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सिविल कानून

खंडपीठ के समक्ष की जा सकती है अवमान आदेश की अपील

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 05-Dec-2024

दीपक कुमार एवं अन्य बनाम देविना तिवारी एवं अन्य

"प्रतिवादी के पास एकमात्र कानूनी उपाय विशेष अनुमति याचिका के माध्यम से विद्वान एकल न्यायाधीश के आदेश को चुनौती देना था।"

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन

स्रोत: उच्चतम न्यायालय

चर्चा में क्यों?

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने वे शर्तें निर्धारित कीं, जब अवमानना ​​के मामले में एकल न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश के विरुद्ध खंडपीठ में अपील की जा सकेगी।             

  • उच्चतम न्यायालय ने दीपक कुमार एवं अन्य बनाम देविना तिवारी एवं अन्य मामले में यह निर्णय दिया।

दीपक कुमार एवं अन्य बनाम देविना तिवारी एवं अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस मामले में प्रतिवादी (देविना तिवारी) ने अप्रैल 2015 के पिछले उच्च न्यायालय के आदेश से संबंधित अवमानना याचिका दायर की।
  • उच्च न्यायालय के 2015 के मूल निर्णय में कॉलेज को प्रतिवादी को सेवा में बहाल करने का निर्देश दिया गया था।
  • 5 जनवरी, 2022 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय की एकल पीठ ने अवमानना याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि कोई अवमानना नहीं की गई है।
  • इसके बाद प्रतिवादी ने एकल पीठ के इस आदेश के खिलाफ उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष अपील दायर की।
  • खंडपीठ/डिवीजन बेंच ने अंतरिम आदेश पारित कर प्रतिवादी को 15 दिनों के भीतर कार्यभार ग्रहण रिपोर्ट प्रस्तुत करने की अनुमति दी तथा अतिरिक्त मुख्य स्थायी अधिवक्ता को कॉलेज से निर्देश प्राप्त करने का निर्देश दिया।
  • अपीलकर्त्ता (दीपक कुमार) ने इस अपील की स्वीकार्यता को चुनौती दी और तर्क दिया कि मिदनापुर पीपुल्स को-ऑप बैंक लिमिटेड मामले के आधार पर यह अपील स्वीकार्य नहीं है।
  • प्रतिवादी के वकील ने तर्क दिया कि चूँकि एकल न्यायाधीश ने मामले के गुण-दोष पर विचार किया था, इसलिये अपील मिदनापुर निर्णय के खंड V के तहत स्वीकार्य थी।
  • इस प्रकार, मामला सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष लाया गया था।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि एकल न्यायाधीश ने स्पष्ट रूप से कहा था कि अप्रैल 2015 के न्यायालय के मूल आदेश के संबंध में कोई अवमानना नहीं की गई थी।
  • सर्वोच्च न्यायालय के पूर्ववर्ती मिदनापुर निर्णय के अनुसार, अवमानना की कार्यवाही शुरू करने से इनकार करने वाला ऐसा आदेश अपील योग्य नहीं है।
  • मिदनापुर निर्णय के खंड V का उपयोग करने का प्रतिवादी का तर्क उच्चतम न्यायालय द्वारा खारिज कर दिया गया।
  • उच्चतम न्यायालय ने पाया कि एकल न्यायाधीश के आदेश में मूल मामले के गुण-दोष पर कोई निर्णय शामिल नहीं था।
  • प्रतिवादी के पास उपलब्ध एकमात्र कानूनी उपाय सीधे उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करना था।
  • इसलिये, न्यायालय ने अंततः प्रतिवादी द्वारा उच्च न्यायालय की खंडपीठ के समक्ष दायर अपील को खारिज कर दिया।

न्यायालय अवमान अधिनियम, 1971 (CC एक्ट) क्या है?

  • CC एक्ट वर्ष 1971 में संसद द्वारा पारित किया गया तथा 24 दिसंबर, 1974 को लागू हुआ
  • CC एक्ट का मुख्य उद्देश्य न्यायालयों की अखंडता की रक्षा करना है।
  • यह CC एक्ट न्यायालय को अपने अवमान के विरुद्ध दंड देने की अंतर्निहित शक्तियाँ प्रदान करता है।
  • CC एक्ट न्यायिक संस्थाओं को प्रेरित हमलों और अनुचित आलोचना से बचाने का प्रयास करता है, तथा इसके अधिकार को कम करने वालों को दंडित करने के लिये एक कानूनी तंत्र के रूप में कार्य करती है।
  • जब संविधान को अपनाया गया था, तो न्यायालय अवमान को अनुच्छेद 19 (2) के तहत वाक् एवं  अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर प्रतिबंधों में से एक बनाया गया था। भारतीय संविधान (COI) के अनुच्छेद 144 के अनुसार, संविधान में संशोधन के लिये।.
  • इसके अलावा, COI के अनुच्छेद 129 में सर्वोच्च न्यायालय को स्वयं के अवमान हेतु दंडित करने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • अनुच्छेद 215 उच्च न्यायालयों को समतुल्य शक्ति प्रदान करता है।
  • अवमानना दो प्रकार की होती है:
    • सिविल अवमानना: यह न्यायालय के किसी निर्णय, डिक्री, निर्देश, आदेश, रिट या अन्य प्रक्रिया की जानबूझकर अवज्ञा या न्यायालय को दिये गए वचन का जानबूझकर उल्लंघन है।
    • आपराधिक अवमानना:  न्यायालय की आपराधिक अवमानना का अर्थ किसी ऐसे मामले का प्रकाशन या किसी ऐसे कार्य को करना है, जो न्यायलय के अधिकार को अवरुद्ध अथवा कम करता है या किसी न्यायिक कार्यवाही के नियत क्रम में हस्तक्षेप करता है या किसी अन्य तरीके से न्याय प्रशासन को बाधित करता है। 

सी.सी. अधिनियम के अंतर्गत अपील का प्रावधान क्या है?

