तीन वर्ष तक है।

       धारा

प्रावधान

धारा 4

विदेशी एजेंटों के साथ संचार कुछ अपराधों के होने का साक्ष्य होगा

धारा 5

सूचना आदि का दोषपूर्ण संचार

धारा 6

वर्दी का अनाधिकृत उपयोग, रिपोर्ट में जालसाजी, छद्मवेश एवं झूठे दस्तावेज

धारा 7

पुलिस अधिकारियों या संघ के सशस्त्र बलों के सदस्यों के कार्य में हस्तक्षेप करना

धारा 8

अपराध किये जाने के संबंध में सूचना देने का कर्त्तव्य

धारा 9

प्रयास, उकसावे, आदि

धारा 10

जासूसों को शरण देने पर अर्थदण्ड

धारा 15

कंपनियों द्वारा कारित अपराध