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पारिवारिक कानून
HMA मामले में पारित डिक्री के विरुद्ध अपील दायर करने की परिसीमा अवधि
« »14-Feb-2025
X बनाम Y “जहाँ तक असम राज्य का संबंध है, सभी जिलों में कुटुंब न्यायालय उपलब्ध नहीं हैं तथा केवल उन जिलों में जहाँ कुटुंब न्यायालय उपलब्ध हैं, दांपत्य विवादों का निपटान कुटुंब न्यायालय अधिनियम के अंतर्गत किया जाता है।” न्यायमूर्ति संजय कुमार मेधी एवं न्यायमूर्ति काखेतो सेमा |
स्रोत: गुवाहाटी उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
न्यायमूर्ति संजय कुमार मेधी एवं न्यायमूर्ति काखेतो सेमा की पीठ ने कहा कि केवल इसलिये कि आदेश जिला न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, अधिक समय-सीमा अर्थात 90 दिन, तथा केवल इसलिये कि आदेश कुटुंब न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, कम समय-सीमा अर्थात 30 दिन, अनुचित होगा और समानता की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा।
- गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने X बनाम Y (2025) मामले में यह निर्णय दिया।
X बनाम Y मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- आवेदक ने परिसीमा अधिनियम, 1963 (LA) की धारा 5 के अंतर्गत एक आवेदन दायर किया, जिसमें प्रधान न्यायाधीश, कुटुंब न्यायालय -2, कामरूप (मेट्रो) द्वारा पारित 12 जून 2024 के निर्णय और 14 जून 2024 के आदेश के विरुद्ध अपील दायर करने में 21 दिन के विलंब के लिये क्षमा मांगी गई।
- आवेदक ने निम्नलिखित तर्क दिये:
- विलंब केवल 21 दिन की थी तथा आवेदन के पैराग्राफ 13, 14 एवं 15 में पर्याप्त रूप से उल्लेखित है।
- यह अपील विवाह को रद्द करने के मामले में दिये गए निर्णय से संबंधित है।
- हालाँकि निर्णय 14 जून 2024 को पारित किया गया था, लेकिन प्रमाणित प्रति के लिये 15 जून 2024 को आवेदन किया गया था।
- मेघालय में रहने वाला आवेदक 18 जुलाई 2024 तक प्रमाणित प्रति प्राप्त नहीं कर सका, क्योंकि कुटुंब न्यायालय के मामलों में व्यक्तिगत उपस्थिति की आवश्यकता होती है।
- अधिवक्ता ने श्रीदेवी दातला बनाम भारत संघ (2021) में उच्चतम न्यायालय के निर्णय पर उदाहरण दिया, जो मामूली विलंब के लिये उदार दृष्टिकोण का सुझाव देता है।
- प्रतिवादी द्वारा प्रस्तुत तर्क इस प्रकार थे:
- आवेदक ने महत्त्वपूर्ण तथ्यों को छिपाया।
- प्रमाणित प्रति के लिये 15 जून 2024 को आवेदन किया गया था, लेकिन आवश्यक स्टाम्प और फोलियो 18 जुलाई 2024 को ही जमा किये गए, जो लापरवाही दर्शाता है।
- परिसीमा अवधि 12 जून 2024 से प्रारंभ होती है, जो निर्णय की तिथि है, परिसीमा अवधि की समाप्ति से नहीं।
- आवेदन के पैराग्राफ 14 में भ्रामक अभिकथन दिये गए थे।
- इस प्रकार, न्यायालय के समक्ष प्रश्न यह था कि वर्तमान तथ्यों के आधार पर विलम्ब को क्षमा किया जाना चाहिये या नहीं।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- न्यायालय ने यह अभिनिर्धारित करते समय कि क्या विलंब पर विचार किया जाना चाहिये, निम्नलिखित दिशानिर्देश अभिनिर्धारित किये हैं:
- न्यायालय को ऐसे अधिकारिता का प्रयोग करने की जो शक्ति दी गई है, वह अनिवार्य रूप से विवेकाधीन है। स्वाभाविक परिणाम यह है कि सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए विवेकपूर्ण प्रज्ञा का प्रयोग किया जाना चाहिये।
- जिन प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखना आवश्यक है, उनमें पक्ष का आचरण शामिल होगा क्योंकि विवेक का प्रयोग केवल साम्या को संतुलित करके ही किया जा सकता है।
