होम / करेंट अफेयर्स

पारिवारिक कानून

शून्य विवाह में स्थायी और अंतरिम भरण-पोषण

    «
 13-Feb-2025

खदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर 

किसी महिला को “नाजायज पत्नी” या “वफादार रखैल” कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।” 

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह 

स्रोत: उच्चतम न्यायालय  

चर्चा में क्यों? 

न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा किकिसी महिला को “नाजायज पत्नी” या “वफादार रखैल” कहना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अधीन उस महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा।” 

  • उच्चतम न्यायालय ने सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर (2025) के वाद में यह माना। 

सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर मामले की पृष्ठभूमि क्या थी? 

  • इस मामले में न्यायालय ने दो मुद्दों पर विचार किया: 
  • क्या हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (HMA) की धारा 11 के अधीन सक्षम न्यायालय द्वारा शून्य घोषित किये गए विवाह का पति या पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अधीन स्थायी निर्वाह-व्यय और भरण-पोषण का दावा करने का हकदार है? 
  • क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के अधीन घोषणा की मांग करते हुए दायर याचिका में, पति या पत्नी हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 के अधीन वादकालीन भरण-पोषण की मांग करने का हकदार है? 

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं? 

  • न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 वैवाहिक न्यायालय को “किसी भी डिक्री को पारित करते समय या उसके पश्चात् किसी भी समय” स्थायी निर्वाह-व्यय देने की शक्ति प्रदान करती है। 
  • हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन अपनी अधिकारिता का प्रयोग करने वाले किसी भी न्यायालय द्वारा कोई डिक्री पारित किये जाने पर पति या पत्नी के लिये स्थायी निर्वाह-व्यय और भरण-पोषण के लिये आवेदन करने का कारण बनता है। 
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अधीन पात्रता इस बात पर निर्भर नहीं करती है कि द्विविवाह नैतिक है या अनैतिक।  
  • इसके अतिरिक्त, न्यायालय ने कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अधीन डिक्री का अनुदान विवेकाधीन है और न्यायालय हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अधीन स्थायी निर्वाह-व्यय देने की प्रार्थना को कभी भी ठुकरा सकता है। 
  • इसके अतिरिक्त, निर्वाह-व्यय दिये जाने के संबंध में न्यायालय ने माना कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 24 की प्रयोज्यता की शर्तें इस प्रकार हैं: 
    • 1955 अधिनियम के अधीन एक कार्यवाही लंबित होनी चाहिये, और 
    • न्यायालय को इस निष्कर्ष पर पहुँचना चाहिये कि पत्नी या पति, जैसा भी मामला हो, के पास अपने भरण-पोषण और कार्यवाही के आवश्यक खर्चों के लिये पर्याप्त स्वतंत्र आय नहीं है। 
  • अंत में, न्यायालय द्वारा निम्नलिखित निष्कर्ष निकाले गए: 
    • जिस पति या पत्नी का विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के अधीन शून्य घोषित किया गया है, वह 1955 अधिनियम की धारा 25 का आह्वान करके दूसरे पति या पत्नी से स्थायी निर्वाह-व्यय या भरण-पोषण मांगने का हकदार है। स्थायी निर्वाह-व्यय का ऐसा अनुतोष दिया जा सकता है या नहीं, यह सदैव प्रत्येक मामले के तथ्यों और पक्षकारों के आचरण पर निर्भर करता है। धारा 25 के अधीन अनुतोष प्रदान करना सदैव विवेकाधीन होता है; और 
    • यहाँ तक कि यदि न्यायालय प्रथम दृष्टया इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि पक्षकारों के बीच विवाह शून्य या शून्यकरणीय है, तो हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन कार्यवाही के अंतिम निपटारे तक, न्यायालय को भरण-पोषण देने से रोका नहीं जा सकता है, बशर्ते कि धारा 24 में उल्लिखित शर्तें पूरी हों।  
    • धारा 24 के अधीन अंतरिम अनुतोष के लिये प्रार्थना पर निर्णय करते समय, न्यायालय सदैव अनुतोष मांगने वाले पक्षकार के आचरण को ध्यान में रखेगा, क्योंकि धारा 24 के अधीन अनुतोष प्रदान करना सदैव विवेकाधीन होता है।  

हिंदू विवाह अधिनियम के अधीन शून्य विवाह क्या है? 

