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पारिवारिक कानून

हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह-स्थल का विधिक महत्त्व

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 27-Jan-2025

अनुप सिंह बनाम श्रीमती. ज्योति चंद्रभान सिंह

“इसलिये यह तथ्य कि बाद में प्रयागराज में एक पार्टी की मेजबानी की गई थी, प्रयागराज में कुटुंब न्यायालय की अधिकारिता प्रदान करने के प्रयोजनों के लिये प्रासंगिक नहीं होगा”।

न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति दोनादी रमेश

स्रोत: इलाहाबाद उच्च न्यायालय 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्रा एवं न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की पीठ ने माना है कि कुटुंब न्यायालय को अधिकारिता प्रदान करने के लिये विवाह स्थल प्रासंगिक नहीं है।

अनूप सिंह बनाम श्रीमती ज्योति चंद्रभान सिंह मामले की पृष्ठभूमि क्या थी?

  • यह मामला अनूप सिंह (पति/अपीलकर्त्ता) एवं श्रीमती ज्योति चंद्रभान सिंह (पत्नी/प्रतिवादी) के मध्य दांपत्य विवाद से संबंधित है। 
  • दोनों पक्षों का विवाह प्रतापगढ़ में संपन्न हुआ, जिसके बाद प्रयागराज में रिसेप्शन का आयोजन किया गया। 
  • पति ने कुटुंब न्यायालय, प्रयागराज के समक्ष हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, (HMA) की धारा 13 के अंतर्गत विवाह विच्छेद के लिये याचिका दायर की।
  • कुटुंब न्यायालय द्वारा याचिका पर विचार करने से मना करने पर, पति ने समीक्षा आवेदन संस्थित किया, जिसे भी खारिज कर दिया गया। 
  • पति ने बाद में कुटुंब न्यायालय के आदेश के विरुद्ध अपील संस्थित की, साथ ही अपील संस्थित करने में हुए विलंब के लिये एक सिविल विविध विलंब क्षमा आवेदन भी संस्थित किया। 
  • पति ने तर्क दिया कि यद्यपि विवाह प्रतापगढ़ में संपन्न हुआ था, लेकिन रिसेप्शन प्रयागराज में आयोजित किया गया था तथा इस निष्कर्ष पर विवाद किया कि पक्षकार अंतिम रूप से नई दिल्ली में रहते थे।
  • अधिकारिता  का प्रश्न HMA की धारा 19 के अंतर्गत उठा, जो वैवाहिक याचिका दायर करने के लिये क्षेत्रीय अधिकारिता  निर्धारित करता है। 
  • यह मामला मुख्य रूप से तलाक याचिका पर विचार करने के लिये पारिवारिक न्यायालय, प्रयागराज के क्षेत्रीय अधिकारिता के प्रश्न से संबंधित है। 
  • ट्रायल कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि कुटुंब न्यायालय, इलाहाबाद (प्रयागराज) को अधिकारिता प्रदान करने के लिये आवश्यक तत्त्वों का अभाव था।
  • प्रादेशिक अधिकारिता की कमी के आधार पर याचिका पर विचार करने से मना कर दिया।

न्यायालय की टिप्पणियाँ क्या थीं?

  • इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निम्नलिखित टिप्पणियाँ कीं:
    • HMA की धारा 19 की जाँच की गई तथा पाया गया कि विवाह-स्थल खंड (i) के अंतर्गत अधिकारिता के लिये एक प्रासंगिक विचार है।
    • यह अभिनिर्धारित किया गया कि विवाह के बाद प्रयागराज में रिसेप्शन पार्टी आयोजित करना प्रयागराज में कुटुंब न्यायालय को अधिकारिता प्रदान करने के लिये प्रासंगिक नहीं था।
    • पुष्टि की गई कि यह निर्विवाद है कि विवाह प्रतापगढ़ में संपन्न हुआ था।
    • शिकायत में ऐसा कोई विशेष दावा नहीं पाया गया जिससे पता चले कि पक्षकार अंतिम बार प्रयागराज में विवाहित जोड़े के रूप में साथ रहते थे।
    • ट्रायल कोर्ट के इस निष्कर्ष को यथावत रखा गया कि पक्षकार अंतिम बार नई दिल्ली में साथ रहते थे, यह देखते हुए कि यह निष्कर्ष न तो दोषपूर्ण था एवं न ही विकृत।
    • क्षेत्रीय अधिकारिता की कमी के आधार पर याचिका पर विचार करने से मना करने वाले कुटुंब न्यायालय के निर्णय में कोई अवैधता या दोष नहीं पाया गया।
  • अपील को खारिज करते हुए न्यायालय ने कहा कि अपीलकर्त्ता आवश्यक राहत के लिये सक्षम न्यायालय में अपील कर सकता है।

HMA की धारा 19 क्या है?

  • इस धारा में उन न्यायालयों के संबंध में प्रावधान है जिनमें याचिका प्रस्तुत की जाएगी। इसमें यह प्रावधानित किया गया है कि -
    • इस अधिनियम के अधीन प्रत्येक याचिका उस जिला न्यायालय में प्रस्तुत की जाएगी, जिसकी स्थानीय सीमा के भीतर साधारण आरंभिक सिविल अधिकारिता है: -
      (i) विवाह संपन्न हुआ था, या
      (ii) याचिका प्रस्तुत करने के समय प्रतिवादी निवास करता है, या
      (iii) विवाह के पक्षकार अंतिम बार एक साथ रहते थे, या
      (iiia) यदि पत्नी याचिकाकर्त्ता है, तो वह याचिका प्रस्तुत करने की तिथि को कहाँ निवास कर रही है;
      (iv) यदि प्रतिवादी उस समय उन क्षेत्रों से बाहर निवास कर रहा है जिन पर यह अधिनियम लागू होता है, या सात वर्ष या उससे अधिक अवधि से उसके जीवित होने के विषय में उन व्यक्तियों द्वारा नहीं सुना गया है जो स्वाभाविक रूप से उसके जीवित होने पर उसके विषय में सुनते।
  • हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 19 बहुत ही उदार प्रावधान है क्योंकि यह दोनों पक्षों को दांपत्य याचिका पर चर्चा करने में सुविधा प्रदान करती है। 
  • इस धारा के खंड (ii) में प्रयुक्त शब्द निवास वास्तविक निवास स्थान को दर्शाता है न कि विधिक या निर्मित निवास को।
  • महादेवी बनाम एन.एन. सिराथिया (1973) के मामले में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा कि HMA की धारा 19 निवास की अवधि से संबंधित नहीं है। यहाँ तक ​​कि एक छोटा निवास भी न्यायालय को याचिका पर विचार करने का अधिकार देने के लिये पर्याप्त हो सकता है। यदि पति और पत्नी एक ही निवास में एक साथ रहते थे, तो उन्हें एक साथ रहना चाहिये। इस प्रकार, निवास का तथ्य एवं निवास का उद्देश्य महत्वपूर्ण नहीं है।