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सिविल कानून
गर्भवती महिला का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य
« »07-May-2024
A (X की माँ) बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य "मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट में नाबालिग लड़की की शारीरिक और मानसिक स्थिति का मूल्यांकन होना चाहिये, भले ही गर्भकालीन आयु 24 सप्ताह से अधिक हो तथा भ्रूण में कोई महत्त्वपूर्ण असामान्यताएँ न हों”। मुख्य न्यायाधीश डॉ. धनंजय वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा |
स्रोत: उच्चतम न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने माना कि मेडिकल बोर्ड को गर्भधारण की समाप्ति पर अपनी राय बनाने में गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम,1971 (MTP Act) की धारा 3 (2-B) के तहत मानदण्डों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिये। निर्णय के संदर्भ में गर्भवती व्यक्ति के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य का भी आकलन करना चाहिये।
A (X की माँ) बनाम महाराष्ट्र राज्य और एक अन्य मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?
- X, 14 वर्षीय लड़की (नाबालिग) है और आरोप है कि सितंबर 2023 में उसका यौन उत्पीड़न किया गया था।
- X ने मार्च 2024 में उस घटना के बारे में प्रकट किया जब वह 25 सप्ताह की गर्भवती थी।
- X को इस बात की जानकारी नहीं थी कि वह गर्भवती है। यह अनुमान लगाया गया है कि X को हमेशा अनियमित मासिक धर्म होता था और वह पहले अपनी गर्भावस्था का आकलन नहीं कर सकती थी।
- भारतीय दण्ड संहिता, 1860 की धारा 376 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम, 2012 की धारा 4, 8 तथा 12 के तहत दण्डनीय अपराधों के लिये कथित अपराधी के खिलाफ तुर्भे एमआईडीसी पुलिस स्टेशन में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी।
- X को मेडिकल जाँच के लिये अस्पताल ले जाया गया और फिर उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये जेजे ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स, मुंबई में स्थानांतरित कर दिया गया।
- मेडिकल बोर्ड का गठन गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 के तहत किया गया था।
- मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, X उच्च न्यायालय की अनुमति के अधीन अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ थी।
- अपीलकर्त्ता ने उच्च न्यायालय का रुख किया। मेडिकल बोर्ड ने X की दोबारा जाँच किये बिना ही स्पष्टीकरण निर्णय प्रदान कर दिया।
- रिपोर्ट में इस आधार पर गर्भावस्था को समाप्त करने से इनकार किया गया कि भ्रूण की गर्भकालीन आयु 27 से 28 सप्ताह थी और भ्रूण में कोई जन्मजात असामान्यताएँ नहीं थीं।
- उच्च न्यायालय ने उसकी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया।
- अपीलकर्त्ता ने भारत के संविधान, 1950 (COI) के अनुच्छेद 136 के तहत उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की।
न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?
- उच्चतम न्यायालय ने इस तथ्य पर निर्णय दिया कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट, जिस पर उच्च न्यायालय ने विचार किया है, उसमें X के शारीरिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गर्भावस्था के प्रभाव का ज़िक्र नहीं किया गया है।
- नए सिरे से मेडिकल बोर्ड गठित करने का निर्देश दिया गया
- न्यायालय ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट में नाबालिग के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का आकलन शामिल नहीं है, इस तथ्य के बावजूद कि वह केवल 14 वर्ष की है। कथित यौन उत्पीड़न सहित गर्भावस्था के आस-पास की परिस्थितियों के मद्देनज़र यह विशेष रूप से चिंताजनक है।
- इसके बाद डीन (न्यू मेडिकल बोर्ड) द्वारा गठित छह डॉक्टरों की टीम ने नाबालिग की जाँच की।
- X की जाँच करने के बाद, मेडिकल बोर्ड ने राय दी कि भ्रूण की गर्भकालीन आयु 29.6 सप्ताह थी और गर्भावस्था जारी रहने से X के शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
- न्यायालय ने उच्च न्यायालय के निर्णय को खारिज कर दिया और X को अपनी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति दे दी।
- MTP अधिनियम की धारा 3(3) के तहत व्यक्ति के पूर्वानुमानित वातावरण का मूल्यांकन करने में गर्भवती व्यक्ति की राय को प्रधानता दी जानी चाहिये।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि चुनने का अधिकार और प्रजनन स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है।
इस मामले में कौन-से ऐतिहासिक निर्णय उद्धृत किये गए हैं?