  • जब हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5 को हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 के साथ पढ़ा जाता है, तो विवाह की निम्नलिखित श्रेणियाँ शून्य हो जाती हैं: 
    • यदि एक या दोनों पक्षकारों में किसी का पति या पत्नी विवाह के समय जीवित है; 
    • विवाह के पक्षकार प्रतिषिद्ध नातेदारी की डिग्रियों के भीतर हैं, जब तक कि उनमें से प्रत्येक को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हों, और 
    • जब तक कि उनमें से प्रत्येक पक्षकार को शासित करने वाली रूढ़ि या प्रथा से दोनों के बीच विवाह अनुज्ञात न हों पक्षकार एक दूसरे के सपिंड हैं। 
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 11 में विवाह को शून्य घोषित करने का उपबंध बताया गया है। 
  • ऐसे विवाह आरंभ से ही शून्य हैं। उपरोक्त श्रेणियों में आने वाले विवाह विधि की दृष्टि में अस्तित्व में नहीं हैं। 

इस मामले में पूर्व के निर्णयों का निर्वचन कैसे किया गया?  

  • यमुनाबाई अनंतराव अधव बनाम अनंतराव शिवराम अधव एवं अन्य (1988) 
    • इस मामले में न्यायालय ने कहा कि जब विवाह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अधीन अकृत (nullity) है, तो ऐसे विवाह का पति या पत्नी दण्ड प्रक्रिया संहिता, 1973 (CrPC) की धारा 125 के अधीन भरण-पोषण पाने का हकदार नहीं है। 
  • न्यायालय ने वर्तमान मामले अर्थात् सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर (2025) में कहा कि दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 पूरी तरह से अलग क्षेत्र में कार्य करती है। यह पत्नी और बच्चों के लिये उपलब्ध एक त्वरित और प्रभावी उपचार है। 
    • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन कार्यवाही संक्षिप्त प्रकृति की है। 
    • न्यायालय ने हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 और दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन उपचार के बीच अंतर किया: 
      • 1955 अधिनियम की धारा 25 के अधीन उपचार दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अधीन उपचार से पूर्णतः भिन्न है। 
      • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25, 1955 अधिनियम की धारा 11 के अधीन शून्य घोषित विवाह के पति-पत्नी को दूसरे पति-पत्नी से भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार प्रदान करती है। यह उपचार पति और पत्नी दोनों के लिये उपलब्ध है।  
      • दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 पर लागू होने वाले सिद्धांत हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 पर लागू नहीं हो सकते। 
      • इसके अतिरिक्त, धारा 125 दण्ड प्रक्रिया संहिता के अधीन पति को अनुतोष नहीं दिया जा सकता 
  • भाऊसाहेब @ संधू पुत्र रघुजी मगर बनाम लीलाबाई पत्नी भाऊसाहेब मगर (2004) 
    • बॉम्बे उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने इस निर्णय के पैरा 18 में शून्य घोषित विवाह की पत्नी को “नाजायज पत्नी” (illegitimate wife) कहा है। 
    • वस्तुतः पैरा 24 में न्यायालय ने ऐसी पत्नी को “वफादार रखैल” (faithful mistress) कहा है। 
    •  न्यायालय ने सुखदेव सिंह बनाम सुखबीर कौर (2025) के मामले में कहा कि शून्य विवाह की पत्नी को "नाजायज" कहना बहुत अनुचित है। 
      • न्यायालय ने कहा कि ऐसी पत्नी को " नाजायज पत्नी" या "वफादार रखैल" कहना भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 21 के अधीन अधिकारों का उल्लंघन होगा। 
      • न्यायालय ने कहा कि इस तरह की भाषा का प्रयोग स्त्री विरोधी है। 
      • यह भी कहा कि कोई भी व्यक्ति ऐसी महिला के लिये ऐसे विशेषणों का प्रयोग नहीं कर सकता जो शून्य विवाह में पक्षकार हो