- विलंब की अवधि एवं प्रस्तुत स्पष्टीकरण दोनों ही ऐसे विवेक के प्रयोग के लिये प्रासंगिक विचार हैं।
- न्यायालय आमतौर पर इस तरह की याचिका के साथ उदार, व्यावहारिक एवं न्यायोन्मुखी दृष्टिकोण के साथ आगे बढ़ेगा क्योंकि पर्याप्त न्याय को केवल तकनीकी तथ्यों से विफल नहीं होने दिया जाना चाहिये।
- साथ ही, न्यायालय इस तथ्य को भी अनदेखा नहीं करेगा कि दूसरे पक्ष को एक मूल्यवान अधिकार प्राप्त हुआ है तथा ऐसे अधिकार में हल्के तरीके से हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिये। इसलिये, हालाँकि दिन-प्रतिदिन स्पष्टीकरण मांगने की आवश्यकता नहीं हो सकती है, विलंब के लिये स्पष्टीकरण एक उचित होना चाहिये जो सामान्य विवेक वाले व्यक्ति को स्वीकार्य हो।
- न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान तथ्यों को देखते हुए 21 दिनों की विलंब को अत्यधिक नहीं कहा जा सकता।
- इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने एक अन्य पहलू पर भी विचार किया, जो हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) के अंतर्गत आवेदन दायर किये जाने की स्थिति में अपील दायर करने की समय-सीमा है।
- जबकि HMA की धारा 28 में अपील दायर करने की परिसीमा अवधि 30 दिन निर्धारित की गई है, जबकि कुटुंब न्यायालय अधिनियम, 1984 (FCA) की धारा 19 में अपील दायर करने की परिसीमा अवधि 90 दिन निर्धारित की गई है।
- न्यायालय ने पाया कि सभी जिलों में कुटुंब न्यायालय उपलब्ध नहीं हैं तथा केवल उन जिलों में ही दांपत्य विवादों का निपटान FCA के अंतर्गत किया जाता है, जहाँ कुटुंब न्यायालय उपलब्ध हैं।
- जहाँ कुटुंब न्यायालय उपलब्ध नहीं है, वहाँ जिला न्यायाधीश की न्यायालय HMA के अंतर्गत दांपत्य विवादों का निपटान करेगी।
- न्यायालय ने पाया कि भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 14 के अनुसरण में HMA की धारा 28 के अंतर्गत अपील योग्य सभी आदेशों के विरुद्ध FCA की धारा 19 के तहत अपील योग्य आदेश के विरुद्ध परिसीमा की एक समान अवधि लागू की जानी आवश्यक है।
- न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिये कि आदेश जिला न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, अधिक समय-सीमा अर्थात् 90 दिन, तथा केवल इसलिये कि आदेश कुटुंब न्यायालय द्वारा पारित किया गया है, कम समय-सीमा अर्थात् 30 दिन, अनुचित होगा तथा समानता की कसौटी पर खरा नहीं उतरेगा।
HMA के अंतर्गत पारित डिक्री के विरुद्ध अपील दायर करने की परिसीमा अवधि किस प्रकार विकसित हुई?
- FCA के अधिनियमन से पहले HMA के अंतर्गत जिला न्यायाधीश द्वारा पारित डिक्री के विरुद्ध अपील HMA की धारा 28 के तहत दायर की जानी चाहिये थी।
- ऐसी अपील के लिये निर्धारित परिसीमा अवधि 30 दिन है।
- सावित्री पांडे बनाम प्रेम चंद्र पांडे (2002) के मामले में, न्यायालय ने माना कि:
- दूरी, भौगोलिक परिस्थितियों एवं वित्तीय स्थितियों को ध्यान में रखते हुए अपील दायर करने की परिसीमा अवधि (30 दिन) अपर्याप्त है।
- न्यायालय का मत था कि अपील दायर करने के लिये न्यूनतम 90 दिन की अवधि निर्धारित की जा सकती है।
- उपरोक्त निर्णय के अनुसार, वर्ष 2003 में HMA की धारा 28 (4) में संशोधन किया गया तथा परिसीमा अवधि को 30 से बढ़ाकर 90 दिन कर दिया गया।
- हालाँकि, FCA की धारा 19 (3) के अनुसार अपील दायर करने की परिसीमा अवधि 30 दिन निर्धारित की गई है। ऊपर चर्चा किये गए संशोधन के कारण इस मुद्दे पर असंगति है।