- X बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) (2023):
- oमटीपी अधिनियम के तहत गर्भावस्था को समाप्त करने के मामलों में पंजीकृत चिकित्सा अधिकारी (RMP) की राय निर्णायक है।
- पंजीकृत चिकित्सा अधिकारी (RMP) की राय का उद्देश्य एमटीपी अधिनियम लिया गया है जो गर्भवती महिला के स्वास्थ्य की रक्षा करना और सुरक्षित, स्वच्छ तथा विधिक गर्भपात की सुविधा प्रदान करना है।
- गर्भपात का अधिकार गरिमा, स्वायत्तता और प्रजनन विकल्प का सहवर्ती अधिकार है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत इस अधिकार की गारंटी दी गई है।
- XYZ बनाम गुजरात राज्य (2023):
- न्यायालय ने निर्णय दिया कि मेडिकल बोर्ड या उच्च न्यायालय केवल इसलिये गर्भपात से इनकार नहीं कर सकता क्योंकि गर्भवती महिला की गर्भकालीन आयु विधिक सीमा से अधिक है।
गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971 क्या है?
- भारत सरकार ने गर्भावस्था की समाप्ति के संबंध में कुछ कानून प्रस्तावित करने के लिये श्री शांतिलाल शाह के तहत ‘शाह समिति’ की स्थापना की।
- शाह समिति ने सिफारिश की कि गर्भपात को वैध बनाया जाना चाहिये।
- एमटीपी अधिनियम अगस्त 1971 में पारित किया गया और 1 अप्रैल 1972 को लागू हुआ।
- अधिनियम के तहत प्रदान की गई परिस्थितियों में एक पंजीकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा गर्भधारण की वैध समाप्ति प्रदान करने के लिये अधिनियम बनाया गया था।
- एमटीपी अधिनियम उस महिला को अधिकार प्रदान करता है जो गर्भपात की इच्छा रखती है और उसकी सहमति, कल्याण तथा स्वास्थ्य को आधार बनाया जाता है।
- एमटीपी अधिनियम की धारा 3 उन शर्तों को बताती है जिनके तहत गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है।
- एमटीपी अधिनियम की धारा 3 के अनुसार गर्भावस्था को केवल एक पंजीकृत चिकित्सा अधिकारी (RMP) द्वारा समाप्त किया जा सकता है।
- यदि गर्भावस्था 12 सप्ताह की है तो एक RMP की राय के आधार पर इसे समाप्त किया जा सकता है और यदि अवधि 12 सप्ताह से 20 सप्ताह के बीच है, तो गर्भावस्था को समाप्त करने के लिये दो पंजीकृत चिकित्सा अधिकारियों की राय आवश्यक है।
- यदि गर्भावस्था 20 सप्ताह से अधिक हो जाती है, तो गर्भवती महिला को रिट याचिका के माध्यम से उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करनी पड़ती है।
- न्यायालय एक मेडिकल बोर्ड के गठन के निर्देश दे सकता है और मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय गर्भपात की अनुमति या अनुमति नहीं दे सकता है।
- इसके अलावा, चूँकि एमटीपी अधिनियम केवल 24 सप्ताह से अधिक के गर्भपात की अनुमति देता है यदि भ्रूण में पर्याप्त असामान्यताएँ पाई जाती हैं।
- अधिनियम की धारा 3(2-बी) में प्रावधान है कि महत्त्वपूर्ण असामान्यताओं वाले भ्रूण को समाप्त करने के लिये गर्भावस्था की अवधि पर कोई सीमा लागू नहीं होगी।
- एमटीपी अधिनियम की धारा 5 में प्रावधान है, कि गर्भकालीन आयु की परवाह किये बिना गर्भावस्था को समाप्त किया जा सकता है, यदि चिकित्सक ने स्थिति के अनुसार यह राय बनाई है कि गर्भवती महिला के जीवन को बचाने के लिये गर्भपात तुरंत आवश्यक है।
- गर्भ का चिकित्सकीय समापन (संशोधन) अधिनियम, 2021 द्वारा महिलाओं की विशेष श्रेणियों के लिये गर्भधारण की ऊपरी सीमा को 20 से 24 सप्ताह तक बढ़ा दिया गया था, जिसमें बलात्कार से पीड़ित, अनाचार की शिकार और अन्य कमज़ोर महिलाएँ (अलग तरह से सक्षम महिलाएँ, नाबालिग, अन्य) शामिल थी।
- संशोधन अधिनियम, 2021 अविवाहित महिलाओं को भी गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देता है।