अपील से संबंधित प्रावधान सीसी अधिनियम की धारा 19 के तहत दिये गए हैं-

  • खंड (1) में कहा गया है कि अवमानना के लिये दंडित करने के अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करते हुए उच्च न्यायालय के किसी आदेश या निर्णय के विरुद्ध अपील अधिकार के रूप में होगी-
    • जहाँ आदेश या निर्णय एकल न्यायाधीश का हो, वहाँ निर्णय न्यायालय के कम-से-कम दो न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाएगा।
    • जहाँ आदेश या निर्णय किसी न्यायपीठ का है, वहाँ उच्चतम न्यायालय में, परंतु जहाँ  आदेश या निर्णय किसी संघ राज्यक्षेत्र में न्यायिक आयुक्त के न्यायालय का है, वहाँ ऐसी अपील उच्चतम न्यायालय में होगी।
  • खंड (2) में कहा गया है कि किसी अपील के लंबित रहने तक अपीलीय न्यायालय आदेश दे सकता है कि-
    • जिस दंड या आदेश के विरुद्ध अपील की गई है उसका निष्पादन निलंबित किया जाए।
    • यदि अपीलकर्त्ता कारावास में है तो उसे ज़मानत पर रिहा किया जाए।
    • इस अपील पर सुनवाई की जाए, भले ही अपीलकर्त्ता ने अपनी अवमानना का निवारण नहीं किया है।
  • खंड (3) में कहा गया है कि जहाँ कोई व्यक्ति किसी आदेश से व्यथित है, जिसके विरुद्ध अपील दायर की जा सकती है, वह उच्च न्यायालय को यह संतुष्टि कराता है कि वह अपील करने का इच्छुक है, तो उच्च न्यायालय उप-धारा (2) द्वारा प्रदत्त सभी या किसी भी शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
  • खंड (4) में कहा गया है कि उपधारा (1) के अंतर्गत अपील दायर की जाएगी-
    • उच्च न्यायालय की पीठ में अपील के मामले में, तीस दिन के भीतर।
    • सर्वोच्च न्यायालय में अपील के मामले में, जिस आदेश के विरुद्ध अपील की गई है, उसकी तारीख से साठ दिनों के भीतर।

आदेशों के विरुद्ध अपील को नियंत्रित करने वाले सिद्धांत क्या हैं?

मिंडनापुर पीपुल्स को-ऑप बैंक लिमिटेड एवं अन्य बनाम चुन्नीलाल नंदा एवं अन्य (2006) मामले में सिद्धांत निर्धारित किये:

  • धारा 19 के अंतर्गत अपील केवल उच्च न्यायालय द्वारा अवमानना के लिये दंड लगाने संबंधी आदेश या निर्णय के विरुद्ध की जा सकेगी।
  • निम्नलिखित परिस्थितियों में कोई अपील नहीं की जा सकती (हालाँकि विशेष परिस्थितियों में उन्हें संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत चुनौती दी जा सकती है):
    • अवमानना के लिये  कार्यवाही शुरू करने से इनकार करने वाला आदेश
    • अवमानना की कार्यवाही शुरू करने का आदेश
    • अवमानना की कार्यवाही समाप्त करने का आदेश
    • अवमाननाकर्त्ता को दोषमुक्त करने का आदेश
  • उच्च न्यायालय अवमानना की कार्यवाही में यह सुनिश्चित कर सकता है कि क्या कोई अवमानना की गई है और यदि हाँ, तो सज़ा क्या होनी चाहिए।
    • ऐसी कार्यवाही में पक्षों के बीच विवाद के गुण-दोष से संबंधित किसी भी मुद्दे पर निर्णय देना उचित नहीं है।
  • पक्षों के बीच विवाद के गुण-दोष पर उच्च न्यायालय द्वारा जारी कोई निर्देश या लिया गया निर्णय 'अवमानना के लिये दंडित करने के अधिकार क्षेत्र' के अंतर्गत नहीं आएगा। इसलिये  सी.सी. अधिनियम की धारा 19 के अंतर्गत अपील योग्य नहीं होगा।
    • एकमात्र अपवाद यह है जहाँ  ऐसा निर्देश या निर्णय अवमानना के लिये दंडित करने वाले आदेश से आनुषंगिक या अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ हो, ऐसी स्थिति में अधिनियम की धारा 19 के तहत अपील, आनुषंगिक या अभिन्न रूप से जुड़े निर्देशों को भी शामिल कर सकती है।
  • यदि उच्च न्यायालय किसी अवमानना कार्यवाही में पक्षकारों के बीच विवाद से संबंधित किसी मुद्दे पर निर्णय देता है, तो पीड़ित व्यक्ति के पास उपाय उपलब्ध है।
    • ऐसे आदेश को अंतर-न्यायालय अपील में चुनौती दी जा सकती है (यदि आदेश एकल न्यायाधीश का है और अंतर-न्यायालय अपील का प्रावधान है), या संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपील करने के लिये  विशेष अनुमति मांगकर (अन्य मामलों में)।